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कोरोना डायरीज भाग 1 - पत्नी चालीसा

3 August 2022

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"कहना ही क्या ये नैन एक अनजान से जो मिले, चलने लगे मोहब्बत...."

टी. वी. पे चल रहे, मेहबूब साहब के इस गाने को सुनते हुए, जैसे ही हमारे नैन अपनी भूतपूर्व मेहबूबा यानी कि हमारी श्रीमती जी से मिले, तो अनजान नहीं, वही रोज़ाना के सिलसिले चले | हमारे नैनो में चाय की गुज़ारिश और उनके गले में शिकायती पुलिंदों की ख़ारिश । साहब, बड़े भारी होते हैं ये शिकायती पुलिंदे, जो कभी न ढो पाए हम, "खसमि दरिंदे"। जी हाँ "खसमि दरिंदे", अगर आप ख़सम है, तो पत्नी उपनिषद् पढ़ियेगा, उसमे उल्लेख है कि आप ही बीवी के जीवन के सबसे बड़े दरिंदे है। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की ये उपनिषद सिर्फ पत्नियों के पास  ही मिलती।  सबके पास एक-एक प्रति। अपने-अपने पतियों के लिए और वो भी कंठस्थ। मतलब की  नो हार्ड कॉपी, सिर्फ सॉफ्टकॉपी।  वो अलग बात है कि सुनने में बिलकुल भी सॉफ्ट, यानि कर्णप्रिय नहीं होती। आपकी माताश्री के पास आपके पिताजी की, आपके सासू माँ के पास आपके ससुर जी की, आपकी भाभियों के पास भाइयों की, तो सालियों के पास आपके साढ़ू भाईयों की, और आपकी - अब आपकी भी बतानी पड़ेगी क्या ?

सबकी प्रतियों में एक ही कहानी, पर किरदारों के नाम अलग अलग, वो भी बे-स्वादनुसार। वैसे तो ऊपर लिखे गीत की पंक्तियाँ मुक्कमल ही थी, शादी के कुछ 4 -5 महीनो तलक।  उसके बाद तो वही सिलसिले चले, जो सदियों से नर और नारायण को दिक़्क़्क़त में डालते आये हैं।  अपनी-अपनी श्रीमती जी का मूड ठीक रखने की हिकायतें, जिसमे कभी न मिलती है रिआयतें। अब त्रिदेवों की त्रिदेवियाँ हो या हमारे घर की इकलौती देवी - रिवाज़ वही हैं  और वही रिवायतें।                किसी अंग्रेज़ पति ने दिन भर का घरेलु काम निबटाने के बाद बीवी से डाँट खाके ही कहा था - "इट्स आ  थैंकलेस जॉब।" ( it's a thankless job ) जी हाँ, सही पढ़े, "थैंकलेस" ही तो है - मूड ठीक हो तो फ़िर ख़राब होने की तैयारी, मूड खराब हो तो जेब पे चली आरी। और आपको क्या लगा, अँगरेज़ भारत क्यों आये थे। हम बतलाते है। लेकिन उससे पहले ये बतलादें की हमारे मित्र ने हमें ये ब्रह्मज्ञान, कालोनी के बाहर लगे वट वृक्ष के नीचे स्थित चाय की दुकान पे दिया था, पान चबाते चबाते, और हमने कड़क अदरकी चाय की चुस्कियों के साथ लपेटा था। सो, आप भी  लपेटिये। उसी मित्र के अंदाज-ए-बयाँ।     तो हमारे ताज़ो तरीन, नाज़रीन, हुआ यूँ कि 15-16वी सदी के आस पास -  "इट्स आ  थैंकलेस जॉब" ये मुहावरा जैसे ही बना और 4 -5 अंग्रेज़ों ने बकिंघम पैलेस के बाहर, नुक्कड़ वाली पनवारी की दुकान पर सहमति जताई, बात पनवारी की बीवी ने उनकी पत्नियों तक पहुंचाई। कान लगा के जो सुनरी थी, ससुरी। अरे, अँगरेज़ पनवारी ने भी तो "बीटल लीव्स" पे "कटेचु पेस्ट" लगाते-लगाते हामी भरी थी - नहीं समझे "अरे, पान पे कत्था लगाते-लगाते।" ख़ैर छोड़िये, उसके पत्नी फण्ड में भरे, तीन गुने लगान की दर्द भरी कहानी, फिर कभी।

