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Who are you shekhar shrivastav

24 December 2023

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  अपने पापा की बहुत प्यारी लड़की जिसका नाम आकांक्षा है।

आकांक्षा अपने घर में सबसे छोटी लड़की होती है। आकांक्षा पढ़ने में सबसे ज्यादा होशियार और बहुत मजाकिया लड़की होती है।

आकांक्षा के घर में उसके माता-पिता और आकांक्षा रहते हैं। आकांक्षा फैशन डिजाइनर में लास्ट ईयर कर रही है।

आकांक्षा के पापा का सपना है क्योंकि बड़ी दुकान हो। उसके पापा का सपना पूरा करने के लिए आकांक्षा फैशन डिजाइनर कर रही है।

आकांक्षा का सपना है। उसके माता-पिता का सपना पूरा करना और उनको अच्छी लाइफ देना। आकांक्षा बहुत खूबसूरत होती है। इसीलिए उसके कॉलेज के सारे लड़के उसे पर मरते हैं।

आकांक्षा हमेशा खुश रहती है। अगर उसके आसपास कोई दुखी हो तो उसे भी खुश कर देती है। जब आकांक्षा का लास्ट ईयर पूरा होता है। तब उसे कहीं जगह पर से ऑफर आते हैं जोब के लिए।

आकांक्षा अपनी सिटी में फर्स्ट रैंक लाई थी। इसीलिए उसे बड़ी-बड़ी जगह पर से नौकरी के लिए जॉब आने लगे, मगर वह कहीं भी अप्लाई नहीं करती।

एक बार उससे एसटी कंपनी में से जब का ऑफर आता है। वह इस ऑफर को इग्नोर करती है।

जब यह बात उसके पापा को पता चले उसके पापा ने कहा, "तुम इस जॉब को क्यों नहीं एक्सेप्ट कर रही?"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "पापा, मेरे पास अभी बहुत सारे जॉब हैं, मुझे पता नहीं चल रहा है मैं किस में अप्लाई करूं, तो मैं अभी कोई डिसीजन नहीं लेना चाहती!"

उसके पापा ने आकांक्षा से कहा, "देखो बेटा, मेरा भी सपना था कि मैं एक बड़ा फैशन डिजाइनर बनूं, लेकिन मैं नहीं बन सका, यह बात है तुम्हें पता ही होगी, लेकिन मेरा एक और सपना भी है कि मैं तुम्हें फैशन डिजाइनर बनाऊं और मैं चाहता था कि मेरी जॉब एसटी कंपनी में हो, लेकिन मेरी जब वहां पर नहीं हो सकी। अब जब यह तुम्हें मौका मिल रहा है, तो मैं चाहता हूं कि तुम यह जॉब करो।"

आकांक्षा रहती है उसके पापा से ठीक है, "पापा, मैं जॉब करूं, क्या आपके सपने पूरा करने के लिए।"

आकांक्षा के पापा बहुत खुश हो जाते हैं जब आकांक्षा हां कर देती है जॉब के लिए।

आकांक्षा नेक्स्ट डे अपना इंटरव्यू देने एसटी कंपनी में जाती है। वह इंटरव्यू देकर वापस आती है। घर जाकर उसके पापा पूछते हैं, "इंटरव्यू कैसा गया बेटा?"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "पापा, इंटरव्यू तो अच्छा गया, मगर मुझे नहीं लगता मेरा सिलेक्शन हो पाएगा। क्योंकि वहां पर मेरे जैसे भेजा था टैलेंटेड लोग मौजूद थे। देखते हैं अब मेरा सिलेक्शन होगा या नहीं, उन्होंने कहा है। 2 दिन में जवाब देंगे, मैं सेलेक्ट हो जाऊंगी तो अच्छी बात है, वरना कोई और जोब देख लेंगे।"

आकांक्षा के पापा कहते हैं, "मेरी बेटी इतनी ज्यादा टैलेंटेड है, उसे जरूर जोब मिल जाएगी।"

