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और अचानक लापता हो गया अर्चना का पति

3 November 2022

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अर्चना का पति मानसिक बीमारियों से ग्रस्त था। उसे या नहीं पता था कि उसे क्या हो गया है। अर्चना के ससुर का देहांत हो चुका था। वहीं अर्चना इस बात से काफी परेशान थी, कि घर का खर्चा व पति के इलाज के लिए वह क्या करें। ऐसे में उसने जहां मजदूरी करने की कोशिश की, तो कुछ गिद्धों की नजर उस पर पड़ गई थी, यह सामाजिक गिद्ध अर्चना को हवस भरी निगाहों से देख रहे थे और इसका एक उदाहरण भी सामने आया था, जब अर्चना खेत में काम करने गई, तो वहां पर खेत के मालिक के नौकर ने उसके साथ जो भी किया था उसने एक बात साफ कर दी थी कि पति की बीमारी और अर्चना का अकेलापन अब उसका दुश्मन बन चुका है। ऐसे में एक दिन अर्चना का पति भी कहीं लापता हो जाता है। ऐसा कैसे हुआ और वह कहां चला गया और फिर अर्चना के साथ क्या हुआ?

 

अर्चना के पति का नाम रामजीवन था। यह अर्चना से उम्र में बड़ा था। मानसिक रूप से बीमार था। पिता की मृत्यु के बाद जो उसका इलाज चल रहा था। वह भी बंद हो चुका था। ऐसे में मानसिक स्थिति और अधिक खराब हो गई थी और धीरे-धीरे स्थिति और अधिक बिगड़ रही थी। इसका अंदाजा अर्चना को तो था ही, उसके साथ-साथ उसके घर के लोगों को भी था, परंतु उसके घर के किसी भी सदस्य ने उसका इलाज कराने की जहमत नहीं उठाई। सभी यह जानते थे कि इलाज में अच्छा-खासा पैसा खर्च होता है, जो अभी तक खर्च हो रहा था और कोई भी अपना पैसा खर्च नहीं करना चाहता था, ना ही किसी को इस बात की परवाह थी, कि रामजीवन के साथ कोई अप्रिय घटना दुर्घटना अगर हो जाती है तो फिर अर्चना और उसके पांच बच्चों का क्या होगा!

 

ऐसे में अर्चना ने जब अपने पति के इलाज और बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए मजदूरी करने का निर्णय लिया तो उसके साथ जो हुआ उसने उसे बहुत ही अधिक दुखी किया था, परंतु शायद अर्चना इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं थी। उसने अपने स्वाभिमान को जिंदा रखते हुए, उस घटना से बाहर निकलने का प्रयास किया और उसके बाद वह मजदूरी करने के लिए दोबारा तैयार हुई, क्योंकि उस घटना के बाद एक तरफ तो उसके मन में इस बात का डर था कि कहीं वह दोबारा ऐसी घटना का शिकार ना हो, वहीं उस दिन उसे घर आने में काफी देर हो गई थी, तो ऐसे में अपने देवर पर अपनी जेठानी के द्वारा तमाम खरी-खोटी बातें उसे सुनाई गई थी। जिनसे वह बहुत अधिक दुखी थी, परंतु उस पर इस बात का अभी कोई खास असर नहीं दिखाई दे रहा था, क्योंकि उसके दिलो-दिमाग में जो कुछ भी चल रहा था। वह सिर्फ और सिर्फ उसके पति और उसके बच्चों का ख्याल था।

 

वह औरों की तरह अपने बच्चों को अच्छी स्कूल में पढ़ाना चाहती थी और अपने पति को भी सही करना चाहती थी। उसे पता था कि उसका पति जब सही हो जाएगा तो शायद घर की स्थितियां सही हो जाए और मेहनत मजदूरी करके जो वह पैसा लाएगा। उसे उसकी और जरूरतें पूरी हो जाएंगी, परंतु उसे क्या पता था कि कुदरत ने उसकी किस्मत में कुछ और ही लिख रखा है।

 

