रामलीला का रंगमंच सजा हुआ था चारों और दर्शकों की भीड़ भारी भीड़ थी।, वैसे शिवम बहुत ही सुंदर और सुशील लड़का था और राम के रूप में तो उसकी सुंदरता और भी निखर जाया करती थी,
आज रामलीला के मंच पर राम विवाह का मंचन था राम के रूप में शिवम ने जैसे ही सीता के रूप में कलाकृति रूपाली को जयमाल डाली तो भीड़ में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी ।, परंतु भीड़ में बैठी एक सुंदरी जो काले-काले सुंदर से नैनों से सिर्फ राम को ही निहार रही थी, उसका सुंदर सा मुखड़ा चांद की तरह चमक रहा था।, वो कोई और नहीं बल्कि शिवम की पत्नी मोहनी थी, वह तो अपने मन में और ही कोई काल्पनिक सपने गढ़ रही थी ।, वह खुद को सीता के रूप में उस रंगमंच पर देख रही थी जैसे वह खुद ही अपने राम के सम्मुख खड़ी होकर उनको माला पहना रही हो, और वह यह सपना देखे भी क्यों ना, आखिर वह अपने पति शिवम से निश्चल प्रेम जो करती थी।
तालियों की गड़गड़ाहट से उसका ध्यान भंग हो गया, और वह सपनों की दुनिया से बाहर आ गई ।
तभी रामलीला संस्थापक ने माइक के जरिए श्री राम लीला के आगे के प्रोग्राम को कल के लिए स्थगित कर देने की सूचना दी।
"अच्छा आज का प्रोग्राम कैसा लगा ?", गेट अप बदलकर मंच से बाहर आकर शिवम ने मोहनी से कहा
हां,.. हां, बहुत अच्छा लगा, और नहीं भी लगा।" , उदासी भरे अंदाज में मोहनी ने कहा
"अच्छा लगा , और नहीं भी लगा , इससे क्या मतलब है ? " , शिवम ने मोहनी से पूछा
आप तो राम के रूप में अच्छे लग रहे थे , परंतु अगर सीता के रूप में मैं होती, तो और भी अच्छा लगता।" , मोहिनी ने हल्की सी मुस्कान भरते हुए शिवम से कहा।
"अरे, यह कहो ना कि तुम जल बुझ गई जब रूपाली ने हमको माला डाली।" , शिवम ने मोहनी को चिढ़ाने के लिए प्रत्युत्तर में कहा
"अरे, हम क्यों जलने लगी, जले हमारे दुश्मन, हम को क्या पड़ी जो जले " , उदास होकर मोहनी ने कहा
"अरे , तुम ना छोटी-छोटी बातों पर उदास हो जाती हो , अच्छा बाबा ! , अगली बार से हम संस्थापक जी से कहकर सीता का रोल तुमको दिलवाएंगे ।" , मोहिनी के गालों को खींचकर उसे गले लगाते हुए शिवम ने कहा
फिर मोहनी ने भी शिवम को अपनी बाहों में भर लिया इस तरह से दोनों पति-पत्नी आपस से में बात करते हुए घर आ गए।
दोनों ही पति पत्नी एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे वह दोनों जितने तन से सुंदर थे उतने ही मन से सुंदर थे, हर किसी की मदद करने की आदत के कारण वह पूरे मोहल्ले में जाने जाते थे।
शिवम रंगमंच पर राम का किरदार निभाने के अतिरिक्त एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापन कार्य करते थे, आमदनी कुछ खास नहीं थी , इसलिए मोहनी भी सलवार सूट की सिलाई करके रुपए जुटाया करती थी ।, इस तरह से दोनों मियां बीवी अपनी जिंदगी बसर करते थे । रुपए जरूर कम थे परंतु उनके घर में सुख समृद्धि और प्यार भरपूर था।
"तुम ना यह काम मत किया करो इसकी आवाज से तुम्हें सर दर्द होने लगता है ।, अरे , मैं हूं ना तुम्हारा ख्याल रखने के लिए फिर तुम यह काम क्यों करती हो ?, शिवम ने स्कूल से आकर बैग रखते हुए से मोहनी से कहा।
