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वो सर्द रात- 4

18 May 2023

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19 दिसम्बर की रात को मेरी खाकी वर्दी का इम्तिहान था जो मुझे पुलिस विभाग के चरित्र प्रमाण पत्र बनने के बाद बिजली विभाग द्वारा अलॉट की गई थी , नैनी इलाहाबाद में क़दम रखने से पहले ताकि मैं चोरों का मुकाबला खुलकर कर सकूं ... वर्दी के इस राज़ के बारे में कोई भी नहीं जानता था, न तो मेरे परिवार में किसी को इसकी जानकारी थी, न तो मेरी पत्नी को इसकी जानकारी थी... बस मुझे पता था और मेरे अधिकारियों को, यहां तक कि मेरे सब डिविजन में भी इसकी जानकारी किसी को नहीं दी गई थी... खाकी वर्दी मिलने के साथ ही ज़िम्मेदारी भी बढ़ गई थी और उस रात मेरे लिए करो या मरो वाली परिस्थिति बनी हुई थी... 

मेरे सामने खड़ा हुआ चोर हाथों में खंती लिए मुझ पर प्रहार करने का मौका तलाश रहा था... वो मेरे वार का इंतजार कर रहा था और मैं उसके, पर हम दोनों के पास अधिक समय नहीं था इसलिए मजबूरन वो मुझ पर प्रहार करने के लिए आगे बढ़ता है... 

" ख ss ना ss क... खट," उसने मुझ पर पूरी ताकत के साथ खंती से वार किया, पर मैंने अपनी कुल्हाड़ी के सहारे उसे बीच में ही रोक लिया, उसकी खंती के तेज़ प्रहार से हुए कम्पन को मैं कुल्हाड़ी की पकड़ पर महसूस कर सकता था ... अब उसके पास कोई दूसरा अवसर नहीं था दोबारा हमला करने का, जिसका भरपूर लाभ मैंने उठाया।

" ध ss ड़ा ss क," मैंने एक ज़ोरदार किक से सीधा उसके सीने पर प्रहार किया... वो लड़खड़ाता हुआ ज़मीन पर गिर पड़ा और इससे पहले कि वो दोबारा सम्भल कर अपने पैरों पर खड़ा होता , मैंने एक बार फ़िर से मौके का फ़ायदा उठाया। 

" भ ss ड़ा ss क... आ ss ह,"कुल्हाड़ी के एक ज़ोरदार प्रहार से सीधा उसकी खोपड़ी पर वार किया जिससे वह दर्द भरी आह निकालकर बेहोश हो गया... उसके बेहोश होते ही मैंने वहां रुकना मुनासिब नहीं समझा और वहां से फ़ौरन उस पेड़ के नज़दीक पहुंचा जिसकी डाल पर मैंने नान चाकू छुपाया था... मैं पेड़ पर चढ़ गया और और उसकी डाल पर बैठ कर थोड़ा सुस्ताने लगा। 

घने कोहरे के कारण कुछ भी देख पाना सम्भव नहीं था इसलिए मैंने उस पेड़ की डाल का सहारा लिया जो फैक्ट्री के उस घने जंगल के बीच में स्थित था , उसकी डाल से विद्युत पारेषण खण्ड की दीवार साफ़ दिख रही थी , जिसके एक ज्वाइंट पर कुछ काली धुंधली परछाइयां  दीवार में सेंध करते हुए नज़र आ रहीं थीं... विद्युत पारेषण खण्ड की दीवार के हर ज्वाइंट पर मोटे पिल्लर बने थे और चोरों का दल उन्हीं पिलर्स में सेंध कर रहा था ताकि दीवार में ज़्यादा कम्पन न उठे... अक्सर चोर दीवार में सेंध मारने के लिए ऐसी ही जगहों की तलाश में रहते हैं जिससे आवाज़ भी कम होती है और कम्पन भी नहीं होता है। 

" फु ss स ss स... फु ss स्स... फु ss स ss स ss स... फु ss स्स," तभी अचानक पेड़ की डाल पर बैठे हुए मैंने तेज़ सांसों को अपनी गर्दन पर महसूस किया और देखते ही देखते मेरे गर्दन से सीने पर उतरता हुआ एक काला नाग सांप दिखा... अब चोरों से ज्यादा मेरा ध्यान उस काले नाग सांप पर था, जिसने मुझे दहशत से जमा दिया था। 

