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किसान कहानी संघर्ष की

9 December 2022

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            किसान कहानी संघर्ष की  

Story introduction:- किसान एक साधारण सा शब्द ,काम बहुत महान भूखे लोगों का पेट भरना और उसके लिए चाहे खुद भूखा रहना, आज यही हाल है किसान का,जो एक ऐसा व्यापारी है जो अपना व्यापार किसी मुनाफे के लिए नहीं करता बल्कि लोगो के पेट भरने के लिए करता है 
      आज हम आपके सामने एक ऐसी कहानी लेकर आये है, जो आपको बताएगी की किसान को हम अन्नदाता क्यों कहते है, कहानी है एक गरीब किसान और एक रॉबदर सेठ की कहानी जिसमे सेठ छल कपट करके गरीब किसान से उसका जान से प्यारा उसका खेत छीन लेता है, अंत में उस गरीब किसान की महानता के कारण सेठ को उंसके सामने अपना सर झुकना पड़ता है, शुरू करते है एक जो आज के हालात की सच्चाई को  बयाँ करती एक कहानी।

Story :-  शहर से कुछ ही दूरी पर वसा एक छोटा सा गांव विलासपुर, गांव बहुत ही सुंदर प्रकृति से ढका हुआ चारों तरफ से हरा भरा था। इसी गांव में एक किसान रहता था। जिसका नाम महिपाल था , महिपाल के पास पांच बीघा जमीन थी हालांकि उसका परिवार ज्यादा बड़ा नही था कुल मिलाकर उसके घर में चार लोग थे उसकी पत्नी मन्जो और बेटी सरिता और एक बेटा मुन्ना बेटी की उम्र 19 साल थी और बेटे की उम्र 13 साल की थी। महिपाल का घर गुजारा खेती बाड़ी से ही चलता था आर्थिक स्तिथि ज्यादा अच्छी न थी।और बेटी का व्याह पड़ोस के गांव में तय कर दिया गया था

        एक दिन महिपाल अपना खेत सींच रहा था। तभी वहां मन्जो खाना लेकर आती है। मन्जो उसे आवाज देकर बुलाती है। फिर महिपाल वहां आ जाता है । और मन्जो टिपन से रोटियां निकाल कर थाली में रख देती है और एक पोटली से कुछ नमक की कंकड़ियां निकाल कर थाल में रख देती है।

महिपाल थाल की तरफ देखकर कहता है, " क्या सरिता की माँ , आज फिर से नमक , क्या सब्जी नही बनाई है।

मन्जो नर्म स्वर में कहती है , " आप को सब पता है कि खाने के बांदे है घर में ,फिर सब्जी कहाँ से लाऊँ। तुम तो जानते हो ये रोटियां तो बड़ी मुश्किल से नसीब होती है।

महिपाल उदास होकर खाना खाने लगता है।तभी मन्जो गहरे ख्यालों में खो जाती है। और उदासी उसके चेहरे पर छलकने लगती है।,  इस तरह मन्जो को उदास देख कर महिपाल उसे झटककर कहता है , " क्या हुआ सरिता की माँ क्या सोच रही हो ?"

दबे हुए स्वर में मन्जो कहती है , " बस यही सोच रही हूँ कि तीन महीने बाद हमारी बिटिया की शादी है और उन्होंने दहेज में 50,000 रुपये की मांग की है। इतना रुपया कहाँ से आएगा, कैसे होगा हमारी बेटी का व्याह ?"

