गीत 16-13
प्रदीप छंद ,*विरह गीत*
तुम बिन साजन दिवस नुकीले
सुई चुभन-सी रात है ।
यादों की करवट में निशिदिन
आँखों की बरसात है ।।
सपनों के पनघट से पावन
भर लाई सुधि-घट सुखद ।
पलकों को नहला कर नैनों
करती हैं बतियाँ विशद ।।
सुलग रहा अंतर्मन पंछी
चुप होंठों पर बात है ।
तुम बिन साजन दिवस नुकीले
सुई चुभन-सी रात है ।।
कंठों तक अब सागर उफने
रोती है रुक-रुक लहर ।
मन की एक विरहणी कहती
हाथों से पी लो जहर ।।
बहुत दिनों सोई पीड़ा
और नहीं कुछ ज्ञात है ।
तुम बिन साजन दिवस नुकीले
सुई चुभन-सी रात है
धड़कन तक तेरा आ जाना
दबे पाँव फिर लौटना ।
जैसे अंबर तारा टूटे
छलती जीवन वंचना ।।
प्रिय सुन लो अब इस जीवन में
लगी साँस पर घात है ।
तुम बिन साजन दिवस नुकीले
सुई चुभन-सी रात है ।।
डा. सुनीता सिंह 'सुधा'
28/9/2022
वाराणसी,©®