मेरी कलम से ✍️
"बेटियां "
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शशि का है दुर्भाग्य बहुत रोता है
थोपित कलंक का बोझ व्यर्थ ढोता है
जब श्वेत धवल राकेश दोष से बच न पाया
आखिर ऐसा कौन? जिसपे मानव ने न तर्जनी उठाया
सीता थी अकलंक जानता जग है
दी अग्नि परीक्षा पतित पावनी मां ने सत है
त्रेता युग से चली आ रही कलुष कालिमा
वर्तमान के जन मानस ने मेटा कब है?
सीता ही देती अग्नि परीक्षा हर युग में
आज सैकड़ों सीता जलती कलियुग में
वैदेही तुमने हर युग में क्यों यों जलना स्वीकार किया
अग्नि परीक्षा के निर्णय का न क्यों तुमने प्रतिकार किया
जनक सुता तुम बड़भागी थीं जो पावक से बच निकलीं
आज सैकड़ों जनक रो रहे जिनकी बेटी की चिता जली
खेत भवन गिरवी रखकर था बेटी को ब्याहा
हाय!अधजली बेटी का शव फिर से पुनः जलाया
नहीं कहानी बदली अब भी जनक और सीता की
लालच के पावक में जलती सलमा और गीता भी
चुप हैं सारे धर्म और कानून हुआ है अंधा
जिंदा बेटी को आग लगाना श्वानों का है धंधा
बेटी तो वसुधा है,है वही सृष्टि की निर्माता
वेद,पुराण, उपनिषद सब गीत उसी के है गाता
बेटी उपवन की कली देखते हिय हर्षाता
आग लगाते बेटी को जो तनिक भी दया न आता
जगदम्बा, काली,दुर्गा की करते पूजा सब हैं
बेटी भी तो रूप उन्हीं का माने कब हैं?
अब भी दहेज का दानव बन मुंह फाड़े सब हैं
होगा प्रलय अवश्य देखना कब ?है
🙏🙏 सतीश मोदनवाल🙏🙏