खूनी तालाब
सूर्य पृथ्वी के आँचल में छुप गया था। और नभ में उसका स्थान चाँद ले लिया था। चाँद की शरद रोशनी नभ में बिखरी हुई थी। तारे उसकी प्रजा की भांति चारों ओर सवा लगाए बैठे थे। नभ की अलौकिक छाया पानी में ऐसे उभर रही थी मानो जमीन पर भी एक नया नभ उभर आया हो।
तालाब के पास शांत मुद्रा में उदास बैठी रोहणी चित्त लगाकर तालाब में अपने प्रतिबिंब को निहार रही थी। एका एक उसे अपने प्रतिबिम्ब की जगह एक जलपरी नजर आयी। यह देख उसकी दृष्टि विचलित हो गयी। वह वहाँ से उठ कर जाने लगी।
"कहाँ जा रही हो..? यहाँ आओ मेरे पास, भागो मत!" तालाब से एक आवाज गुंजित हुई।
रोहणी सट पटा कर वहीं खड़ी हो गयी। उसने पीछे मुड़कर देखा, तो वहाँ कोई भी नजर ना आया। वहम होगा शायद, यही सोचकर वह वापस जाने लगी। तभी फिर से किसी ने उसे पुकारा, तो अचंभित होकर बोली, " कौन हो तुम..?और मुझे क्यों बुला रहे हो..?"
"मैं कौन हूँ। यह महत्व नहीं रखता। परन्तु तुम... तुम मेरी रानी साहिबा हो।" तभी एक साथ कई आवाजें उसे पुकारने लगी। मानो पानी के नीचे भी एक दुनिया हो। जिसकी वह रानी थी। रोहणी डरी सहमी वहाँ से जाने लगी। तभी तालाब में एक ऊंची लहर उत्पन्न हुई। जिसने उसे पूरी तरह से भिगो दिया।
"यह क्या बेहूदा हरकत है..?" रोहणी झल्लाकर उठ बैठी उसने अपने सामने अपनी माँ को पानी का मग लिए खड़ा पाया। और खुद को बिस्तर पर भीगा हुआ पाया। "माँ आज आपने फिर इतनी जल्दी जगा दिया..!" रानी ने बेड से उठते हुए कहा।
"अरे! एक टक घड़ी कोई भी देख ले। कितना समय हो गया। क्या तुझे आज ऑफिस नहीं जाना है?" चादर समेटते हुए रोहिणी की की माँ बोली।
"माँ, आपको पता है.? मैने आज सपने में क्या देखा..?"
"रहने दे...रहने दे! मुझे पता है कि क्या देखा होगा..! वही घिसा पिटा एक ही सपना...तुझे तालाब के पास कोई बुला रहा होगा। और तू तालाब की रानी है। अरे! ये सपना तो तू कब से देखती आ रही है।"
ये एक सपना है या कोई हकीकत यही दुविधा लिए रोहिणी ऑफिस आ गयी। रोहिणी एक न्यूज चैनल में रिपोर्टर थी।
आफिस में चीफ एडिटर ने उसकी तरफ अखबार फेंकते हुए कहा, "पढ़ो ये खबर! कैसे कुछ लोग सरकारी जगह को हथियाने के लिए। झूठी अफ़वाह फैला रहे है कि तालाब शापित है।"
"परन्तु एक तालाब के लिए कोई ऐसा क्यों करेगा..? इस तालाब में क्या रखा है.?"
"ये तालाब नहीं बल्कि उसके पास ये जो महल है उसी पर लोगों की नजर है। मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी टीम के साथ वहाँ जाओ और इस झूठ का खुलासा करो..!"