2 दिन बाद कंपनी की तरफ से आकांक्षा को मेल आता है। उसमें लिखा हुआ होता है, "यू आर सिलेक्टेड, आकांक्षा।"

आकांक्षा सेलेक्ट हो गई, यह बात उसके मम्मी पापा को बोलती है। उसकी मम्मी पापा कहते हैं, "गुड वर्क, माय डॉटर।"

आकांक्षा की मां कहती है, "इस बात पर तो मिठाई बनती है।"

आकांक्षा के पापा कहते हैं, "मुंह मीठा करने वाली नहीं, यह बात एंजॉय करने वाली है।"

आकांक्षा के पापा आकांक्षा की मां को और आकांक्षा को लेकर होटल में खाने जाते हैं।

वह खाने के बाद आइसक्रीम खाते हैं और मूवी देखने जाते हैं। सब लोग आकांक्षा की जॉब को लेकर बहुत खुश थे।

अगले दिन आकांक्षा अपनी जॉब के लिए कंपनी में जाती है। वह कंपनी बहुत बड़ी होती है।

आकांक्षा का बस बहुत ही खड़ूस है। सारा काम आकांक्षा से करवाता है। मगर आकांक्षा कुछ नहीं कहती। वह बस चुपचाप अपना काम ही करती है।

2 साल में उसे कंपनी का सीईओ बदल जाता है। उस कंपनी का नया सीईओ शेखर श्रीवास श्रीवास्तव है।

शेखर श्रीवास्तव बहुत ही खड़ूस होता है। वह अकडू खड़ूस होने के साथ-साथ वह एक प्लेबॉय भी होता है।

मगर इस बात की किसी को खबर नहीं होती। शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा का स्कूल का एक क्लासमेट होता है। मगर यह बात आकांक्षा को पता नहीं होती।

स्कूल में दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। मगर वह क्लास 7 से ही बिछड़ जाते हैं। यह बात बहुत पुरानी हो गई थी, इसीलिए आकांक्षा को यह बात पता नहीं होती कि उसकी फ्रेंड भी होता है।

आकांक्षा की जॉब एसटी कंपनी में होती है। जब यह बात शेखर श्रीवास्तव को पता होती है, तब शेखर श्रीवास्तव इस कंपनी को खरीद लेता है।

उसे कंपनी खरीदने में 2 साल लग जाते हैं। शेखर श्रीवास्तव को पता नहीं होता कि आकांक्षा उसको भूल चुकी है, उसको याद भी नहीं उसका कोई फ्रेंड भी था।

शेखर श्रीवास्तव जब कंपनी में पहली बार आता है, तब वह आकांक्षा को देखकर बहुत खुश होता है।

मगर आकांक्षा सिर्फ उसे सीईओ की नजर से देखती है। "मेरा दिल तुझे," आकांक्षा को पता नहीं होता कि वह उसका कोई फ्रेंड है।

शेखर श्रीवास्तव जब यह बात नोटिस करता है कि आकांक्षा उसे कोई अहमियत नहीं देती, यह देखकर शेखर श्रीवास्तव को बहुत गुस्सा आता है।

शेखर श्रीवास्तव अपने दिल में कहता है, "उसने मुझे पहचाना नहीं? मैं इसे याद नहीं हूं अब। मैंने इसके लिए यह पूरी कंपनी का खरीद लिया। और यह मुझे पहचान भी नहीं रही है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा को अपने केबिन में आने के लिए कहता है। आकांक्षा उसके केबिन में जाती है और कहती है, "हेलो सर, आपको मुझसे कोई काम था?"

शेखर श्रीवास्तव उसे गुस्से में कहता है, "तुम मेरे सामने इतना नाटक क्यों कर रही हो आकांक्षा? क्या तुम सच में मुझे नहीं जानती? या फिर नाटक कर रही हो भूलने का?"

आकांक्षा उससे कहती है, "सर, आप क्या कह रहे हैं? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा। मैं कैसे आपको बोल सकती हूं जब कि मैं आपसे पहली बार मिल रही हूं।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "हम पहली बार नहीं मिल रहे हैं, तुम्हें याद नहीं है क्या सच में?" 