"अरे , आप भी तो थक जाते हो , आप भी यह नौकरी छोड़ दो" , मोहनी ने मशीन पर कपड़े सिलते हुए कहा।
"अरे, हम अपनी नौकरी छोड़ देंगे , तो फिर घर कैसे चलेगा ?" , प्रत्युत्तर में शिवम ने कहा।
" तभी तो कहती हूं कि अगर घर चलाना है , तो हम दोनों को मिलकर काम करना पड़ेगा मेरी कमाई से घर खर्च चलेगा और तुम्हारी कमाई से आगे के लिए रुपए बचाएंगे , अरे कल को हमारा परिवार बड़ा होगा तो खर्चा कहां से आएगा ?" मोहनी ने जबाब दिया ।
"अच्छा बाबा ! तुमसे तो कोई नहीं जीतने वाला, अब मुझे बहुत भूख लगी है मेरे लिए खाना लगा दो " मेज पर बैग रखते हुए शिवम ने कहा
"अच्छा! आप हाथ धुल कर आइए , मैं खाना लगा देती हूं।" , प्रत्युत्तर में मोहनी ने कहा
शिवम हाथ धुल कर आया और खाना खाने लगा, उसे खाना खाते देख मोहनी उसे निहार रही थी परंतु शिवम के चेहरे पर आज वह चमक नहीं थी जो रोज हुआ करती थी आज वह कुछ उदास था मोहनी से उसकी यह उदासी देखी नहीं जा रही थी जब उससे रहा नहीं गया तो उसने शिवम से उदासी का कारण पूछा कई बार पूछने पर भी उसने कुछ नहीं कहा अब मोहनी समझ चुकी थी कि आज फिर से शिवम स्कूल लेट पहुंचे होंगे जिससे उनकी वेतन काट ली गई होगी।
" आप यह रात को रामलीला का पाठ करना छोड़ क्यों नहीं देते हो ?, जिसके कारण स्कूल के लिए लेट हो जाते हो।" ' तल्ख भरे अंदाज में मोहनी ने कहा
" नहीं छोड़ सकता, मैं एक कलाकार हूं।, यह मेरा पेशा है, मंच पर राम में दिखावे के लिए नहीं बनता हूं बल्कि राम मेरे मन के कोने कोने में बस चुके हैं।" , शिवम ने तल्ख भरे अंदाज में मोहनी से कहा
और यह कहकर वह वहां से चला गया मोहनी को यूँ उदास छोड़कर
आज वह रामलीला में राम का किरदार तो निभा रहा था।, परंतु आज उसका मन बिल्कुल भी रंगमंच पर नहीं था उसकी आंखें मंच से भीड़ की तरफ देख रही थी कि शायद मोहल्ले की औरतों के साथ मोहनी भी रामलीला देखने आई हो परंतु उसे मोहनी कहीं भी नजर नहीं आई। आज उसका मन बहुत उदास था क्योंकि हर रोज मोहनी उसके साथ रामलीला देखने आया करती थी आज पहली दफा वो रामलीला देखने नहीं आई
आज शिवम जैसे तैसे रामलीला का प्रोग्राम खत्म करके घर वापस आ गया , तब तक मोहनी सो चुकी थी, वह उसके पास बेड पर जाकर बैठ गया और उसे प्यार से निहारने लगा, और वह प्यार से मोहनी के माथे को चूम कर वहीं उसके बगल में बेड पर सो गया।
जब सुबह हुई शिवम की आंख खुली तो उसने देखा कि मोहनी हाथ में चाय का कप लेकर उसके सामने खड़ी थी।
" अरे , क्या तुमने मुझे माफ कर दिया ?, कल हुई गलती के लिए , क्योंकि कल मैंने तुम्हें बहुत डांट दिया था। " , शिवम ने अटपटा कर उठते हुए कहा
"हां ,..हां, मैंने तो आपको रात को ही माफ कर दिया था जब आपने प्यार से मेरा माथा चूमा था।" , मुस्कुराते हुए मोहनी ने कहा
" अच्छा, तो तुम सो नहीं रही थी।, तुम ना बहुत शरारतें करने लगी हो।" , मस्करे अंदाज में शिवम ने कहा
"अच्छा अब उठो, और तैयार होकर स्कूल जाओ नहीं तो कल की तरह फिर से लेट हो जाओगे।" , मोहनी ने कहा
शिवम तैयार होकर स्कूल चला गया मोहनी खाना खाकर पुनः मशीन पर काम करने लगी।
दोपहर हो चुकी थी तो स्कूल की छुट्टी भी हो चुकी थी शिवम वापस घर आ चुका था , परंतु यह क्या घर में कोई भी नहीं था !
