डा. सुनीता सिंह 'सुधा'
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ग़ज़ल 1212-1122-1212-22 दबी दबी सी मेरे घर में रोशनी आई अनाथ जान के फिर लौट कर हँसी आई निगाह फेर ली उसने मुझे अजाना कह कभी न लौट के फिर वैसी ज़िन्दगी आई हमारे बीच में वो बात अब नहीं लेकिन दुआ सलाम में फिर भी नहीं कमी आई ग्रहण जो ढकने लगा चाँद को अँधेरे में उदास पलकें भिगोई यों चाँदनी आई हज़ारों जाम पिये फिर भी बुझ न पाई है बड़ी अजीब मेरे लब पे तिश्नगी आई हुए जुदा तो भरी आँख थी हमारी भी किसी न काम हमारी ये बंदगी आई हुई न पूरी *सुधा* यूँ भी आरजू मेरी जुबां पे इश्क़ की हर बात कुछ दबी आई डा. सुनीता सिंह 'सुधा' वाराणसी ,©® 10/10/2022ज
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