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धार्मिक अज्ञान

31 May 2023

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बात कुछ दिनों पहले की है मैं अपने एक मित्र के यहां एक कार्यक्रम में गया हुआ था वहां पर भोजन करते समय मेरा एक सज्जन व्यक्ति से वैचारिक मतभेद हो गया मतभेद कुछ इस प्रकार आरंभ हुआ...…..
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🔸🔶 अजनबी और मेरे बीच का संवाद 🔶🔸
अजनबी:- क्या आप वेद पाठ करते हैं?
मैं:- नहीं, लेकिन मैं गीता का पाठ करता हूं।
 अजनबी:- आप किस वर्ण में आते हैं?
 मैं:- शुद्र। ( तब तक मुझे नहीं पता था कि मैं क्षत्रिय  वर्ण में आता हूं।)
अजनबी:- तब तो आपको गीता नहीं पढ़नी चाहिए।
मैं:- क्यों?
अजनबी:- हमारे धर्म ग्रंथों में लिखा है।
मैं:- कहां लिखा है?
अजनबी:- एक उदाहरण देते हुए...
" ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी,
ये सब तराड़ के अधिकारी"
मैं:- और अगर मैं कहूं कि मैं शुद्र  नहीं हूं तो?
अजनबी:- आप हैं। अच्छा  तो आप अपने पिता का वर्ण बताइए?
मैं:- शुद्र।
अजनबी:- तो आपका जन्म उनके वर्ण में हुआ है तो आप भी उन्ही के वर्ण के हुए।
मैं:- ऐसा हमारे किस धार्मिक ग्रंथ में लिखा है, कि मेरा वर्ण मेरे जन्म से ही निश्चित हुआ?अजनबी:- गीता में।
मैं:- किस अध्याय में?

अजनबी व्यक्ति उत्तर देने में असमर्थ था।
इसके पश्चात उन्होंने इस विषय पर मतभेद नहीं किया।
 कुछ समय पश्चात में अपने घर लौट आया।
बंधुओं, वास्तव में हमारा ऐसा कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है जो यह कहता है कि आपका वर्ण आपके जन्म से ही निश्चित हो गया हमारे ग्रंथ यह जरूर कहते हैं कि ब्राह्मण उच्च वर्ण  है यह नहीं कहते कि ब्राह्मण वर्ण में जन्म लेने वाला प्रत्येक बालक या बालिका ब्राह्मण ही होगा और ना ही यह कहते हैं कि प्रत्येक शुद्र वर्ण में  जन्म लेने वाला बालक या बालिका शुद्र ही होगा।

शास्त्रों द्वारा बताया गया है कि...

" जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते "..........(मनुस्मृति)


अर्थात जन्म से हर मनुष्य शुद्र  होता है और संस्कारों के प्रभावों द्वारा उसका दूसरा जन्म होता है जो उसे अलग-अलग वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र)में विभाजित करता है।
इसे आप निम्न उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं......
जिस प्रकार किसी राजा के कई पुत्र हो सकते हैं और सभी राजकुमार कहलाते हैं किंतु कोई एक होता है जो आवश्यक संस्कार, शौर्य, वीरता आदि को ग्रहण कर राजा  बनता है। उसी प्रकार मनुष्य जन्म से शूद्र होता है और आवश्यक संस्कार, व्यवहार आदि  ग्रहण कर उच्च वर्ण में आसीन होता है।
इस तरह ‘मनु स्मृति’ पर आरोप लगाना कि ‘मनु स्मृति’ ने हिंदू धर्म को वर्णों में विभाजित कर एक गंभीर अपराध किया है, गलत होगा।
आप ही बताइए कि यदि आपका पड़ोसी, शिक्षक की पढ़ाई कर ‘शिक्षक’ बन जाता है और आप अनपढ़ रह जाते हैं तो इसमें उसका क्या दोष? आपको यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि वह क्यों शिक्षक बन गया उसे नहीं बनना चाहिए था मुझे बनना चाहिए था।
तो आप क्यों शिक्षक नहीं बन पाए?  इसमें आपका दोष क्या?