"मोहनी,... मोहनी, तुम कहां हो ,, ? " , शिवम ने आवाज लगाई
"अरे, मैं यहां हूं अभी आई बस थोड़ी ही देर में " , बाहर से मोहनी ने आवाज लगाई
"अरे, तुम कहां चली गई थी, यूँ घर को खाली छोड़कर" , शिवम ने पूछा
" कहीं नहीं, वह पड़ोस वाली आंटी उद्घाटन में गई थी तो मैं भी उनके साथ चली गई , तो क्या है ना कि हमारे मोहल्ले की औरतों को रोजगार मिले इसलिए विधायक जी ने सिलाई सेंटर खोला है, मैं भी सोच रही हूं कि हमारे यहां वैसे भी अब कम सिलाई आती है ।, मैं भी उसी में सिलाई करने जाया करूंगी ।, आपको पता है विधायक जी मेरी बहुत तारीफ कर रहे थे।" , शिवम की तरफ देखते हुए मोहनी ने कहा
" नहीं,,.. नहीं , तुम वहां हरगिज़ नहीं जाया करोगी।, वो विधायक बहुत ही चरित्र का गंदा व्यक्ति है, अरे वह तुम्हारी तारीफ नहीं कर रहा होगा बल्कि वह तो तुम्हारी सुंदरता की तारीफ कर रहा होगा, वैसे भी मुझे बिल्कुल भी पसन्द नहीं है कि तुम वहाँ काम करो" , मोहनी को कड़े शब्दों में डांटते हुए शिवम ने कहा।
" अच्छा यह कहो कि कोई मेरी सुंदरता की तारीफ करता है तो तुम्हें जलन होती है, मुझसे" , नटखटी स्वर में मोहनी ने कहा।
"नहीं ऐसा नहीं है, मोहनी, मैं तुम्हारी सुंदरता से नहीं जलता भला तुम में और मुझ में कोई अंतर है , आखिर हम एक दूसरे के मन से जुड़े हैं।, परंतु वह आदमी ठीक नहीं है वह बहुत ही गंदा व्यक्ति है।" , शिवम ने समझाते हुए कहा।
"आपको मुझ पर भरोसा नहीं है क्या ?, क्या मैं आपको कभी धोखा दे सकती हूं ?, मोहनी ने कहा।
" मुझे तुम पर भरोसा है, खुद से ज्यादा है , पर हर व्यक्ति तुम्हारी तरह साफ नियत नहीं रखता , तुम बहुत भोली हो इसीलिए आसानी से हर किसी की बात पर भरोसा कर लेती हो।, मैं कुछ नहीं जानता तुम कल से सिलाई सेंटर में नहीं जाओगी।" शिवम ने कहा
" अच्छा बाबा ! आप कहते हैं तो मैं बिल्कुल भी नहीं जाऊंगी कल मैं अपना नाम वापस ले लूंगी उस सिलाई सेंटर से, ठीक है।" , शिवम के कंधों पर हाथ रखकर मोहनी ने कहा
रोज की तरह शाम को फिर से दोनों मियां बीवी रामलीला देखने निकल गए, और फिर रात को 2:00 बजे रामलीला का मंचन करके वापस घर आ गए,
जब अगले दिन सुबह हुई तो रोज की तरह फिर से शिवम स्कूल के लिए निकल गया और मोहनी अपने काम में लग गई
दोपहर को जब शिवम वापस घर आया तो उसे घर में कोई नहीं मिला , उसने कई आवाज़ लगाई परंतु मोहनी का कोई जवाब नहीं आया।, अब उसका मन बहुत व्याकुल हो उठा आखिर मोहनी इस तरह बिना बताए कहां चली गई?,
तो उसने पड़ोस की आंटी से जाकर पूछा, " आंटी आपने मोहनी को देखा, क्या आप बता सकती हो कि वह कहां गई है?"
