रसोईघर में चम्मचदानी में रखे चम्मच पूरे रसोईघर में इतरा रहा था। बेचारा प्रेशर कूकर तो दाल चावल पकाते पकाते नीचे से काला पड़ गया था और सीटी मारने के बाद भी उसकी मेहनत की कोई तवज्जो नहीं थी। तवा बेचारा तो रोज जल जल कर परेशान हो गया था लेकिन गृहणी कभी उसकी पीड़ा नहीं समझ पायी, बेचारा रोटी को बड़े प्यार से फुलाता कि मालकिन कभी तो खुश होगी मेरी लगन से, लेकिन रोटी बनने के बाद बिना धोये ही एक किनारे पर उसे रख देती और जब रोटी बनाती तब ही बेचारी तवा की याद आती।
इधर कढाई तो सब्जी पकाते पकाते नीचे से जल गयी थी, और पतली हो गयी थी, कभी समोसा बनाने कभी पूरी बनाने के काम आती कभी हलवा भी बन जाता लेकिन कभी मालकिन ने उसे कभी नजाकत से नहीं पकड़ा। वहीं बेलन अपने बाहुबल से खुश था, कि कम से कम उसकी इस रसोईघर में हथियार के तौर पर इज्जत तो है। मालकिन जब भी पति से झगडती है, या गुस्सा करती है तो मुझे ही दिखाकर डराने का प्रयास करती हैँ, और अपनी बादशाहत बरकरार बनाये रखती हैँ।
उधर चकला भी बेलन के भाग्य पर जलभुन रहा हैँ, मेरे बिना यह एक रोटी भी नहीं बना सकता हैँ, किन्तु धमकी इसकी ही दी जाती हैँ। यह सुनकर कर्ची और पलटा बड़बड़ा कर बोले बेलन के साथ साथ कभी कभी हमें भी दिखाकर खौफ कायम किया जाता हैँ, किन्तु हम केवल दिखाने के लिए है हैँ, नाम हमारा घुमाने और खरोलने के लिए आता हैँ।
इधर बाकि बर्तन भी एक दूसरे से टकराते हुए लड़ने लगे की रसोई घर में हमारी महत्ता को कम ना आँका जाय, हम भी अपना पूरा सहयोग देते हैँ, भले है हम चम्मच की तरह चमचागिरी ना करें, इधर चमचागिरी सुनते है चम्मच बोल पड़ा, भाई मैं कोई चमचागिरी नहीं करता हूँ, बस मालिक लोग मेरा सहारा लेकर चमचागिरी करते हैँ, आजकल कोई मेहमान या बॉस को बुलाकर उसकी मेहमान नवाजी करते हुए हम अलग अलग चम्मचो को उसके सामने रखकर हाथ से खाने के बजाय हमें उनके मुँह में जबरदस्ती ठूसवाते हैँ, ताकि उनका बॉस ख़ुश रह सकें, कहते हैँ की खुश रखने का रास्ता पेट से ही जाता हैँ, जिसको जितना खिला सको, जितना चढ़ावा चढ़ा सको उतना ही आपकी नौकरी सुरक्षित हैँ। आजकल जितना बड़ा कोई चमचागिरी गिरी कर सकें वही सफल हैँ, हमको तो रसोई घर और होटल, रेस्टोरेंट से होते हुये हम राजनीति और ,ऑफिस तक पहुंचा दिया गया है, जबकि हम केवल खाना खाने का ही काम आते है, वह भी केवल तरल पदार्थ खाने में सहयोग करते है किन्तु कुछ हमें दिखावे और झूठी शान के लिए उपयोग करते है, हम केवल अन्य बर्तनो के सहयोगी है लेकिन सारे बर्तनो में हमको ही ख्वामखा बदनाम किया जाता है।
इन सब बातों को फ्रीज में रखा मक्खन सुन रहा था वह भी चम्मच की बात पर मन ही मन समर्थन कर रहा था जब उससे नहीं गया तो उसकी पीड़ा का उभाल आया और पीगल कर बाहर आ गया, कहने लगा की मैं भी तो ऐसे ही बदनाम हूँ, सब कहते हैं की बॉस पर मक्खन लगाने वाला ही सफल होता हैँ, जो जितना मक्ख़न लगाता हैँ वह उतना ही सफलता प्राप्त करता है अब बताओ मुझे तो भगवान कृष्ण शौक से खाते थे किन्तु मुझे बेमतलब में बदनाम कर रखा है, की ज्यादा मक्ख़न मत लगावो।
इन सब बातो को डिब्बे में रखे ड्राइफुट सुनकर इतरा रहे थे, और सोचा रहे थे की हम तो सबसे ज्यादा चमचागिरी करने के काम आते है, किंतु दाम अधिक होने के कारण बदनाम नहीं होते है, बल्कि बॉस को उपहार देने वाला सबसे बड़ा इज्जतदार चमचागिरी करने वाला ओहदेदार होता है, वंही रसोई घर के पिछले हिस्से में पिछले दिवाली की बची हुई सोनपापड़ी. अपनी किस्मत पर रो रही थी की हम तो केवल अदला बदली कर रश्म अदायिगी का काम आती है, ताकि रिश्ते कायम रहे कोई बुरा ना माने।
इतने में मालकिन आ गई उसने बर्तनो की खनखनाहट पर ध्यान नहीं दिया और दिन की 5 वी बार की चाय के लिये गैस पर फ्राईपान पर पानी रख दिया, बेचारा फ्राईपान कह रहा था की सारे दिन में सबसे ज्यादा मैं ही जलता हूँ किन्तु ना गुमनाम हूँ और ना बदनाम किंतु मेरा कोई गुणगान भी नहीं होता है।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।