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बेसहारा अर्चना को मिला सहारा 

4 April 2023

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इस कहानी में तब नया मोड़ आ जाता है जब अर्चना के हालात अब और अधिक बिगड़ने लगे। ससुराल वालों का अत्याचार बढ़ने लगा था। बच्चों को दो वक्त की रूखी-सूखी रोटी भी मिलना मुश्किल हो गया था। पति लापता हो जाने के बाद और ससुर की मृत्यु के बाद ऐसा लग रहा था कि अर्चना अब बिल्कुल अकेली पड़ गई है। उसका सहारा अब कोई नहीं था। वहीं उसके सहारे पर उसके पास छोटे-छोटे बच्चे थे। जिनका भरण पोषण करने की जिम्मेदारी अब अर्चना के कंधों पर थी। ऐसे में जहां एक तरफ उसके ससुराल का साथ उसे नहीं मिल रहा था। वहीं उसके माता-पिता ने भी उसे अपने हाल पर छोड़ दिया था और सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह था कि ना तो कोई रिश्तेदार और ना ही कोई अपना उसका साथ देने को तैयार था।
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ऐसे में अर्चना उस दोराहे पर खड़ी थी, जहां पर उसे कोई कठोर निर्णय लेना था और यह निर्णय उसकी जिंदगी को आने वाले समय में बदलकर रखने वाला था, क्योंकि गांव में जो हैवान गिद्ध बैठे थे, वो अर्चना की मजबूरियों को देखते हुए उसे नोंच खाना चाहते थे। उनसे आसानी से बचा नहीं जा सकता था और अगर ऐसे में उस ही गांव में अर्चना मेहनत मजदूरी करके अपना और अपने बच्चों का पेट पालना भी चाहती तो वह ऐसा होने नहीं देते, क्योंकि उनकी नियत तो अर्चना को नोंचने में थी। ऐसे में इस गांव से निकलकर कहीं बाहर जाना ही उसके सामने एक विकल्प था, परंतु वह अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी किसी के सहारे छोड़ कर नहीं जा सकती थी। ऐसे में जहां खुद की रहने और रोटी का प्रबंध नहीं था, वहीं इन छोटे-छोटे बच्चों और उनकी रोजी-रोटी का प्रबंध करना इतना आसान तो नहीं होने वाला था, परंतु ऐसे हालातों में यहां रहना भी मुश्किल हो रहा था और अगर अभी कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा, तो आने वाला समय और अधिक समस्या देने वाला था। जिस पर विचार करते हुए अर्चना ने आखिरकार एक दिन वह निर्णय ले लिया जो अब उसकी जिंदगी को पूरी तरह से बदलकर रखने वाला था।

 

अपनी समस्याओं से और परिवार वालों के अत्याचार से परेशान अर्चना ने मेहनत मजदूरी करने के लिए अब गांव से कहीं दूर निकलने का फैसला कर लिया। जिसके चलते वह वहां से निकलकर एक दूसरे जिले लखनपुर अपने सभी बच्चों के साथ आ पहुंची। यहां पर अभी उसके रहने और खाने और रोजगार का कोई प्रबंध नहीं था। ऐसे में एक दूर की किरदार ने उसकी मदद की। उसने उसे कुछ दिन के लिए अपने घर में रहने के लिए बुला लिया, परंतु इस दौरान जो सबसे बड़ी समस्या थी। वह थी रोजगार की!

 

क्योंकि कोई भी उसे और उसके पांच बच्चों को बहुत समय तक रहने और खाने के लिए व्यवस्था नहीं कर सकता था। ऐसे में अर्चना के सामने अब रोजगार की बड़ी चुनौती थी। वह बेहद परेशान थी, उसकी आंखों को देख कर उसकी परेशानी को साफ तौर पर समझा जा सकता था। भले ही उसकी आंखों से आंसू ना निकल रहे हैं, परंतु गांव से बाहर निकलने के बाद उसके दिलो-दिमाग में सिर्फ और सिर्फ एक ही सवाल नाच रहा था, कि उसे किसी भी तरह से रोजगार का प्रबंध करना है और उसके बाद उसे अपने बच्चों को पालने और उनके रहने का प्रबंध करना है।

 

