काश मेरा अनपढ़ ही होता
शंकर दयाल पेशे से तो वकील थे ( जो सरकारी मुलाजिम न थे ) परन्तु बुद्धि के तेज व्यक्ति थे इस लिए अच्छा खासा कमा लिया करते थे। उम्र ज्यादा हो चुकी थी इस कारण अब वकालत छोड़ दी थी । और अधिकतर समय घर पर ही व्यतीत होता था। खाली वक्त में अखबार पढना और जब कभी उससे भी मन की हतास दूर न हो तो अपने बड़े बेटे मोहन को बुरा भला कहना यही थी शंकर दयाल की दिन चर्या बड़ा बेटा मोहन भी उनकी बातों को दिल से नहीं लेता था। बस उनकी आदत है यही सोच कर बर्दास्त कर लेता था।
शंकर दयाल का घर पूरी तरह से सुख सम्पन्न था क्योंकि दो छोटे बेटे सोहन , रोहन सरकारी नौकरी पर थे ।एक डॉक्टर तो एक पुलिस में था । महीने पर अच्छी खासी रकम घर पर आ जाती थी ।, शंकर दयाल का दिल खुशी से झूम उठता था।परन्तु जैसे ही उसकी नज़र मोहन पर पड़ती वैसे ही उसकी हसीं गुम हो जाती। और वह अपने अनपढ बेटे को कोसने लगता था। क्यों कि वह चाहता था कि मोहन भी अपने भाइयों की तरह पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी करे,
परन्तु शंकर दयाल के अथक प्रयास से भी मोहन का मन पढ़ाई में न लगा ।, अब तो आलम यह था कि हर रोज मोहन को गाली देना और घर का सारा काम मोहन से ही करवाना , जब कभी भी कोई व्यक्ति अपने बेटे की नौकरी लगने की खबर सुनाता तो उसका गुस्सा मोहन पर दोगुना फूटता था ।
मोहन की अब यही दिनचर्या बन चुकी थी कि खेत से चारा काट कर लाना और मशीन से काटकर जानवरों को डालना , और घर का खाना भी बनाना , और शाम को शंकर दयाल के पैर दबाना , इतना करने के बाबजूद उसे इनाम में गालियां मिलती , परन्तु फिर भी उसके मुंह से कभी भी शंकर दयाल के खिलाफ एक शब्द नहीं निकलता। जब कभी भी वो ज्यादा उदास होता तो अपनी माँ की फ़ोटो को गले से लगाकर बहुत रोता ( जो दो साल पहले ही गुजर चुकी थी )
एक दिन शंकर दयाल कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे कि तभी वहां शम्भू एक मिठाई का डब्बा लेकर आता है और शंकर दयाल को देता है ।, यह देखकर शंकर दयाल का चेहरा तिलमिला उठता है ,क्योंकि शंकर दयाल बहुत ही ईर्ष्यालु व्यक्ति था , किसी और कि खुशी उससे बर्दास्त नहीं होती थी ,इसलिए कोई भी व्यक्ति उसे अपनी खुशियों में शामिल नहीं करता था।
शंकर दयाल भौयें चढ़ाकर कहता है, " क्या बात है शम्भू आज तू बहुत मिठाई बाँट रहा है।, आख़िर इस खुशी का कारण क्या है ?, क्या कोई लॉटरी लग गयी है ?"
शम्भू कहता है , " बात यह है कि भैया , आज मेरे बेटा की पुलिस में नौकरी लग गयी है "
शंकर दयाल शम्भू को अचरज भरी निगाहों से देखते हुए कहते है , " क्या कह रहे हो तुम्हारे बेटे की नौकरी लग गयी है , वही बेटा जो 12वीं में लुढ़कते लुढ़कते बचा , वो आज पुलिस वाला बन गया है।, अरे ! हमें तो विश्वास ही नही होता है कि उसकी भी नौकरी लग सकती है ।"
शम्भू , " हाँ , भैया उसकी ही नौकरी लग गयी है , बस सब ऊपर बाले की कृपा है , आज मेरा बेटा पुलिस वाला बन गया है इसी खुशी में आज हम लड्डू बाँट रहे है "
तब तक मोहन भी वहाँ आ पहुंचता है शम्भू मोहन को देखकर , डब्बे में से एक लड्डू निकालकर मोहन को दे देता है , और कहता है , " बेटा, आज बड़ी खुशी की बात है , तुम्हारा दोस्त रवि आज पुलिस वाला बन गया है , यह सुनकर मोहन खुशी से झूम उठता है , और कहता है, " क्या काका सच में मेरा दोस्त पुलिस वाला बन गया है ?"