रामजीवन शुरुआत से ही ऐसा नहीं था। वह बहुत मेहनती था और काफी खुशनुमा था, परंतु उसकी संगत और उसकी गलत आदतों ने उसे मानसिक बीमारी का शिकार बना दिया था। गांव के लोगों के बीच रामजीवन काफी मस्त रहता था। लोगों से उसके अच्छे संबंध थे। ऐसे में उसकी दोस्ती कुछ ऐसे लोगों से हो गई जो जवानी के शुरुआती दौर में नशे के आदी थे।

ऐसे में यह नौजवान गांजा चरस और आसानी से मिल जाने वाले अन्य कई नशे करते थे। रामजीवन की दोस्ती जब इन सब से हुई तो, उसे यह अंदाजा नहीं था कि यह उसके जीवन को बर्बाद करने वाला है और ऐसा ही हुआ। रामजीवन की दोस्ती इन लोगों से बढ़ रही थी और वह अधिक से अधिक समय इन लोगों के साथ बिता रहा था। पहले वह किसी भी तरह का नशा नहीं करता था, पर धीरे-धीरे अब वह इन लोगों के साथ थोड़ा-थोड़ा नशा भी करने लगा था, पर जैसे-जैसे दिन बढ़ रहे थे। उसकी यह आदत और अधिक बढ़ती जा रही थी, जो रामजीवन नशे से कोसों दूर रहता था, अब वह सुबह से शाम तक नशे में रहने लगा था और यह बात उसके घर वालों को भी पता चल चुकी थी।

ऐसे में पहले तो सभी ने उसकी दोस्ती को छुड़वाने का प्रयास किया, परंतु जब यह संभव नहीं हो सका, तो उन्होंने इसका जो हल निकाला, वह किसी दूसरे की जिंदगी को भी बर्बाद करने वाला था। 

 

 

वह दूसरा शख्स कोई और नहीं वह थी अर्चना!

दरअसल रामजीवन की नशे की बढ़ती हुई आदत, उसके दिमाग पर अब हावी होने लगी थी। उसने करीब-करीब काम धंधा सब छोड़ दिया था और वह उन्हीं दोस्तों के साथ पूरा-पूरा दिन नशे में घूमता रहता था। जिसका सीधा असर उसके दिमाग पर हुआ था और वह अब मानसिक बीमारियों से ग्रसित होने लगा था। ऐसे में गांव के लोगों से जब रामजीवन के पिता ने बात की तो उन्होंने रामजीवन को पहले इलाज के लिए ना भेज कर कहा गया कि अगर इसकी शादी करवा दी जाए तो हो सकता है कि इसकी जो आदतें हैं  वह सुधर जाएं और यह तब नशे से दूर हो जाएगा, तो यह खुद ब खुद सही होने लगेगा। इसके बाद रामजीवन के पिता उसके लिए रिश्ता ढूंढने लगे थे।

 

रामजीवन के नशे की आदत ने उसे तमाम जगह पर बदनाम कर दिया था और आसपास के गांव वाले भी इस बात को जान चुके थे, कि रामजीवन नशे का आदी हो चुका है। साथ ही उसकी रिश्तेदारी में भी यह बात पहुंच चुकी थी कि रामजवन नशे का आदी है और वह पूरा पूरा दिन नशे में रहता है। ऐसे में उसे कोई भी अपनी लड़की देने को राजी नहीं था, तो रामजीवन उनके पिता के सामने यह एक बड़ी समस्या बन गई थी कि आखिर वह इसके लिए अब क्या करें!

उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वहीं उसी दौरान रामजीवन के पिता और अर्चना के पिता की मुलाकात होती है। दरअसल इस मुलाकात के बाद ही दोनों की शादी की बात होती है।

 

