हर पल ये ज़िंदगी , रेत सी फिसल रही ,
कुछ ख़्वाब जो अधूरे हैं , जो हुए न अभी तक पूरे हैं ,
उन्हें भी तो पूरा करना है ,
मरने से पहले मुझको नहीं मरना है।
माना इस समाज प्रति मेरी ज़िम्मेदारी है ,
पर मैं हूँ , मैं भी तो हूँ , मेरी ख़ुद से भी तो यारी है ,
क्यों अधूरा मैं रहूँ , ये सबको समझना है ,
मरने से पहले मुझको नहीं मरना है।
हुए हो गर ख़फ़ा मुझसे , न बार-बार मनाना है ,
समझ लो जब समझाऊँ , न बार-बार समझाना है ,
आया हूँ उस मोड़ पे जहाँ एक पल ज़ाया न करना है ,
मरने से पहले मुझको नहीं मरना है।
ऐसे जीवन का मतलब क्या , जो आए और आके चले गए ,
कुछ वारा व्यर्थ की बातों पे , कुछ खुद में ही तुम सिमट गए ,
अर्थहीन इस जीवन को अर्थ समर्पित करना है ,
मरने से पहले मुझको नहीं मरना है।
©अलका बलूनी पंत