विश्व युद्ध की आहट
अनन्त राम श्रीवास्तव
एशियन गेम्स के समापन के साथ एक बार फिर से विश्व युद्ध के विनाशकारी बादलों की आहट नजर आने लगी है। यह संयोग है या प्रयोग यह तो राजनीति में रुचि रखने वाले रसूखदार ही बता सकते हैं। पिछले बार चीन में शीतकालीन ओलंपिक के समापन के साथ ही रुस व यूक्रेन के मध्य युद्ध की ज्वाला भड़की थी। वह आज तक जल रही है। कोरोना महामारी से पूरे विश्व की पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास पूरे विश्व के देश कर रहे थे उस समय रुस यूक्रेन युद्ध ने श्रीलंका, नेपाल व बांग्लादेश को बरबादी की कगार पर ला कर खड़ा कर दिया था। भारत अगर मदद के लिए आगे नहीं आता तो श्रीलंका कब का बिखर गया होता।
इस बार फिर चीन में ही एशियन गेम्स का आयोजन चीन में ही किया गया था एशियन गेम्स के समापन के साथ ही फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन "हमास" ने इजरायल पर राकेटों की बौछार कर महायुद्ध की ज्वाला भड़का दी है। फिलिस्तीन के साथ लेबनान भी इजरायल पर अटैक कर रहा है। इरान में जश्न के समाचार ने आग में घी डालने का काम किया है। अमेरिका ब्रिटेन जैसे कई देश इजरायल के समर्थन में खड़े हो गये हैं। अमेरिका ने तो "बैलिस्टिक मिसाइल तक इजरायल को देने की की घोषणा कर दी है।
उत्तरी अटलांटिक संगठन (नाटो) की आर्थिक व सैन्य सहायता के दम पर यूक्रेन अट्ठारह महिने से अधिक समय से रुस को दाँतों चने चबवा रहा है। इजरायल तो सैन्य दृष्टि से यूक्रेन की अपेक्षा अधिक मजबूत है। ऐसे में फिलिस्तीन के साथ इरान, सउदी अरब और लैबनान के खड़ा होने से यह महायुद्ध विश्व युद्ध का रुप ले सकता है। लेबनान वही देश है जो क ई वर्षों तक अमेरिका से युद्ध लड़ता रहा है। इरान की भी अमेरिका से नहीं बनती है। चीन, रुस और उत्तरी कोरिया का तानाशाह किम जोंग विश्व से अमेरिका व नाटो की दादागीरी समाप्त करवाने के लिए फिलिस्तीन को गुपचुप ढंग से मदद कर सकते हैं। ये सभी संकेत विश्व युद्ध के विनाशकारी बादलों के आने की ओर इशारा कर रहे हैं।
रुस यूक्रेन युद्ध से उपजी मंहगाई की विभीषिका का दंश पूरा विश्व भोग रहा है। संभावित विश्व युद्ध में इसका ग्राफ बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। हमारा संयुक्त राष्ट्र संघ स्थायी सदस्यों के हाँथ का खिलौना बना हुआ है। प्रतिबंधों की खानापूरी करने के अलावा अन्य कुछ करने में असमर्थ नजर आता है। अमेरिका और नाटो संगठन के देश आये दिन अपने स्वार्थ के लिए किसी न किसी देश को बलि का बकरा बनाते रहते हैं। ऐसे में इस महायुद्ध को रोकने की पहल कौन करेगा। छोटे देशों की सुनने वाला कोई नहीं है। बड़े देश दो गुटों में बंट चुके हैं। ऐसे में विश्व युद्ध की आहट की संभावना सभी देशों के लिए चिंता का विषय है।
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आफका
अनन्त राम श्रीवास्तव