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आँखों की बरसात

27 November 2022

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गीत 16-13

प्रदीप छंद ,*विरह गीत*


तुम बिन साजन दिवस नुकीले

सुई चुभन-सी रात है ।

यादों की करवट में निशिदिन

आँखों की बरसात है ।।


सपनों के पनघट से पावन

भर लाई सुधि-घट सुखद ।

पलकों को नहला कर नैनों

करती हैं बतियाँ विशद ।।


सुलग रहा अंतर्मन पंछी

चुप होंठों पर बात है ।

तुम बिन साजन दिवस नुकीले

सुई चुभन-सी रात है ।।


कंठों तक अब सागर उफने

रोती है रुक-रुक लहर ।

मन की एक विरहणी कहती

हाथों से पी लो जहर ।।


बहुत दिनों सोई पीड़ा

और नहीं कुछ ज्ञात है ।

तुम बिन साजन दिवस नुकीले

सुई चुभन-सी रात है


धड़कन तक तेरा आ जाना

दबे पाँव फिर लौटना ।

जैसे अंबर तारा टूटे 

छलती जीवन वंचना ।।


प्रिय सुन लो अब इस जीवन में

लगी साँस पर घात है ।

तुम बिन साजन दिवस  नुकीले

सुई चुभन-सी रात है ।।


डा. सुनीता सिंह 'सुधा'

28/9/2022

वाराणसी,©®article-image

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