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एक कप चाय

21 February 2024

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 जिंदगी के 60 बसंत देख चुकी हूं और अब लगभग जिंदगी की सभी इच्‍छाएं भी पूर्ण हो चुकी है। बेटा-बहू मल्‍टीनेशनल कम्‍पनी में करोडों के पैकेज में और बेटी-दामाद अपना निजी नर्सिग होम चला रहे है। एक भरेपूरे परिवार में खुशियों के साथ पैसा भी बरस रहा है। मै और मेरे पति भी सरकारी सेवा से सेवानिवृत्‍त होकर अपनी जिदंगी जी रहे है। मै जरुर अपने आप को सामान्‍य हाउस वाइफ वाली जिंदगी में ढालने की कोशिश कर रही थी। 

 अचानक एक दिन बेटे का फोन आ गया कि अम्‍मा जल्‍दी गुवाहाटी आ जाओ, अचानक रितु को काफी दर्द हो रहा है और डाक्‍टर कह रहे है कि हो सकता है कि एर्बाशन करना पडे, मैने कहा घबरा मत, मै फौरन निकलती हूं, तू घबरा मत। उसने कहा मां मैने ट्रेन का रिजर्ववेशन कर दिया क्‍योकि प-लाईट सीधी नही मिल रही थी। छह घंटे बाद ट्रेन है तो जरुरी सामान रख लीजिये चूंकि ट्रेन में पैन्‍ट्री है, तो खाने का टेशन मत लेना मां, बस आप जाओ तब तक पति ने फोन लेकर कहा तू चिन्‍ता  मत  कर बेटा, बहू का ख्‍याल रख बस हम पहुंचते है। मैने जल्‍दी-जल्दी जाने की तैयारी की और अपने पडोसी को घर की चाभी देकर एक घंटे पहले ही स्‍टेशन पहुंच गये कि कही रास्‍ते में जाम न हो। प-लेटफार्म पहुंच कर हमने एक चाय ली इन्‍हें चाय लेने को कहा तो मना कर दिया क्‍योकि मै जानती हूं कि घबराना मुझे चाहिये पर घबरा ये रहे है क्‍योकि घर में कोई भी काम हो, बच्‍चो की पढ़ाई से लेकर उनकी शादी तक, हर वक्‍त ये काफी परेशान रहे है और बराबर अपने प्रभु से प्रार्थना करते रहे।

खैर, इधर-उधर की बाते करते-करते ट्रेन का सिग्‍नल हो गया, मैने कुली कर लिया था ताकि सभी सामान तरीके से ट्रेन के कोच तक पहुंच जाये पर इन्‍हे तो कुली से जैसे चिढ थी चाहे सामान लेकर चलने में कितनी भी दिक्‍कत हो  पर क्‍या मजाल कुली कर ले। पर आज मैने आटो से उतरते ही कुली कर लिया और उसने कोच तक पहुंचाने का रु.300 भाडा तय किया था और वो मुझे प्‍लेटफार्म में सामान रख  कर अन्‍य ग्राहकों में लग गया और बोला कि ट्रेन के वक्‍त आ जाउगां,  ये इसी बात पर नाराज थे तभी ट्रेन आते देख कर इनका ब्‍लडप्रेशर बढने लगा कि कहां गया तुम्‍हारा कुली, मै भी गुस्‍से मे बोली कि उसने अभी पैसा नही लिया है न, आयेगा तभी लेगा, नही तो आप सामान उठाइये और चलिये। अभी हम दोनो की नोकझोंक चल ही रही थी  कि हमारे एकदम सामने ही ए-1 कोच आ लगा, शायद कुली को पता था कि ए-1 यही पर आयेगा। मै जब तक संयत होकर सामान उठाती कि कुली आया और फटाफट सामान उठाकर कोच की तरफ बढ गया और मेरा सामान मेरी बर्थ में रखकर हाथ जोड कर अपना मेहताना लिया और मैने भी बीस रुपये और दिये तो यह बोले कि तीन सौ कम थे क्‍या? मैने इनकी बातो में ध्‍यान न देते हुये सामान सेट करने लगी क्‍योकि सफर काफी लम्‍बा था इसलिये एक बार कायदे से सामान सेट कर निश्चित होकर अपनी यात्रा की जाये। सामान  सेट करके जैसे ही मै निश्चित होकर बैठी कि बेटे का फोन आ गया मैने उसे बताया कि आराम से बैठ गये हैं, ट्रेन चल दी है।  

अचानक मेरी नजर सामने बैठे शख्‍स पर पड़ी एक पल के लिये मै एकदम चौक गयी - धवल, हां यह धवल ही है। पर लगता है उसने मुझे नही पहचाना। कैसे पहचानता 35 साल पहले हुयी एक छोटी सी मुलाकात वो भी ट्रेन मे। आज देखो किस्‍मत का करिश्‍मा कि दूसरी मुलाकात भी ट्रेन में। पहली मुलाकात त‍ब हुयी थी जब मै अपनी सरकारी सर्विस हेतु  इंटरव्‍यू देने जा रही थी और हमारे साथ लगभग 15-16 लोग और भी थे सभी बातचीत और अंतराक्षरी खेलते हुये सफर कर रहे थे कि अचानक चाय वाला आ गया, जाडे का वक्‍त उस पर जनरल वार्ड का सफर। चाय पीने की सभी की इच्‍छा थी पर कोई आगे नही बढ रहा था कि जो बोलेगा उसे ही सबका पेमेन्‍ट करना होगा। तभी अचानक एक आवाज आयी कि सभी को चाय पिलाओ, जब तक हम कुछ समझ पाते लगभग पांच-छह लोगो ने चाय भी ले ली। जब चाय वाला मुझे चाय देने लगा तो मैने बोला कि मुझे नही चाहिये तो फौरन एक आवाज आती है कि ले लीजिये मैडम, यह चाय मेरी तरफ से आप सभी लोगो को। इतना सुनते ही मै भड़क गयी कि क्‍या हम भिखारी नजर आते है जो आप चाय पिलवा रहे है और आप है कौन, इतनी मेहरबानी क्‍यो, क्‍यों हम चाय पिये इतना कहते-कहते हमने फौरन 50 का नोट निकाला और कितना हुआ काट लो। तब वो शख्‍स बडे संयत और शालीनता से बोला कि मैडम में भी आपकी तरह ही एक विधार्थी ही हूं,  बस एक-दो माह पूर्व ही मै रजिस्‍टार के पद पर नियुक्‍त हुआ हूं। कभी मैने भी अभावों में जिंदगी जी है और ट्रेन का सफर किया है और ऐसे ही पल को जिया है बस उसी अहसास के चलते आप सभी को चाय आफर की है और  आप  जब भी जाब में आ जाये तो ऐसे ही किसी ग्रुप का चाय पिला देना या अन्‍य कोई मदद कर देना तब आपको समझ में आयेगा कि कितना आनंद का अनुभव होता है और मेरा यह पेमेन्‍ट भी  हो जायेगा। पता नही उस की बात का मेरे मन में क्‍या असर हुआ और मैने भी चाय ले तो ली पर एक वायदे के साथ। 

तभी मेरी तन्‍द्रा टूटी जब पैन्‍टीवाला चाय लेकर आया तो मैने फौरन उसे सामने वाले शख्‍स को चाय देने को कहा तो वो बोला कि नही मैडम आप ले। मैने कहा अरे वाह आप तो पूरे ग्रुप को चाय पिला सकते है और मै सिर्फ आपको आफर कर रही हूं और आप मना कर रहे है धवलजी। मेरे इतना कहते ही अचानक उसके मुंह से निकला हर्षिता तुम। और हम दोनो की आंखे नम हो गयी। उसने चाय पी और खामोशी से कुछ सोचता रहा फि‍र अचानक बोला कि “काश हम दुबारा मिल पाते” मैने कहा क्‍यों? फि‍र इधर-उधर की बाते चलती रही मैने भी बताया कि मै कहां और क्‍यो जा रही हूं और अपने पति से परिचय कराया और उसकी फैमिली के बारे मे पूछा उसने बात घुमाते हुये कहा बस सब चल रहा है। सोलह घंटे बीत चुके थे ट्रेन मे, पर न तो उसके मोबाइल पर किसी का फोन आया न ही उसने किसी को किया। बस एक काल आयी जिसमें उसने कहा कि बस एक घंटे बाद में पहुंच जाउगां। इतना तो समझ गयी कि शायद उसका स्‍टेशन आने वाला है। सहसा वो फि‍र बोला कि हर्ष‍िता सच में लोग सही कहते है दुनिया बहुत छोटी है और मुझे पता था कि हम दोनो एक दिन जरुर मिलेगे और तुम मुझे चाय भी जरुर पिलाओगी। क्‍योकि उस दिन तुम्‍हारा अधिकारपूर्वक मुझे डांटना और फि‍र यह वायदा करना कि हम जरुर मिलेगे और आपकी चाय का कर्ज भी उतारेगे। तब से आज तक मै उस एक कप चाय का इन्‍तजार ही करता रहा। आज इंतजार तो पूरा हो गया पर..... कहते हुये अपना सामान उठाया और चला गया और मै उसे सिर्फ जाते हुये देखते रही, देखती रही। और उसके कहे शब्‍दो से कुछ अनकहे शब्‍दों को समेटती हुयी कब गुवाहाटी पहुंच गयी। पता ही नही चला, न तो उसने मेरा नम्‍बर लिया न मैने उसका।

   “अब जब भी चाय पीती तो बरबस एक ही शब्‍द दिमाग में गूजंता है कि “काश हम दोबारा मिल पाते”।

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