ऐ! दोस्त,
तुम्हारी यादों की आगोश में,
अब जिंदगी कटती है|
तुम्हारी बातों के जोश में,
अब जिंदगी कटती है|
जब तक तुम थे साथ,
न थी कोई रोने वाली बात|
अब तो पता ही नहीं लगता,
कि कब आसूं बह आएंगे|
अब दिन अकेला सा है,
रात डरा सा, काला सा मंजर|
कब निगल जाए ये मुझको,
बन कर एक गहरा समन्दर|
तू था, तो तेरा साथ था,
डर पास न आने का विश्वास था|
अब मुझे खुद पर ही विश्वास नहीं,
अब मेरी जिंदगी, जिंदगी के साथ नहीं|
अब राह चलते डर लगता है,
कि कोई भी मुझे बदनाम कर जाएगा|
मैं भी अब किसी को रोकता नहीं,
बचा ही क्या जो कोई मेरा कुछ ले जाएगा|
अब बातें भूख सी हो गई है,
पेट भर ही हो पाती हैं|
मन का तो पता ही नहीं,
किस दुनिया को चला गया|
अब साथ किसी का सुहाता नहीं,
अब बात किसी का, मजा आता नहीं|
अब मैं किसी के पास जाता नहीं,
और मेरे पास कोई अब आता नहीं|
जिंदगी अब निस्सार सी,
किसी नदी की धार सी|
जो चाहे जिधर मोड़ दे,
या किसी भी धरा पर छोड़ दे|
~~शिवमणि"सफर"(विकास) |