रिश्तेदार के घर कुछ दिन बीत चुके थे। ऐसे में रिश्तेदार महिला द्वारा भी अर्चना से कहा गया कि उसे जल्द ही अपने लिए रहने का और खाने-पीने का प्रबंध करना होगा। वह बहुत समय तक उसे अपने घर में नहीं रख सकती, क्योंकि अब घरवाले भी इस मामले में समस्या उत्पन्न कर रहे हैं, परंतु अर्चना अभी किसी भी तरह का रोजगार नहीं ढूंढ पाई थी। वह अपने रिश्तेदार के घर से सुबह ही रोजगार की तलाश में निकल जाती थी और करीब-करीब हर जगह घूम कर अपने रोजगार को तलाश रही थी। उसके सामने जो सबसे बड़ी चुनौती थी, वह रोजगार था!

 

दरअसल उसे रोजगार न मिलने का एक सबसे बड़ा कारण यह था कि वह एक दूसरे जिले से आई थी और उसके पास यहां की कोई पहचान नहीं थी और ना ही वह किसी तरह का पहचान पत्र रखे हुए थी। ऐसे में वह जहां भी जाती और उससे उसकी पहचान बतानी थी, जो वह सही तरीके से नहीं बता पा रही थी और यही कारण था कि जो भी वह बताती उस पर लोग यकीन नहीं करते। उन्हें लगता है कि वह कोई 420 है और मजबूरी का नाम लेकर उनसे काम मांग रही है, हो सकता है वह उनके साथ कोई बड़ा धोखा कर सकती है। कई दिन तक ऐसा ही चल रहा था। अर्चना पूरी तरह से हताश हो चुकी थी। उसे लग रहा था कि उसे वापस अपने बच्चों को लेकर गांव जाना होगा और उसी जिंदगी को दोबारा जीना होगा। जिसे छोड़ कर वहां से भागी थी। ऐसे में अर्चना की जिंदगी में एक आस भरी किरण उसका इंतजार कर रही थी, परंतु वहां तक पहुंचने के लिए अर्चना को अभी कुछ और संघर्ष करना था।

 

संघर्ष के दिन धीरे-धीरे कट रहे थे और एक नया दिन अर्चना के लिए फिर से एक नई शुरुआत का इंतजार कर रहा था और वह आखिरकार आज अर्चना के संघर्षों की तकलीफों को कुछ कम करने वाला था। जैसा कि हमने आपको बताया है कि अर्चना घर के सभी काम का जो में निपुण थी। ऐसे में जब उसने कई दुकानों और होटलों पर और कई अन्य जगह मजदूरी का काम तलाशने की कोशिश की थी, तो उसे काम नहीं मिला था, परंतु अब उसने घर का कामकाज करने का मन बना लिया था और इसे लेकर भी वह कई दिन से अलग-अलग घरों में जाकर काम मांग रही थी, परंतु उसकी मदद कोई नहीं कर रहा था, ऐसे में अर्चना का एक मददगार उसे मिलने वाला था।

 

अर्चना रोज की तरह है अपने काम को तलाशने के लिए निकली थी और वह शिवपुरी नाम के एक मोहल्ले में घर-घर जाकर काम की तलाश कर रही थी, परंतु हर जगह उसे निराशा ही मिल रही थी। इसी दौरान एक दरवाजे पर करीब 45 वर्ष की एक महिला कुर्सी पर बैठी हुई थीं। उनका नाम मनू था। वह मोहल्ले के अन्य लोगों से बात कर रही थीं। उनके आसपास बैठे लोग और उनसे बात कर रहे थे। लोग उनकी बड़ी इज्जत कर रहे थे। ऐसे मैं जब अर्चना भी वहां पर पहुंचती है तो वह उनसे नमस्ते करती हैं और उनसे कहती है कि मैं बहुत परेशान हूं और मैं काम की तलाश कर रही हूं। मुझे अगर आपके घर में कोई काम मिल सके तो मैं कुछ भी काम करने को तैयार हूं। बस मुझे अपने लिए और अपने बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना है। वह महिला बढे़ ही धैर्य से अर्चना की बात को सुन रही थी। इसके बाद उन्होंने अर्चना को बड़ी ही शालीनता से देखा। वह उसके चेहरे को देखकर मानों उसके पूरे जीवन का आकलन कर चुके थे और उसके बाद उन्होंने अर्चना से पूंछा कि ठीक है पर क्या तुम्हें अभी भूख लगी है?