महिपाल सांत्वना देते हुए मन्जो को समझाता है , " तुम इतना परेशान मत हुआ करो अरे हमारे पास कुछ रुपये रखे है। और कुछ धान बेचकर कर लेंगे बस अब तो भगवान से एक ही प्रार्थना है कि फसल के दाम अच्छे मिल जाये।"

मन्जो कहती है , "अब तो सब ऊपर बाले के हांथों में है वो जो भी करेगा सब अच्छा ही करेगा।

तभी महिपाल अपने पड़ोस के खेतों की तरफ निहारते हुए कहता है ," मन्जो ये रघु ,भुल्ला , हरिया ये सब दिखाई नही दे रहे है। मैं तो देख रहा हूँ । कई दिनों से खेत पर नही आ रहे है और तो और देखो उनकी फसल पूरी तरह से सूख रही है। न इसमे पानी की सिंचाई करते है न ही खेत देखने आते है।

तभी मन्जो कहती है , " अरे वो अब यहां क्या करेंगे आके तुम्हे पता नही है उन्होंने अपनी खेती किसी सेठ  को बेच दी है। और उस सेठ का मुंशी  हमारे पास भी आया था खेती बेचने को कह रहा था मैंने तो मना कर दिया ।

महिपाल कहता है ,  "अरे ! सब की बुद्धि में कीड़ा पड़ गए है जो अपनी खेती बेच दिए अरे , जिस खेती ने उनका और उनके बच्चों का पेट भरा है आज रुपये के लालच में उसी को बेच दिया , वैसे मन्जो तुमने बहुत सही किया मना करके , वैसे वो सेठ हमारी खेती खरीदना क्यों चाह रहे थे ?"

मन्जो कहती है , " वो सेठ यहाँ ईंट का भट्टा खोलना चाहते है। ये भुल्ला हरिया और रघु को भट्टे पर काम भी मिलेगा इसी लालच में बेच दी ।"

महिपाल कहता है, " अरे पगला गए है सब , खेती बाड़ी छोड़कर भट्टे पर मजदूरी करेंगे। ,

मन्जो कहती है, "अरे, हमें क्या ये उनकी जगह वो किसी को भी बेचे हमें क्या पढ़ी ।"

महिपाल झल्लाकर कहता है , " क्यों नहीं पड़ी , अरे भट्टा गांव के इतने पास है इसके धूँए से हमी लोग बीमार पड़ेंगे एक दिन,  तब इन लोगों को समझ आएगी "

अब मन्जो वापस घर चली जाती है और महिपाल फिर से खेत की सिंचाई करने लगता है।

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इधर साहनी सेठ एक कुर्सी पर बैठा है और तभी वहां उसका मुंशी वहां आ पहुंचता है। मुंशी को देखकर सेठ कहता है , " और मुंशी जी भट्टे के लिए जगह खरीद ली । "

मुंशी कहता है , " साहब जगह खरीद ली परन्तु बीच बाला जो खेत है वो नही खरीद सका "

साहनी सेठ कहता है, " क्यों क्या हुआ क्यों नही खरीद पाया और उस खेत का मालिक कौन है ? "

मुंशी कहता है , "अरे वो बीच बाला खेत महिपाल का है। और वह अपना खेत बेंचना नहीं चाहता है । उससे कई मिन्नते की परन्तु वो खेत बेंचने के लिए हरगिज भी तैयार नही हुआ । "

साहनी सेठ कहता है , " अरे तुम चिंता मत करो उससे में बात कर लूंगा।  चलो तुम मुझे उसके पास ले चलो "

और फिर दोनों महिपाल  से मिलने के लिए चले जाते हैं।  इधर महिपाल अपने खेतों पर सिंचाई कर रहा था। तभी वहां साहनी सेठ आ जाता है। साहनी सेठ दूर से ही महिपाल को इशारा करके बुलाता है । महिपाल पास आकर कहता है , " क्या आपको मुझसे कोई काम है । मुझे आपने क्यों बुलाया है ? "

साहनी सेठ कहता है , " क्या ये खेत तुम्हारा है ?"

महिपाल कहता है, " हाँ ये खेत हमारा है।, परन्तु आप क्यों पूंछ रहे हो ?"

सेठ कहता है , " मैं आप का खेत खरीदना चाहता हूँ, मैंने मुंशी को भेजा था । परन्तु तुमने बेचने से मना कर दिया , अब वो क्या जाने की इस जगह की कीमत क्या है? , अब तुम ही बताओ कितना रुपया चाहते हो ?"

