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Neetesh Shakya UP84

Neetesh Shakya

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जिंदगी जीने की मेरी ख्वाहिश थी, अपने छोड़कर गैरों पर चाहत थी| गैरों के चक्कर में अपनों को भूला बैठे, जब अपनों ने दिया सहारा तब गैर रूला बैठे|| जिंदगी का सफर अधूरा ना हो, बेवफा का इश्क पूरा ना हो| आशिकी के खेल मैं ए-दोस्त, कोई वे सहारा ना हो||  

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