तभी शंकर दयाल मोहन को घूरकर देखता है, और मोहन झटपटा कर एक कोने में खड़ा हो जाता है।
शंकर दयाल आंखें गुरेज कर मोहन की तरफ देखते हुए कहता है, " देख ले एक वो है जो पुलिस में लग गया और एक तू जो भैंसे चराता है।, अरे कितनी बार तुझको समझाया कि पढ़ ले पर तू ने मेरी हरगिज न मानी, अरे तू इस धरती के लिए बोझ है।,
शम्भू कहता है, " अरे भैया क्यों बुरा भला कह रहे हो मोहन से अरे, उसका मन पढ़ाई में नहीं लगा तो नहीं लगा , इस तरह आप इसे बुरा भला क्यों कहते रहते हो , आप न मोहन की शादी करा दो घर में बहु आएगी तो आपका भी ख्याल रखेगी , और मोहन का भी ख्याल रखेगी।
शंकर दयाल कहता है, " अरे इसे अभागे को कौन व्याहेगा अपनी बेटी , इससे शादी करने से पहले वो अपनी बेटी को जहर न दे दे "
शम्भू कहता है, " अरे क्यों नहीं ,हमारे साले की बिटिया है रज्जो उसी से करा देते है मोहन का व्याह।"
शंकर दयाल , " अरे वो तो बिल्कुल अनपढ है, और मैं इसी एक अनपढ को बड़ी मुश्किल से बर्दास्त कर पा रहा हूँ उसे कैसे कर पाऊँगा "
शम्भू कहता है, " अरे, आप भी कमाल करते हो , अब मोहन जितना पढ़ा लिखा है उतनी ही पढ़ी लिखी बिटिया मिलेगी, फिर एक बार सोच लो बिटिया बहुत कमेरी है , घर का सारा काम अकेले ही कर लिया करेगी । "
शंकर दयाल कहते है, " अरे , ऐसे तो इसका व्याह कब का हो चुका होता, अरे हम अपने घर में अनपढ लोगों को तो बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे, और तुम इसकी चिंता छोड़ो ये तो है ही धरती का बोझ पड़ा पड़ा खाता रहता , कभी कभी तो हमें लगता है , काश ! ये हुआ ही न होता , तो मेंरे दिल को बड़ी तसल्ली मिल जाती ।"
शम्भू कहता है, " ऐसे मत बोलो लड़का सयाना हो चुका है कहीं आपकी बातों में आकर कुछ उल्टा सीधा कर लिया तो
शंकर दयाल , " अरे, कर ले जाके , तो क्या फर्क पड़ेगा हम पर अरे, हमारे तो दो दो पट्ठे कमा रहे है, अरे कल मरे तो आज मर जाये , कम से कम धरती का बोझ तो कम होगा "
शंकर दयाल की एक एक बात मोहन को अंदर तक तोड़ रही थी । आज उसकी हिम्मत ने गवारा दे दिया था। आज उसने अपने जीवन को खत्म करने का निर्णय ले लिया था।,
आज उसने एक बड़ी सी रस्सी ले ली और चारा लेने के बहाने से घर से निकल गया , और खेत पर खड़े नीम के पेड़ पर उसने फांसी लगा ली "
जब रात अधिक हो गयी और मोहन घर वापस नहीं लौटा तो शंकर दयाल ने आस पड़ोस में पता किया , पता करने पर पता चला कि वह खेत से चारा लेकर बापस ही नहीं आया था , अब शंकर दयाल खेत पर जाते है तो वो देखकर सन्न रह जाते है कि नीम के पेड़ पर मोहन की लाश झूल रही है।, गांव के लोगो की भीड़ एकत्रित हो जाती है और मोहन की लाश को उतारा जाता है।, और उसका क्रियाकर्म किया जाता है।
परन्तु इतना कुछ होने के बाबजूद शंकर दयाल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है वह पहले की तरह ही जिंदगी जीता है,