महिपाल कहता है, " आप को मेरा जबाब पता है फिर भी आप यहाँ मेरी जमीन खरीदने आये हो साहब हम गरीब जरूर है पर पागल नहीं है जो अपनी इस अन्न को देने बाली माँ को बेंचे इससे कइयों के घर के चूल्हे जलते है। और कई गरीबों को खाना मिलता है। इससे उपजने बाला अनाज कइयों को जिंदगी देता है और आप कहते है में अपनी खेती बेंच दूँ , भूखे पेट रहने बालों का भोजन बेंच दूँ । कभी भी नहीं । "

सेठ कहता है , " अरे ,महिपाल तुम , मूर्ख मत बनो क्या मिलता है इस खेती से कुछ भी तो नही , मैं तुम्हे इतना रुपया दूँगा की तुम जिंदगी भर ऐस करोगे और तुम्हारी आने बाली पीढ़ी भी ऐस करेगी और तो और तुम्हें हम नौकरी भी देंगे सोच लो फिर बाद में पछताने से कुछ न होने वाला

महिपाल कहता है, " सेठ ये लालच तुम किसी और को देना हम तो तुम्हारी एक फूटी कौड़ी भी हराम समझते है। मुझे तुम्हारी इस दौलत से क्या मतलब मेरी ये धरती सोना उगलती है। जो कई लोगों के पेट की भूख को शांत करता है। और तुम जो ये नौकरी का लालच दे रहे हो न ये किसी और को देना मेरे पास मेरे खुद का खेत है तो मुझे तुम्हारे भट्टे पर मजदूरी करने का कोई लोभ नहीं है। क्या मैं खेती बाड़ी छोड़ कर तुम्हारे भट्टे पर मजदूरी करूँगा ? "

सेठ मुस्कराते हुए कहता है , " हूं , सोना उगलती है ये तुम्हारी धरती ये बातें कहने में तो अच्छी लगती है , परन्तु हकीकत ये है कि हमारे पास जो सोना है उससे ये सोना भी खरीदा जा सकता है और कई जिंदगियां भी । "

महिपाल कहता है , " सेठ एक सच ये भी है की जब लोगों को भूख लगती है तो ये सोना ही लोगों की भूख शांत करता है न कि वो सोना जो तुम्हारे पास है । मैं खेती करके अनाज उपजाता हूँ लोगो को जिंदगी देता हूँ। और तुम यहाँ भट्टा लगाकर लोगों को मौत बाँटोगे इसके धुएं से लोग बीमार पड़ेंगे ।

सेठ की कही एक भी बात का महिपाल पर कोई असर नही हो रहा था अब वो गुस्से में आग बबूला हो जाता है और महिपाल से कहता है , " तुम अपनी ये बकबास बन्द करो और मुँह खोलो कितना चाहते हो क्यों कि अभी ले लोगे तो ठीक बाद में तुम्हे कुछ नही मिलने बाला है। रहा सवाल इस जगह का तो वो मैं लेकर रहूँगा चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े। और किसी भी हद तक जाना पड़े बेहतर यही है कि जो मिल रहा है उसे चुप चाप रख लो"

महिपाल कहता है , "मैं भी देखता हूँ की मेरा खेत मुझसे कौन छीनता है। मैं किसी भी कीमत पर अपना खेत नहीं बेचने वाला हूँ ।"

अब सेठ के इतने समझाने पर भी उसकी दाल न गली अब उसके पास वहाँ से जाने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था । वह और मुंशी गाड़ी में बैठकर चल देते है। और मुंशी से बात करने लगता है।

सेठ कहता है , " मुंशी , ये ऐसे नही मानेगा इसका कुछ सोचना पड़ेगा । इसकी कोई कमजोरी बताओ जिससे इसे खेत बेंचने पर मजबूर किया जा सके ।

