दयानंद मूलतः उत्तराखण्ड के निवासी थे लेकिन उनके तीन पीढ़ी पहले उनके बूढ़े दादा जी बचपन में ही सोनीपत किसी रिश्तेदार के साथ नौकरी करने चले गये थे। दयानंद कपरवाण ने सोनीपत में अपनी जाति को छिपा दिया और नाम के पीछे शर्मा लिखना शुरू कर दिया। दयानंद की किसी कारणवश रिश्तेदार से अनबन हो गयी और वह उनसे अलग हो गयी, उसके बाद वहॉ उनका संघर्षों का दौ शुरू हुआ और उन्होंने अपना एक छोटा सा ढाबा खोल दिया, धीरे धीरे वहाँ जमीन जायदाद जोड़ दी। शादी भी वहीं किसी कठमाली लड़की से हो गयी। वक्त बीतता गया दयानंद कभी अपने गाँव नहीं जा पाया। सब नाते रिश्ते टूट गये, गाँव के लोग भी उन्हें भूल चुके थे बस बुजुर्ग ही जानते थे कि उनके गाँव का भी कोई दयानंद था।
वक्त पर आज तक कोई जंजीर नहीं बांध पाया, वक्त मुठ्ठी की रेत की तरह होता है, हाथ से कब फिसल जाय पता नहीं चलता। दयानंद के बेटे, बहु और नाती पोते हो गये। बेटों ने भी सोनीपत में अकूत संपत्ति जोड़ ली। सोनीपत में एक बड़ा फाईव स्टार होटल बना दिया। इस होटल का मालिक दयानंद का पोता नीरव शर्मा थे। नीरव शर्मा घूमने फिरने का शौक रखता था, उसके दादा जी ने एक दो बार बताया था कि उनका गाँव उत्तराखण्ड के पौडी जिले में है, और नीलकंठ के नजदीक है। एक दो बार नीरव शर्मा दोस्तों के साथ नीलकंठ घूमने आया था, लेकिन उसको मालूम नहीं था कि उसका गाँव कौन सा है, क्योंकि दादा जी उसे लेकर कभी नहीं आये थे।
होटल में एक दिन नीलकंठ के पास गाँव मुकेश जिसने होटल मैनेजमेंंट में डिप्लोमा किया हुआ था नौकरी के लिए सोनीपत उसी होटल में आया। नीरव शर्मा ने सुना था कि पहाड़ के लडके काम में मेहनती और ईमानदार होते हैं। नीरव शर्मा ने उसे अपने यहाँ नौकरी पर रख लिया। वक्त बीतता गया मुकेश ने अपने काम और ईमानदारी से नीरव का दिल जीत लिया। मुकेश की शादी हो गयी, न्यौता नीरव के परिवार को भी था, लेकिन उसी दिन किसी खास रिश्तेदार की शादी होने के कारण नीरव मुकेश की शादी में नहीं जा पाया।
एक बार नीरव फिर दीवाली से दो दिन पहले किसी काम से ऋषिकेश आया हुआ था, फिर उसने नीलकंठ घूमने की योजना बनाया, छोटी दिवाली थी जब वह नीलकंठ दर्शन करने के बाद वापिस लौट रहा था तो उसको दोपहर में गाँव में लोग गायों की पूजा करने के बाद गायों को सपरिवार अन्न खिला रहे थे, नीरव को लगा कि वास्तव में देवभूमि उत्ताखण्ड को तभी कहा जाता है, जहां पशुओं को भी इस तरह पूजा जाता है, उसने गाड़ी रोकी और पूछा कि यह आप क्या कर रहे हो तो गाँव वालों ने बताया कि आज छोटी दीवाली जिसे हम बग्वाल कहते हैं, उसको मना रहे हैं। आज के दिन हमारे यहाँ बग्वाल मनायी जाती है। यह सुनकर नीरव ने उनका धन्यवाद किया और वापिस आ गया। क्योंकि अगले दिन बड़ी दीवाली थी होटल में जाकर पूजा करनी जरूरी था।
एक दिन नीरव ने मुकेश से पूछ लिया कि मुकेश तुम्हारा गाँव कहाँ है, मुकेश ने बताया कि मेरा गाँव पौड़ी में है, नीरव ने कहा कि पौडी में किस जगह है, तब मुकेश ने बताया कि सर मेरा गाँव ऋषिकेश के पास नीलकंठ के पास 4 किलोमीटर पहले है। नीरव ने कहा अरे यार मुकेश मैं तो नीलकंठ दो तीन बार गया हूँ, पिछली बार छोटी दीवाली को वहाँ गया था तो रास्ते में उसी गाँव में लोग गायों को खेत में बड़े हर्षोल्लास के साथ ढोल दमो सहित भोजन करवा रहे थे, उनको पूछा तो उन्होंने बताया कि वह बग्वाल मना रहे हैं। मुकेश ने कहा सर आप सही कह रहे हैं, हमारे पहाड़ों में तो छोटी दीवाली ही मनायी जाती है, जब तक नौकरी नहीं थी तब हर साल छोटी दीवाली मनाने गाँव जरूर जाता था लेकिन अब तो लगभग 7 साल हो गये छोटी दीवाली परिवार के साथ गाँव में नहीं मना पाया हूँ, इसलिए तो हम पहाड़ियों के त्यौहार को हमारी पीढ़ी नहीं जान पा रही है, क्योंकि हम भागा दौड़ी और कमाने के चक्कर में त्यौहारों की असली खुशियों को भूलते जा रहे हैं, और बनावटी खुशियों को ढूंढ रहे हैं। यह बात नीरव के मन में बैठ गयी।
