मैं कंस्ट्रक्शन साइट के नज़दीक स्थित 9.0 मी पोल के क्योरिग टैंक की आड़ में जा छुपा था... पीठ में घुसे बेर की डाल के कारण असहनीय पीड़ा उठ रही थी , मुझे किसी भी हालत में उस मोटी डाल के टुकड़े को अपनी पीठ से हटाना था, पर ऐसा करने पे मेरे मुंह से भी ज़ोरदार चीख निकल सकती थी... अगर ऐसा होता है तो मैं घने कोहरे में भी पकड़ा जाऊंगा, इस बात को ध्यान में रख कर मैंने उस मोटी डाल के टुकड़े को अपनी पीठ से निकालने का फ़ैसला किया...
" इस रात की तो सुबह ही नहीं हो रही है... पता नहीं कितनी लम्बी रात है, या फिर मुझे सुबह होने का इन्तजार है इसलिए रात लम्बी लग रही है... ख़ैर जो भी हो, पहले तो मुझे इस लकड़ी की डाल से छुटकारा पाने के बारे में सोचना चाहिए... पर कैसे," मैं ख़ुद से बातें करते हुए अपने मन में विचार करता हूं कि तभी मुझे एक ख्याल अाता है... परिणामस्वरूप मैं कुल्हाड़ी की पकड़ को हाथों से पकड़कर उसे पीछे की ओर ले जाता हूं और किसी तरह उसे बेर की कटीली डाल से फंसा देता हूं।
" ख ss च ss र र र... ऊ ss हं, " कुल्हाड़ी द्वारा हल्की सी ताक़त लगाने पर बेर की मोटी डाल मेरे शरीर से थोड़ी बाहर आती है और मेरे मुंह से हल्की दबी आह निकल जाती है।
" बस ss बस... थोड़ा और बस निकल ही गया है... सांस रोक कर एक बार फ़िर से ताक़त लगाता हूं, आ ss ह," ख़ुद से कहते ही मैं एक बार फ़िर से कोशिश करता हूं और कुल्हाड़ी पर ज़ोर लगाता हूं।
" ख ss च ss र र र र... आ ss ह," एक बार फ़िर मैं सफलतापूर्वक कुल्हाड़ी द्वारा उस डाल के टुकड़े को कुछ हद तक अपनी पीठ से निकालने में कामयाब हो जाता हूं।
" हमार पचे के ऊ ससुरा चाही... हर तरफ़ देखा और ऊ ससुरे को हमरे पास लावा... सुन ला मर्दवा , कोई भी ख़ाली हाथ नहीं लौटा... हर कोना में अच्छे से तलाश करा," तभी अचानक चोरों के लीडर ने अपने घायल थुथने के साथ अपने साथियों को आदेश देते हुए कहा।
" लगता है कि वो लोग फ़िर से मुझे तलाश करने के लिए निकल पड़े हैं... इस साले को भी चैन नहीं है , मेरे अखरोट फोड़ डाले और अपना थूथन फुड़वा दिया है लेकिन फैक्ट्री से जाने के बजाए, अब भी यहीं पर जमा हुआ है, इससे पहले कि ये लोग मुझ तक पहुंचे , अपनी पीठ में घुसी हुई डाल को बाहर निकाल देता हूं और इस जगह से आगे बढ़ता हूं," मैंने चोरों के लीडर की बातों को सुनकर अपनी प्रतिक्रिया दिखाते हुए ख़ुद में विचार किया।
" ख ss च ss र र र र र... ख ss च ss र र र र... अा ss ह," तीसरी बार पूरी ताक़त के साथ मैं अपनी पीठ में घुसे बेर की मोटी डाल से छुटकारा पा ही लेता हूं, एक दबी हुई आह मुंह से निकाल कर। अब मैं काफ़ी राहत का अनुभव कर रहा था और क्योरिंग टैंक की आड़ से निकल कर सुरक्षित स्थान की ओर बढ़ने लगा।
घने कोहरे के कारण आस पास का कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, मैं धीरे धीरे सावधानी पूर्वक अपना हर एक कदम आगे बढ़ा रहा था... कोहरा इतना घना था कि ये भी पता नहीं चल रहा था कि मैं फैक्ट्री में किस तरफ आगे बढ़ रहा हूं।