 

उन महिला के ऐसा कहते ही मानों अर्चना भावुक हो गई थी और उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे। वह समझ नहीं पा रही थी कि जो महिला उन्हें जानती तक नहीं है। उन्होंने उसकी भावनाओं को कैसे पढ़ लिया। दरअसल निराश और हताश अर्चना ने दो दिनों से कुछ खास खाया नहीं था और वह आज भी सुबह भूखी ही निकली थी और यह समय सुबह से करीब दोपहर और शाम का हो चुका था। ऐसे में किसी भी व्यक्ति को भूख लगना लाजमी था।

 

अर्चना की भूख उसके चेहरे पर दिख रही थी और यही कारण था कि उस महिला द्वारा उसे सबसे पहले खाना पूंछा गया। इसके बाद अर्चना की आंखो में आंसू देख कर उन्होंने कहा कि तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है। तुम पहले कुछ खा लो, उसके बाद मैं फिर तुमसे बात करती हूं। इसके बाद वह महिला अपने घर के अंदर गई और अर्चना के लिए रोटी और दाल चावल लेकर आईं। इसके बाद अर्चना के आंसू निकल रहे थे और वह रोते-रोते हुए उस खाने को धीरे-धीरे खा रही थी। इसी दौरान उसे अपने बच्चों की भी याद आ गई और वह खाना खाते-खाते अचानक रुक गई। जिसके बाद उन महिला ने पूंछा कि क्या हुआ तुम खाना तो आराम से खा लो, तो वह आंखों में आंसू भर के बोली कि मैंने तो खाना खा लिया है, पता नहीं आज मेरे बच्चों को कुछ मिला भी है या नहीं! इस पर उन्होंने पूंछा कि तुम्हारे बच्चे कहां है और कितने बच्चे हैं तुम्हारे। अर्चना ने रोते-रोते उत्तर दिया मेरे पांच बच्चे हैं और वह अभी मेरी एक रिस्तेदार के घर पर हैं जो यहां से कुछ ही दूर पर रहती है।

जिसके बाद उन सम्मानित महिला ने कहा कि कोई बात नहीं है। तुम आराम से खाना खा लो अभी कुछ रोटियां और रखी है और सब्जी भी है। तुम अपने बच्चों के लिए यहां से लेती जाना। इसके बाद मानों अर्चना फूट-फूटकर उनके सामने रोने लगी।

अब अर्चना का मानोन एक रिश्ता इस महिला से बंध चुका था और अर्चना अब इन्हें जिज्जी कहकर बुलाने लगी थी। उसने जब अपना खाना खत्म कर लिया तो उन महिला ने उसे पानी ला कर दिया और अर्चना जब पानी पी चुकी तो वह बर्तन रखने के लिए अंदर पहुंची और इस दौरान उसने देखा कि वहां पर पहले से ही कुछ बर्तन पड़े हुए हैं, तो अर्चना ने अपने बर्तनों के साथ ही वहां पर रखे सभी बर्तनों को काफी साफ और अच्छे से धुल दिया। इस दौरान वह महिला कहती हैं कि नहीं-नहीं बर्तनों को रखा रहने दो।

अभी बर्तनों को साफ करने वाली आएंगी और वह खुद ही इन बर्तनों को धो लेगी। जिस पर अर्चना कहती है कि नहीं जिज्जी मैं बर्तनों को साफ कर दूंगी। मुझे दो मिनट लगेंगे। आब शाम काफी हो चुकी थी। धीरे-धीरे अर्चना अपनी आप बीती उनको बता रही थी। इसके बाद उन महिला को यह याद आया कि अर्चना के बच्चे भी भूखे हैं और उसके बाद उन्होंने कुछ रोटियां और सब्जी दाल पैक करके अर्चना को दे दिया और कहा कि यह अपने बच्चों के लिए लेती जाए।

 