" इन्हें भी अभी ही आना था... अब अगर ये मेरे ऊपर से हटेंगे नहीं तो रात भर इसी पेड़ की डाल पर टंगे रहना पड़ेगा... आज की रात तो मुसीबत पर मुसीबत चली आ रही है एक के बाद एक... अगर मैं हिलता डुलता हूं तो ये काला नाग मुझे डस लेगा और चंद सेकंड्स में मैं यहीं पेड़ पर ही मौत के घाट उतार दिया जाऊंगा... क्या करूं," मैंने उस काले नाग सांप को मेरे गर्दन और सीने के पास मंडराते हुए देख ख़ुद से बातें करते हुए कहा।

" पि ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं... पी ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं ss ईं," तभी अचानक ही मेरे पीछे स्थित EMC की फैक्ट्री से सिक्युरिटी गार्ड के व्हिसल की आवाज़ सुनाई पड़ती है, जो ये साफ़ दर्शा रही थी कि अब वह सिक्युरिटी गार्ड अपनी फैक्ट्री के बीच में टहल रहा था क्यूंकि इस बार आवाज़ पहले से ज्यादा साफ़ सुनाई दे रही थी। 

" फु ss स ss स ss स ss स ss स ss स ss स... फु ss स्स... फु ss स ss स ss स ss स ss स ss स ss स... फु ss स्स," उस सिक्युरिटी गार्ड के व्हिसल की आवाज़ सुनते ही मेरे कन्धे पर मौजूद नाग देवता एक बार फ़िर से फुसफुसाते हुए उस ओर देखते हैं, उनके हरक़त में आते ही मेरी हालत एक बार फ़िर से ख़राब हो जाती है और कड़ाके की सर्दी में बदन से पसीना छूट जाता है।

" अब क्या करूं... जब तक ये मेरे ऊपर चढ़े रहेंगे मैं यहां से नीचे नहीं उतर पाऊंगा और डर के कारण ज़ोर से एक नंबर भी लगी है... अगर ये कुछ देर और मेरे ऊपर चढ़े रहेंगे तो लगता है कि पैंट में ही नदी की धारा निकल पड़ेगी  तथा जंगल को हरा भरा कर देगी," उस नाग की तेज़ चल रहीं सांसों की आवाज़ सुनते ही मैंने अपने मन में विचार करते हुए ख़ुद से कहा। दहशत ने मुझे पूरी तरह से हिला कर रख दिया था और मैंने अपने जीवन में पहली बार ऐसा एहसास महसूस किया था , जब एक जीती जागती मौत मेरे गर्दन से लिपटी हुई थी काफ़ी लम्बे समय के लिए... डर ने मेरी रगों में बहते गर्म लहू को बिलकुल ठंडा कर दिया था, पर मेरे कुछ भी करने का मतलब था मौत से दो दो हाथ करना। 

" धाप ss धप ss धप ss धप ss धप ss धप ss धप ss धप ss धाप... धाप ss धप ss धप ss धप ss धप ss धप ss धाप," तभी अचानक ही मुझे किसी के दौड़ लगाने के तेज़ क़दमों की आहट सुनाई पड़ती है और मेरा ध्यान उस ओर जाता है, मैं बिना हिले डुले उस दिशा में नज़रें घुमाकर देखता हूं, तो विद्युत पारेषण खण्ड की दीवार से एक चोर की धुंधली परछाईं स्टोर के पास मौजूद उसके साथियों तक जाती हुई नज़र आती है... मुझे समझते देर नहीं लगती है कि अब हंगामा मचने वाला है और मेरी तलाश शुरू होने वाली है, पर मैं कुछ भी कर पाने में असमर्थ था क्यूंकि मेरे कन्धे पर काली मौत चढ़ी हुई थी और मेरे प्रतिक्रिया दिखाने पर कुछ भी हो सकता था।
TO BE CONTINUED...
©IVANMAXIMUSEDWIN.


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