"अरे, मोहनी अभी तक घर नहीं आई , अरे सिलाई सेंटर से तो वह पहले ही निकल आई थी ।, सच कहे बेटा अगर तुमको बुरा ना लगे तो, मुझे तो तुम्हारी बीवी के चाल चलन कुछ ठीक नहीं लग रहे थे, अरे मेरे सामने ही एक गाड़ी वाले किसी रहीसजादे से हंस-हंसकर बातें कर रही थी, और उसी के साथ गाड़ी में बैठ कर चली गई थी।, मुझे लगा कि वह घर आ गई होगी।, अब घर नहीं आई है तो हो सकता है उसी के साथ घूम रही होगी।" , संदेहास्पद शब्दों में पड़ोस में रहने वाली आंटी ने कहा।
" नहीं ,..नहीं , यह हरगिज नहीं हो सकता है , मेरी मोहनी को मैं अच्छी तरह जानता हूं।, वह मुझे कभी धोखा नहीं दे सकती है ।" , यह कहकर शिवम वहां से चला गया।
मोहनी को ढूंढते ढूंढते रात हो चुकी थी परंतु मोहनी का कोई भी पता नहीं चला , उन दोनों का कोई भी रिश्तेदार नहीं था क्योंकि दोनों ही अनाथ थे और अनाथालय में ही पले-बढे थे, हर जगह तलाशने के बाद भी मोहनी कहीं ना मिली तो वह हताश होकर घर वापस आ जाता है।, आज कुर्सी पर बैठे बैठे उसे मोहनी का अक्स बेड पर सोते हुए नजर आया , तो वह बेड की की तरफ लपका , परंतु एक पल में ही वह उसे वहां ना पाकर हताश होकर वहीं बैठ गया। तो कभी उसका अक्स उसे मशीन पर सिलाई करते हुए नजर आता,
आज वो पूरी तरह से टूट चुका था ,जैसे ही उसके कानों में मोहनी की आवाज गूंजती , तो बार-बार बाहर जा कर देखता।, आज वह रामलीला में भी नहीं गया , बस पूरी रात इसी इंतजार में रहा कि शायद मोहनी की दस्तक अब दरवाजे पर होगी । , परन्तु रात ढल चुकी , परन्तु मोहनी वापस नहीं आयी।
सुबह हो चुकी थी , तभी दरवाजे पर किसी के आने की दस्तक हुई, दरवाजे की खटखटाहट सुनकर शिवम का चेहरा खिल उठा।,
" अरे मोहनी, बड़ी देर लगा दी।, कहां रह गई थी रात भर?" , यह कहते हुए शिवम ने दरवाजा खोला।
" अरे बेटा, मैं आंटी हूं ।, मोहनी नहीं हूं ।, अरे ,तू बड़ा भोला है।, तू आज भी नहीं समझ पाया की मोहनी तुझे धोखा देकर किसी और के साथ चली गई।" , आंटी ने कहा, जो दरवाजे पर ही खड़ी थी।
" नहीं,.. नहीं, आंटी मोहनी मुझे धोखा नहीं दे सकती है जरूर उसकी कोई मजबूरी रही होगी इसीलिए शायद नहीं आ पाई, या मेरी मोहनी किसी बड़ी मुसीबत में है ।" ,शिवम ने कहा
"बेटा तू उससे बहुत प्यार करता है, तो वह जरूर वापस आ जाएगी, परंतु अगर तू इस तरह से उदास रहेगा तो वह कभी भी नहीं आएगी अगर तू चाहता है कि वह वापस आए तो तू पहले की तरह सज-धज कर स्कूल जा।" , आंटी ने शिवम को समझाते हुए कहा।