और कल सुबह आना, मैं कुछ ना कुछ सोचूंगी तुम्हारे बारे में! अर्चना के दिल में कुछ आस अब जग गई थी। उसे लगा था कि समाज में उसकी कोई मदद करने वाला नहीं है, परंतु उसकी यह धारणा अब टूट चुकी थी। जहां उसने एक तरफ अपने जहन में पूरे समाज के खराब होने के बारे में सोंचना शुरू कर दिया था। वहीं इस महिला के मिलने के बाद अर्चना के ख्याल पूरी तरह बदल चुके थे। अब वह समझ चुकी थी कि अगर समाज में खराब लोग हैं तो समाज में अच्छे लोग भी हैं और उसके बाद अर्चना उस महिला के द्वारा दिया गया खाना लेकर अपने रिश्तेदार के घर पहुंचती है और उसने अपने बच्चों को वह खाना खिला दिया। अब उसके बच्चों को भी कुछ राहत मिली। इस दौरान अर्चना की रिश्तेदार महिला ने उससे पूंछा कि क्या तुम्हारे रोजगार का कोई प्रबंध हो गया है। इस पर अर्चना ने कहा कि नहीं पर लगता है कि एक-दो दिन में कुछ ना कुछ हो जाएगा। जिस पर अर्चना की रिश्तेदार ने उससे कहा कि तुम्हें जल्द ही कुछ करना होगा, तो समझ सकती हो। मैं ऐसा क्यों कह रही हूं। इसके बाद अर्चना ने अपने रिश्तेदार से कुछ दिनों का और समय मांगा और उसने कहा कि मैं कुछ ना कुछ करके घर की थोड़ी बहुत मदद करती रहूंगी और मैं जल्द ही अपने लिए प्रबंध कर लूंगी।

 

अर्चना की यह बातें सुनकर उस महिला ने कहा की कोई बात नहीं है। तुम परेशान मत हो, परंतु तुम मेरी मजबूरी को समझ रही होगी। मैं बहुत दिनों तक तुम्हारी मदद नहीं कर सकती हूं। इस पर अर्चना ने कहा कि तुमने अभी तक जो कुछ मेरे लिए किया है वह मेरे लिए बहुत बड़ी मदद है और इसके लिए मैं तुम्हारी सदैव आभारी रहूंगी, परंतु आज एक बहुत ही अच्छी महिला से मेरी मुलाकात हुई है और उन्होंने मुझे काम देने के लिए भी कहा है। मैं कल सुबह उनसे मिलूंगी। मुझे लगता है कि वह मुझे अपने घर में कोई ना कोई काम जरूर दे देंगी और उसके बाद मैं तुम्हारे लिए भी कुछ मदद करती रहूंगी, पर मुझे लग रहा है कि मेरे लिए जो संघर्ष भरे दिन है उनमें शायद अब कुछ कमी आएगी।

 

आज अर्चना के चेहरे पर थोड़ी सी खुशी थी, कुछ राहत थी और वह उन्हीं महिला के बारे में रात भर सोचती रही। सुबह हुई जल्दी से जल्दी में वह नहा धो कर फिर से उन्हीं महिला के घर पहुंच गई।

 

इस दौरान वह महिला अपने घर के कामकाज में व्यस्त थीं। अपने बच्चों के लिए खाना बना रहीं थीं। जैसे रोजमर्रा के काम होते हैं। वैसे ही वह काम में लगी हुई थी। उसी दौरान अर्चना जब वापस उनके घर पहुंचती है तो वह उन्हें जिद्दी कहकर नमस्ते करती है। वह कहती है कि आपने मुझे आज बुलाया था और वह महिला कहतीं हैं कि ठीक है, बैठो मैं अभी आती हूं। उसके बाद कुछ देर वह अपना काम करती रहतीं हैं।

 

 