पास के ही गांव में अपनी बिरादरी में ही एक शादी समारोह था। इस दौरान रामजीवन के पिता और अर्चना के पिता को समारोह में शामिल होने पहुंचे थे। इस दौरान समारोह में सभी अपने में मस्त थे। जैसा कि शादियों में होता है कि लोग समूह में खड़े होकर अपनी अपनी बातें कर रहे थे। इसी दौरान रामजीवन के पिता ने भी अपने अन्य रिश्तेदारों के बीच यह बात कही कि उन्हें भी रामजीवन की शादी के लिए एक लड़की देखनी है। अगर कोई अच्छी लड़की नजर में हो तो आप लोग बताइएगा। इसके बाद रिश्तदार कहते हैं कि रामजीवन की शादी में तुम तो अच्छा खासा दहेज मांगोगे, तो ऐसे में तुम्हारे लिए किसी पैसे वाले ठीक-ठाक आदमी की लड़की ढूंढनी पड़ेगी। जिस पर रामजीवन के पिता कहते हैं नहीं-नहीं ऐसा कुछ नहीं है। रामजीवन की स्थितियों को देखते हुए मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाला हूं। मुझे अगर कोई अच्छी लड़की मिल जाएगी, भले ही वह गरीब परिवार की हो और वह कोई भी दान दहेज ना दे मैं उससे रामजीवन की शादी कर दूंगा, क्योंकि अभी मुझे इस बात की चिंता है कि रामजीवन और अधिक न बिगड़ जाए। यह बात वहीं पर खड़े अर्चना के पिता भी सुन रहे थे। जब उन्होंने यह सुना कि रामजीवन की शादी उसके पिताजी बिना दान दहेज के भी कर देंगे तो अर्चना के पिता का ध्यान उनकी ओर और अधिक चला गया और अब वह रामजीवन के पिता जी की बातें काफी ध्यान पूर्वक सुन रहे थे। जिसके बाद बातें और बढ़ती रहीं। थोड़ी देर बाद अर्चना के पिताजी ने रामजीवन के पिताजी को अपना परिचय देते हुए कहा कि अभी आपने अपने बेटे के लिए लड़की ढूंढने की बात कही थी और आप दान दहेज भी नहीं चाह रहे हैं। मैं बहुत गरीब व्यक्ति हूं मेरे पास बहुत पैसा नहीं है और मैं भी अपनी लड़की के लिए रिश्ता ढूंढ रहा हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि इस समय के अनुसार मुझे खुद के हालातों को देखते हुए उसकी शादी कर देनी चाहिए। मेरी लड़की काफी अच्छी है। कामकाज में बहुत तेज है। उसे सारे घर के काम आते हैं। सिलाई, बुनाई, कढ़ाई सहित वह सभी घर के काम कर लेती है।

 

रामजीवन के पिता को मान लो मांगी हुई मुराद मिल गई हो और वह अब अर्चना के पिताजी के साथ खुलकर बातें करने लगते हैं। वह कहते हैं कि मुझे बस अच्छी लड़की ही चाहिए। मुझे किसी तरह का दान दहेज नहीं चाहिए। इस दौरान वह अर्चना के पिता को यह भी बताते हैं कि उनका बेटा कुछ गलत लोगों की संगत में पड़ गया है और उससे बाहर निकालने के लिए वह यह सोंच रहे हैं कि रामजीवन की जल्द से जल्द शादी कर दी जाए, क्योंकि शादी के बाद घर गिरस्ती और अपनी पत्नी की देखभाल में रामजीवन उन लोगों का संगत छोड़ देगा। जिस पर अर्चना के पिता भी सहमति जता देते हैं। दरअसल अर्चना के पिता काफी गरीब थे और वह भी अर्चना को जल्द से जल्द अपने घर से विदा करना चाहते थे। उन्हें लग रहा था कि अर्चना अब तेजी से बड़ी हो रही है और पता नहीं उसके लिए बाद में अच्छा रिश्ता मिलेगा भी या नहीं! क्योंकि उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि बात दान दहेज देकर अर्चना की शादी कर सकते। ऐसे में रामजीवन के पिता से हुई अर्चना की मुलाकात उनके लिए भी आशा भरी थी।

 

अब दोनों के बीच बातों का दौर बढ़ने लगा था। शादी समारोह के समापन के बाद दोनों अपने-अपने घर चले जाते हैं। इसके कुछ दिनों बाद जिसके बाद अर्चना के पिताजी अब रामजीवन के घर पहुंच जाते हैं और उसके पिता से वहां उन दोनों की बात होती है। जिसके बाद शादी की तारीख निकाली जाती है, और इसके बाद धूमधाम से अपनी हैसियत के अनुसार अर्चना के पिताजी अर्चना की शादी रामजीवन के साथ कर देते हैं। कुछ दिन तो रामजीवन घर पर ही समय बिताता है और अपना समय ज्यादा से ज्यादा अपनी पत्नी के साथ देता है, परंतु कुछ ही दिनों बाद उसका वहीं पुराना ढर्रा शुरू होने लगता है और वह घर से निकल कर अपने दोस्तों के साथ फिर से बैठने लगता है।