मुंशी कहता है , " कमजोरी क्या साहब , एक साल पहले इसने अपना घर गिर्मी रखा था साहूकार के पास बस उस साहूकार से कहो कि इसका घर खाली करा दे। "

सेठ के कहने पर साहूकार महिपाल से उसका घर छीन लेता है । आखिर महिपाल के सर पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ता परन्तु फिर भी वह अपनी बात पर अडिग था उसका इरादा अब भी अटल था । उसने अपने खेत के पास ही एक घास फूँस की झोपड़ी रख ली और वही रहने लगे इतना क़ुछ होने के बाबजूद भी उसने सेठ का प्रस्ताव फिर एक बार ठुकरा दिया । एक बार फिर सेठ को खाली हाथ निराश ही जाना पड़ा। सेठ बहुत चिढ़ चुका था।

अब सेठ चिड़ कर मुंशी से कहता है , " कौनसी मिट्टी का बना है । ये पिघलने का नाम ही नही ले रहा है।"

तभी मुंशी कहता है , " साहब अब एक ही उपाय है कि इसके खेत के जो कागजात है। वो कैसे भी निकलवा लो फिर अब नए कागजात पर इसके हस्ताक्षर करवा लो । "

सेठ कहता है , " परन्तु खेत के कागजात कैसे निकलवाये जाए

मुंशी मुस्कराते हुए कहता है , " उसकी चिंता आप मुझ पर छोड़ दो वो मेरा काम है। "

सेठ कहता है , " ठीक है लेकिन जो भी करना जल्दी करना अब हमारे पास समय नही है । "

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इधर मुन्ना गांव के बच्चों के साथ खेल रहा था तभी मुंशी मुन्ना के पास जाकर कहता है , " अरे , मुन्ना बेटा यहाँ आओ " और मुन्ना मुंशी के पास पहुंच जाता है मुंशी मुन्ना को कम्पट देता है और कहता , " अरे मुन्ना तुमको उस झोपड़ी में रहने में बड़ी दिक्कत होती होगी , पर क्या करें तुम्हारे पापा ने सेठ के क़ुछ कागज़ अपने पास रख लिए है। अगर वो सेठ को उनके कागज़ वापस दे दे तो सेठ तुम्हारा घर वापस कर देंगे और फिर से तुम उस घर में रहने लगोगे ।"
मुंशी की बातों को सुनकर मुन्ना उसकी बातों में आ जाता है और मासूमियत से कहता है, " कौनसे कागज़ ? आप मुझे बताओ में आप को लेकर दे दूंगा ,मुझे तो बस मेरा घर चाहिए "
मुंशी कहता है , " शाबाश मेरे बेटे , तुम्हारे घर में एक बड़ा सा संदूक है उसी में रखे है तुम्हे वो कागज़ मुझे देने है ।

मुंशी की बातों में आकर मुन्ना चुप चाप खेत के कागजात मुंशी को दे देता है  और मुंशी उन कागज़ों को सेठ को दे देता है । सेठ मुंशी की पीठ थपथपाता है और कहता है , " अब जाओ उसकी झोपड़ी तोड़ दो और वह खेत खाली करवाओ ।

सेठ के कहे अनुसार सेठ के लोग उसकी झोपड़ी तोड़ने लगते है यह देखकर महिपाल उसका विरोध करता है और कहता है, "यहां से चले जाओ नही तो अच्छा नही होगा " इतने में साहनी सेठ वहाँ आ जाता है और कहता है , " नहीं तो क्या करलेगा ?"

