टूट कर जर्जर हो चुका हूँ मैं तेरी यादों में
फिर भी कमबख़्त ये दिल से निकाली नहीं जा रही हैं
टाल देता हूँ मैं अब तो ख़ुद की हर ख्वाहिश
मगर तेरी कोई बात टाली नहीं जा रही है
दिन तो सुकून से गुज़ार लेता हूँ मैं
मगर ये कमबख़्त रातें ही मुझसे सँभाली नहीं जा रहीं है
आ मिल ऐ दिल ये गिला भी ख़त्म हो जाये
तू छोड़ यूँ धड़कना और फिर ये सिलसिला ही ख़त्म हो जाये
मैं पूछता हूँ ख़ुद से ये सवाल अकेले में
की आख़िर क्यूँ छोड़ जाते हैं
लोग मुझे तनहाइयों के मेले में
बिखरता रहा हूँ मैं तनहाईयों में
मेरा हाल ए दिल कोई देखने
कभी आया नहीं है
यक़ीनन मैं ही हूँ वो बदनसीब
जिसे किसी ने कभी अपनाया नहीं है
fanindra bhardwaj
sanganer mansarovar 302022
jaipur rajasthan
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poetry
लिखना चाहूँ तो सारे ग़म लिख दूँ
अपनी कलम से अपने ज़ख़्म लिख दूँ
फ़िलहाल तो लिखता हूँ मैं उसकी हमदर्दी
मगर लिखने पर आऊँ तो उसके सितम लिख दूँ
डूबने जो लगे हैं तेरे साथ हम इश्क़ में बस दुआ है
कि किनारा तेरे साथ मिल जाये मैं ख़ुशियाँ
मेरी तेरी सोहबत में लिख दूँ बस दुआ है
हर जनम में तू मुझे दोबारा मिल जाये
सबको सबका दर्द दर्द लगता है मगर मैं सनाऊँ
तो मेरा दर्द सिरदर्द लगता है ऐ खुदा तू बता
किसे सुनाऊँ मेरा दर्द यहाँ कौन मेरा हमदर्द लगता है
इश्क़ की ख़ातिर जिस्म भी कुर्बान हो गया
फिर सुना है वो इश्क़ भी गुमनाम हो गया
मुझे समझने में तुम्हें वक़्त लगेगा
अभी इतनी आसानी से मुझे समझ लोगे तुम
मैं इतना आसान नहीं हूँ
हर कोई मुझे समझ ले मैं वो इंसान नहीं हूँ
कब तक चलेगा ये सिलसिला आख़िर
कब तक रहेगा ये फ़ासला आख़िर
ये दूरियाँ तुम्हीं मिटा दो ना कभी
यूँ क़ब तक रहेगा ये मामला आख़िर
याद रह जाती है ज़ो बर्बाद क़र ज़ाती है
मोहब्बत के सपने मत देखो साहब
यहाँ नींदे छिन ज़ाती हैं बस रात रह जाती है
ख़्वाब मुनासिब होते हैं मोहब्बत में
बस मुलाक़ात रह जाती है और बात रह जाती है.
मिले जो ख़ुशी तुम्हें दूर ज़ाकर तो बधाई हो
हमें तो ख़ुशी है की तुम आई हो
बेशक बन जाओ तुम जान किसी की
मगर ख़ुशी है की तुम मेरी परछाईं हो.
उन्हें इश्क़ मुक्कमल नहीं होता ज़ो दिल के सच्चे होते हैं
साज़िशें भी होती नहीं उनसे ज़ो दिल से बच्चे होते हैं.
एक़ अर्सा गुज़ार दिया उन्हें याद करके
हर रात गुज़ारी हमने उनकी फ़रियाद करके
एक़ पल भी मुड़कर देखते नही वो हमें बर्बाद करके.
हश्र क्या होगा इश्क़ में ये तुम याद कर लेना
इश्क़ करो तो मुक़्क़मल होने की फ़रियाद कर लेना.
सज़ा दो सड़कें फूलों से आज कोई ख़ास आने वाला है
मुद्दतों से मैं जिसकी तलाश में था आज वो मेरे पास आने वाला है.
क़त्ल हुआ मेरी ख़्वाहिशों का मगर दफ़नाया नहीं गया
वादे हुए वफ़ाओं के मग़र अपनाया नहीं गया.
