Poet
Free
मेरी कलम से ✍️"बेटियां "…....................शशि का है दुर्भाग्य बहुत रोता हैथोपित कलंक का बोझ व्यर्थ ढोता हैजब श्वेत धवल राकेश दोष से बच न पायाआखिर ऐसा कौन? जिसपे मानव ने न तर्जनी उठायासीता थी अकलंक
मेरी कलम से ✍️"क्षितिज के उस पार".................................निर्निमेष तकता रहा क्षितिज के उस पारआशा के नव स्पंदन से झंकृत हुआविदीर्ण, निराश हृदय बार बारऊर्जा के अजस्र स्रोत फूटे लगातारतिमिरच्छाद
मेरी कलम से✍️फर्क पड़ता है.....**********************मुझे फर्क नहीं पड़ता.....अज़ानों और प्रार्थनाओ सेमंदिर ,मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारों सेअपने पापों के प्रायश्चित के लिएस्वयं से गढ़े गए अल्लाह और भगवान स