" पी ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं... पी ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं," तभी अचानक ही एक बार फ़िर से EMC की फैक्ट्री से सिक्युरिटी गार्ड की व्हिस्टल की आवाज़ सुनाई पड़ती है।
" अब इसकी व्हिस्टल पहले से काफ़ी साफ़ सुनाई पड़ रही है, लगता है कि वो गार्ड अपनी फैक्ट्री के दाईं ओर के जंगलों में घूम रहा है... उसकी व्हिस्टल की आवाज़ से ये साफ़ हो गया है कि मैं अब कंस्ट्रक्शन साइट के एरिया के आस पास हूं... बस किसी तरह कंस्ट्रक्शन साइट के दूसरी तरफ स्थित जंगल में पहुंच जाऊं तो शायद छुपकर अपना समय व्यतीत कर सकता हूं... तब तक रौशनी हो जाएगी," मैंने उस सिक्युरिटी गार्ड के व्हिस्टल की आवाज़ सुनते ही ख़ुद से बातें करते हुए कहा और कंस्ट्रक्शन साइट के दूसरी तरफ के जंगलों में आगे बढ़ने लगा।
" का करि मर्दवा... हम पचे तो बोलत रहे कि चला, ई कम्पनी मनहूस बाटे... पन ऊ शम्भु और कल्लू न मानत रहे... अब झेला सब लोगन, ऊ ससुरा फिरंगी कोनो मामूली आदमी नईखे बाटे... अकेला ही हम पचे से लड़े खातिर तैयार होई गवा," तभी अचानक कोहरे की घनी चादर की आड़ से कुछ लोगों के बातें करने की आवाज़ें सुनाई पड़ती हैं और मेरे कान खड़े हो जाते हैं, मैं फ़ौरन ही अपने कदम पीछे हटा लेता हूं और मुड़कर वापस जाने लगता हूं।
मैं अपना रस्ता बदलकर आगे बढ़ ही रहा था कि तभी अचानक ही चोरों का लीडर, घने कोहरे के बीच एकाएक मेरे सामने आकर खड़ा हो जाता है... अचानक ही एक दूसरे से सामना हो जाने पर कुछ देर के लिए हम दोनों एक दूसरे को यूं ही देखते रहे, फ़िर जब मुझे लगा कि उसे ज़्यादा देर तक घूरना सही नहीं होगा, तो मैंने तुरन्त ही एक झटके में उसे गर्दन से दबोच लिया और कुल्हाड़ी की तेज़ धार उसके गर्दन पर रख दी।
" चल अब यहां से बाहर निकलने की तैयारी कर ले... जल्दी से अपने साथियों को बुला और गेट से बाहर निकल, वर्ना तू जानता है कि और कोई मेरे हाथ लगे न लगे मैं तेरा बहुत बुरा हाल कर दूंगा," मैंने कुल्हाड़ी की धार उसके गर्दन से सटाते ही उसे निर्देश दिए और उसे अपने साथ लिए आगे बढ़ने लगा।
" शम्भु, भीमा, जल्दी ईहा आवा... ई ससुर का नाती हमार पचे के दबोच लेत बाटे... सब लोगन इंहा आवा," उन चोरों के लीडर ने अपने साथियों को आवाज़ लगाते हुए अपने पास बुलाया, पल भर में ही उसके सारे साथी मेरे सामने खड़े थे, पर वो कुछ भी नहीं कर सकते थे क्यूंकि उनके लीडर की गर्दन पर मैंने अपनी धारदार कुल्हाड़ी रखी हुई थी।
TO BE CONTINUED...
©IVANMAXIMUSEDWIN.

दहशत की रात के दौरान चोरों द्वारा मिला ये ज़ख़्म मेरे बाएं हाथ पर है, जिसका ज़िक्र आगे की कहानी में होगा... इस ज़ख़्म पर इलाहाबाद प्रयागराज के सभी अस्पतालों ने टांका देने से मना कर दिया था क्यूंकि उनके मुताबिक ये पुलिस केस था... तो पढ़ते रहीए दहशत की रात और एक सत्य कथा का अनुभव करें।