जो भी समझ लो मुझे मैं वही हूँ
लेकिन जो तुम चाहो मैं वो नहीं हूँ
तेरी आदाओं के क़ायल थे हम तेरी मासूमियत पे पागल थे
हम सादगी तेरी दिल छू गयी थी बस तेरे रुठने से घायल थे हम
ग़म एक सफ़र है ज़िन्दगी हमसफ़र है
साज़िशों की सड़क है ख़्वाहिशों का शहर है
दिल ना लगाना किसी गैर से तुम
ये ज़माना बेगैरत बड़ा बेख़बर है
ना करना मोहब्बत किसी गैर से तुम
क्यूँकि रिश्ता मोहब्बत का बड़ा बे असर है
किसी ग़ज़ल की तरह तुम्हें सुनता रहूँगा
तुम ज़िंदगी हो या मौत मगर तुम्हें ही मैं चुनता रहूँगा
तुम नींदे चुरा लो मेरी रातों की मग़र
मैं ख़्वाब तुम्हारे ही बुनता रहूँगा
किसी के शुकुन की वजह हूँ मैं तो किसी के ग़मों की सज़ा हूँ
मैं किसी की तलब बेवजह हूँ मैं तो किसी का सबब बेपनाह हूँ मैं
हर रोज़ लिख कर हम कुछ नया करना चाहते हैं
अपने अल्फाजों के जरिए अपने जज्बातों को हम बयां करना चाहते हैं
उसकी परछाईं हूँ मैं उससे छूट कर जाऊँगा कहाँ
मैं उसी की शाख़ का पत्ता हूँ उससे टूट कर जाऊँगा कहाँ
भुला दो हमें ना करो याद तो भी मंजूर है
या जकड़ लो ज़ंजीरों में ना करो आज़ाद वो भी मंजूर है
कर दो आबाद या कर दो बर्बाद वो मुझे भी मंजूर है
क्योंकि इश्क़ में बर्बाद होना भी दस्तूर है
छीन लेगी वो खुशियाँ तुम्हारी
वो अजनबी क्या समझेगी खामोशियाँ तुम्हारी
कभी तो मिलोगे तुम किसी मोड़ पे
बैठे हैं कितनी उम्मीदें जोड़ के
पीठ पे वार हुए मेरे ख़िलाफ़ थे
गैरों से गिला कैसा कातिल तो मेरे साथ थे
इतना भी अच्छा नहीं हूँ मैं की मुझसे प्यार किया जाये
और इतना भी सच्चा नहीं हूँ मैं की मेरे हालातों
और जज़्बातों पे एतबार किया जाये
किस बात पर ख़ुद को सज़ा दूँ मेरी ख़ता मुझे मालूम नही
मैं कैसे करूँ गुफ़्तगू तुझसे मुझे तेरा पता तो मालूम नही
ये कैसा ज़ख़्म मैं लिये बैठा हूँ खुदपे जुल्म मैं किए बैठा हूँ
वो कोई ग़ैर था जिसपे मर मिटा हूँ मैं और खुदपे ही सितम मैं किए बैठा हूँ
दम तोड़ गयी मोहब्बत मेरी उनके अन्दाज़ से
जीते रहे पर ज़िन्दा ना थे उनके नज़रंदाज़ से
तेरी भूली बिछड़ी यादें मेरे दरवाज़े के बाहर थीं
जो तड़प मिली तेरी जुदाई की वो मेरे अन्दाज़े से बाहर थी
माँगा था जिसे दुवाओं में वो क़भी हमारा ना हुआ
इतेफ़ाक से आ मिला था मुझे वो इक मोड़ पर
मगर अफ़सोस कि वो इतेफ़ाक फ़िर दुबारा ना हुआ
मैंने देखा था तू घबराया हुआ था मुझे मिलने जब तू आया हुआ था
कोई बात तो थी जो तू बताया नहीं कोई बात तू मुझसे छुपाया हुआ था
तुम्हें प्यार किया ये हमारी भूल थी
तुम्हारी याद में माँगी हर फ़रियाद बेफ़िज़ूल थी
कहाँ तक मोहब्बत से बचते फिरोगे कभी तो मोहब्बत में आके गिरोगे
ये चेहरा मुसलसल यूँ हँसता नहीं है इसी मुस्कुराहट पे मरते फिरोगे
मायूस होगे हमारे बिना तुम मुझसे बिछड़ने से डरते फिरोगे
हर बार उसने सताया है मुझे उसे कहाँ ख़बर थी मेरे दर्द की