यही कि आपने शिक्षक बनने के लिए उन आयामों का पालन नहीं किया जो आप को शिक्षक के पद पर बैठा सके। वहीं आपके पड़ोसी ने शिक्षक बनने के लिए उन आयामों का पालन किया जो उसे शिक्षक बना सकते थे और वह शिक्षक बना।
भारत की आजादी (सन् 1947) के बाद जो संविधान लागू हुआ उसने भारत के में जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य को जन्मजात उनके पूर्वजों के वर्णों में शामिल कर दिया। एक बात अवश्य भारत के संविधान में स्पष्ट है कि यहां के प्रत्येक व्यक्ति को धर्मनिरपेक्षता का अधिकार  प्राप्त है। किंतु क्या हिंदू धर्म में होने के बावजूद आपको अपना वर्ण चुनने का अधिकार प्राप्त है?

 आप पाएंगे कि मेरा जवाब एक "निश्चित हां"में है। आप हिंदू धर्म में "गायत्री की गुरु दीक्षा" लेकर अपना वर्ण परिवर्तित कर सकते हैं।अब आप में से बहुतों के मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि हम अपना वर्ण परिवर्तन क्यों करें?इसे आप इस प्रकार समझ सकते हैं......
अगर मैं कहूं कि आपके इस सवाल का जवाब आप स्वयं ही देंगे तो शायद आपको आश्चर्य होगा।
अच्छा बताइए कि आप के पिता क्या काम करते हैं? मान लिया कि आपके पिता एक इंजीनियर है तो क्या आप भी इंजीनियर ही बनेंगे? मेरा अनुमान है कि आप में से बहुतों का मत होगा कि नहीं हम इंजिनियर बन भी सकते हैं और नहीं भी।
 आप कहेंगे कि यदि हम इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण करेंगे तो इंजीनियर बनेंगे, कानून की शिक्षा ग्रहण करेंगे तो कानून के क्षेत्र में जाएंगे, डॉक्टरी की शिक्षा ग्रहण करेंगे तो डॉक्टर बनेंगे। 
तो बताइए आपने इंजीनियरिंग की पढ़ाई क्यों नहीं कि? 
आप इंजीनियर क्यों नहीं बने?
 आप डॉक्टर ही क्यों बने?
क्या आपके पिता को आपका डॉक्टर बनना अच्छा लगा होगा?
आपका  उत्तर होगा कि मुझे अपने पिता के इंजीनियरिंग का  ज्ञान नहीं प्राप्त हुआ, और मैंने डॉक्टरी की पढ़ाई की इसलिए मैं डॉक्टर बना।
 आप कहेंगे कि मेरे पिता ने जिसकी शिक्षा ग्रहण की वह उन्हें प्राप्त हुआ, और जिसकी शिक्षा मैंने ग्रहण की वह  मुझे प्राप्त हुआ।
 याद रखिए ब्राह्मण एक उच्च वर्ण  हैं और शूद्र एक निम्न वर्ण।आपको चाहिए कि आप उच्च संस्कारों को ग्रहण कर उच्च वर्ण  में शामिल हो और अपने कुल का कल्याण करें।
आप ही सोचिए एक इंजीनियर पिता का डॉक्टर पुत्र/पुत्री अपने नाम के पहले डॉक्टर क्यों लगाता है?  क्योंकि यह उसकी शिक्षा की पहचान है जो उसे गौरवान्वित करता है।
 तो आप भी कुछ संस्कारों को ग्रहण कर अपने आपको और अपने कुल को गौरवान्वित करें। आप उच्च वर्ण  में शामिल हो क्योंकि उच्च वर्ण पहचान है आपके उच्च गुणों का।
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हिंदू धर्म में वर्ण व्यवस्था
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मैं हरिओम आपके समक्ष शीर्षक #####_____हिंदू धर्म में वर्ण व्यवस्था_____#### पर एक लेख प्रस्तुत कर रहा हूं..... मेरे पास लिखने की कला नहीं है, अगर पाठकों को मेरे इस लेख में कोई त्रुटि मिले तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं।