गाँव और शहर की दूरी,
महज एक नदी हैं,
दोनों के बीच फलती-फूलती,
एक सुन्दर कड़ी हैं|
गाँव हरियाली और शांति का दूत,
शहर आपाधापी और प्रगति का प्रतीक|
दोनों का मेल नहीं, जरा भी एक-दूजे से,
पर दोनों ही आश्रित हैं, एक-दूजे पर|
गाँव के अनाज,
शहर का पेट भरते हैं|
शहरों के उत्पाद,
गाँव पर चमकते हैं|
चल नहीं सकते ये जरा भी,
एक-दूजे के साथ बिन,
फिर भी नहीं हैं कोई यारी,
गढ़ते रहते हैं, दोनों अलग ही दिन|
शहरों में संसाधन नहीं,
गांवों में उसका उपयोग नहीं|
घिस रहे हैं ये दोनों,
खाना-पानी, स्वाद बिन|
जीवन जियें जाते हैं गांवों में,
और शहरों में वो बनाये|
लेकिन अब नयी व्यवस्था करने कायम,
दोनों हैं आतुरता लाये|
उत्तर हैं भविष्य के गर्भ,
कौन बनेगा विकसित,
कौन बनेगा व्यवस्थित|
- शिवमणि"सफ़र"(विकास)