कहीं ख़्वाब टूट रहे हैं
कहीं ख्वाहिशें
नीलाम हो रहीं हैं
कहीं वफ़ाएँ
दम तोड़ रही हैं
तो कहीं मोहब्बतें
बदनाम हो रहीं हैं
मंज़र तो अब ऐसा है की
इश्क़ में भी साज़िशें
सरेआम हो रही हैं
ख्वाहिशें खामोशियों की
ग़ुलाम हो रही हैं
ये ज़िंदगी ख़्वाहिशों में
नीलाम हो रही है
टूट रहीं हैं उम्मीदें और
ये उलझने बेलगाम हो रहीं हैं
चीख रहीं हैं कुछ यादें इस दिल
में कुछ यादें यूँ हीन गुमनाम हो रहीं हैं
टूट रहीं हैं कुछ ख्वाहिशें
कुछ यूँ ही बदनाम हो रही हैं
हाल ए दिल क्या कहूँ मैं तुझसे
मेरे इश्क़ में ये किस कदर
टूट कर तमाम हो रही हैं