मैं हरीश कंडवाल. मनखी कहानी एवं कविता व अन्य विषय पर लेखन कार्य।
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दयानंद मूलतः उत्तराखण्ड के निवासी थे लेकिन उनके तीन पीढ़ी पहले उनके बूढ़े दादा जी बचपन में ही सोनीपत किसी रिश्तेदार के साथ नौकरी करने चले गये थे। दयानंद कपरवाण ने सोनीपत में अपनी जाति को छ
lमानसी और तुलसी दोनों बहिने हैं, वह छुट्टी के बाद अपने घर जा रही थी, मानसी ने देखा कि सामने एक 7 साल का लड़की तिरंगा झण्डा बेच रही है, वह गाड़ी वाले के शीशे खटखटाती है, गाड़ी में बैठे लोग उसकी तरफ नहीं द
अमित देहरादून बस अड्डे पर दिल्ली वाली वाल्वो बस में बैठा, लगभग सभी सीटें भरी हुइ हैं, आखिरी सीट से पहले की सीट पर लगभग 18 साल की युवती बैठी हुई है, उसके बगल वाली सीट खाली है, परिचालक ने अमित को कहा कि
रसोईघर में चम्मचदानी में रखे चम्मच पूरे रसोईघर में इतरा रहा था। बेचारा प्रेशर कूकर तो दाल चावल पकाते पकाते नीचे से काला पड़ गया था और सीटी मारने के बाद भी उसकी मेहनत की कोई तवज्जो नहीं थी। तवा बेचारा त
फूल माला मस्तु जैसा नाम वैसा ही मस्त था, उसके बहुत से दोस्त थे, जो हर क्षेत्र में काम करते थे, गाँव क्षेत्र में कोई भी कार्यक्रम हो उसमे मस्तु उपस्थित नहीं हो ऐसा कभी नहीं हो
आईना बता कैसे उनका दिल चुराना हैधीर धीरे उनको अपना जो बनना हैउनके दिल मे रहना है उनकी नैनो में समाना हैमुझे उनके प्यार का हर सितम उठाना हैआईना बता कैसे उनका दिल चुराना है।आईना बता उनका कोई राज तूमुझको