आकांक्षा रहती है, "क्या मैं आपके साथ पढ़ती थी याद नहीं कि मेरे साथ कोई शेखर श्रीवास्तव नाम का इंसान भी पड़ता था।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "मैं श्रीनू तुम्हें याद नहीं किया? तुम मुझे सीनू नाम से बुलाया करती थी इसलिए मैंने अपना कोई नाम नहीं बताया तुम्हें।"

आकांक्षा शहर से कहती है, "हां सर, मुझे याद आया। आप श्रीनू हो। मगर श्रीनू तो आना था और मैं सोने शेखर श्रीवास्तव का तो एक बड़ी फैमिली है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "जब मैं स्कूल छोड़ी उसके बाद मुझे एक फैमिली ने अडॉप्ट कर लिया।वह फैमिली बहुत अमीर थी। उनके फैमिली में एक भी बच्चा नहीं था। इसीलिए उन्होंने अनाथालय में से किसी एक बच्चे को अडॉप्ट करने का सोचा। और वह जब मुझसे मिले तो उन्होंने कहा कि वह मुझे अडॉप्ट करेंगे। मेरे पापा यानी नरेश श्रीवास्तव ने मेरा खर्चा उठाया और मुझे पढ़ा लिखा कर एक अच्छा बिजनेसमैन बनाया। वह एक बहुत अच्छे इंसान हैं। साथ ही साथ उनकी पत्नी  शिरीसा श्रीवास्तव बहुत अच्छी पत्नी होने के साथ-साथ एक अच्छी मां भी है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है,"मुझे तुम्हारी बहुत याद आती थी। मगर अब देखो तुम तो मुझे भूल ही गई हो। मैं क्या इतना फालतू हूं तुम्हारे लिए कि तुम मुझे भूल ही गई।"

आकांक्षा कहती है, "ऐसी कोई बात नहीं है, हमको मिले हुए बहुत ऐसा हो गया, इसलिए मुझे याद नहीं था।"

शेखर आकांक्षा से कहता है, "तुम पहले जैसे ही खूबसूरत, मासूम और इंटेलिजेंट हो, अभी भी।"

आकांक्षा कहती है, "तुम्हें शक था क्या? पहले में तो हमेशा से ही ऐसी हूं।" शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "हां मेरी मां, पहले मुझे पूरा यकीन था तुम पागल हो, अब तुमने यह कहकर साबित कर ही दिया है कि तुम सबसे ज्यादा पागल हो।"

आकांक्षा रहती है, "मैं पागल नहीं हूं, तुम हो पागल, बहुत बड़े पागल।" शेखर श्रीवास्तव का कैंसर से कहता है, "सॉरी, मैं पागल हूं, बस तुम बहुत इंटेलिजेंट हो।"

आकांक्षा शहर से कहती है, "हम अभी ऑफिस में हैं, तो हंसी मजाक करने के मूड में बात मत करो। तुम अभी मेरे बस हो। हमें से बात नहीं कर सकते यहां पर। अगर कोई काम की बात होगी तो बोलो वरना मैं जाती हूं, मेरा काम बहुत पेंडिंग है।"

शेखर श्रीवास्तव उसे कहता है, "कोई काम नहीं है, तुम जा सकती हो।"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव के केबिन से चली जाती है, और उसके केबिन पर जाकर काम करती है।

शाम को आकांक्षा घर जाती है। उसके पापा उसे कहते हैं, "बेटा, मैंने सुना है तुम्हारा सीईओ चेंज हो गया है।"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "हां पापा, पहले वाले सीईओ रिटायर हो गए हैं, और नए सीईओ शेखर श्रीवास्तव है।"

उसके पापा से आकांक्षा रहती है, "पापा, आपको याद है, मेरे साथ स्कूल में मेरा एक फ्रेंड पड़ता था, जिसका नाम श्रीनू था। वही हमारे कंपनी का नया सीईओ है।"

वह बहुत अच्छा बॉस है। उसका पापा कहता है, "यह तो बहुत अच्छी बात है, तुम्हारा फ्रेंड ही तुम्हारा बॉस है।"

