1997 में अपनी मौत के 5 साल बाद #मद_टेरेसा ने 2002 में मोनिका बेसरा नाम की एक लड़की का पेट का ट्यूमर सिर्फ अपनी तस्वीर से ही ठीक कर दिया। इसके छह साल बाद 2008 में मदर टेरेसा ने कोमा में जा चुके एक व्यक्ति को अपनी तस्वीर से जादूई शक्तियां भेज कर ठीक कर दिया। जिसका मीडिया के द्वारा खुब प्रचार प्रसार भी हुआ। तब किसी डॉक्टर , तर्कशास्त्रि, समाज़ सुधारक ने कोई विरोध नही किया।
मरने के बाद केवल अपनी तस्वीरों से ऐसे चमत्कार करने वाली मदर टेरेसा को वेटिकन से संत की उपाधि मिली। वेटिकन जो दुनियाँ के आधुनिक, वैज्ञानिक लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। कही कोई उनके चमत्कार का विरोध नही किया। बल्कि संत मान लिया। एक पूरी पीढ़ी की रोल मॉडल बन गयी मदर टेरेसा। उनके नाम पर सड़कों के नाम हैं, चर्च हैं। मिस इंडिया में हर दूसरी लड़की उनके जैसा बनना चाहती है। मदर टेरेसा भारत रत्न से सम्मानित है, रेमन मैग्सेसे और नोबेल जैसे अन्तर्राष्ट्रीय पुरुस्कार प्राप्त कर चुकी है। उनकी जीवनी रेलवे स्टेशनों पर बिकती है। उनके बारे में बात करना आपको आधुनिक, लिबरल बना देता है आज।
इधर #बागेश्वर_धाम वाले #बाबा के #चमत्कार पर #अंधविश्वास फैलाने का आरोप लग रहा है। कथित बुद्धजीवीयों, समाज़ सुधारकों के द्वारा उन पर रिपोर्ट लिखाई जा रही है। उनका उपहास करती पोस्ट और न्यूज रिपोर्ट फाइल की जा रही है।
मै कहना चाहता हू, की अगर अन्धविश्वास, चमत्कार का विरोध करना है,इसे नही मानना है,तो किसी का मत मानो और इस तरह के सबका करो। चाहे ओ इसाई बनाने वाली टेरेसा हो, या बागेश्वर धाम। मगर एक का विरोध, एक का गुणगान सही नहीं है। इसका हमको विरोध है। इस दोगली सोच से नफरत है।
हालाकि सेवा और चमत्कार के द्वारा ही दोनों लोगों से जुडे है।
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