महिपाल कहता है, " मैं तुम्हारे खिलाफ पुलिस थाने में शिकायत करूँगा "

सेठ मुस्कराते हुए कहता है , " किस बिना पर शिकायत करोगे क्या ये खेती तुम्हारी है । अगर है तो खेत के कागजात लेकर आओ "

इतना सुनते ही महिपाल कहता है , " अभी लाता हूँ और दिखाता हूँ ।"  और महिपाल संदूक को खोलकर देखता है तो वह सन्न रह जाता है।  आखिर जमीन के कागज़ कहाँ गायब हो गए और निराश और हताश होकर बाहर निकलता है।

सेठ को सब पता था वह मुस्कराते हुए कहता है ,  " अरे दिखाओ कहाँ है कागज़ नहीं है न, फिर क्यों टांग अड़ा रहे हो

सेठ की बातों को सुनकर महिपाल कहता है,  "मेरे पास कागज़ नही है। तो ये तो साबित नही होता कि ये जमीन तुम्हारी है। , क्या तुम्हारे पास कोई सबूत है जिससे ये साबित हो कि ये जगह तुम्हारी है।"

सेठ कहता है , " ठीक है सबूत कल दे देंगे और सबको दिखा भी देंगे । " 
   इतना कहकर वह वहां से चला जाता है ।

इधर महिपाल कड़ी डांट फटकार लगाकर मुन्ना से पूंछता है तो मुन्ना रोते हुए पूरी कहानी सुना देता है। महिपाल कहता है, अब मैं उस सेठ को बिल्कुल भी नहीं छोडूंगा पुलिस में शिकायत करूंगा जाकर और वह पुलिस स्टेशन की तरफ चला जाता है।

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  इधर दरोगा पटनायक , सेठ का बहुत बड़ा हिमायती था सेठ को ये पता था कि महिपाल शांत नही बैठने बाला है वह जरूर ही पुलिस में शिकायत करेगा इसलिए वह दरोगा को फ़ोन पर सबकुछ समझा देता है कि उसे क्या करना है और कहता है कि उसकी शिकायत जरूर लिख ले नही तो वो ऊपर शिकायत करेगा । महिपाल पुलिस स्टेशन में दरोगा को सारी घटना बताता है। और दरोगा उसे पूरा आस्वासन देता है । कि वो उसकी मदद करेगा और वह उसे वापस घर भेज देता है।

     सुबह होती है तो सेठ फिरसे अपने चेलों को लेकर वहां आ जाता है। तब तक दरोगा भी आ चुके थे दरोगा सेठ को धमकाते हुए कहते है  , "क्यों इस गरीब को परेशान कर रहे हो? "

सेठ कहता है , " अरे मैं कौनसा इसे परेशान कर रहा हूँ अरे इसने मुझे ये खेत गिर्मी रखे थे ये रहे इस खेत के कागजात, और मुझे तो पता था ये अपनी बात से मुकर जाएगा इस लिए ये रहा इसका राज़ीनामा जिस पर इसने खुद अंगूठा लगाया है ।"

ये देख कर महिपाल खामोश हो जाता है और उसके आंखों से आंसू बहने लगते है और मन ही मन खुद को आज हारा हुए महसूस कर रहा था। तभी दरोगा उसके कंधों पर हाँथ रखकर कहता है , "अब मैं आपके लिए कुछ नही कर पाऊंगा उसके पास कानूनी हक है इस जमीन का अब तुम्हे ये जगह छोड़नी ही पड़ेगी।"   इतना कहकर दरोगा वहां से चल जाता है।

सेठ , महिपाल के पास आकर कहता है,  "  कि अब तू ये सोच रहा होगा कि मेरे पास ये राजीनामा कहाँ से आया तो सुन ये दरोगा भी मेरे साथ मिला है। तू जो थाने में जोश में आकर अंगूठा लगाए जा रहा था तो तुझे पता भी नही था कि कब तूने राजीनामे पर भी अंगूठा लगा दिया है। इसी लिए कहते है कि जिसकी लाठी उसी की भैंस , जब तुझे रुपये दे रहे थे तो तुझे वो भी बुरे लग रहे थे अब तुझे क्या मिला ? "  और इतना कहकर वह वहां से चला जाता है ।