अब अर्चना उस दौरान उनके घर के आंगन में बैठी रहती है। थोड़ी देर बाद अर्चना देखती है कि घर का आंगन कुछ गंदा है। उसके बाद वह पड़ोस में रखी झाड़ू उठाती है और कहती है कि जिज्जी क्या मैं यह झाड़ू घर में लगा दूं। जिस पर वह महिला मुस्कुराती हैं और कहती है कि ठीक है लगा दो और अर्चना पूरे घर में झाड़ू लगाती है। इसके बाद वह पोंछा लगाने के लिए कहती है, तो वह महिला कहतीं हैं कि रुको पहले तुम चाय पी लो और थोड़ा नाश्ता कर लो। उसके बाद आराम से पोछा लगा लेना। अर्चना उनकी बात सुनकर भावुक हो जाती है और वह कहती है कि आप अनजान होकर भी मुझे जितना अपनापन और प्यार दे रही हैं आज तक मुझे इस तरह से किसी ने नहीं दिया। जहां तक जब मेरी परिस्थितियां खराब हुई तो मेरे सगे मां-बाप ने भी मेरा साथ छोड़ दिया। ऐसे में आप मेरे लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं है। ऐसे में वह महिला कहतीं हैं कि कोई बात नहीं, तुम्हें चिंता करने की कोई बात नहीं है। मुझे लगता है कि तुम मेरे घर में झाड़ू पोंछा का काम कर सकती हो और इसके लिए मैं तुम्हें पैसे दूंगी, परंतु मुझे नहीं लगता कि तुम्हारा इन पैसों में गुजारा हो पाएगा, क्योंकि तुम्हारे पां बच्चे हैं और तुम्हारे पास रहने का भी अभी जुगाड़ नहीं है। अर्चना कहती है कि जो अभी आप से मदद मिल रही है, वह बहुत है और अगर आपका आशीर्वाद रहेगा तो मैं और काम ढूंढ लूंगी। जिस पर वह हंसने लगती हैं और कहती हैं कि ठीक है मैं तुम्हारे लिए कुछ और लोगों से बात कर लेती हूं। उनके घर में भी अगर तुम्हें काम मिल जाएगा तो तुम्हारा काम चलने लगेगा। उनका काफी सम्मान था, उनके मोहल्ले में लोगों उन्हे बहुत ही सम्मान देते थे। वह उन्हें मानते थे। ऐसे में कुछ महिलाओं ने उनसे यह पहले से कह रखा था कि अगर कोई काम करने वाली मिल जाए तो वह उन्हें बता देंगीं।

 

ऐसे में अर्चना अब उनके घर में काम करने लगी थी। इसी के साथ-साथ उन्होंने एक दो जगह उसे और काम दिलवा दिया था। जिसके बाद अर्चना की मुसीबत में कुछ तो हल हो गई, परंतु अभी भी उसके रहने का प्रबंध नहीं हो पाया था, क्योंकि रहने इसके लिए उसे एक कमरा चाहिए था। जिसका किराया भी उसे देना पड़ता और उधर उसकी रिस्तेदार महिला का भी दबाव उस पर बढ़ रहा था। 

 

उसे तीन चार घरों में काम मिल चुका था। अर्चना कुछ हद तक सकून में थी, परंतु जब उसे एक कमरे की व्यवस्था करनी पड़ी तो उसे पता था कि उसकी कमाई करीब-करीब कमाया हुआ सब उस किराए के कमरे में चला जाएगा, परंतु अभी उसके पास इसके अलावा कोई रास्ता नहीं था। ऐसे में उसने जब कमरा ढूंढा तो उसे एक कमरा मिल गया। जहां वह अपने बच्चों को लेकर रह सकती थी और तीन जगह काम कर के करीब-करीब जो पैसा मिलता था। वह किराया भर का ही था।

 

 

ऐसे में अभी खाने पीने की तो दिक्कत रहने वाली थी, परंतु उसे उस महिला पर काफी यकीन था, जो उसे सबसे पहले मिली थी और जिन्होंने उन्हें काम दिया था। वह उन्हें अब जिज्जी जी कहकर संबोधित करती थी और जिज्जी के  घर में वह काम करती थी।

 

जिज्जी के बारे में अगर हम आपको बताएं तो वह बहुत ही सम्मानित सुलझी हुई और सालीन महिला थीं। वह किसी की मुसीबत नहीं देख नहीं पाती थीं और वह हर गरीब की मदद भी करतीं थीं। उनका स्वभाव ही ऐसा था, परंतु अर्चना के लिए उनका यह स्वभाव किसी वरदान से कम नहीं था। ऐसे में उन्हें यह पता था कि अर्चना ने जब कमरे की व्यवस्था कर ली है तो उसे अधिक खाने पीने में दिक्कत रहने वाली है।