वो बेरहम मुझे बर्बाद कर गई वो कहाँ मेरी हमदर्द थी
वाक़िफ़ तो था मैं तेरी हर चाल से
फिर भी तुझे रखा था इस दिल में सम्भाल के
तेरी मुलाक़ातों का सिलसिला मेरी क़िस्मत में नहीं था
तू जब भी मिला कभी फुरसत में नहीं था
कैसे करूँ मैं तारीफ़ अपनी माँ की मेरे शब्दों में इतना जोर नहीं है
वैसे रिश्ते तो बहुत हैं इस जमाने में मगर मेरी माँ जैसा कोई और नहीं है
मैं ही हूँ वो शख़्स जिसे कोई प्यार नहीं करना चाहता
और किसको दिखाऊँ मेरे अश्क़ कोई एतबार नहीं करना चाहता
बेचैनी इस क़दर थी कि हमसे रहा नहीं गया
मगर बेबसी भी कुछ ऐसी थी कि कुछ कहा ना गया
अलविदा तो कह दिया हमने उसे जाते वक़्त
पर उसकी जुदाई का वो ग़म मुझसे सहा ना गया
क्या लिखूँ जो तुम नहीं जानती हो
क्या मेरी धड़कने तुम नहीं पहचानती हो
दिल धड़कता नहीं तुम्हारे बिना क्या तुम ये नहीं जानती हो
दर्द-ए-दिल की दवा बस तुम्हीं हो ये तुम क्यूँ नहीं मानती हो
मेरी धड़कनों में महफूज़ एक राज है तू
मेरी गुनगुनाती धड़कनों का साज है तू
मेरी ख़ामोशी में भी तेरा ज़िक्र होता है
इन ख़ामोशियों की आवाज़ है तू
उस पल ठहर जा ऐ वक़्त ज़रा जिस पल में वो मेरे साथ होती है
दीवारों तुम अपने कान बंद रखा करो जिस पल मेरी उससे बात होती है
ऐ नज़ारों तुम और ज़्यादा दिलकश हो ज़ाया करो जिस पल मेरी
उससे मुलाक़ात होती है ऐ दिलरुबा तू भी देर ना किया कर मिलने में
जिस पल तेरे आँगन में बरसात होती है
मोहब्बत का इम्तिहान देना है अगर तो
वफ़ाओं के बारे में भी कुछ याद कर लेना
इम्तिहान भी पास क़र जाओगे मोहब्बत का
बस मोहब्बत में खुद को बर्बाद कर लेना
सब छोड़ दिया मैंने वक़्त के सहारे पर
अब चलता भी हूँ तो वक़्त के इशारे पर
हमसे दूर ही अगर महफूज हैं वो तो अपना साया भी उनसे दूर कर लेंगे
जा कर वो मजार में फ़रियाद करगें हम कुछ ऐसा उन्हें मजबूर कर देंगे
ज़िन्दगी ख़त्म कहाँ हुई है साहब बस जीना नहीं चाहते ज़ख़्म भी हैं
दिल टूटा भी है मसला ये है की सीना नहीं चाहते
मेरी खामोशियों में उसका एहसास रहता है
यही वजह है की मुझे वो रिश्ता ख़ास लगता है
प्यार इज़हार बिना मुकर्रर नहीं होता
एतबार बिना कोई प्यार मुकम्मल नहीं होता
जो आज किसी का है वो कल किसी का होगा
ना आज किसी का है ना कल किसी का होगा
क़ीमत मुस्कुराने की बड़ी महँगी चुकानी पड़ती है
कुछ ख्वाहिशें मिटानी पड़ती हैं तो कुछ यादें भुलानी पड़ती हैं
शक़ से भरें हैं आज़ क़ल के रिश्ते
तभी तो सब हैं मोहब्बत को तरशते
ये इश्क़ मोहब्बत वो बादल हैं साहब
जो कुछ पल गरजते हैं कुछ पल बरसते
ना मोहब्बत किसी ने की है ना मोहब्बत किसी को आती है
ख़ुदगर्जी की मोहताज ये दुनिया रिश्ते कहाँ निभाती है
यहाँ फ़ितरत है हर शख़्स कि मस्ती सबको आती है
और मस्ती सबको भाती है किसे फ़िकर है मोहब्बत की
यहाँ कश्ती जज़्बातों की डूब ही जाती है
किसी की ठुकरायी हुई बद्दुआ हैं हम