अब महिपाल चुपचाप खड़े रोये जा रहा था । आज उसके पास जो आखिरी सहारा था वो भी छीन चुका था साहूकार ने उसका  मकान तो पहले ही ले लिया था ।

क़ुछ दिनों बाद लड़के बाले शादी के लिए मना कर देते है। शादी के टूटने का गम सरिता सह नही पाती वह खुद को अब अपने पिता पर एक बोझ समझ रही थी और वह खुद खुशी कर लेती है । अब महिपाल पूरी तरह से टूट चुका था उसने अपनी बेटी के ब्याह के लिए कई सपने संजोए थे सभी सपने चूर हो गए थे। अब वह पूरी तरह से टूट गया था घर भी छिन गया खेत भी छिन गया और अब बेटी की मौत एक और सदमा यह सब देखर साहूकार को तरस आ जाता है और वह उसका घर उसे वापस दे देता है और कहता है, " बेटा मुझे माँफ करना मैं बैकाबे में आ गया था अगर में तुम्हारा घर तुमसे न छीनता तो शायद तुम इस हाल में न होते हो सके तो मुझे माँफ कर देना और अब तुम मेरे खेत पर खेती बाड़ी करना और आधा हिस्सा तुम्हारा होगा और आधा मुझे दे देना । आज उसका भरोसा फिरसे साहूकार पर जाग चुका था अब वह उसकी खेती बाड़ी करने लगा ।

समय बड़ा बलवान होता है । समय की गति को कोई नही जानता था समय ने अब करवट बदल ली थी। समय की ये मार अब किसी और के लिए सबक बनने बाली थी।

पूरे शहर में मूसलाधार बारिश होती है पानी के कारण लोगों के पास खाने को तक अनाज के लाले पड़ रहे थे इधर सेठ का आलम ये था कि रोज वह महंगी महंगी सब्जियां खाया करता था वह अब वह अनाज और सब्जियां लेने के लिए बाहर जाता है तो हर एक दुकानदार अनाज और सब्जी देने से मना कर देता है।

सेठ कहता है , " अरे भैया कुछ रुपये ज्यादा लेलो पर अनाज और सब्जी दे दो।"

दुकानदार कहता है , " अरे इस अकाल में तो हमें ही खाने को नही तुम्हें कहाँ से दे दूँ और जब मेरे पास खाने को ही नही होगा तो मैं तुम्हारे इन रुपये का क्या करूंगा भला"

जिस  रुपये को वो सोना कहता था आज उसके बदले में उसे दो रोटी भी नहीं मिल रही थी इस तरह से चार दिन गुजर जाते है।,  सेठ का एक लड़का था जो 12 वर्ष का था । खाना न मिलने से वह बीमार पड़ जाता है । डॉक्टर उसकी जांच करके कहता है आप इसे कुछ भोजन खिलाईये नही तो ये ज्यादा दिन तक नही बच पायेगा। ये सुनते ही उसके पैरों से जमीन खिसक जाती है । आज उसके पास दौलत होते हुए भी वो अपने बेटे के लिए कुछ नही कर पाता है। उसके बेटे का फूल की तरह चमकने बाला चेहरा , आज मुरझा चुका था उसका चहरा पूरी तरह से पीला पड़ चुका था अब सेठ के पास उसे बचाने की कोई उम्मीद भी नही बची थी।

     रात के दस बज चुके थे  तभी उसके दरवाजे पर कोई  कुंडी खटखटाता है । सेठ की पत्नी जाकर दरवाजा खोलती है तो देखती है गेट पर महिपाल खड़ा है उसके हाँथ में एक प्लेट है और उस प्लेट मैं कुछ चावल थे । महिपाल कहता है , " मैने सुना था कि आपका बेटा बीमार है । उसने चार दिन से खाना नही खाया है । कहाँ है आपका बेटा । " सेठ की पत्नी उसको अपने बेटे के पास ले जाती है । महिपाल अपने हांथों से उसे खाना खिलाते हुए कहता है , " तुम चिंता मत करो तुम्हे कुछ नही होने वाला है तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे।