" अच्छा, तो मैं अभी तैयार होकर स्कूल जाता हूं , और जब मैं स्कूल से वापस आऊंगा तो वह मुझे घर पर ही मिलेगी ना, आंटी" , एक मासूम बच्चे की तरह शिवम ने आंटी से कहा
और फिर वह रोज की तरह तैयार होकर स्कूल चला गया।,
वह ऑटो में बैठकर स्कूल जा ही रहा था कि ऑटो में सामने वाली सीट पर बैठी दो अध्यापिका आपस में बात कर रही थी।
" अरे मैडम आप, आज इतनी लेट कैसे हो गई हो?, पहली अध्यापिका ने दूसरी अध्यापिका से पूछा।
कुछ नहीं आज वो रेलवे क्रॉसिंग पर जब मैं पहुंची तो वहां एक औरत का शव पड़ा था, और उसके चारों तरफ भीड़ लगी हुई थी।, उसका शरीर बहुत ही भयानक तरीके से ट्रेन से कट चुका था ।, अरे उसकी शक्ल तो बिल्कुल ही पहचान में नहीं आ रही थी।, एक हाथ भी कटकर अलग पड़ा था।, पर आश्चर्य की बात यह है कि वह एक लड़की थी परंतु उसके हाथ पर शिवम नाम गुदा हुआ था।, " दूसरी मैडम ने कहा
इतना सुनते ही शिवम की खोपड़ी चकरा गई वह समझ गया कि अब मोहिनी इस दुनिया में नहीं रही, उसने तुरंत ऑटो रुकवाया और उतरकर रेलवे क्रॉसिंग की तरफ दौड़ पड़ा।
वहां भीड़ को चीरते हुए, जब उसने उस शव को देखा तो वो सारी चीजें मिल गई जो मोहनी के पास थी, वह उसी साड़ी में थी जो उसने उस वक्त पहनी थी।
वो आज बिलक बिलक कर रोने लगा, कभी-कभी तो मांस के लोधरों को अपने सीने से लगा लेता, और याद करता कि कभी उसे अपनी बाहों में भर लिया करता था।, परंतु आज उसका शव भी ऐसी स्थिति में था कि वह उसे उठाकर अपनी बाहों में भी ना भर सके।
पुलिस भी आ चुकी थी पुलिस ने उसे उठाकर एक तरह बैठा दिया और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।
पोस्टमार्टम के बाद लाश को शिवम को सौंप दिया गया और उसने उसका अंतिम क्रिया कर्म किया, और घर आ गया । यूं ही उदास और गुमसुम रहते रहते उसे 2 दिन बीत चुके थे परंतु शिवम के जेहन में कई सवाल उठ रहे थे , आखिर मोहनी रेलवे क्रॉसिंग के पास क्या करने गई थी ?
अब शिवम पागल की तरह बार-बार रेलवे क्रॉसिंग की तरफ दौड़ पड़ता ,
एक रोज जब वह मोहनी की याद में रेल से कटने जा रहा था।, तो पास के ही चाय वाले भैया ने उसे बचा लिया।, और कहा , "तुम्हारे इस तरह से जान देने से क्या उन दरिंदों को सजा मिल जाएगी जिन्होंने तुम्हारी बीवी को मारा है।"
यह सुनते ही शिवम की खोपड़ी घूम गई , और उसने चाय वाले भैया से पूछा , " क्या कह रहे हो ?, मेरी पत्नी का एक्सीडेंट नहीं हुआ है, उसे मारा गया है!"
