सूत न कपास कोरी से लट्ठम लट्ठ
अन्नत राम श्रीवास्तव
आप सभी ने यह कहावत "सूत न कपास कोरी से लट्ठम लट्ठ" तो सुनी ही होगी। आम आदमी इस कहावत को कैसे जीवन में चरित्रार्थ करता है जिससे उसे "आम के आम व गुठलियों के दाम" भी वसूल हो जायें। कहावतों के माध्यम अपना स्वार्थ सिद्ध करना कोई हम भारतीयों से सीखे। आइये अब मूल कहानी पर आते हैं।
अलगू चौधरी व जुम्मन शेख के परिवारों में कई पीढ़ियों से पुरानी "लाग डांट" चली आ रही थी। जुम्मन के परिवार से सुलेमान शेख व अलगू चौधरी के परिवार से बलराम चौधरी इस परंपरा का निर्वाहन अब भी बदस्तूर करते चले आ रहे थे। सुलेमान शेख के नये नये दांव पेंचों से बलराम चौधरी अभी तक मात खाते चले आ रहे थे। इस बार बलराम चौधरी ने "लग्गी से घास खिलाने" वाले दांव से सुलेमान शेख को मात देने का फैसला किया।
सुलेमान शेख स्वांस व दमा के मरीज थे इसके बावजूद वे सिगरेट पीने से बाज नहीं आते थे। इसे लेकर बाप बेटे में अक्सर कहासुनी होती रहती थी। इसलिये वे बेटे से छुपकर पड़ोस में बैठ कर सिगरेट पिया करते थे। पड़ोसी एक दिन कहीं गया हुआ था। चौधरी ने चुपचाप उसके दरवाजे के "ताखे" पर सबसे सस्ती सिगरेट खरीद कर रखवा दी। जब पड़ोसी लौट कर आया तो उसने चौधरी से पूंछा कि यह सिगरेट यहां किसने रखी है। चौधरी साफ मुकर गया कि मैं क्या जानूं। जो तुम्हारे यहां बैठ कर सिगरेट पीता है उसी की होगी। उसी के यहां भिजवा दो।
पड़ोसी का लड़का सुलेमान के घर सिगरेट देने गया उस समय सुलेमान घर पर नहीं उसका लड़का था। जब सुलेमान लौटकर आये तो बाप बेटों में जम कर कहा लड़ाई हुई। बिना डीजल पेट्रोल डाले चौधरी ने सुलेमान के परिवार में जो आग लगायी वह कई दिनों तक जलती रही। चौधरी मन ही मन मुस्कराते हुए उसका आनन्द। उठाते रहे।
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आपका
अनन्त राम श्रीवास्तव