    सेठ खामोश होकर उसे देखे जा रहा था और उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे जिसको उसने इतने कष्ट दिए उसी ने आज उसके बेटे की जान बचाई है। और रोते हुए महिपाल के पैरों में गिर पड़ता है और हाँथ जोड़कर कहता , "है मुझे माँफ कर दो मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है। और फिर भी तुम मेरी मदद कर रहे हो।" 

महिपाल कहता है , " सेठ तुम बिजनिसमेन होकर अपना बिजनिस नही छोड़ सकते हो तो हम किसान होकर अपना कर्तव्य कैसे छोड़ दें । , अब आप ही बताई ये जो मेरी मुट्ठी में ये सोना है कि जो आपके पास है वो सोना है 

सेठ महिपाल की मुट्ठी पकड़कर रोते हुए कहता है, " जो मेरे बेटे की जान बचाये वही सच्चा सोना है तुमने सही कहा था कि हमारे देश की मिट्टी सोना उगलती है । और में पापी इस पर जहर बोने बाला था मुझे माँफ कर दो महिपाल में तुम्हे तुम्हारी खेती वापस कर दूंगा और अब मैं ईंट का भट्टा नही खोलूंगा बल्कि वहां एक मंडी खुलवाऊंगा जिससे किसानों को अपनी फसल के लिए यहां वहाँ भटकना न पड़े।

वादे के मुताबिक सेठ महिपाल को उसका खेत वापस कर देता है और किसानों की भलाई के लिए मंडी भी खुलवाता है।

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हमारे देश के किसानों की यही कहानी है । वो एक ऐसे व्यापारी है जो कभी फायदे के लिए बिजनिस नही करते बस लोगों के पेट भरने के लिए काम करते है

क्या आलम बन गया हमारे समाज में हम उस चीज की कद्र नही करते है जो हमारे लिए जरूरी है। और न ही उस व्यक्ति की कद्र करते है। जो हमारी अवश्यकताओं को पूरा करता है।
हम सब जानते है कि भोजन हमारे लिए कितना जरूरी है। फिर भी हम जब कभी सब्जी खरीदने जाते है तो 5 -5 रुपये के लिए भी कितना मोल भाव करते है। और अगर किसी सिनेमा हाल में कोई फ़िल्म लगी हो । तो 300 की टिकेट भी हम ब्लैक में 500 में खरीद लेते है। अब ये बताओ  हम बिना फ़िल्म देखे जीवित कितने दिनों तक जीवित रह सकते है या फ़िल्म न देखने से हमारा शरीर दुबला जाएगा। आपका जबाब होगा नही फ़िल्म देखे या न देखे इसका न तो हमारे शरीर पर कोई फर्क पड़ेगा और न ही हमारी जीवन चर्या पर, परन्तु यदि खाना नही खाये तो क्या होगा ? , हम ज्यादा दिन तक जीवित नही रह सकते है।और इससे हमारा शरीर पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। हमारा शरीर कमजोर पड़ जायेगा। हम जानते है कि भोजन से ही हमारी जिंदगी की गाड़ी चलने बाली है।

फिर भी हमें 25 रुपये की लौकी महंगी लगती है । और मोलभाव करके  20 रुपये में लेके आते है। और अगर सिनेमा की टिकट न मिले तो हम 300 रुपये की टिकट को 500 रुपये में खरीद लेते है। ऐसे ही एक फ़िल्म अभिनेता एक सेलेब्रिटीज़ है । अगर कोई अभिनेता आपके शहर में आ जाये तो लाखों की भीड़ इकट्ठी हो जाएगी इधर दूसरी तरफ हमारा पेट भरने बाला खुद भूखे मर जाता है।और 100 लोगों की भीड़ भी इकट्ठी नही होती है।


          
             !    जय जवान , जय किसान !






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