6 महीने बाद आकांक्षा का प्रमोशन हो जाता है, और वह कंपनी की एमडी बन जाती है। आकांक्षा अपनी लाइफ में बहुत सक्सेसफुल वूमेन बन जाती है।

उसको लगता है कि यह सब उसके टैलेंट का नतीजा है, मगर इसके पीछे की वजह से शेखर श्रीवास्तव होता है।

आकांक्षा को यह पता नहीं होता कि शेखर श्रीवास्तव से प्यार करता है, मगर आकांक्षा सिर्फ उसे अपने फ्रेंड की नजर से देखती है।

एक दिन शाम में आकांक्षा अपनी कर लेकर अपने घर तक जाती है। हाईवे पर एक कार एक्सीडेंट होता है, आकांशा उतरती है।

आकांक्षा उसे इंसान को अस्पताल लेकर जाती है, और उसके दवा का खाने का सारा खर्चा वह पे करती है।

डॉक्टर मित्तल आकर पूछता है, "इन बुजुर्ग इंसान के साथ कौन है?"

आकांक्षा रहती है, "मैं उनके साथ हूं, क्या हुआ?" डॉक्टर मित्तल जाकर कहते हैं, "आप इनकी क्या लगती है, आपको उनका गार्जियंस फॉर्म साइन करना होगा।"

आकांक्षा रहती है, "मैं इनकी कोई नहीं लगती, लेकिन मैं इनका फोन साइन कर देता हूं।"

डॉक्टर मित्तल यह देखकर इंप्रेस हो जाते हैं, कि इस लड़की का में बुजुर्ग इंसान से कोई रिश्ता नहीं था फिर भी यह इनके जवाबदारी ले रही है। डॉक्टर मित्तल यहीं से आकांक्षा के दीवाने हो जाते हैं।

डॉक्टर मित्तल एक हैंडसम, इंटेलिजेंट, और एक कामयाब डॉक्टर होते हैं। डॉक्टर मित्तल को आकांक्षा बहुत पसंद आती है।

आकांक्षा डॉक्टर को अपना नंबर देकर जाती है। जब यह बुजुर्ग इंसान होश में आए तो आकांक्षा को कॉल कर दे और उनका पेमेंट मैं ही दूंगी ऐसा कह कर आकांक्षा चली जाती है अपने घर।

आकांक्षा जब अपने घर पहुंचती है, उसके मां कहती हैं, "बेटा, तुम्हें इतना लेट क्यों हुआ आज?" आकांक्षा उसकी मां से कहती है, "मां, आज एक एक्सीडेंट हो गया था, इसीलिए मैं हूं और बुजुर्ग इंसान को अस्पताल छोड़ने गई थी। इसीलिए मैं लेट हो गई।"

आकांक्षा की मां कहती हैं, "ठीक है बेटा, आकर खा लो।" आकांक्षा खाना खाकर अपना काम करती है।

काम करते-करते कंस को डॉक्टर मित्तल की याद आती है। वह बहुत हैंडसम है, इसलिए आकांक्षा उसके बारे में सोच सोच करती है।

आकाश अपने दिन में रहती है। "मैं यह क्या कर रही हूं? मैं डॉक्टर मित्र के बारे में इतना क्यों सोच रही हूं? क्या मुझे उनसे प्यार हो गया है?" फिर आकांक्षा खुद को ही जवाब देती है, "नहीं, मैं प्यार प्यार नहीं करती।"

यहां कौन सा डॉक्टर मित्तल के बारे में, और वहां डॉक्टर मित्तल आकांक्षा के बारे में सोचते हैं।

दोनों ही नहीं मानते कि उनको एक दूसरे से प्यार हो गया है। इसलिए क्योंकि बस एक ही बार मिले हैं और इतना सोच-सोच कर रहे हैं, इसे प्यार तो नहीं कह सकते।

