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"श्रीमदभागवत गीता पर स्व के भाव" {००}

24 November 2022

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जयश्रीकृष्ण दोस्तो,
राधे राधे की मधुर धवनि से आज से अब खत्म करते हैं इंतजार। लीजिए  प्रस्तुत हैं मेरे मन के भाव व विचारो की  हिलोरे लेती लहरो की विचार  श्रृंखला  :- "श्रीमदभागवत गीता जी पर स्व के भाव।"
जो एक विशाल  सागर पर तैरते भाव व मन के विचारो की लहरो के रुप मे हैं।
सहृदय  स्वीकार करे।।
निवेदक।
संदीप शर्मा।।
जयश्रीकृष्ण। स्नेहिल जयश्रीकृष्ण।।
           ###*****###

इतिश्री श्रीमदभागवत गीता पर स्व के भाव। 
                 □○□○□○□○□
                        {1}
जयश्रीकृष्ण,
के अभिवादन संग,
सभी प्रभु भक्त, विद्वज्जन सुधिजन, मित्रगण, व पाठकगण को प्यारी सी जयश्रीकृष्णा,व स्नेहपूर्ण वंदन ।।
स्नेहपूर्ण  आस के साथ  मेरी पहले ही आप सब से  मुआफी क्योकि  मैं अल्प बुद्धि लिए, एक ऐसे  बड़े कृत्य  को अंजाम देने जा रहा हूं जिसका भविष्य  सोचा तक नही , जिसमे बड़े बड़े  ज्ञान वान,प्रबुद्ध  व समृद्ध  प्रज्ञ वान भी  संकुचातें हैं ,ऐसे मे मैं बौद्धिक  कौशल व ज्ञान से   एकदम  शून्य से भी नीचे व कम  हो कर यह ज्ञान  के सागर का सफर का सपना देख रहा हूं,  जो साहस के दुस्साहस    सा काम लगता हैं।।
और यह कृत्य हैं,"श्रीमदभागवत गीता जी" पर अपने विचार  व ख़्याल  की प्रस्तुति।।
वो भी तब ,जब की इसके श्लोको के उचित  उच्चारण तक  की कला से भी अनभिज्ञ हूं,कि कैसे गान करते हैं।। व अर्थ की बात  करु  तो स्व अर्जुन को समझाने को जिन्होने दिव्य दृष्टि दी,  व  दिव्य  बौद्धिक  स्तर  दिया तो मैं तो फिर  अल्प दृष्टिकोण से भी कोसो दूर हूं।।
अब आप  कहोगे कि इसकी मूर्खता की शुरुआत हो गई। 
क्योकि दिव्य  दृष्टि तो संजय को मिली थी।। और यह अर्जुन  को बता रहा हैं। है न ।।
आप सही हो सकते हैं ,पर मुझे लगता हैं,और आप पाएगे भी कि यह दिव्य ज्ञान रुपी अमृत, को समझना ,जानना  या इस पर विचार  की सोचना भी अपने आप  मे एक बडी हिमाकत का काम  हैं जो बिना दिव्यता  के संभव ही नही।।तभी तो,,
"अधजल गगरी छलकत जाए " किंवदन्ती सार्थक करने जा रहा हूं।। यानि अल्प ज्ञान  की कश्ती को लिए  गहरे सागर  मे बुद्धि की छोटी सी नाव मे सवार हो कर भव सागर  पार होने का सपना संजोए हूं।।गलत  लग भले ही रहा हो पर शायद  है नही ।।
कारण  भावना ऊंच श्रेणी की हैं। व कर्म करना हैं ,तो चुगली निंदा से भला तो यही है न कि भली राह चले भले  ही सीधे किसी का भला न हो  पर उन  भले मार्ग पर चलने की सोच  तो ले।।
क्योकि मस्तिष्क  ने शिथिल  तो  कभी रहना ही नही तो फिर  क्यू न इसे ऐसे कार्य  मे उलझाए  जिससे लाभ  भले अल्प सा   हो पर नुकसान  तो किसी हालत किसी का न हो।।
व होगा भी नही,यदि मैं गलत. हुआ  तो आप  सुधार  लाओगे,व यदि आप कुछ  अलग  सोच रखे तो मै उधर चलू भले न पर नजरिए  का अंदाज तो लगा ही लूंगा न ,कि क्या कितना सही हैं। व कितना गलत।।
और इस पर फिर ऐसे मे  अपनी अल्प बौद्धिक कौशल  को  आधार  बना आपके सामने  जो भी लाने का प्रयास  करने जा रहा हूं कि मैं इसे कैसे लेता हूं।।
क्या परिपेक्ष्य मुझे इनके शब्द  व भाव स्व को समझाते हैं,।। इस पर विचार  विमर्श  करेगे।।
यह केवल  मेरे अहम का नजरियां  हैं,जो कि आप से भिन्न भी हो सकता हैं,व कही  कही,आप को यह भी लग सकता हैं कि ऐसा ही हैं।।
हालांकि  वैसे तो  यह कार्य, बौद्धिक कौशल के धनी विद्वज्जन का हैं, जिनको शास्त्र अनुसंधान  पर विद्वत्ता हासिल  हैं।।
व जिनके महान  गुरु आचार्य  आदि हैं ।।पर मुझे कृष्ण जी के चरित्र  को समझने को उस मार्ग  व क्षेत्र  मे एक पग बढाना  ही हैं ताकि वो मुझे गिरता देख संभाल ले।। 
मेरे गुरु व सारथी भी वही तो है न ।।
जब यहा तक लाए हैं,तो मुझे गंतव्य  तक पहुंचाना उनका ही  तो दायित्व  है न।।
और मैं यह भी जानता हूं कि इसका माध्यम  आप  प्रबुद्ध पाठकगण सुधिजन स्नेहीजन व विद्वज्जन होगे।।
एक और बात और   बताऊ,,
जब आप आलोचना  करेगे जिससे बहुत. लोग डरते व घबराते हैं,, जबकि यह मेरी खुराक  का काम करेगा।
अथवा कैसे भी आप किसी अन्य  ढंग  से अपने विचार  लिए  प्रस्तुत होगे तो हम इस यज्ञ  मे स्वतः  स्वतंत्र  भूमिका मे होगे जिससे धर्म शास्त्रार्थ  सा भी शायद  काम  या लाभ  सा  कुछ  कर जाए।।
इससे लाभ  हम सबको तो होगा ही पर  मुझे जरा अधिक होगा।।
कारण  आप सब के विचार, सकरात्मक व नकारात्मक  कैसे भी  हो,मेरी सोच मे न केवल  अभिवृद्धि करेगे , बदलाव  लाएगे बल्कि उसमे नवीन  सृजन की आहूति भी डालेंगे, जिससे यह यज्ञ रुपी महाकाव्य  की प्यास की जिज्ञासा, मेरी व मुझ जैसे  कई  मुमुक्षुओं की प्यास   को तृप्त करेगी ही हमारी सोच सकरात्मक भी करेगी ।।
और ऐसे मे हम मे से जो भी कम होगा वो परिपक्वता को  पा लेगा।।
होगा न दोहरा लाभ। ।
आशा  ही नही पूर्ण  विश्वास हैं कि इस विचार  को प्रेरित  करने वाले कोई  और नही स्वंय श्रीकृष्ण जी ही हैं।।
आप प्रबुद्ध पाठकगण, से अनुमति मै पूर्व   ले ही चुका हूं।
जो कि कुछ  दिन  पूर्व  एक खुली चिट्ठी के माध्यम  से आपसे  अनुमति प्राप्त  हुई थी।।
उसके लिए  आप सब का ह्रदय  से आभार  व स्नेहपूर्ण वंदन। ।
वैसे इक बात  बताऊ, यह ख्याल  बहुत  पहले जहन मे आया था। 
कि इस  प्रतिलिपि मंच  पर यदि पांच सौ से अधिक  लोग मुझसे जुड़ेंगे  तो मैं इस पावन ग्रंथ  पर अपने विचार  रखूंगा। 
कितना सार्थक  व कामयाब होता हूं, यह सब आप के स्नेहपूर्ण आचरण  व व्यवहार पर आधारित हैं।।
प्रमाणपत्र  आपका हर नकारात्मक व सकरात्मक  कमैंट होगा।।
व आपका पढ़ना मात्र ही सबसे बड़ा मेरा  पुरस्कार  होगा।।
आपके समक्ष  पहले भी इस विषय  पर एक सीरीज " श्रीमदभागवत आज के संदर्भ मे " के नाम  से लाया था,।
जिसे अभी तक कुल, दो हजार चार सौ लोगो का  यही इसी  प्रतिलिपि  मंच पर ही मंचन करने पर स्नेह मिला हैं।।
अब  सब अपने पूर्वजो का व कुल देवी देवताओ के आशीर्वाद  व प्रभु  के  आशीर्वाद  के साथ साथ  अपने परम पूजनीय  पिता जी स्वर्गीय श्री सुरेंद्र कुमार शर्मा जी,व ममता की प्रतिमूर्ति व उत्साह  की देवी  अपनी माता जी श्रीमति सुषमा शर्मा ,  जी  के चरण कमलो मे यह प्रस्तुति सप्रेम  भेंट  इस  आकाँक्षा के साथ  प्रस्तुत करता हूं  ,कि आप सब का अपार  स्नेह  प्राप्त  होगा।।
व हमारा इसे समझने का इक नवीन  नजरियां  विकसित होगा।।
जोकि अध्यात्मिक से हटकर  रोजमर्रा के जीवन  के जीने के सौंदर्य को भी यह दर्शन  सहायक होगा , जिससे हमे जीने का ढंग  आएगा।।
व हम जींवत  जीव के जीवन  यात्रा को समझ कर व इस आचरण  को अपनाकर, अपने जीवन  की राह  पकडने मे सक्षम हो पाएगे।।
तो पेश है:-
"श्रीमदभागवत गीता जी पर स्व के भाव। "
जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण।।

        ।।.... अध्याय  एक....।।
विषाद  योग का हैं।। यहा अर्जुन  को युद्ध भूमि पर आभास होता हैं कि यह  युद्ध  रुपी कार्य  करना चाहिए  अथवा नही।। उसके संशय  क्या हैं कैसे उसे घेरे हैं ? उनका प्रभाव  इत्यादि पढ़ेंगे हम अपनी इस पुस्तक "श्रीमदभागवत  गीता पर स्व के भाव "अध्याय  दो मे।।
जोकि वास्तव  मे श्रीमदभागवत  गीता जी के प्रथम  अध्याय  के प्रथम  श्लोक  से आरंभ हैं।।
तो आइए  फिर  मिलते हैं हम अध्याय  दो मे,
इक नवीन  अंदाज व नजरिए के साथ। ।
तो यहा जयश्रीकृष्ण  जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण के नाम  उच्चारण कर लेते हैं अल्प विराम। ।
जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जी।
स्नेहिल वंदन। ।
आपका प्रिय। ।
संदीप शर्मा। ।देहरादून उत्तराखंड से।


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"श्रीमदभागवतगीता पर स्व के भाव।"
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नमस्कार आदरणीय जन, जयश्रीकृष्ण।। आइए देखे व समझे श्रीमदभागवतगीता जो को मेरे भाव व समझ के आधार पर। जयश्रीकृष्ण,जयश्रीकृष्ण,जयश्रीकृष्ण। विवेचक, संदीप शर्मा।
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