इस तरह साल गुजर गया और फिर दीवाली का पर्व आ गया। नीरव ने कहा मुकेश तुम सब तैयार रहना कल हम कहीं बाहर घूमने जा रहे हैं, हमारी फेमिली भी जा रही है, और तुम्हे भी हमारे साथ फेमिली को लेकर चलना है, जाना कहाँ है, यह तुम्हें वहीं जाकर खुद पता चल जायेगा, होटल में मैंने दूसरे मैनेजर को देखने के लिए कह दिया है। नीरव और मुकेश की फेमिली अलग अलग गाडियों से निकल गये मुकेश ने सोचा कि उनके मालिक हो सकता है कहीं जा रहे होगे। आगे नीरव शर्मा की गाड़ी जा रही थी पीछे मुकेश की गाड़ी थी। जैसे ही गाड़ी ऋषिकेश पहुंची तो मुकेश ने समझ लिया कि सर कहीं पहाड़ों की वादियों में घूमने जा रहे हैं। गरूड़ चट्टी पार करते हुए गाड़ी नीलकंठ के नजदीक पहुँची और उसके बाद सब लोग पहले नीलकंठ के दर्शन किये।
मुकेश जब अपनी जन्मभूमि के नजदीक आया तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, नीलकंठ जाते वक्त मुकेश को अपना गाँव दिखायी दिया और उसने सोचा कि काश इस बार दीवाली गाँव में मना पाता । नीरव ने कहा कि मुकेश आपका गाँव कौन सा है, जरा हमें भी तो अपना गाँव लेकर चल, हम तो तुम्हारे गाँव की बग्वाल देखने और गायों को भोजन करवाने आये हैं। आपने ही कहा था कि पहाड़ियों के त्यौहार को हमारी पीढ़ी नहीं जान पा रही है, क्योंकि हम भागादौड़ी और कमाने के चक्कर में त्यौहारों की असली खुशियों को भूलते जा रहे हैं, और बनावटी खुशियों को ढूंढ रहे हैं, लेकिन मुकेश आज हम इन वादियों में असली खुशियों को ढूँढने निकले हैं,। चलो अपने घर ले चलो हमको, हम वहाँ आपके परिवार के साथ ही दीवाली मनाना चाहते हैं।
यह सुनकर मुकेश और उसकी परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मुकेश और नीरव दोनों का परिवार मुकेश के गाँव में गया और उसके बाद सबने गाँव वालों के साथ मिलकर बग्वाल मनायी, नीरव के बच्चे तो गाँव की पगडंडियों में खुशियों को समेट रहे थे। सबने मिलकर गायों को बग्वाल खुशी खुशी दी, मोबाईल के इनबॉक्स में फोटो लेकर सारी खुशियों को समेट लिया। उसके बाद सब लोग भड्डू में बनी दाल, और चावल के साथ सूंठ की पकौड़ी खा रहे थे। मुकेश ने कहा कि यह दाल भड्डू में बनी है सर, इसलिए इसमें इतना स्वाद है। भड्डू का नाम सुनते ही नीरव को उनके दादा की कही बात याद आ गयी कि बेटा जो स्वाद चूल्हे में भड्डू पर पकी दाल का स्वाद है, वह किसी और में नहीं। नीरव ने सबको अपने दादा के बारे में बताया कि उनके दादा जी जिनका नाम दयानंद शर्मा था लेकिन उन्होंने सोनीपत जाकर अपने नाम के आगे शर्मा लिखना शुरू कर दिया था। वह बताते हैं कि उनका गाँव नीलकंठ के पास है, लेकिन वह कभी गाँव लेकर नहीं आये और नहीं हमें मालूम कि हमारा गाँव कौन सा है।
यह बात मुकेश की दादी सुन रही थी। मुकेश की दादी ने कहा कि एक बार अपने दादा का नाम बताना, तब नीरव ने कहा कि उनका नाम श्री दयानंद था। मुकेश की दादी नीरव के पिताजी की चचेरी बहिन थी, उसने अपने पिताजी से श्री दयानंद के बारे में सारी बात सुन रखी थी। तब नीरव को गले लगाते हुए कहा कि बेटा मैं तुम्हारी बूढ़ी बुवा हूँ तुम्हारे दादा जी हमारे बडे भाई थे तुम्हारा गाँव भी यहीं पास में ही है, कल मुकेश तुम्हें वहाँ लेकर जायेगा और मैं भी साथ चलूँगी, यह सुनकर सबका खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। नीरव ने कहा मुकेश आज तक दीवाली का तोहफा मैं तुम्हें देता था और इस बार भी इस विजिट में भी तुम्हें गिफ्ट देना चाहता था लेकिन हमारी बूढ़ी बुवा ने आज तक का सबसे खूबसूरत गिफ्ट दे दिया है, जिसे मैं सारी उम्र चाहता रहा, इसके साथ सब लोग नीरव की पैतृक घर देखने के लिए निकल पड़े।
नोटः कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है, इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है, यदि यह कहानी हकीकत से मिलती है तो मात्र संयोग समझा जायेगा।