" हां यही कोई रात के 2:00 बजे की बात है , मैंने खिड़की से बाहर देखा कि कुछ लोग एक औरत को उसके हाथ पैर पकड़कर उसे रेल की पटरियों पर लिटा रहे थे, वो तुम्हारी पत्नी ही थी, पता नहीं तब तुम्हारी बीवी जिंदा भी थी या नहीं , क्योंकि वह कोई भी हलचल नहीं कर रही थी।, मैंने देखा वह गाड़ी तो मुझे........." , और यह कहते कहते वह रुक गया।
"अरे, वो ....गाड़ी, से क्या मतलब है ?, किसकी गाड़ी थी बताओ ना भैया, अब मुझे पूरी सच्चाई जाननी है।" , शिवम ने चाय वाले सज्जन से प्रश्न किया।
डरते हुए चाय वाले सज्जन ने कहा, " मैं तुम्हें बता तो दे रहा हूं, परंतु मेरा नाम नहीं आना चाहिए, वह बहुत ही खतरनाक लोग हैं।, वह गाड़ी किसी और की नहीं थी बल्कि विधायक जी की थी जिसमें तुम्हारी पत्नी को लाया गया था।
इतना सुनते ही शिवम वहां से चल दिया, वह सीधे पुलिस स्टेशन पहुंचा ।,
थाने में दरोगा सुलेमान बैठे हुए थे शिवम को पास आते देख, आते ही उन्होंने उसे बैठने के लिए कहा
" अरे, कैसे आना हुआ राम साहब अरे, हम तो आपको इसी नाम से जानते है, बड़ा सुंदर अभिनय करते हो राम का, वैसे कैसे आना हुआ यहां ?, क्या किसी की कंप्लेंट लिखवानी है ?" , दरोगा सुलेमान ने मुंह में पान चबाते हुए कहा।
मुझे अपनी पत्नी के केस के बारे में कुछ कहना है , उसका एक्सीडेंट नहीं हुआ है।, बल्कि उसकी हत्या हुई है , और मुझे पूरा संदेह है कि उसकी हत्या विधायक समर सिंह ने की है , आप मेरे साथ चलिए विधायक के घर की तलाशी लीजिये आपको जरूर कोई ना कोई सुराग मिलेगा।" , शिवम ने दरोगा सुलेमान से कहा
" तो तुमको विधायक जी पर शक है, चलो मैं अभी तुम्हारे साथ विधायक के घर चलता हूं तलाशी लेने।, दरोगा सुलेमान ने मुंह से पान उगलकर शिवम की तरफ गूँजेरते हुए कहा।
और फिर दरोगा सुलेमान शिवम को अपनी जीप में बैठाकर विधायक के फार्म हाउस पर पहुंच गया
आओ दरोगा सुलेमान, कैसे आना हुआ ?, दरोगा को आते देख विधायक समर सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा।
" कुछ नहीं साहब, यह हमारे राम साहब बोल रहे थे कि इसकी सीता का अपहरण आपने किया है , और बाद में उसे मार ही दिया । " , दरोगा ने मुस्कुराते हुए विधायक समर सिंह से कहा ।
"ओह! तो तुम पुलिस तक पहुंच गए हमारी शिकायत करने अब आ गए हो तो बोलो कितना रुपया चाहिए, अपना मुंह बंद रखने के लिए" , विधायक ने शिवम की तरफ देखते हुए कहा।
" मुझे रुपए का लालच नहीं है, मैं उन सब को सजा दिलाऊंगा जो मेरी पत्नी की हत्या में शामिल थे।" , शिवम ने सख्त लहजे से ऊंची आवाज में कहा।
" यह अपना वॉल्यूम डाउन कर यह तेरा रामलीला का मंच नहीं है , समझा, और ना ही तू कोई पुरुषोत्तम राम है ।" ,कड़क लहजे में चिल्लाते हुए विधायक समर सिंह ने कहा।
" क्या कसूर था मेरी पत्नी का ?, अरे, क्या बिगाड़ा था उसने किसी का ?" , रोते हुए शिवम ने कहा।
