" उन नशेड़ी चोरों का दल मेरी तरफ़ ही बढ़ रहा है... आ ss ह... मेरा सिर बुरी तरह से घूम रहा है, मुझे इनसे बहुत तोल मोल के बात करनी पड़ेगी, वर्ना बोलने से मेरी सांसों का बंधन टूटेगा और मेरा ख़ून तेज़ी से बहने लगेगा, जिससे जल्दी ब्लड प्रेशर डॉउन होने की वजह से मैं चक्कर खाकर कुछ देर के लिए यहीं बेहोश हो जाऊंगा... काश मैं फिल्मी हीरो होता, तो अब तक घायल होने के बाद भी ब्लड प्रेशर घटता बढ़ता नहीं... पर चाहे जो भी हो कुछ देर के लिए तो मुझे बेहोश होना ही पड़ेगा , घटते ब्लड प्रेशर के कारण," उन चोरों के दल को मैंने अपनी ओर आते हुए देख खुद के मन में विचार किया... मैं गम्भीर रूप से घायल था, मेरा गला लगातार सूखता जा रहा था और सीधे खड़े रहना भी मेरे बस के बाहर हो रहा था, पर फ़िर भी कुछ देर के लिए ख़ुद पे काबू पाते हुए मैं सीधे खड़ा रहा।
" कमीना ससुरा अब तक टिका बाटे... दरियाई घोड़ा बाटे या गेंडा बाटे, पन जो भी है बहुत दमदार बाटे ससुरा... एक बार अपन लोगन के ट्रक तक पहुंचा देब, तब ई ससुरा के अच्छे से सबक सिखाई," मेरी तरफ़ बढ़ते हुए एक चोर ने अपने साथियों से कहा, वे सभी अपनी बनाई हुई योजना के तहत एक के पीछे एक चलकर आ रहे थे... हर एक के कन्धे पर उनका एक घायल साथी लटका पड़ा था, कोहरे के कारण भले ही उन्हें अच्छे से देख पाना मुश्किल था , लेकिन जितनी दूर तक दो सौ वॉट के बल्ब की रोशनी जा रही थी, वहां तक उनकी परछाइयों को साफ़ देखा जा सकता था।
" सुना कोई बकैती मत पेला, ऊही करा जो हम पचे कहत रहे... अपन मगज मत ख़र्च करा... तोहार सब का यही आदत ख़राब बाटे, बॉस का आदेश कौनो नहीं मानत बाटे," उस दल के लीडर ने अपने साथी की बातों को सुनकर अपनी प्रतिक्रिया दिखाते हुए कहा।
" हाय रे देखा... हमरे बॉस हम पचे के आदेश दिए बाटे, बस आजे रात भर... अगला चोरी से पहले चुनाव होई, हम पचे देख ले ली, कितना पानी में ब हमरा बॉसवा... एक अकेला मनई बॉस के पछाड़ देली, बस अाजे भर तोहार बात मानी हम पचे... अगला चोरी से पहले निष्पक्ष रूप से चुनाव होई, हम पचे को भी मौका मिले के चाही आपन सरकार बनाए खातिर," अपने लीडर की बातों को सुनकर उसी चोर ने अपनी राय प्रकट की, जिसने बातचीत शुरू की थी।
" बस... बस... रामखेलावन, ज़्यादा बकैती मत पेला... आज भर वही करा जौन जुगाड़ लगाए रहे हम पचे, नाही तो ऊ ससुरा गौर्ड काबू में न आई... बस एक बार ऊ काबू में आ जाई , फिन हम पचे पारेषण खण्ड का दिवार तो आधा खोदे दिए बाटे, बस आधा घंटा लगी बगल से माल लेके जाए में... निकल व जिंक महंगा बिकत बाटे," अपने साथियों की बातों को सुनकर, उन्हें झाड़ लगाते हुए पीछे चल रहे तीसरे साथी ने पहले वाले से कहा।
