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राजनीति की बढ़ रही,संप्रति हलचल खूब ।उबरेंगे रँगरेज कुछ ,कुछ जाएँगे डूब ।।1पीट रहे डंका सभी ,होगी अबकी जीत ।स्वर्ग उतारेंगे धरा ,गाएँगे मिल गीत ।।2बाबू भैया लोग लो ,हमको अब पहचान ।खूब करें सेवा हमीं, ह
हमें दिल को दरिया बनाना पड़ेगाहरिक गम को इसमें डुबाना पड़ेगानहीं देख पाये कोई मेरे आँसूयही सोचकर मुस्कुराना पड़ेगाबहुत फैलता जा रहा है अँधेराबड़ा एक दीपक जलाना पड़ेगान उँगली उठाये कोई अपनी जानिबहमें झंडा ऊ
खेतों में अन्न उगाये मिट्टीहरि चंदन-सी बन जाये मिट्टीये नाच नचाये सारा जीवनयूँ खेल तिलिस्म रचाये मिट्टीअब पावन रूप नया गढ़ने कोनित ही कुम्हार तपाये मिट्टीबेबस दर-दर की ठोकर खाये माथे पर धूल
ग़ज़लवफ़ा मिले न मिले फिर भी मुस्कुराना हैयहाँ सभी से मुझे प्यार अब निभाना हैप्रतीक शांति के हैं जो सफेद हारिल उनकबूतरों को फलक पर हमें उड़ाना हैमिले उन्हें भी तो पढ़ने को घर के आँगन मेंजो ज्ञान हीन
गीत 16-13प्रदीप छंद ,*विरह गीत*तुम बिन साजन दिवस नुकीलेसुई चुभन-सी रात है ।यादों की करवट में निशिदिनआँखों की बरसात है ।।सपनों के पनघट से पावनभर लाई सुधि-घट सुखद ।पलकों को नहला कर नैनोंकरती हैं बतियाँ
ग़ज़ल221-2121-1221-212नज़रे जिधर घुमाइये मेला दिखाई देफिर भी यहाँ तो आदमी तनहा दिखाई देमौसम है कितना सर्द तुम्हें क्या बताएं हमसूरज भी जैसे बर्फ का गोला दिखाई दे।।चिल्ला रहे हैं नेता जी माइक से इतना क्यो
परनिंदा तो खूब हो ,अपना हो गुणगान ।तन-मन में मिसरी घुले ,चाह रहे हैं कान ।।1साधू संन्यासी कई ,साध रहे हैं योग ।रहे बचे कुछ संत जो ,करते वैभव भोग ।।2चाटुकार जग में बना ,सब दिन ही सिरमौर ।जिह्वा मधुरस घ
इल्तिज़ा कर रही है वफ़ा प्यार कीबस नज़र से नज़र तुम मिलाते रहोडा. सुनीता सिंह 'सुधा'वाराणसी ,©®