हमारे भीतर न देखो वहाँ तो धुआँ हैं हम
एक़ हाँ कहने से प्यार नही होता अहसास भी होना चाहिए
तेरे टूट कर चाहने से प्यार नही होता उसे भी विस्वास होना चाहिए
वो ज़ो हमारी ख़िलाफ़त करते हैं
हम उनसे बड़ी मोहब्बत करते हैं
सख़्त नफ़रत है उनसे वो ज़ो दिखावट करते है
शहर में चर्चा ये मशहूर हो गया है कि
मोहब्बत को खुद पे गुरूर हो गया है
परखती नही वो दीवानों की दीवानगी
तभी तो मोहब्बत का रिश्ता
बिखरने पर मजबूर हो गया है
गुस्ताखी हुई है हमसे मोहब्बत की
जो सज़ा दो वो मंजूर है
बेवजह ही है ये इश्क़ मेरा
ना मुझे फुर्सत है उससे मिलने की
वो भी ना मिलने पर मजबूर है
वो वक़्त कम्बख़्त कभी आया नहीं
जिसका मुझे इंतज़ार था
लम्हा भी वो कभी आया नहीं
जिसकी ख़ातिर मैं बेक़रार था
गुजरे यहाँ से लाखो मुसाफ़िर
पर वो कभी आया नहीं
जिसका मैं तलबगार था
क्या ही करूँ मैं उम्मीद उससे प्यार की
तोड़ने को उम्मीद जो हर मोड़ पे तैयार थी
हम भी तो उस मोड़ से हो कर आये हैं
की अपना हर शुकुन हर जूनून खो कर आये हैं
समेट लिए कभी अश्क़ अपने
तो कभी अश्क़ों से पलकें भिगो कर आये हैं
बेसब्री का मेरी ना ले इम्तिहान
बेचैनियों में कहीं हो ना जाऊँ बेजान
खो गए हो तुम किसी कि यादों में अभी
तोड़ बैठे हो तुम उन वादों को तभी
इतने किरदार लोग कैसे अदा कर लेते हैं
हम तो किसी को चाहें तो खुदको जुदा कर लेते हैं
आईने कितने बदल दिये लोगों ने काश वो चेहरा बदला होता
आशियाने कितने बदल दिये लोगों ने काश वो सहरा बदला होता
जी चाहता है तुझे दिल में बसा लूँ वहीं तो मेरा ठिकाना है
यूँ तो तु मेरी रूह में है मगर फिर भी तुझे पाना है
चलो कोई तो बहाना मिला उन्हें भुलाने का
उनका तो हरपल ही इरादा था हमें रुलाने का
हमने तो खुद ही तरीक़ा सीख लिया है चुप रहने का
वरना उनका इरादा कहाँ था चुप कराने का
जाने वाले को मुड़कर आने ना दीजिए
मुड़कर वापस आज़माने ना दीजिए
हो रहा है अगर वो खुद ही जुदा
तो फिर उसे और बहाने ना दीजिए
काश लौटा दे कोई वो जो मेरा वक्त खो गया
मैं ढूँढता रहा वो शुकुन जो कमबख़्त खो गया
ये तो तय था कि हम बर्बाद होने वाले थे
फिर भी हम पूरे यक़ीन से तेरे हवाले थे
भूली बिसरी या अधूरी कहानी रह जाऊँगा
देखना मैं अपनी आख़िरी निशानी रह जाऊँगा
तुझको जाना ही है तो जा कोई बात नहीं
मगर इस मसले पर अब कोई सवालात नहीं
तू हो गई थी चाँद सी बेवफ़ा
और मेरे दिल में अंधेरा हुआ करता था
ख़ुद ही ख़त्म हो गया मुझमें वो शख़्स
जो कभी तेरा हुआ करता था
संभल जाते अगर तो ये सिलसिला नहीं होता
अब कोसने से क्या की काश मैं उनसे मिला नहीं होता
हैसियत और हक़ीक़त मैं सबकी नाँप लेता हूँ
तजुर्बा ही इतना हो चुका है की सब कुछ भाँप लेता हूँ
हमने खुदको अब इस हाल पर छोड़ दिया है
तानों की चोंट और उम्मीदों के ढाल पर छोड़ दिया है
तलब है तुम्हारी तब तक ही तुम्हें सँभाला जाएगा