वक्त धीरे धीरे गुजरता चला जाता है, अब उसके दोनों बेटों की शादी हो जाती है। जो बीटा डॉक्टर था उसकी पत्नी भी डॉक्टर और जो बेटा पुलिस में था उसकी पत्नी पुलिस वाली , अब शंकरदयाल की उम्र काफी ढल चुकी थी उंसके हाँथ पैर उनका साथ नहीं देते कोई भी काम करने पर उनकी हाँफी फूल जाती ।
बड़े बेटे ने शहर में एक अस्पताल खोल लिया और दोनो मिया बीबी शहर में रहने लगे , कुछ दिनों बाद छोटे बेटे की भी पोस्टिंग दूसरे शहर में हो जाती है तो वो अपनी पत्नी की भी पोस्टिंग उसी शहर में करा लेता है,
अब दोनों हो मिया बीबी जाने की तैयारी करते है।, तभी शंकरदयाल वहां आता है और कहता है , " बेटा बड़े बेटे और बहू तो हमें छोड़कर चले गए अब तुम लोग भी जा रहे हो अब हम अकेले यहाँ कैसे रहेंगे , बेटा ऐसा करो हमें भी अपने साथ लेते चलो । "
रोहन कहता है, " बापू आप जानते तो है शहर का वास्ता है अभी लोग खुद किराए पर रह रहे है।, और आप को कैसे रखेंगे , वैसे भी बापू हमारे पास ये इतना बड़ा घर इसे किसके हवाले छोड़कर जाएंगे "
शंकर दयाल कहता है, " बेटा इतने बड़े घर में मैं अकेला रह कर क्या करूँगा , अरे मुझसे तो कुछ किया भी नहीं जाता है, मेरी देखभाल कौन करेगा "
रोहन कहता है, " बापू आप चिंता मत करो मैं इस घर को बेंच कर शहर में एक नया घर ले रहे है , बस वह यहाँ ये घर बेचेंगे और वहाँ नया घर खरीद लेंगे , हाँ, बापू , ये ही दो चार दिन में सेठ इस घर को खरीदने आएगा , आप घर के कागजात पर साइन कर देना और सेठ से 3 लाख रुपये भी ले लेना , और शहर चले आना और जब शहर पहुँच जाओ तो ये रहा मेरा नंबर हमें कॉल कर देना मैं तुम्हें लेने या जाऊँगा। आप चिंता मत करो बस दो चार दिन की ही तो बात है"
और रोहन शंकर दयाल को अपने गले से लगाता है और उनके पैर छू कर वहां से चल जाता है,
आज इतने बड़े घर में शंकरदयाल अकेला था और जब उसे भूख लगी तो उसने रोटी बनाने के लिए आटा गूंदा , बूढ़े हांथों में इतनी जान कहाँ थी कि जो आटा भी सही से गूंदा जाए, तो आज उसे अपने बड़े बेटे मोहन की याद आ गयी उंसके आंखों के सामने मोहन का अक्स नज़र आने लगा वो उसका आटा गूंदना और रोटी बनाना एक एक करके सभी दृश्य उंसके आँखों में तैरने लगे।,अब उसकी बूढ़ी आँखों में आज आँसू छलक उठे , और मन से सिर्फ एक ही आवाज निकल रही थी कि काश ! आज मेरा अनपढ ही होता , अरे उसकी शादी होती और एक अनपढ बहु इस घर में आती , कम से कम वो अपने घर में तो रहती और खाना बनाती , मोहन मेरा घर का सारा काम करता और मैं पहले की तरह ही कुर्सी डालकर बैठे अखबार पड़ता ।" परन्तु अब सपनो को देखने से होने बाला क्या है। जो कुछ उसने किया आज वो उसके सामने था ।"