कुछ भी तो नहीं, परंतु उस दिन सिलाई सेंटर में तेरी पत्नी की सुंदरता को देख कर मेरा दिल आ गया उस पर, और जो भी चीज मुझे प्यारी लगती है उसे मैं हर कीमत पर पाकर रहता हूं, इसलिए मैंने अपने आदमी भेजे उसे लेने के लिए, अरे , तेरी बीवी तो बड़ी भोली भाली थी झट से एक अजनबी पर यकीन करके गाड़ी में बैठ गई ।, उसे लगा कि मेरे आदमी उसे उसके घर पर छोड़ देंगे।, मानना होगा तेरी बीवी थी बड़ी पतिव्रता अरे, मैंने तो उसके सामने रुपयों का अंबार लगा दिया।, परंतु वो फिर भी ना मानी, अगर मान जाती ना तो तुम दोनों की लाइफ ही बदल चुकी होती।, खैर मुझे जो पाना होता है, मैं उसे हर कीमत पर पाकर रहता हूं।, बहुत फड़फड़ा रही थी खुद की इज्जत बचाने के लिए परंतु मैंने उसे ऐसे पिंजरे में कैद किया कि वह उड़ ही ना सकी।, मेरे आगे उसके सभी हौसले पस्त हो गए।, परंतु मानना होगा उसके हौसले को , इज्जत लुटने के बाद भी उसमें वह कड़क थी, अरे, बार-बार कहे जा रही थी कि वह मुझे सबके सामने जलील करेगी मेरी पोल खोलेगी ।, बस फिर क्या आ गया गुस्सा और गुस्से में ही उसका गला दबा दिया यही फड़फड़ा कर दम तोड़ दी बाद में उसे रेलवे ट्रैक पर फिकवा दिया।, अब बाद की कहानी तो तुझे पता ही है ना, अब अगर तूने अपना मुंह खोला ना तो तेरे तो टुकड़े भी नहीं मिलेंगे।, तुझे तो मैं जलाकर राख कर दूंगा।" , इतराते हुए विधायक ने शिवम से कहा।
शिवम कुछ कह पाता उससे पहले ही विधायक ने अपने बॉडी गार्डों से कहा, " अरे , देख क्या रहे हो उठा कर फेंक दो इसे बाहर "
नेता का आदेश पाकर बॉडीगार्ड ने उसे बाहर सड़क पर फेंक दिया,
शिवम चुपचाप उठकर अपने कपड़े झाड़ कर वहां से चल दिया आज उसकी आत्मा उसे अंदर से कचोट रही थी बार-बार मोहनी का अक्स उसकी आंखों के सामने आने लगा मानो वो उससे पूछ रही थी , " मेरे राम, तुम्हारी इस सीता को इंसाफ कब मिलेगा ?, क्या तुम्हारी सीता की इज्जत को तार-तार करके उसकी पवित्रता को खंडित करने वाला बहसी रावण यूं ही इस संसार में खुला घूमता रहेगा ?"
आज रामलीला का अंतिम दिवस था , आज विजयदशमी का पर्व था ।, रामलीला के श्रृंगार गृह में सभी कलाकार सज-धज रहे थे, तभी शिवम भी वहां आकर बैठ गया।
शिवम को यूं बैठा देखकर सुनील ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, " भाई सच में भाभी की मौत की खबर सुनकर बड़ा दुख हुआ, आप पर तो गमों का पहाड़ ही टूट पड़ा । आज आप बिल्कुल अकेले पड़ गए परंतु भाई कर भी क्या सकते हैं?, इस समय के आगे किसी की एक भी नहीं चलती , सच कहे भाई तुम्हारे बिना रामलीला भी सूनी सूनी लगती है ।, अब विवेक आप की जगह राम के किरदार को निभा रहा है, अब इसे इतना ज्ञान कहाँ ! जितना आपको है।
" सही कहा भैया मैं बिल्कुल भी इस किरदार को नहीं निभा पा रहा हूं।, मैं तो सच में भैया आपका हनुमान ही अच्छा लगता हूं ।" , विवेक ने शिवम कहा
"अब तुम लोग चिंता मत करो, अब मैं आ गया अब राम का किरदार में निभाऊंगा।" , शिवम ने कहा
" सच में भैया आज राम का पाठ आप करोगे, अरे तब तो मजा ही आ जाएगा।" , सुनील ने खुशी होते हुए शिवम से कहा।
हां,...हां, अगर मैं आज राम नहीं बना तो दुराचारी रावण तो आज जिंदा ही रह जाएगा।" , शिवम ने कहा
आज उसकी इस तरह की बातें सुनकर सभी अचंभित थे क्योंकि अक्सर जब कभी भी वह मजाक किया करता था, तो खिलखिला उठता था ।, परंतु आज खामोश था, कोई भी नहीं समझ पा रहा था कि वह मजाक कर रहा था या और ही कुछ था उसके दिमाग में !
