मेरी कलम से ✍️
"क्षितिज के उस पार"
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निर्निमेष तकता रहा क्षितिज के उस पार
आशा के नव स्पंदन से झंकृत हुआ
विदीर्ण, निराश हृदय बार बार
ऊर्जा के अजस्र स्रोत फूटे लगातार
तिमिरच्छादित व्योम में नव प्रकाश कहता बार बार
दुखों की कारा की बेड़ियां टूटेंगी मत हार
कर संघर्ष दुधर्ष जीवित रख जिजीविषा
अरुणिम अरुण का उदय हुआ क्षितिज के उस पार
दुःख के स्यन्दन से क्षत मन को आशा दे बार बार
कष्ट को नष्ट कर तू उल्हास कर हर बार
तिमिर तिरोहित हो रहा खुल गया आशा का नव द्वार
सुख सविता का उदय हुआ मत हृदय हार
🙏🙏 सतीश मोदनवाल 🙏🙏