"ठीक है सर.!" रोहिणी अपनी टीम के साथ वहाँ से न्यूज़ वैन में बैठकर रवाना हुई। गाड़ी में वो उसकी साथी रिपोर्टर रुहाना कैमरा मैन और ड्राइवर थे। वो जिस जगह जा रहे थे वो वहाँ से 100 km दूर थी।
वो लोग वो लोग मंजिल के करीबी ही थे। तभी रुहाना ने आवाज दी, "जयराम गाड़ी ढाबे के साइड से लगा लेना। कुछ खा पी ले तब चलते है।"
"हाँ यार भूख तो मुझे भी लग रही थी। चलो कुछ खा पीले तब चलते है।" रोहिणी ने उसके सुर में सुर मिलाया।
सभी लोग गाड़ी से उतरकर ढाबे में पड़ी गोलमेज के चारों ओर कुर्सी डालकर बैठ गए। और अपने अपने मन मुताबिक खाना ऑर्डर कर दिया।
"अरे! भैया आज की न्यूज़ देखी.? उसी तालाब से छठी लाश निकली है।" पीछे वाली गोल मेज पर बैठे एक युवक ने कहा। अब रोहिणी का ध्यान उसी ओर केंद्रित था।
"अरे भैया कुछ लोग होते ही है मूर्ख जो पहुँच जाते है। उस तालाब के पास, सब जानते हैं कि वह खून का प्यासा तालाब है। फिर क्यों वहाँ जाकर मौत को दावत देते है।" उन्हीं में से एक शख्स ने कहा।
"खाना पीना खाने के बाद रुहाना ने कहा, "अच्छा अब हम लोगों को चलना चाहिए। बस हम लोग अपनी मंजिल के करीब ही है। अब रोहिणी का ध्यान वहाँ से हट गया। वो लोग गाड़ी में बैठकर चल दिये।
अपनी मंजिल के पास पहुँचते पहुँचते शाम हो चुकी थी। उन्होंने तालाब से कुछ दूर एक सपाट मैदान में तम्बू लगा लिया। और हँसी मजाक करने लगे। परन्तु तालाब को देखने के बाद रोहिणी के दिमाग में एक ही बात गूँज रही थी कि ये तालाब तो मैंने सपने में देखा है। परन्तु ये हवेली नहीं देखी थी। जो तालाब के पास है।
"मैम साहब मैं अभी आया थोड़ा सा काम है।" ड्राइवर ने विनम्र स्वर में कहा।
रूहाना तपाक से बोली, "हाँ.. हाँ, तेरा वो जरूरी काम मुझे अच्छे से पता है। तेरी ये दारू की लत जाने से रही। अगर किसी दिन बॉस को पता चल गया न तो नौकरी से हाँथ धो बैठेगा।"
"अच्छा तो जा पर याद रखना दारू पीकर वापस यहाँ मत आना गाड़ी में ही सो जाना" रोहिणी ने उसका समर्थन किया।
तो वह उठकर वहाँ से चला आया। तालाब के पास पत्थर पर बैठा। वह दारू पी रहा था। नशे में धुत उसे एक चीख सुनाई दी, "चले जाओ यहाँ से..!" चीख इतनी भयंकर थी कि उसका नशा अब कोशों दूर था। वह नशे में लड़खड़ाते हुए चल पड़ा। परन्तु तालाब के चारों ओर की घास इतनी में फिसलन थी कि उसका पैर फिसल गया और फिसलते हुए तालाब के पानी में जा पहुँचा। वह बाहर निकलने का जितना प्रयास करता। उतना ही ज्यादा डूबता चला जा रहा था। धीरे धीरे उसका शरीर सुस्त पड़ गया। देखते ही देखते तालाब ने उसे पूरी तरह निगल लिया। तभी अचानक से तालाब का पानी ठंडा पड़ने लगा कुछ ही क्षण में पूरा तालाब बर्फ की तरह जम गया। तालाब के चारो ओर की झड़ियों पर भी बर्फ की परत जम गई थी। जिसकी ठंडक को दूर दूर तक महसूस किया जा सकता था।
"तंबू में बैठे चारों लोगों को अचानक से बहुत तेज ठण्ड लगने लगी। ठण्ड के कारण उनकी दाँत किट किटाने लगे। "अरे यार यह क्या माजरा है..? गर्मी के मौसम में इतनी कड़क ठण्ड..! अगर मैं यह सब जानती होती कि यहाँ इतनी जल्दी मौसम परिवर्तन होता है तो घर से कुछ सर्दियों वाले कपड़े लेकर चलती।"
"हाँ यार, सही कह रही हो। लेकिन ये जयराम..?"
"अरे वो वो तो दारू पीकर नशे में टुल्ल होकर गाड़ी में ही सो गया होगा।" कैमरा मैन कप कपी भर कर बोला।
सुबह जब उन लोगों ने जयराम को गाड़ी में न पाया तो घबरा गए। और चारो रो ढूढ़ने लगे। वो लोग उसकी तलाश कर रहे थे। तभी कैमरा मैन चिल्लाया, "मैडम यहाँ आइए..? यहाँ किसी की लाश पड़ी है।"
लाश को बाहर निकाला तो पता चला कि वो लाश जयराम की ही है। उसकी म्रत्यु से सभी लोग भयभीत थे। देखते ही देखते लोगों की भीड़ एकत्रित हो गयी। रोहिणी के सम्मुख वही सपनों के दृश्य उभर रहे थे। अब जिस सपने को वो झूठ समझती थी। वो सच होते हुए प्रतीत हो रहे थे। मौके पर पुलिस या गयी। उन्होंने ने उसकी डेड बॉडी को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया। इतने सालों साथ काम किया था। उन सभी का उससे एक रिश्ता बन चुका था। आज वो लोग आधे अधूरे मन से अपने ही साथी की म्रत्यु की रिपोर्टिंग कर रहे थे।
रोहिणी से बोला नहीं जा रहा था। तो रुहाना ने उसे समझाया, "यार हमे जयराम की मृत्यु का बेहद अफ़सोस है। परन्तु रिपोर्टिंग करना तो हमारा कर्म है। इस लिए इस वक्त हमें अपने मन को समझा कर काम पर ध्यान देना होगा। क्या तू नहीं चाहती है कि इस तालाब का रहस्य उजागर हो। क्या तू नहीं चाहती कि यहाँ के लोग जो खौप में जी रहे। निडर हो शांति से जी सके।" रुहाना की बात से वो सहमत होकर अपने काम में लग गयी।
धीरे धीरे सभी लोग जा चुके थे। रोहिणी के मन में सच्चाई जानने की उत्सुकता थी। उसने ओर पास के लोगों से बात की लेकिन तालाब के मैटर में कोई कुछ नहीं बोलना चाहता था। बहुत लोगों से पूँछताछ की तब जाकर एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति इस रहस्य के बारे में बताने के लिए राजी हुआ।
"अच्छा तो बाबा आप क्या जानते है इस तालाब के बारे में..?"