दो चार दिन यूँ ही गुजर जाते है । और वो दिन भी आ जाता है जब सेठ घर के कागज़ पर साइन करा लेता है और शंकर दयाल को तीन लाख रुपये दे देता है। रुपये मिलते ही शंकर दयाल शहर जाने की तैयारी कर देते है। और रोहन को फ़ोन करके सब बता देते है कि वो बस स्टैंड पर उसका इंतजार करेंगे ।
कहे मुताबिक शंकरदयाल वहां पहुँच जाते है और बैठकर रोहन का इंतजार करने लगते है तभी वहां रोहन आ पहुँचता है, और शंकरदयाल से कहता है , " बापू, आप पैसे लाये हो न , मुझे दे दो , वो जो मैंने नया घर खरीदा है उसका मालिक अभी रुपये माँग रहा है, अगर मैंने उसे अभी रुपये नहीं दिए तो वो अपना घर किसी और को बैंच देगा ।"
शंकरदयाल झटपट से रुपये निकालकर रोहन को दे देते है,
रोहन रुपये लेकर शंकरदयाल से कहता है, " बापू, आप यहीं बैठो मैं सेठ को अभी रुपये दे कर आता हूँ
और रोहन अपने बापू को वही बैठा कर रुपये लेकर वहाँ से चला जाता है, और शंकरदयाल को इंतजार करने लगते है, समय धीरे धीरे काफी बीत चुका था परन्तु रोहन अभी तक वापस नहीं आया था शाम होने को थी , शंकरदयाल बहुत ही चिंतित था कि रोहन अभी तक नहीं आया , उससे रहा नहीं गया तो उसने एक राह गीर से वही फ़ोन नंबर लगवाया जो उसे रोहन ने दिया था , परन्तु फ़ोन भो स्विचऑफ आ रहा था , अब शंकरदयाल को चिंता और भी अधिक बढ़ चुकी थी। वो हतास बैठा ही हुआ था कि तभी उसे एक मोटर साईकल आते हुए दिखाई देती है।, जिस पर रोहन बैठा हुआ था , वह दूर से ही रोहन को आवाज लगाने लगता है , परन्तु रोहन शंकरदयाल को पास से देखता हुआ निकल जाता है और गाड़ी नहीं रोकता है।, अब शंकर दयाल वही बैठकर रोने लगते है।,
अब अंधेरा काफी ढल चुका था , शंकर दयाल के पास 100 रुपये थे जो उसके घर वापस आने के लिए किराए के लिए उपयुक्त थे ।,शंकरदयाल बस में बैठ कर घर आ जाते है।, घर क्या गांव आ जाते है क्योंकी अब घर तो सेठ का हो चुका था , अब उनके पास घर नहीं था तो रात को अकेले गांव की चौपाल पर बैठकर काफी देर तक रोते रहते , फ़ॉर अपने आँसू को पौंछकर उठते है और हाँथ मैं एक रस्सी लेकर उसी नीम के पेड़ के पास जाते है ,जहां मोहन ने आत्महत्या की थी उसी पेड़ के नीचे बैठके दहाड़े मार कर रोने लगते है , और रोते हुए कहते है, " बेटा मोहन , आज मेरे लिए खाना बनाने वाला कोई नहीं है, आज तेरा बाप इतना बूढ़ा हो गया कि अपने हाँथो से अपने लिए खाना भी नही बना पाता है।, आज बहुत अरसे हो गए है तेरे हाँथ का खाना खाएं , आज फिर से तेरा बाप तेरे हाँथ का खाना खाना चाहता है, खिलायेगा न बेटा, आज तेरा बाप तेरे घर खाना खाने या रहा है, तू अपने इस अभागे बाप को अपने घर मे स्वीकार करेगा न , कहीं अपने भाइयों की तरह मुझे निकाल मत देना।"
इतना कहते कहते वह फुट फुट कर रोने लगता है, और उसी नीम के पेड़ पर रस्सी डालकर फाँसी लगा लेता है। 5 , 6 मिनट तक वह फड़फड़ाता है और फिर एक दम शांत पड़ जाता है , उसकी गर्दन नीचे को लटक जाती है और वह अंतिम धाम को चला जाता है।
कहानी समाप्त