 

इसके लिए उन्होंने अर्चना को घर में ही खाने के लिए कह दिया था और थोड़ा बहुत वह बच्चों के लिए भी दे देतीं थीं। अर्चना घर का काम कर रही थी जिन घरों में, उन लोगों ने भी उन सम्मानित महिला के कहने पर अर्चना को थोड़ा बहुत मदद करना शुरू कर दिया था। यह मदद बचे हुए खाने और कुछ अन्य काम करने के एवज के रूप में उसे मिल जाती थी। जिससे उसका और उसके बच्चों का पालन पोषण होने लगा था, परंतु अभी भी अर्चना के सामने तमाम मुसीबतें थीं। पांच बच्चों का खाना पीना इतना आसान नहीं था। अब रहने के लिए जो कमरा मिला था। वह भी काफी छोटा था, परंतु उसकी समस्या अभी या नहीं थी। समस्या अभी बड़ी थी कि आज बच्चों को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था करना। सभी के द्वारा जो मदद की जा रही थी। वह भी करीब-करीब बहुत अधिक नहीं थी, क्योंकि 1 या 2 नहीं 5 बच्चों और खुद अर्चना का भोजन काफी बड़ी समस्या थी। ऐसे में अर्चना के सामने अभी तमाम और मुसीबत या नहीं थीं। उसके संघर्ष कि यह कहानी अभी और लंबे चलने वाली थी। साथ इन दिनों बहुत सी ऐसी घटनाएं हुई, जिसमें अर्चना के जीवन में तमाम बदलाव किए। हम अगर उसके संघर्षों की बात करें तो उसने खुद के लिए और अपने बच्चों के लिए जो कुछ भी किया वह एक मां के साथ-साथ एक महिला के संघर्ष और इच्छाशक्ति को दर्शाता है।

 

अभी अर्चना की जिंदगी में तमाम और मुसीबतें मुंह बाए खड़ी थीं। जिनका हल उसे खुद निकालना था। अब ऐसे में उसके सामने और कौन-कौन सी मुसीबतें आने वाली थीं। उसकी जिंदगी में और कौन-कौन से बदलाव होने वाले थे। उसकी समस्याओं का हल किसके पास था और क्या वह अब अपना और अपने बच्चों का पेट पालने में पूरी तरह सामर्थ हासिल कर चुकी थी, या फिर अभी इन मासूम बच्चों की जिंदगी में और उसकी मां की जिंदगी में और संघर्ष बाकी था।

 

दरअसल अपने गांव से बाहर निकलने के बाद जिस तरह से अर्चना अपने और अपने बच्चों को लेकर संघर्ष कर रही थी। उस संघर्ष में उसने कई दिन भूखे रहकर खुद को मजबूत किया था और कई बार ऐसा भी हुआ जब उसके बच्चे भी रात में पानी पीकर भूखे ही सोए थे। यह कहानी किसी का भी दिल चीर कर रख सकती है। अभी इस कहानी के कुछ ऐसे पहलू अब हम आपको बताने जा रहे हैं, जो अर्चना के संघर्ष के साथ-साथ उसके बच्चों के संघर्ष को भी दर्शाएंगें और कहीं ना कहीं अर्चना जैसी तमाम महिलाओं के लिए यह प्रेरणा के साथ-साथ उनके साथ होने वाली तमाम घटनाओं की बानगी भर हैं, क्योंकि आज भी इस समाज में अर्चना जैसी न जाने कितनी महिलाएं हैं, जो समाज का शिकार होकर इस तरह की जिंदगी जीने को विवश होती हैं, परंतु अब ऐसे में हम आपको अर्चना के संघर्षों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उसने अपने गांव से निकलने के बाद झेलने शुरू किए थे और यही संघर्षों से दिन पर दिन और अधिक मजबूत बना रहे थे। अर्चना के उन संघर्षों के बारे में हम आपको अगले अंक में बताएंगे। यह संघर्ष आपकी भी आंखों में आंसू ला सकते हैं। संघर्षों की इस कहानी को पढ़ने के लिए आप अपने मोबाइल पर कंप्यूटर में पॉकेट नावेल डाउनलोड कर सकते हैं।

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