मुझे ग्लानि नहीं होती
गर समाज न होता
मुझे खुद को महान दिखाने की ज़रूरत न होती
गर मेरे आस - पास लोग न होते
हम शुरू से अंत तक
लोगों के अनुसार ही तो जीते हैं
हम खुद को उनके लिये ही तो
रातों दिन तपाते हैं
हम सब एक ही होड़ में लगे हैं
खुद को महान दिखाने में
दूसरों से सम्मान पाने में
समाज द्वारा निर्मित अपने अहम् को
दूसरों से ऊँचा दिखाने में
खुद शोषक बन जाने में
और बातों से शोषण मुक्त
अच्छा समाज बनाने में
जब हम दूसरों के अनुसार
अपने सभी उद्देश्य बनाते हैं
तब हम खुद को ही भूल जाते हैं
और वस्तुओं की भॉंति उपयोग किए जाते हैं
हमारे अंतः करण की
हत्या बार बार होती है
स्वतंत्रता का नाश होता है
इसलिए मन में द्वंद्वों
का भण्डार होता है
यदि हमें पूर्ण स्वतंत्रता चाहिये
समाज के नैतिक नियमों से
उसके द्वारा दिये गये संस्कारों से
बिना मांगे मिले धर्मों से
और तरह तरह के दिखावे से
तब शायद समाज में रहना मुश्किल है
यदि वहां रहना है तो हमें
इन सारे बवंडरों के साथ रहना पड़ेगा
खुद को चालाक साबित करना पड़ेगा
पर अगर हम सह्रदय , बिना द्वेष
बिना ईर्ष्या और तेरे - मेरे की भावना से
मुक्त रहना चाहें तो
हमें समाज छोड़ देना चाहिए
पर उसके बिना भी
हम जी नहीं पाएंगे
Prem Sagar