जिंदगी जीने की मेरी ख्वाहिश थी,
अपने छोड़कर गैरों पर चाहत थी|
गैरों के चक्कर में अपनों को भूला बैठे,
जब अपनों ने दिया सहारा तब गैर रूला बैठे||
जिंदगी का सफर अधूरा ना हो,
बेवफा का इश्क पूरा ना हो|
आशिकी के खेल मैं ए-दोस्त,
कोई वे सहारा ना हो||
***Neetesh Shakya***