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ख़्वाब टूट रहे हैं

29 January 2024

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कहीं ख़्वाब टूट रहे हैं 

कहीं ख्वाहिशें 

नीलाम हो रहीं हैं 

कहीं वफ़ाएँ 

दम तोड़ रही हैं 

तो कहीं मोहब्बतें 

बदनाम हो रहीं हैं 

मंज़र तो अब ऐसा है की 

इश्क़ में भी साज़िशें 

सरेआम हो रही हैं 

ख्वाहिशें खामोशियों की 

ग़ुलाम हो रही हैं 

ये ज़िंदगी ख़्वाहिशों में 

नीलाम हो रही है 

टूट रहीं हैं उम्मीदें और 

ये उलझने बेलगाम हो रहीं हैं 

चीख रहीं हैं कुछ यादें इस दिल 

में कुछ यादें यूँ हीन गुमनाम हो रहीं हैं 

टूट रहीं हैं कुछ ख्वाहिशें 

कुछ यूँ ही बदनाम हो रही हैं 

हाल ए दिल क्या कहूँ मैं तुझसे 

मेरे इश्क़ में ये किस कदर 

टूट कर तमाम हो रही हैं 

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fanindra's Diary
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लिखना तो चाह रहा हूँ सब कुछ मगर कुछ बातें हैं जो बयां नहीं हो सकतीं इसलिए कुछ अल्फ़ाज़ों में अपने अन्दाज़ से कुछ लिख रहा हूँ और मेरे ख़्याल से इतना ही काफ़ी हैं अगर पढ़ने में दिलचस्पी है आपकी मैं हूँ फणींद्र भारद्वाज जयपुर राजस्थान से जिसे आप गुलाबी नगर से भी जानते हैं लिखने का शौक़ है और कुछ खामोशियों की ज़िद्द भी है लफ्जों में उतरने की इसलिए लिखता हूँ क्योंकि ख्वाहिशें तो मार दिन बहुत कम से कम इन खामोशियों को बचा लूँ बस इस लिये इन्हें अल्फ़ाज़ों के ज़रिए काग़ज़ों पर उतार रहा हूँ उम्मीद है कि कोई पढ़ेगा ज़रूर मेरी खामोशियों की चीख को
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ख़्वाब टूट रहे हैं

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कहीं ख़्वाब टूट रहे हैं  कहीं ख्वाहिशें  नीलाम हो रहीं हैं  कहीं वफ़ाएँ  दम तोड़ रही हैं  तो कहीं मोहब्बतें  बदनाम हो रहीं हैं  मंज़र तो अब ऐसा है की  इश्क़ में भी साज़िशें  सरेआम हो रही हैं 

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