" आ ss ह... बस कुछ देर और, खड़े रहो... पता नहीं कितना समय लग रहा है इन्हें यहां तक पहुंचने में, या मेरे दिल की धड़कन धीमी पड़ रही है... पा ss पानी , अगर एक बूंद भी पानी मिल जाता, तो तरावट आ जाती पूरे बदन में... पर पानी कहां मिलने वाला है, इन कबूतरों को ठिकाने लगाने के बाद ही पानी पियूंगा, पता नहीं क्या खिचड़ी पका रहे हैं," प्यास और दर्द के कारण मेरा गला बुरी तरह से सूख रहा था, पर ऐसी परिस्थितियों का मैं पहले भी कई बार सामना कर चुका था , इसलिए मुझे पता था कि मैं कितनी देर तक उनका उनका सामना कर सकता था अपनी सांसों पर काबू पा कर... मैंने उसी समय ये तय कर लिया था कि अब की बार मेरा हर प्रहार शक्तिशाली होना चाहिए, क्यूंकि मेरे शरीर से लगातार ख़ून बहने की वज़ह से थोड़ी कमज़ोरी आ चुकी थी , पर फ़िर भी मैं अपनी सांसों को बांध कर सीधा खड़ा हुआ था और कहीं से भी ये पता नहीं चलने दिया था कि मुझ पर कोई असर हुआ है... वे चारों अपने साथियों को कन्धे पर लादे धीरे धीरे मेरे काफ़ी नज़दीक पहुंच गए, अब हम सभी में इतनी दूरी थी कि हम एक दूसरे को दो सौ वॉट के बल्ब की रोशनी में आराम से देख सकते थे। हमारे बीच से कोहरे के बादलों का पर्दा धुआं बन कर छट चुका था... ओंस की मोटी बूंदे लगातार टपक रही थीं , जो मौसम में नमी का प्रदर्शन कर रहीं थीं।
मेरी नज़र उनकी गतिविधियों और खड़े होने के तरीके पर टिकी हुई थी, अब मेरी धड़कनों ने भी बढ़ना शुरू कर दिया था... घायल होने की वजह से मैं पहले से ज्यादा सतर्क हो चुका था। गलती की कोई भी गुंजाइश होते ही दाएं हाथ की कुल्हाड़ी हवा में लहराते हुए उसकी खोपड़ी चीर देती, जो भी पहले हरकत करता... इसलिए मैं उनके पैरों पर नज़र रखे हुए था और उन्हें लगातार बुरी तरह घूरे जा रहा था।
" का गेट खोल दिए हैं गार्ड साहेब," मेरे सामने खड़े उस चोर ने पूछा जो छोटे गेट के ज़्यादा क़रीब था, उसके कन्धे पर उसका साथी लदा पड़ा था, जिससे साफ़ पता चल रहा था कि वो मुझ पर एक झटके में हमला नहीं कर सकता था, उसे पहले अपने कन्धे के बोझ से मुक्ति पाना पड़ेगा।
" जाकर चेक कर लो," मैंने अपनी सांसों को थोड़ा बांधकर, उसे उसके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा और केवल आंखों की पुतलियों के सहारे उन सभी पर नज़र घुमाई... वे सभी स्थिर लग रहे थे और उनकी तरफ़ से किसी भी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही थी। मेरी बात सुनते ही सबसे पहले वाले ने आगे बढ़कर छोटे गेट को चेक किया।
" ई तो बन्द बाटे मर्दवा... हम पचे तो सोचत रहे कि आपने खोल दिया होगा, गेटवा," उस चोर ने गेट के नज़दीक पहुंचते ही उसे चेक करने के बाद अपने साथियों तथा मेरी ओर देख कर कहा। उन नशेड़ी चोरों को इस बात से झटका लगा था कि मैंने उनके कहने पर भी गेट नहीं खोला था। मेरी नज़र लगातार उन चारों की हरकतों पर बनी हुई थी... मैं उन्हें बिना पलकें झपकाए घूरे जा रहा था, मैं उन चारों पर इतनी आसानी से भरोसा नहीं कर सकता था... अब बस उन चारों की तरफ़ से हल्की सी गलती भी मुझसे हमला करवा देती, माहौल गर्म हो गया था, जिसका इशारा उन चारों की हैरान और परेशान माथे की लकीरें कर रहीं थीं, चेहरे पर नक़ाब बांधे वे एक दूसरे को हैरत से देखते हैं...
मैं भी उन्हें घूर ही रहा था कि तभी अचानक मेरे दाएं हाथ पर खड़े तीसरे आदमी की तरफ़ से हरक़त होती है... और मेरी आंखों की पुतलियों उस दिशा में घूमती हैं...
TO BE CONTINUED...
©IVANMAXIMUSEDWIN.