अगली सुबह डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को कॉल करते हैं, और उससे कहते हैं, "हेलो आकांक्षा, आप रात में यहां जी बुजुर्ग को लाई थी, उनको होश आया, वह आपसे मिलना चाह रहे हैं, क्या आप यहां आ सकती है?"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "हां, मैं बस थोड़ी देर में आ रही हूं।" इतना कहकर आकांक्षा अस्पताल के लिए तैयार हो जाती है।

आकांक्षा अस्पताल पहुंचती है तब। वह बुजुर्ग से कहता है, "मेरी मदद करने के लिए शुक्रिया, मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा।"

आकांक्षा उसे बुजुर्ग इंसान से कहती है, "यह एहसान की बात नहीं है, कि बात नहीं है, अगर इंसानी इंसान के काम ना आए तो क्या फायदा जिंदगी का।

अगर आपकी जगह कोई और भी होता तो मैं उसे बचाती। इसीलिए मेरा शुक्र गुजार होने की जरूरत नहीं है आपको।

आप बस अपना ध्यान रखिए। और कुछ चाहिए तो मुझे कह देना, मैं लेकर आऊंगी।" वह बुजुर्ग कहता है, "बेटा, तुमने मेरी मदद की इतना ही मेरे लिए बहुत है, अब मुझे कुछ नहीं चाहिए।"

आकांक्षा रहती है, "ठीक है, आप अपना ध्यान रखिए, मुझे ऑफिस जाना है।" इतना कहकर आकांक्षा रूम से बाहर आती है। वह देखती है डॉक्टर मित्तल चुपके से उनकी बातें सुन रहे थे।

और वह डॉक्टर मित्तल को मजाकिया मूड में पूछती है, "डॉक्टर मित्तल, आपको पता नहीं है किसी की चुपके से बातें सुनना गलत बात है।"

डॉ मित्तल आकांक्षा से हंसते हुए कहते हैं, "मैं बस अभी आया हूं, मैं तुम्हारी बातें नहीं सुन रहा था।"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "ठीक है, यह बुजुर्ग इंसान कब तक डिस्चार्ज होंगे?"

डॉ मित्तल आकांक्षा से कहता है, "बस एक-दो घंटे में इनको डिस्चार्ज कर देंगे। आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "ठीक है, फिर इनका वील बना के मुझे दे दो, मैं पे कर दूंगी।"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "इसकी कोई जरूरत नहीं है, का बिल ऑलरेडी पे हो चुका है।"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती हैं, "इनका बिल मिनट पर नहीं कर फिर किसने कर?"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "इंका बिल मैं पे करा। आकांक्षा कहती है, "डॉक्टर, कब से मरीज का बिल पे करने लगे?"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "जब से इंडिया की पब्लिक मरीज का बिल पे करने लगी तब से।"

आकांक्षा अस्पताल से उसके ऑफिस चली जाती है।

ऑफिस में शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से पूछता है, "आकांक्षा, तुम्हें आज इतनी देर क्यों हो गई?"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव से कहती है, "कल मैं जब घर जा रही थी, तब रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया था। मैं उसे एक्सीडेंट कार के पास गई। तो मैंने देखा एक बुजुर्ग आदमी बहुत बुरी हालत में वहां पड़ा हुआ था।"

"मैं उनको अस्पताल छोड़ने गई थी, और आज ऑफिस में आते हुए, मैं अस्पताल में उनसे मिलने गई थी, इसलिए मुझे देर हो गई।"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव से कहती है, "लेट आने के लिए माफी चाहती हूं।"

शेखर श्रीवास्तव हावड़ा आकांक्षा से कहता है, "कोई बात नहीं है, तुम जाकर अपना काम करो।"

आकांक्षा अपने केबिन में जाकर उसका काम करती है। जब लंच टाइम होता है तब शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा को मैसेज करता है, "चलो बाहर कहीं खाने चले।"

शेखर श्रीवास्तव और आकांक्षा फाइव स्टार होटल में खाने जाते हैं। वहां पर ही डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को शेखर श्रीवास्तव के साथ देखते हैं।

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को शेखर श्रीवास्तव के साथ देखकर जलते हैं।अपने पापा की बहुत प्यारी लड़की जिसका नाम आकांक्षा है।

आकांक्षा अपने घर में सबसे छोटी लड़की होती है। आकांक्षा पढ़ने में सबसे ज्यादा होशियार और बहुत मजाकिया लड़की होती है।

आकांक्षा के घर में उसके माता-पिता और आकांक्षा रहते हैं। आकांक्षा फैशन डिजाइनर में लास्ट ईयर कर रही है।

आकांक्षा के पापा का सपना है क्योंकि बड़ी दुकान हो। उसके पापा का सपना पूरा करने के लिए आकांक्षा फैशन डिजाइनर कर रही है।

आकांक्षा का सपना है। उसके माता-पिता का सपना पूरा करना और उनको अच्छी लाइफ देना। आकांक्षा बहुत खूबसूरत होती है। इसीलिए उसके कॉलेज के सारे लड़के उसे पर मरते हैं।

आकांक्षा हमेशा खुश रहती है। अगर उसके आसपास कोई दुखी हो तो उसे भी खुश कर देती है। जब आकांक्षा का लास्ट ईयर पूरा होता है। तब उसे कहीं जगह पर से ऑफर आते हैं जोब के लिए।

आकांक्षा अपनी सिटी में फर्स्ट रैंक लाई थी। इसीलिए उसे बड़ी-बड़ी जगह पर से नौकरी के लिए जॉब आने लगे, मगर वह कहीं भी अप्लाई नहीं करती।

एक बार उससे एसटी कंपनी में से जब का ऑफर आता है। वह इस ऑफर को इग्नोर करती है।

जब यह बात उसके पापा को पता चले उसके पापा ने कहा, "तुम इस जॉब को क्यों नहीं एक्सेप्ट कर रही?"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "पापा, मेरे पास अभी बहुत सारे जॉब हैं, मुझे पता नहीं चल रहा है मैं किस में अप्लाई करूं, तो मैं अभी कोई डिसीजन नहीं लेना चाहती!"

उसके पापा ने आकांक्षा से कहा, "देखो बेटा, मेरा भी सपना था कि मैं एक बड़ा फैशन डिजाइनर बनूं, लेकिन मैं नहीं बन सका, यह बात है तुम्हें पता ही होगी, लेकिन मेरा एक और सपना भी है कि मैं तुम्हें फैशन डिजाइनर बनाऊं और मैं चाहता था कि मेरी जॉब एसटी कंपनी में हो, लेकिन मेरी जब वहां पर नहीं हो सकी। अब जब यह तुम्हें मौका मिल रहा है, तो मैं चाहता हूं कि तुम यह जॉब करो।"

आकांक्षा रहती है उसके पापा से ठीक है, "पापा, मैं जॉब करूं, क्या आपके सपने पूरा करने के लिए।"

आकांक्षा के पापा बहुत खुश हो जाते हैं जब आकांक्षा हां कर देती है जॉब के लिए।

आकांक्षा नेक्स्ट डे अपना इंटरव्यू देने एसटी कंपनी में जाती है। वह इंटरव्यू देकर वापस आती है। घर जाकर उसके पापा पूछते हैं, "इंटरव्यू कैसा गया बेटा?"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "पापा, इंटरव्यू तो अच्छा गया, मगर मुझे नहीं लगता मेरा सिलेक्शन हो पाएगा। क्योंकि वहां पर मेरे जैसे भेजा था टैलेंटेड लोग मौजूद थे। देखते हैं अब मेरा सिलेक्शन होगा या नहीं, उन्होंने कहा है। 2 दिन में जवाब देंगे, मैं सेलेक्ट हो जाऊंगी तो अच्छी बात है, वरना कोई और जोब देख लेंगे।"

आकांक्षा के पापा कहते हैं, "मेरी बेटी इतनी ज्यादा टैलेंटेड है, उसे जरूर जोब मिल जाएगी।"

2 दिन बाद कंपनी की तरफ से आकांक्षा को मेल आता है। उसमें लिखा हुआ होता है, "यू आर सिलेक्टेड, आकांक्षा।"

