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आदमी तनहा दिखाई दे

29 November 2022

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ग़ज़ल
221-2121-1221-212

नज़रे जिधर घुमाइये मेला दिखाई दे
फिर भी यहाँ तो आदमी तनहा दिखाई दे

मौसम है कितना सर्द तुम्हें क्या बताएं हम
सूरज भी जैसे बर्फ का गोला दिखाई दे।।

चिल्ला रहे हैं नेता जी माइक से इतना क्यों
क्या उनको हर बशर यहाँ बहरा दिखाई दे

दिल तोड़ के वो ग़ैर की बाहों में जा रहे
रोशन था जो चराग़ वो बुझता दिखाई दे

मासूम से हमें जो लगा करते थे बशर 
अब उनके भी रुखों पे  मुखौटा दिखाई दे

कितने अजीब मोड़ हैं राह-ए- हयात में।
कितने मुसाफिरों को न रस्ता दिखाई दे

रब शक्ति इतनी देना तू जीवन की राह में 
अच्छा सुनाई दे हमें अच्छा दिखाई दे

डा. सुनीता सिंह 'सुधा'
वाराणसी ,©®
23/1/2022

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