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फूल माला

21 April 2023

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फूल माला

   मस्तु जैसा नाम वैसा ही मस्त था, उसके बहुत  से दोस्त थे, जो हर क्षेत्र में काम करते थे, गाँव  क्षेत्र में कोई भी कार्यक्रम हो उसमे मस्तु उपस्थित नहीं हो ऐसा कभी नहीं हो सकता था, वह आभाषी  दुनिया में बहुत  खुश  रहता, सोशल मीडिया में क्षेत्र की समस्या क़ो वह उजागर करता रहता, उसके फेसबुक इंस्ट्राग्राम, ट्विटर कुटुंब ऐप, व्हटसप पर कमेंट्स की संख्या  सैकड़ो  से कम नहीं होती, उसे लगता था की उसके प्रशंसक़ो की जब जरूरत होंगी तब काम आएंगे।

     कभी सड़को  के लिए  आंदोलन  कभी  अस्पताल की व्यवस्था , स्कूल की समस्या, मनरेगा  की गड़बड़ी  ना जाने कितनी बातें वह अपने सोशल  मीडिया  प्लेटफार्म पर लिखता, वैसे  वह सोशल मीडिया पर स्टार बन गया था। क्षेत्र में जब कोई बात होती तो वह सक्रिय रुप में भागीदारी करता।
     उसके कई  मित्र और परिचित  जो विभिन्न राजनितिक पार्टियों से जुड़े थे, वह उनके सामने अपनी माँग और समस्याओ क़ो रखता, सब उसे मिश्री से भरी  आश्वाशन  की खुराक मिलती, लेकिन वह खुराक पेट साफ करने वाले चूर्ण की तरह होती , लगता तो था  की काम  हो गया हैँ, किन्तु मर्ज का समाधान नहीं मिल पता अगले दिन फिर समस्या जस की तस बनी रहती।

     मस्तू  हार मानने वालो में नहीं था, वह लगा रहता, उसकी सोशल मीडिया की फैन फ्लोइंग देखकर हर चुनाव में उसक़ो नेता समुदाय द्वारा अपने पक्ष में करने के लिए   हर तरह से लोक लुभावना दिया जाता, वह नेताओ  के भ्रम  जाल  में फंस  जाता और फिर अपनों के लिए ही बुरा बन जाता।
     उसने कई चुनाव  जितवाये, लेकिन जब कोई काम की बात होती तो चुने  हुए  प्रतिनिधि बहानो की बौछार लगा देते, कई  तो सोशल  मीडिया में उसे ब्लॉक तक कर देते।

   बरसात की रात  थी, बाहर जोरो की बारिश  लगी हुई  थी, मस्तु अपने पैतृक  मकान में ही रहता था, मस्तु के पास मकान के मरम्मत के लिए  इतने संसाधन  नहीं थे  की वह मरम्मत कर दे, लेकिन आस थी की थोड़ा समय बाद जैसा  ही कुछ  पैसा  आएगा  वह घर की मरम्मत कर देता।  सब्र और इंतजार में दिन ही नहीं सालो गुजर  जाते हैँ, लेकिन उस रोज की बरसात  ने सब्र  का बाँध  टूट गया और पैतृक  मकान की एक दिवार ढह गई। यहाँ   सिर्फ मस्तु  के पैतृक मकान की दिवार नहीं ढही बल्कि उसकी आस और उम्मीद टूट गई, उसके पास इस बुजुर्गो की सम्पत्ति के रुप में एक मकान  ही हिस्सा में आया था, जो सर ढकने  के लिए  काफी था, किन्तु वह भी साथ  छोड़  रहा था। खुद की किस्मत क़ो कोसते हुए  जैसे तैसे मस्तू  की यह काली  बादलो  से गरजती बरसती रात बीती।
     अगले सुबह  ही मस्तू. ने सोशल  मीडिया पर घर की दीवार टूटने  की फोटो डाली, कमेंट्स की तो बाढ़  आ गई , इतनी बाढ  तो रात की बरसात  से भी नहीं आयी थी। मस्तू क़ो लगा की उसके इतने जानने वाले हैँ, कोई ना कोई मदद करेगा, लेकिन एक दो क़ो छोड़कर  सोशल  मीडिया की आभासी  मित्रता का अहसास  होने लगा, और वास्तविकता  ने अपनी आहट दी तो कोई नजर नहीं आया।

      मस्तू  जागरूक तो था ही उसने प्रधानमंत्री आवास  योजना के लिए  आवेदन किया। उम्मीद थी की आवास  स्वीकृत हो जायेगा,सपना सजोने लगा की दो ही कमरों का सही किन्तु अपना नया घर तो होगा, किंतु सिस्टम की लचर व्यवस्था के आगे  सपने भी  दग़ा देने लगे, गाँव में दो तीन अन्य के निवास स्वीकृति हो गये  किन्तु मस्तू  के आवास  पर सरकारी महकमे  की वक्र दृष्टि ऐसी पड़ी  की आज तक मस्तु का आवास  स्वीकृति नहीं हो पाया।

