Meaning of अजीब in English
- Not paired with another, or remaining over after a pairing; without a mate; unmatched; single; as, an odd shoe; an odd glove.
- Not divisible by 2 without a remainder; not capable of being evenly paired, one unit with another; as, 1, 3, 7, 9, 11, etc., are odd numbers.
- Left over after a definite round number has been taken or mentioned; indefinitely, but not greatly, exceeding a specified number; extra.
- Remaining over; unconnected; detached; fragmentary; hence, occasional; inconsiderable; as, odd jobs; odd minutes; odd trifles.
- Different from what is usual or common; unusual; singular; peculiar; unique; strange.
- One's own; belonging solely or especially to an individual; not possessed by others; of private, personal, or characteristic possession and use; not owned in common or in participation.
- Particular; individual; special; appropriate.
- Unusual; singular; rare; strange; as, the sky had a peculiarappearance.
- That which is peculiar; a sole or exclusive property; a prerogative; a characteristic.
- A particular parish or church which is exempt from the jurisdiction of the ordinary.
- Belonging to another country; foreign.
- Of or pertaining to others; not one's own; not pertaining to one's self; not domestic.
- Not before known, heard, or seen; new.
- Not according to the common way; novel; odd; unusual; irregular; extraordinary; unnatural; queer.
- Reserved; distant in deportment.
- Backward; slow.
- Not familiar; unaccustomed; inexperienced.
- Strangely.
- To alienate; to estrange.
- To be estranged or alienated.
- To wonder; to be astonished.
- As something foreign, or not one's own; in a manner adapted to something foreign and strange.
- In the manner of one who does not know another; distantly; reservedly; coldly.
- In a strange manner; in a manner or degree to excite surprise or wonder; wonderfully.
Meaning of अजीब in English
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- तुम्हारी जुल्फ़ों के साए से भी न जाने क्यों डर सा लग रहा है
- #poetry शीर्षक : "बड़ी अजीब है ये तेरी बेवफ़ायी भी "
बड़ी अजीब है ये तेरी रुस्वायी भी,
जितना भूलना चाहा याद उतनी आयी है,
क्या होती है प्रीतम की जुदायी भी,
जब बिछड़े तो समझ आयी है,
चाहे कोई किसी को कितना भी,
ये मोहब्बत काहा किसी को नजर आयी है,
ना मिला मुकम्मल इश्क़ मुझे भी,
उम्र गुजरी तब इस दिल को सबर आयी है,
पुकारता है कोई इश्क़ का मारा आज भी,
जहाँ निगाहें दीदार को तरस आयी है ,
किसी का प्यार इंतजार ही रहा,
नही आया वो ये आँखें बरस आयी है,
सच्चे इश्क़ के बदले आँशु दे गया,
क्या कीमत मेरे प्रीत की लगायी है,
मै लबों से गुनगुना भी नही सकता,
जो प्रेम गीत तुने मुझसे लिखवायी है,
आखिरी साँस तक मेरी होकर रहेगी,
तुझसे अच्छी तो ये तन्हायी है,
अब ये जुदा नही है मुझसे,
तेरे बाद मैने इसे ही अपनायी है ,
बड़ी अजीब है ये तेरी बेवफायी भी,
जितना भूलना चाहा याद उतनी आयी है ।
~ मुन्ना प्रजापति (उ. प्र.)
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- #poetry कितना अजीब है, मेरा मेहबूब,
कांटे लगाकर कहता है गुलाब आयेंगे,
चुल्लू भर पानी में शैलाब आयेंगे,
बिछड़कर मुझसे केहता है याद आयेंगे,
बरस रहा है मोहब्बत का सावन और
वो केहता है मौसम के बाद आयेंगे ।।
वक़्त गुजार रही हूँ तन्हाइयों मे,
मेरा हैंडर्ड मुस्कुराता हुआ कहता है
और अतायेंगे...
मिलना है कहकर मिलने नही आयेंगे ।।
इस कदर हम याद तुझको आयेंगे
तेरे जिशम् के रग रग में बस जायेंगे,
गर जुदा करना चाहा खुदसे मुझको,
जायेंगे तुमसे दूर मगर
जिस्म से रूह जस जायेंगे ।।
कोई जबाब नही देता मेरे खत का
कहता है बस... यही ज्ञान आयेंगे,
कांटे लगाकर केहता है गुलब् आयेंगे,
चुल्लू भर पानी में शैलाब आयेंगे ।।
✍️ Author Munna Prajapati
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- #poetry शिर्षक "गुजर रहा है अब मोहब्बत का जमाना "
अब गुजर रहा है वो जमाना,
अब किसी पर भी यकीन नही करेगा कोई....
झूठा साबित हो रहा है, अब तो प्रेम का पैमाना,
अब रिश्तों मे बगैर मुनाफे के,
कोई सीन नही करेगा कोई ।।
ये पीढ़ी आखिरी थी, दिल को दुखा लिया हमने,
अपने आखों के आँशु, आँखों मे ही सुखा लिया हमने,
अब तो लोग जिश्म से खेलेंगे और चलते बनेंगे...
जो जल रहा था चराग़, आशियाने मे,
अब तो उसे भी बुझा लिया हमने ।
गर जिंदा रहा तो देखूंगा, तुम्हारे बच्चों का कारनामा.. ...
यकीन मानो मर्द का,हर रात रंगीन करेगा कोई....
अब गुजर रहा है वो जमाना,
अब किसी पर भी यकीन नही करेगा कोई.. ।।
तुम देखना कुछ ही सालों मे,
कोई आये - जाए नही रह पायेगा मलालों मे,
हर रोज दूसरा होगा, निगाहों के इन खयालों मे,
तुम ढुंढोगे पुस्तक के पन्नों मे,
जबाब रहेगा पूछे गए शवालों मे ।
तुम डाटते रह जाओगे,
तुम सिखाते रह जाओगे..
कुछ असर नहीं करेगा तुम्हारा ताना ...
यकीन मानो तुम्हारे उसूलों का तौहीन करेगा कोई...
अब गुजर रहा है वो जमाना,
अब किसी पर भी यकीन नही करेगा कोई.. ।।
इश्क़ नही, जिश्म की चाहत पूरी की जायेगी,
नये जमाने के नाम पर, हर कहानी अधूरी की जायेगी,
अपनापन मिट जायेगा, रिश्तों की अहमियत मे दूरी की जायेगी,
ना चाहते हुए भी, कुछ अजीब
चरित्रों की मंजूरी दी जायेगी ।
खत्म होगा मोहब्बत करने और निभाने का अफसाना...
यकीन मानो उम्र से पहले मिलकर,
खुद को हसीन करेगा कोई....
अब तो गुजर रहा है वो जमाना,
अब किसी पर भी यकीन नहीं करेगा कोई.. ।।
✍️ Author Munna Prajapati
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- #poetry "१५ अगस्त.... "
आज वह शख्स भी आजादी की
गाथाएँ गाते हुए नजर आया,
जिसने जाती और मजहब मे
लोगों को उलझा कर रखा है ।
उसने हमेशा बतलाया है के तुम बड़े हो,
तुम्हे बड़ा होना चाहिए और
सबसे आगे होना चाहिए,
तुम हिंदू हो तुम मुश्लिम हो
तुम सिख हो तुम ईसाई हो,
और आज मंच पर, कुछ लोगों के बीच
कह रहा था के हम भारत वासी एक हैं ।
जो अपने फायदे के लिए अपनी
शान के लिए, अपने पद के लिए
जाने कितनों को मौत के घाट उतार दिया होगा!
वह शख्श आज मंच पर, तिरंगे के सामने
इस देश को मजबूत बने रहने का
शिक्षा दे रहा था ।
जो हमेशा लोगों को कम शिक्षित
रखने का उपाय ढूंढता रहा, वह
आज मंच पर विद्यार्थियों के सामने
उच्च शिक्षा पाने की हौशला दे रहा था ।
कुछ शहीदों के बारें मे, उनका चरित्र
चित्रण कर रहा था, अल्पज्ञ लोगों को
समझा रहा था, आजादी कैसे हुयी
इसकी गाथा सबको सुना रहा था जिसने
अपने कर्मों का किताब कहीं
छुपा कर रखा है ।
बहोत बड़ी बड़ी बातें की उसने,
वह सब उसकी जुबानी थी, और
सच तो ये है की वह सब किसी की
लिखी हुयी कहानी थी ।
उसने ये नही कहा कि अस्पताल में,
मरीजों (गरीबों ) को क्यूँ रुलाते हो,
उचे पद पर बैठकर लूट पाट क्यूँ मचाते हो,
किसी मशले को हल करने मे
इतना वक़्त क्यूँ लगाते हो ।
वो लोग भी क्या अजीब थे
जो उसके चिकनी बातों के करीब थे,
तालियां बज रही थी, जय हिंद के
नारे भी लग रहे थे परंतु.....
हिंदुस्तान को जिताने का या फिर
जश्न ए जीत का भाव किसी के
दिल मे नहीं था ।
सब इसी मे डूब गए, के, कब, कैसे
और किसने आजादी दिलायी,
कितनी मुशक्कत् स्वतंत्रता सेनानियों ने
उठायी... बस इन्ही सब बातों पर
हम सबको फुसला कर रखा है ।
आज वह शख्स भी आजादी की
गाथाएँ गाते हुए नजर आया, जो
इस जमी का खाता है, इसी जमी पर
रहता है, हम लोगों के बीच जीता है मगर
भला सिर्फ अपना सोचता है,
मै भी चाहता हूँ,
आजादी की शुभकामनाएँ दूँ... पर
किसे दूँ.... किसे....... 😥
✍️ Author Munna Prajapati
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