बाबा ने अपने बुजुर्गों से जो जो सुना वो बताने लगे, "मेरे दादा बताते थे कि उस तालाब के पास जो महल है उसी में शाही परिवार रहता था। एक दिन वो सभी लोग किसी खास बीमारी से पीड़ित होकर मारे गए। उसी दिन से उस राजमहल पर कोई कब्जा न कर ले। उनकी आत्मा उसी तालाब में रहती है।"
"अच्छा और भी कुछ जानते हो उस तालाब के बारे में..?"
"नहीं..बस जितना जनता था उतना सब बता दिया। अब मैं चलता हूँ।" यह कहकर वह वहाँ से चल दिया।
"रोहिणी, तुझे क्या लगता है कि ये बाबा जो कह रहे है वो सच है। या सच्चाई अब भी हमसे काफी दूर है।"
"मुझे नहीं लगता कि ये सच्चाई है इस खूनी तालाब की। मेरे हिसाब से सच्चाई कुछ और ही है।" रोहिणी ने असहमति जताई।
सच्चाई को उजागर करने के लिए उन्होंने अपने तम्बू तालाब के किनारे लगा लिया।
रात्रि के प्रहर में तीनों लोग अपने साथी के मौत के गम में डूबे हुए थे। चारो ओर खामोशी छायी हुई थी तभी एक आवाज गूंजी, "यहाँ आओ हमारे पास..!" एकाएक उसे सपने के वो क्षण याद आने लगे जब से कोई तालाब के पास बुलाता था। वहाँ बैठे सभी लोग चौंक उठे।
तभी कैमरा मैन यह जानने के लिए उठ खड़ा हुआ कि वहां झाड़ियों के पीछे शायद कोई उसे बुला रहा हो। रोहणी या रुहाना उसे रोकती उससे पहले ही वह तालाब के किनारे पहुँच गया। शान्त माहौल में मेढ़क की टर्र टर्र की ध्वनि उसको डरा रही थी। वो आवाज देकर बुलाये जा रहा था। परन्तु कोई भी जबाब न दे रहा था। तभी जोरदार हवा का झोका उसके कानों से सटकर निकला जिसमें एक रूहानी आवाज प्रकट हो रही थी, "वापस चले जाओ यहाँ से..! और पीछे मुड़कर मत देखना।" अब वो पूरी तरह से डर चुका था। वह दबे पाँव वहाँ से भागना चाह रहा था। तभी उसका जूता पैर से निकल कर वहीं गिर गया। वह जूता उठाने के लिए पीछे मुड़ा वैसे ही एक तेज लहर ने उसे अपने अंदर खींच लिया।
जब काफी देर तक वो वापस न आया तो रोहिणी को पूरा संदेह हो गया कि कैमरा मैन भी उसी तालाब का शिकार हो गया है। वो लोग उसे ढूँढने के लिए तालाब के पास आ गए। उन्हें तालाब के किनारे जब उसका जूता मिला तो घबरा गए। रोहणी रोते हुए बोली, "लगता है अब वो भी इस दुनिया में नही रहा।"
रुहाना की भी रूह कांप उठी थी वो अबतक इस घटना को सिर्फ एक साजिश ही समझ रही थी अब उसे भी यकीन हो चला था। कि ये वास्तविक में एक खूनी तालाब है।
"अब हमें ये जगह छोड़कर चलना चाहिए। ये जगह हमारे लिए सुरक्षित नही है यहाँ कोई शैतानी ताकत है। " रुहाना ने घबराते हूऐ अपनी व्यथा सुनाई।
"नहीं हमें सच्चाई को उजागर करना होगा। तू भूल गयी कि उस दिन तूने मुझे क्या कहा था।"
"हाँ मैने कहा था क्योंकि तब मैं हकीकत से अनजान थी लेकिन आज नही हूँ।"
"रुहाना अब हम सच्चाई के बिल्कुल करीब है।" रोहिणी ने तालाब की तरफ निहारते हुए कहा।, " तुझे पता है वह किसी को बुलाता है। वो जिसे बुलाता है वो कोई और नही बल्कि मैं ही हूँ।"
"तुझे..! तू पागल तो नहीं हो गई, जो ऐसी बातें कर रही है। हो क्या गया है तुझे..?"
उसने रुहाना को सपने की सारी सच्चाई बता दी और तालाब की तरफ घूर कर देखते हुए कहा, "अब सब की सुख शांति के लिए एक ही उपाय है। मुझे ही तालाब के अन्दर जाना पड़ेगा।"
अपने दो साथियों को खो चुकी रोहाना अब रोहिणी को नहीं खोना चाहती थी। इसलिए उसने उसे ना जाने के लिए बहुत समझाया। परंतु रोहणी अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों को बचाना चाहती थी। अब उसका यही एक मकसद बन चुका था। उसने कड़क आवाज में कहा, "आओ मुझे ले जाओ! मैं तुम्हारे साथ आने के लिए तैयार हूँ। तभी पानी से एक लहर उठी और वह उसे अपने साथ ले गई।
बाहर से भयानक दिखने वाला तालाब अंदर से बेहद खूबसूरत था। उसके अंदर एक सुंदर सी दुनिया थी। जहाँ जल परियाँ रहती थी। सभी परियाँ उसके आवभगत में जुट गयी। उन्हाने रोहिणी को एक बड़े से ऊँचे गद्दी पर एक महारानी की तरह बैठाया। रोहिणी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था उसने जल परियों की मंत्री स पूँछा तो वह उसे विस्तार पूर्वक समझाने लगी।
आज से 1000 साल पहले यह तालाब सभी के लिए खुला हुआ था। किसी को भी नहीं पता था कि यह तालाब नीचे से एक बहुत बड़े समुद्र से जुड़ा हुआ। है अक्सर हम जल परियां यहाँ भृमण करने आया करती थी। देखते ही देखते कुछ दूषित मानवों ने समुद्र के किनारे कारखाने लगाने स्टार्ट कर दिए।खरखाने से निकलने वाले दूषित पानी से हम जलपरियां की प्रजाति खत्म होने लगी। अब बची खुची हम जल परियाँ ने इस तालाब को ही अपना ठिकाना बना है। आपको याद होगा जब वो हटी मानव न माने थे तब आपने उसी संदर्भ में बात करनी चाही थी लेकिन उन मानवों ने आपको कैद करके मार डाला। आपके जाने के बाद से ही हम में से एक जलपरी जो मायावी जलपरी कही जाती है। उसने अपना माया जाल फैला कर लोगों को डराया। ताकि हमारी यह दुनिया आवाद रह सके। बाद में उस मायावी जल परी ने मुझे बताया कि हमारी महारानी का मानव रूप में जन्म हो चुका है।
अब रोहिणी को सब कुछ याद आ गया। उसने परियों की मंत्री से कहा, "हम आज से मानवों को परेशान नहीं करेंगे। मैं आपको आश्वासन देती हूँ कि मैं इंसान होकर जल परियों के बीच अच्छे सम्बंध स्थापित करूंगी। उन्हें समझाऊँगी की जीवन सबका अधिकार है। और जीने के लिए स्वच्छ वातावरण चाहिए। चाहे वो पानी में रहने वालों जीवों के लिए ही क्यों न हो। और आप लोग इस तरह अब किसी भी इंसान की जान नहीं लेंगे।" महारानी की बात मानकर सभी लोगों ने उनकी बात से सहमति जताई।
2 दिन बीत चुके थे। रुहाना उसका इंतजार कर रही थी। वह तालाब की तरफ निहार रही थी कि तभी तालाब से एक लहर प्रकट हुई उस पर रोहिणी ससवार थी। रोहणी को देख रुहाना का चेहरा खुशी से खिल उठा।
अब ये तालाब खूनी तालाब नहीं कहलायेगा बल्कि ये एक सुन्दर पर्यटक क्षेत्र बन जायेगा। पहले की तरह यहाँ लोगों की भीड़ जुटेगी।
धीरे धीरे उस तालाब को लेकर लोगों में भय कम होता चला गया। और कुछ ही दिनों में सरकार की तरफ से एक सुंदर सा पर्यटक क्षेत्र घोषित कर दिया गया। अब वहां हजारों लोगों की भीड़ जुटती है।