 

रामजीवन के पिता ने जिस सुधार के लिए उसकी शादी कर दी थी, वह सुधार उसमें होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा था, क्योंकि ना तो उसने अपनी नशे की आदत थोड़ी और ना ही अपने दोस्तों का साथ। ऐसे में उसके सुधारने की संभावनाएं अब ना के बराबर रह गई थी, परंतु शुरुआती दिनों में वह अपने परिवार को पालने के लिए थोड़ा बहुत काम कर लेता था। जिससे जीवन यापन थोड़ा बहुत ठीक-ठाक चल रहा था। ऐसे में उसकी आदत जैसे-जैसे नशे की ओर और बढ़ने लगी वैसे-वैसे उसका काम धंधे से मन हटने लगा। पैसे की तंगी अब हावी होने लगी थी और नशे के कारण मानसिक स्थिति और बिगड़ने लगी थी। शुरुआत में रामजीवन के पिता ने उसको डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने उसे दवाएं देकर कहा कि यह दवाएं इसे खानी है, परंतु उसे नशा छोड़ना होगा। अगर यह नशा नहीं छोड़ेगा तो यह दवाएं कोई खास कारगर नहीं होने वाली हैं। ऐसे में रामजीवन के पिताजी उसे बहुत समझाते हैं एक-दो दिन उसे घर में ही निगरानी में रखा जाता है, परंतु उसे यह निगरानी जेल जैसी लग रही थी और नशे की लत का आदी राम जीवन अब छटपटा रहा था। मानों अगर उसे बहुत समय तक नशा करने से रोका गया तो उसकी तबीयत खराब हो जाएगी।

 

ऐसे में कुछ ही दिन दवा चली और उसके बाद रामजीवन फिर अपने को कैद से छुड़ाकर अपने उन्हीं नशेड़ी दोस्तों के पास पहुंच गया और अब उसकी हालत में सुधार होना लगभग नामुमकिन सा लग रहा था, परंतु इस दौरान भी पिता ने दवा को जारी रखा था, उन्हें उम्मीद थी कि शायद यह दवाएं कुछ काम करेंगी और वह धीरे-धीरे नशा करना छोड़ देगा। जब यह बातें अर्चना को पता चलीं तो उसने भी अपने पति राम जीवन को समझाने की कोशिश की। उसने उस पर दबाव भी बनाया कि नशा आप को खराब कर रहा है और इसका असर आपके दिमाग पर हो रहा है। उसने अपनी जिंदगी का हवाला देते हुए कहा कि अगर रामजीवन को कुछ हो जाएगा तो उसका क्या होगा! अर्चना ने तरह-तरह से रामजीवन को समझाने का प्रयास किया ,परंतु उसका सारा प्रयास लगभग विफल रहा।

 

एक तरफ नशे की धुन में रहने वाला रामजीवन सुधर नहीं रहा था, दूसरी ओर पहली संतान के बाद दूसरी और तीसरी फिर चौथी और पांचवी संतान भी हो गी थी, परंतु इधर उसकी हालत में लगातार गिरावट आ रही थी और अब मानसिक स्थिति इतनी अधिक खराब हो चुकी थी कि वह करीब-करीब पागलों जैसी हरकतें भी करने लगा था। कई बार ऐसा भी हुआ था कि वह सुबह घर से निकल गया और ना तो दोपहर में घर आया और ना ही शाम को और फिर रात भी ऐसे ही बीत गई। जब उसे घर वालों ने तलाश किया तो वह गांव के बाहर कभी पेड़ के नीचे, तो कभी तालाब के किनारे, तो कभी इधर-उधर पड़ा हुआ मिला। ऐसे में अब घरवाले जान चुके थे कि उसकी स्थिति खराब हो चुकी है। अर्चना इस बात से बहुत अधिक चिंतित थी, परंतु उसके मन में एक आस थी कि वह अपने पति को सही कर लेगी। ऐसे में उसने अपने पांच बच्चों और अपने पति की जिम्मेदारी उठाने का जो फैसला किया था, उसी के चलते वह मजदूरी करने को भी तैयार थी और उसने ऐसा किया भी, परंतु रामजीवन की स्थिति में सुधार होता उससे पहले ही कुछ ऐसा हुआ जो अर्चना के लिए और अधिक मुसीबतों को लेकर आया था। एक तरफ रामजीवन की खराब मानसिक स्थिति दूसरी और परिवारिक कलह और तीसरी और अराजक गिद्धों की उस पर नजर!