     मस्तू ने फिर भी हार नहीं मानी  वह जन मुद्दों क़ो उठाता  रहता, और विद्यालय के लिए अधिकारों की माँग के लिए  वह आगे  अपनी आवाज़  उठाता  रहता, और सच  क़ो सच लिखने से नहीं चूकता, लेकिन सच की पाचन क्रिया बहुत ज्यादा संवेदनशील होती हैँ हर कोई नहीं पचा पाता हैँ, इस वजह से मस्तू के दोस्त जो राजनीति और राजनेताओ  के हितेषी होते वह दुश्मन बन जाते।
     समय व्यतीत होता रहा चुनाव आते रहे वादे होते रहे किन्तु समस्या जस की तस बनी रही, इसी बीच  क्षेत्र में राष्ट्र स्तर की बड़ी हस्ती का आगमन  होता हैँ, जिसमें प्रदेश के शासन  प्रशासन  पूरी तरह मुस्तैद  हो. गई। मंत्री से लेकर संत्री और विधायक से लेकर वार्ड मेंबर  वँहा  फूल  माला लेकर स्वागत के लिए  खड़े थे, क्षेत्र की समस्या से सम्बंधित कोई भी  प्रस्ताव किसी भी समर्थक, कार्यकर्ता के हाथ  में नहीं था, सब फूल माला डालने और फोटो  शूट करने के लिए  बेताब थे, मस्तू  ने दर्जन भर प्रस्ताव बना रखे  थे,  वह उन्हें लेकर गया था, जैसे ही उसने आगे बढ़ने  की कोशिश  की छुट भैया नेता जी ने रोकते हुए कहा तेरा दिमाग़ सही हैँ, ये क्या दे रहा हैँ, जानता  भी हैँ सामने कौन हैँ, उसकी एक. झलक  देखने क़ो लोग बेताब हैँ और आप अपनी ही राग  अलाप रहे हो।
     दूसरे ने कहा अरे भाई  ज्यादा नेता मत, बन जानता भी हैँ कौन आये हैँ, इनका डंका पूरे देश में बजता हैँ, इनके भाषण  सुनने और वक्तव्य से आख़री समय का चुनावी माहौल और समीकरण  बदल  जाते हैँ, और तुम अस्पताल, सड़क, विद्यायल की समस्या के कागज़ लेकर आये हो, उनके पास इतना समय कँहा हैँ। जल्दी जाओ एक गुलदस्ता और फूल माला स्वागत के लिए लेकर आओ, क्षेत्रीय समस्यायो का रोना रोते रहते  हो,  कल गुलदस्ते और सेल्फी की फोटो डालना अपने स्टेटस, फिर देखना  तुम्हारा समाज  में कितना स्टेटस बढ़ता हैँ।
     मस्तू  यह सब बात सुनकार मुस्करा रहा था, फिर उसने कहा हमारा काम  तो शासन  प्रशासन ही करेगा फूल माला और गुलदस्ते तो क्षणिक  सुख हैँ, सेल्फी की. कीमत कुछ घंटो की हैँ, यदि हमारी, एक. समस्या का समाधान  हो जाता हैँ तो जीवन भर ला और आने वाली पीढ़ी  के लिए एक विरासत हो जायेगी।

    इधर फूल मलाओ और गुलदस्ते पकड़ाते  हुए लाईन लगी हुई  थी  सब सेल्फी लेने खड़े हुए थे, उधर मस्तू प्रस्तावो का पेज पलटते  हुए विद्यालय की तरफ देख रहा था जिसकी जर्जर हालत  देखकर  सोचा रहा हैँ की इतने जनप्रतिनिधि चुनकर  भेजे  लेकिन किसी ने पलटकर  नहीं देखा, रोड़ के गड्ढों पर सबकी गाड़ी उछलती  गई  पर सबने इस पर ध्यान ना देकर किसने फोटो  ली और पोस्ट कर दी  हैँ, उस पर ध्यान था। अस्पताल में क्या सुविधा हैँ क्या नहीं, यह आम जनता सोचे, हमें तो देहरादून दिल्ली गुड़गाँव,में ही सरकारी खर्चे  पर इलाज  करवाना हैँ।
    इधर मस्तू  भी लाईन  पर लगा था, उसका नम्बर आया, उसने ना तो कोई गुलदस्ता दिया ना कोई फूल माला पहनाईं और न ही उसने सेल्फी ली, बल्कि उसने आये हुए  माननीय जी के  हाथ  पर प्रस्तावो का पुलिंदा पकड़ाते  हुए कहा मेरे पास यहीं गुलदस्ता हैँ और यहीं फूल माला, यह सुनते ही माननीय  जी ने मस्तू  की पीठ थपथपाते  हुए  कहा आप सही कह  रहे हो यह वास्तविक फूल माला हैँ, और वह प्रस्ताव अपने जेब में रखते हुए मुस्कराकर धन्यवाद ज्ञापित किया।

हरीश  कंडवाल मनखी  की कलम से।
      

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