हाँ तो कहाँ थे - जी, बात पनवारी की बीवी ने उनकी पत्नियों तक पहुंचाई। बात उन अंग्रेज़ों के घर तक पहुंची तो उनकी बीवियों ने भौएं तौराई। बस वही से चंद अँगरेज़ भग लिए, नाव पे बैठ के और रास्ते में मुलाक़ात हुई "वास्को डा गामा" नामक एक सताए हुए पुर्तगाली पति से। साथ-साथ ये भी बताते चले की अंग्रेज़ों और पुर्तगालियों का रिश्ता वैसन ही है जैसन अपने यहाँ यू. पी के भइया और बिहारी छलिया का। अंग्रेज़न की व्यथा सुन उस पुर्तगाली का कलेजा मुँह को आ गया। वो बोला साथ चलो, सुना है भारत में लोग बड़े खुश रहवे हैं। वही चलतें हैं इन दुष्टन से दूर। करमजलों को हिदुस्तान तो न मिलो, मगर बे सब पहुचे अरबी मुल्कों में। जहाँ मुलाक़ात हुई कुछ हिन्दुस्तानियों से। उन कबख्तों को कहाँ पता था कि यहाँ हिन्दुस्तानियों के देवता तक बीवियों से परेशान है, तो बेचारे भक्तों की क्या मज़ाल। तो बस, मिल बैठे चार यार। सुख में अनजान साथ हो न हो, मगर दुःख अनेकता में एकता ले ही आता है। खूब रंग ज़मा, जब मिल बैठे सब यार। मगर हिंदुस्तानी बीवियाँ अंग्रेज़न थोड़े ही होवे हैं, की पति भग लिये, तो जान दो, दूसरा पकड़ांगे। हमारे यहाँ ठहरा सात जन्मो का साथ। हमारी हमारी भार्या तो त्रिदेवियों को पूजती हैं, जो ख़ुद ठहरी पत्नियां। पतियों की रग़-रग़ से वाकिफ़। जिनका कहा तो पतियों के पूज्य त्रिदेव भी नहीं टाल सकते हैं। क्यूँकि वो बिचारे भी तो पत्नियों के द्वारा सताये हुए है। बेगुनाह हो कर भी, सज़ा काट रहे हैं।  एक पहाड़ पे, तो दूसरा समुन्दर के बीच और तीसरे को तो पूछों ही मत, न ज़मीं नसीब और ना अम्बर। दुनिया भर का ज्ञान लेकर, बीच में लटके हुये विशंभर। और कड़ी सजा मिले भी क्यूँ ना, पत्नी नामक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील पदार्थ का ईजाद भी तो उन्होंने ही किया था। जिसे कह स्वयं के लैबों से फूटा था  - "विनाश  काल विपरीत बुद्धि।" अब भुगतो, भगवान् तो आप ही हो, सो कौन कराएगा शुद्धि।  तारीख़ ग़वाह है उसके बाद से किसी को ब्रह्म ज्ञान न दे पाये। दिया हो किसी को, तो आप हमे बतलाये। ख़ैर, उनकी करनी उनके संग। तो घुमा फिरा के बात यो निकली की इस गठबंधन का तोड़ तो आज तक ईजाद हो न सका।  सो त्रिदेवियन ने बुद्धि फिराई, बाल बच्चन की ज़िम्मेदारी सोच आँख भर आई और हिंदुस्तानी पतियन की हुई घर लौटाई। अंग्रेजन पत्नियां तो पूजती  न थी, हमारी देवियों को, सो उनके ऊपर जे बात लागू न हुई। और हिन्दुस्तानियो के संग ऐसो जमो रंग, की बा भी हो लिए संग। अंग्रेज़ों को तो हिन्दुस्तान में रुकने में ही भला दिखा। घूम फिर कर, सौ बातन  की एक बात - "भई, बीवी को मानाने से ज़्यादा आसान था हिन्दुस्तान का रास्ता ढूँढना।"

चलिए, मुद्दे पे लौटते हैं।  अब ये मियाँ बीबी भागवत क्या बाचनी। कौन से हम पहले शख्स है जो झेल रहे हैं, फिर आप कहेंगे की काहे ही बोल रहे है।  अरे मिट्टी के माधों, इसलिए बोल रहे हैं क्यों की दर्द जब  हदें पार करे और कोविड भाई साब की कृपा से हम सांझा ना कर सकें, तो कलम के सिवा और क्या घिसे। नहीं तो आप ही बताइये पंद्रह दिन एक ही कमरे में,  पत्नी के साथ क्या करे। बुद्धि भ्रष्ट रही जो कोविड बाबा की शरण में चले आये, काम धंधा बंद कर चार दीवारी में सिमट आये । आये तो आये, मगर आते-आते कुल्हाड़ी पर भी पैर मार आये।  खुद तो नज़रबंद हुए ही, साथ में बीवी को भी संक्रमित कर न्यौत आये। मग़र आप ऐसा करने की गुस्ताखी न कीजियेगा। कोरोना होने पर खुद को नज़रबंद कीजियेगा। याद रखियेगा, कोरोना हो ना हो, दो गज़ की दूरी बीवी से है बेहद ज़रूरी। बाकी अगर आप ठहरे खतरों के खिलाड़ी,  तो बात और है। वैसे पढ़ते पढ़ते यहां तक पहुँचे है, तो ये तो जग जाहिर कर ही आपका और हमारा ग़म एकइ हैं।  ठीक बुझे ना... चलिए, आगे की बात फिर कभी, पत्नी जी का बुलावा जो आया है.... जय राम जी की।

- शिवम् 'बानगी'

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कोरोना का वार और सर पे बीवी सवार I टीके की आरज़ू में बीवी से टीका लगवाते हुए कहा की आज कल टीका कहीं और ही लग रहा है I बस, इतनी सी बात और बीवी हमारी चलने लगी बातूनी मुका-लात...." हिंदी उर्दू की जुगलबंदी में कहे गये खूबसूरत और संजीदे किस्से, वाकई काबीले गौर है। हिन्दुस्तानी में मौजूद ज़ुबानी रवानगी इन किस्सों को और दिलचस्प बनाती है। गौर फरमाइयेगा, लेखक द्वारा कुछ हटके की गई बयानबाज़ी पर। दास्ताँ को लिखने के बजाये मानो जैसे फरमाने पे ज़्यादा ध्यान दिया गया हो। रिश्तों की बारीकियों से लेकर इंसानी ज़ेहन में झांकती अभूतपूर्ण एवं मौलिक रचनाएँ, जो पर्त दर पर्त उधड़ती है तो अंदर की खूबसूरती और उजागर करती है। पढ़ने वाले के ज़ेहन में एक तस्वीर उभरती है, मानो किताब नहीं पड़ रहे हो....... गोया कोई फिल्म देख रहें हों। एक बार पढ़ने की ज़हमत तो उठाइये। यकीन मानिये, किस्से मुक़म्मल होने से पहले किताब बंद नहीं कर पाएंगे।