विवेक ने बीच में बात काटते हुए कहा, " पता है भैया, आज हमारे रामलीला मंच पर विधायक जी आ रहे हैं आज हम को अपने-अपने किरदार और भी अच्छे ढंग से करने होंगे।, बस विधायक जी खुश हो जाएं।"
" आज का मंचन ऐसा होगा कि सारे शहर में सिर्फ इसी की चर्चा होगी , आज के रावण की विनाश की कहानी सारी दुनिया देखेगी।" , आज शिवम ने अंतर्मन से कड़े कड़े शब्दो में कहा ।
तभी संस्थापक ने नेताजी के आने की सूचना दी, अब सभी कलाकार तैयार हो चुके थे, मंच भी सज चुका था।
" एक ऊंची से मंच पर रावण विराजमान था।, तो दूसरी तरफ रामादल की झांकी थी।, जिसमें शिवम राम, सुनील लक्ष्मण, विवेक हनुमान के किरदार में थे।
रामलीला संस्थापक ने विधायक का माल्यार्पण कर उनका स्वागत किया।, और उनसे सुंदर-सुंदर उन झांकियों की आरती करने का निवेदन किया।
विधायक समर सिंह अपनी कुर्सी से उठकर आरती करने के लिए उनके पास पहुंच गया, आरती करते समय वह मंद मंद मुस्कुरा रहा था ।, उसकी मुस्कुराहट को देखकर शिवम की आंखों में मोहनी का हँसता हुआ चेहरा नजर आने लगा और एक ही पल में उसके सामने उसका विकृत के वह मांस के टुकड़े नजर आने लगे, वैसे ही उसने अपनी आंखों को बंद कर लिया, जब उसने पुन अपनी आंखों को खोला तो क्रोध के कारण उसकी आंखें लाल पड़ चुकी थी।
आज समर सिंह को देखकर उसके मन की ज्वाला भड़क उठी, उसने अपनी कमर की बरछी से चाकू निकालकर समर सिंह की गर्दन को पकड़कर एक ही बार में चाकू से उसके पेट में अनगिनत घाव कर डाले, और क्रोधित स्वर में कहा, " जब मेरे प्रभु राम ने उस रावण के पूरे कुल का नाश कर दिया था जिसने सीता मां पर बुरी दृष्टि डाली थी।, फिर मैं तुझ जैसे रावण को कैसे छोड़ देता, जिसने मेरी सीता का अपहरण किया उसकी आबरू लूटी उसकी आत्मा तक को मार डाला।, तुझे क्या लगता है कि मैं सिर्फ राम का अभिनय करता हूं अरे मैं राम को आत्मसात भी करता हूं तेरे जैसे कलयुगी रावण का वध करने के लिए
जैसी शिवम ने समर सिंह की गर्दन को छोड़ा वैसे ही वह जमीन पर गिर पड़ा उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे आज शिवम ने राम के रूप में एक ऐसे रावण का वध किया जिसके सामने कोई खड़ा भी नहीं हो पाता था।
" अरे लंका पर विजय के पश्चात हमारे प्रभु राम को उनकी सीता मिल गई थी , परंतु मैं अपनी सीता को तो अंत समय में उसे अपनी बांहों में भी नहीं उठा सका।, मैं वह दुर्भाग्यशाली राम हूं।" , और यह कहते-कहते वह फूट-फूट कर रोने लगा।
उसकी वाणी में आज इतनी वेदना थी कि भीड़ में खड़े सभी लोगों की आंखों से आंसू छलक पड़े ।
शिवम ने अपने आंसुओं को पौंछते हुए कहा, " आज अगर मैं इस वैसी रावण का वध नहीं करता , तो शायद मेरा यह राम का किरदार तो जिंदा रहता, परंतु मेरे अंदर का राम मर चुका होता।
आज फिर एक रावण पर विजय पाई राम ने