उसके बाद तो धक्के देकर तुम्हें निकाला जाएगा
सोच कर ये मैं ख़ामोश हूँ क्या कहूँगा मैं मेरी सफ़ाई में
उनका तो वो जाने क्या हवाला जायेगा
उसूल और जज़्बात यहाँ सब में नहीं होते
इंसानियत और इंसान मज़हब में नहीं होते
इश्क़ में वफ़ा तो एक दौर का क़िस्सा है
ये आज कल के सुरूर और सबब में नहीं होते
मुझे मिला ही नहीं मुझे जिसकी तलाश थी
मैं ही था उसका तलबगार जो ग़ैरों की ख़ास थी
एक उम्र लग जाये जिसको पाने में
एक पल ना लगा उसे भुलाने में
तुम ही सोच लो तुम्हें क्या मंज़ूर है
शायरों की कहाँ कोई औक़ात होती है
वो वही लिखते हैं जो उनके साथ होती है
शायरों की शायरी जिसे कहते हो तुम
वो तो शायरों के दिल की बात होती है
ख़ामख़ा ही तुम वो पल ढूँढ रहे हो
मेरी खामोशियों का कोई हल ढूँढ रहे हो
बड़े ही नादान हो यार तुम की
इन तूफ़ानों में रेत का कोई महल ढूँढ रहे हो
लिखना चाहूँ तो सारे ग़म लिख दूँ
अपनी कलम से अपने ज़ख़्म लिख दूँ
फ़िलहाल तो लिखता हूँ मैं उसकी हमदर्दी
मगर लिखने पर आऊँ तो उसके सितम लिख दूँ
देखना एक दिन ये सारा खेल ख़त्म हो जायेगा
जिस दिन मुझसे तुम्हारा ताल-मेल ख़त्म हो जाएगा
तनहा ही रहना है मुझे
ये बेकार के रिश्ते नहीं चाहिए
लड़ लूँगा मैं अब हर जंग अकेला ही
मुझे तलबगार फ़रिश्ते नहीं चाहिए
एक कहानी का ऐसा किरदार हूँ मैं
की बेवजह हूँ और बेकार हूँ मैं
किसी की हमदर्दी और प्यार हूँ मैं
तो किसी की कसक बेशुमार हूँ मैं
किसी की चुभन का इकलौता गुनहगार हूँ मैं
तो किसी की तलब का इकलौता तलबगार हूँ मैं
किसी की आँखों को अखरता हूँ मैं
तो किसी की ख़ातिर बहार हूँ मैं
तभी तो कहानी का ऐसा किरदार हूँ
की किसी का दुश्मन तो किसी का यार हूँ
किस्सी की ज़िल्लत तो किसी का इख़्तियार हूँ
किसी की तोहमत तो किसी का इक़रार हूँ
कोई ठुकाये बैठा है मुझे की उसका इनकार हूँ
कोई सीने से लगाये बैठा है की उसका मैं प्यार हूँ
कैसे किसको मैं समझाऊँ यार की मैं कैसा किरदार हूँ
Fanindra Bhardwaj, born on October 20, 2000, is an immensely talented and versatile artist hailing from Jaipur, Rajasthan. Coming from a middle-class family, Fanindra has made a name for himself as an independent singer, songwriter, music producer, and composer. Throughout his career, Fanindra has released numerous singles and albums that have captivated audiences. Some of his popular releases include "Shikast," "Gair," "Rooh," "Azaad," "Sawal," "Shikve," "Criminal Jat," "Dhokhebaz," and "Ahsaas." Each of these tracks showcases his unique musical style and heartfelt lyrics. In addition to his musical talents, Fanindra is also known for his skills as a writer. He has published poetry and poems in news articles, including Amar Ujala.