 

उसके लिए अब और बड़ी मुसीबत बनने जा रहीं थीं, क्योंकि इसी दौरान रामजीवन के पिता की भी आकस्मिक मृत्यु हो चुकी थी। अब सहारा कोई नहीं था, क्योंकि जब तक वह रहे तब तक उन्होंने अर्चना का पूरा सहारा किया। उन्होंने अपने बेटे का इलाज भी कराया और उन्होंने अर्चना को किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होने दी थी। अब इसके बाद अब स्थितियां और अधिक गंभीर होने लगी थीं और ऐसे में अर्चना के जिंदगी में एक और सैलाब आ गया। जिसका समाधान न तो अर्चना के पास था और ना ही अर्चना के माता-पिता के पास। अब अर्चना के साथ क्या होने जा रहा था और वह इस सैलाब से कैसे निकलेगी?

 

 

बिगड़ती मानसिक स्थिति और पिता के निधन के बाद अर्चना के परिवार की स्थिति और खराब हो चुकी थी। पांच बच्चों का भरण पोषण नहीं हो पा रहा था। ऐसे में अर्चना पर जो आफत अब गिरने वाली थी। वह उसकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रखने वाली थी। दर्शन रामजीवन पहले भी कई बार दिन दिन भर और रात रात भर घर नहीं आया था। वह गांव के आसपास कहीं बेसुध हालत में लोगों को मिलता था। ऐसे में एक दिन ऐसा भी आया जब रामजीवन घर से निकला और उसके बाद रात हो गई। वह घर नहीं आया। दूसरा दिन बीत गया और दूसरी रात, तीसरा दिन और तीसरी रात, ऐसे ही कई दिन और कई रातें बीत गईं। रामजीवन की तलाश अर्चना और घरवाले कर रहे थे, परंतु उसका कोई पता नहीं लगा। वह कहां चला गया!

कोई भी यह बताने में सक्षम नहीं था। उसके उन नशेड़ी दोस्तों से जब राम जीवन के बारे में पूंछा गया तो उन्होंने भी कोई ऐसा संतोषजनक जवाब नहीं दिया। जिससे रामजीवन का कुछ पता चल सके। ऐसा लग रहा था, कि रामजीवन के साथ कोई अनहोनी हो गई है, परंतु जब तक उसका शव या वह नहीं मिल रहा था। तब तक सभी के मन में यह ही था कि वह कहीं ना कहीं अभी सुरक्षित है और खासकर अर्चना के दिल में तो यही चल रहा है, परंतु कई दिन बीत जाने के बाद भी जब रामजीवन घर वापस नहीं आता है तो अर्चना पर उसके घर वालों का अनावश्यक दबाव बढ़ने लगता है और कई दिन बीत जाने के बावजूद भी घर के किसी सदस्य ने पुलिस को रामजीवन की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने की जहमत नहीं उठाई थी और अर्चना भी तब इतनी जानकार नहीं थी कि वह पुलिस के पास जाकर रामजीवन के लापता होने की सूचना दे या फिर इस मामले में रिपोर्ट दर्ज करा पाती। वह अभी इन सब चीजों से अनजान थी, अनभिज्ञ थी। उसे ऐसा नहीं पता था कि अगर वह आज ऐसा नहीं करेगी तो भविष्य में उसके लिए तमाम संकट खड़े होंगे, परंतु उसके मन में अभी एक आस जरूर थी कि हो सकता है कि उसका पति कुछ दिनों में वापस आ जाए, क्योंकि वह जानती थी कि वह नशेड़ी है और हो सकता है कि वह नशे की हालत में इधर उधर कहीं निकल गया हो। जब वह होश में आएगा तो वापस घर चलाएगा, परंतु जिस तरह से दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदल रहे थे। वैसे-वैसे अर्चना के दिल की आस टूटती जा रही थी।

