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भगवान को ढूँढ़ने में बेकसूरों की मृत्यु या हत्या

krishnarjun

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ये हमारा समाज वर्षों से भगवान के जन्म लेने की आस लिये बैठे हैं। जब कोई इन्सान अपनी लगातार दिन-रात मेहनत कर, मेहनत के दम पर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते हुये आगे बढ़ता रहता है, तो वो ऐसे संगठनों द्वारा, उनके खेल और प्रयोग के लिये चुन लिया जाता है। जब कोई इन्सान अपनी मेहनत के दम पर छोटी से उम्र में बहुत आगे बढ़कर ऊँची बुलन्दियों को छूने लगता है, तो वह उन सक्रिय संगठनों की नजर में चढ़ जाता है, जो भगवान के जन्म की आस लिये हैं या फिर अगर यूँ कहें कि भगवान के ठेकेदार बने बैठे हैं तो गलत नहीं होगा। ये कहानी एक ऐसे इन्सान की ही है, धरती पर जन्म लिये एक ऐसे भगवान की है और भगवान के ठेकेदार ऐसे संगठनों की है और इन्सान को किसी भी तरह भगवान साबित न हो पाने वाले संगठनों की है, जिन्होंने अपने बनाये हुये नियमों से भगवान की खोज करने में कई इन्सानों की बलि चढ़ा दी। जब कभी भी ऐसे इन्सान का पता चलता है, तो सारे संगठन एक साथ उसपर प्रयोग करने आ जाते हैं। तो क्या सचमुच में भगवान ने जन्म लिया? क्या सचमुच में किसी असुर ने जन्म लिया या क्या सचमुच में एक इन्सान/भगवान की हत्या भगवान के ठेकेदार इन्सानी संगठनों ने अपना मतलब हल करने के लिये कर दी या फिर वो सचमुच में एक इन्सान था या फिर कुछ ऐसा हुआ, जो उन संगठन वालों के विरुद्ध हुआ और उनको पसन्द नहीं आया, जिसकी वजह से उन्होंने उस इन्सान को गायब कर दिया या हत्या कर दी? आइये जानते हैं, इस कहानी में आगे क्या हुआ। 

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