 

इस दौरान बढ़ रही थीं अर्चना की मुसीबतें

 

जैसे-जैसे उसके पति के लापता हो जाने के बाद गरीबी उसे अपने चंगुल में ले जा कर रही थीः वैसे-वैसे उसके ससुराल के लोगों का नजरिया भी उसके लिए बदलता जा रहा था। अब वह घर की बहू के रूप में नहीं एक नौकरानी के रूप में काम कर रही थी, क्योंकि अगर वह ऐसा ना करती तो उसे और उसके बच्चों को खाना तक नहीं मिलने वाला था। ऐसे में उसने घर का कामकाज कर फिलहाल अपने और अपने बच्चों के पेट पालने का जरिया बना रखा था, परंतु अब कब तक यह चलने वाला था, यह किसी को नहीं पता था। अब रामजीवन को लापता हुए कई महीने हो चुके थे। अर्चना की सास काफी कमजोर हो चुकीं थीं। उनके बस में अब कुछ नहीं बचा था और ना ही उनकी बहू और बेटे उनकी बात मान रहे थे। अब सब अपने मन की कर रहे थे, तो ऐसे में अर्चना की मुसीबतें बढ़ ना तो लाजमी था। अब उसे तरह-तरह के ताने भी मिलने लगे थे। उसकी जेठानी और देवनानी सभी उसे थोड़ा बहुत रुखा सुखा, झूठा बचा हुआ जो भी खाना देते थे जो वह खुद और अपने बच्चों को खिलाती थी। उसके बाद भी उसे तमाम तरह के ताने सुनने को मिलते थे। जिनसे वह निकलना चाहती थी, पर वह मजबूर थी क्योंकि उसे अभी समाज का बहुत ज्ञान नहीं था और ना ही वह कहीं बाहर जा सकती थी। उसने जब इस मामले में अपने माता-पिता से बात की तो उन्होंने भी मानों उसका साथ छोड़ दिया हो।

 

अर्चना के माता-पिता पहले से ही गरीब थे। उनके बेटे भी थे। ऐसे में वह उनका ही पालन पोषण सही से नहीं कर पा रहे थे और अगर वह अर्चना को वापस घर बुला लेते तो अर्चना और उसके पांच बच्चों का खर्चा उठाना उनके बस की बात नहीं थी। ऐसे में उन्होंने अर्चना से कहा कि वह अपने ससुराल में ही रहे और उसे जिस हालत में रखा जा रहा है उसे उसी हालत में रहना पड़ेगा, क्योंकि ससुराल ही अब उसका असली घर है। अर्चना के माता-पिता के कहे गए यह शब्द अर्चना को किसी तीर की तरह लगे थे। वह समझ चुकी थी कि अब उसे खुद के लिए खुद ब खुद कुछ करना होगा।

 

अगर वह ऐसा नहीं करती है तो निश्चित तौर पर उसकी जिंदगी बद से बदतर होने वाली है और ऐसे में उसे अपने बच्चों का ख्याल था। अगर वह अपने बच्चों के भविष्य को बनाना चाहती थी तो उसे कोई ना कोई ठोस निर्णय अवश्य लेना था। भले ही इसके लिए उसे अपने ससुराल और अपने गांव अपने रिश्तेदारों का विरोध ही क्यों न झेलना पड़े और शायद ऐसा ही होने वाला था, क्योंकि अर्चना अब इस नतीजे पर पहुंचने वाली थी। वह उसकी स्वतंत्रता और स्वावलंबी बनने की कहानी की ओर एक बढ़ता हुआ कदम था।

ऐसा क्या करने जा रही थी अर्चना? और क्या अपनी ससुराल और अपने गांव अपने या अब अपने रिश्तेदारों को एक साथ छोड़ कर अपने लिए एक नई दुनिया तलाशने जा रही थी? उसकी यह नई दुनिया कैसी थी और उसमें उसे किस तरह के संघर्ष करने पड़ेंगा? यह सब हम आपको इस कहानी के अगले अंक में बताने वाले हैं।

 

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