आकांक्षा सेलेक्ट हो गई, यह बात उसके मम्मी पापा को बोलती है। उसकी मम्मी पापा कहते हैं, "गुड वर्क, माय डॉटर।"

आकांक्षा की मां कहती है, "इस बात पर तो मिठाई बनती है।"

आकांक्षा के पापा कहते हैं, "मुंह मीठा करने वाली नहीं, यह बात एंजॉय करने वाली है।"

आकांक्षा के पापा आकांक्षा की मां को और आकांक्षा को लेकर होटल में खाने जाते हैं।

वह खाने के बाद आइसक्रीम खाते हैं और मूवी देखने जाते हैं। सब लोग आकांक्षा की जॉब को लेकर बहुत खुश थे।

अगले दिन आकांक्षा अपनी जॉब के लिए कंपनी में जाती है। वह कंपनी बहुत बड़ी होती है।

आकांक्षा का बस बहुत ही खड़ूस है। सारा काम आकांक्षा से करवाता है। मगर आकांक्षा कुछ नहीं कहती। वह बस चुपचाप अपना काम ही करती है।

2 साल में उसे कंपनी का सीईओ बदल जाता है। उस कंपनी का नया सीईओ शेखर श्रीवास श्रीवास्तव है।

शेखर श्रीवास्तव बहुत ही खड़ूस होता है। वह अकडू खड़ूस होने के साथ-साथ वह एक प्लेबॉय भी होता है।

मगर इस बात की किसी को खबर नहीं होती। शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा का स्कूल का एक क्लासमेट होता है। मगर यह बात आकांक्षा को पता नहीं होती।

स्कूल में दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। मगर वह क्लास 7 से ही बिछड़ जाते हैं। यह बात बहुत पुरानी हो गई थी, इसीलिए आकांक्षा को यह बात पता नहीं होती कि उसकी फ्रेंड भी होता है।

आकांक्षा की जॉब एसटी कंपनी में होती है। जब यह बात शेखर श्रीवास्तव को पता होती है, तब शेखर श्रीवास्तव इस कंपनी को खरीद लेता है।

उसे कंपनी खरीदने में 2 साल लग जाते हैं। शेखर श्रीवास्तव को पता नहीं होता कि आकांक्षा उसको भूल चुकी है, उसको याद भी नहीं उसका कोई फ्रेंड भी था।

शेखर श्रीवास्तव जब कंपनी में पहली बार आता है, तब वह आकांक्षा को देखकर बहुत खुश होता है।

मगर आकांक्षा सिर्फ उसे सीईओ की नजर से देखती है। "मेरा दिल तुझे," आकांक्षा को पता नहीं होता कि वह उसका कोई फ्रेंड है।

शेखर श्रीवास्तव जब यह बात नोटिस करता है कि आकांक्षा उसे कोई अहमियत नहीं देती, यह देखकर शेखर श्रीवास्तव को बहुत गुस्सा आता है।

शेखर श्रीवास्तव अपने दिल में कहता है, "उसने मुझे पहचाना नहीं? मैं इसे याद नहीं हूं अब। मैंने इसके लिए यह पूरी कंपनी का खरीद लिया। और यह मुझे पहचान भी नहीं रही है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा को अपने केबिन में आने के लिए कहता है। आकांक्षा उसके केबिन में जाती है और कहती है, "हेलो सर, आपको मुझसे कोई काम था?"

शेखर श्रीवास्तव उसे गुस्से में कहता है, "तुम मेरे सामने इतना नाटक क्यों कर रही हो आकांक्षा? क्या तुम सच में मुझे नहीं जानती? या फिर नाटक कर रही हो भूलने का?"

आकांक्षा उससे कहती है, "सर, आप क्या कह रहे हैं? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा। मैं कैसे आपको बोल सकती हूं जब कि मैं आपसे पहली बार मिल रही हूं।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "हम पहली बार नहीं मिल रहे हैं, तुम्हें याद नहीं है क्या सच में?" 

आकांक्षा रहती है, "क्या मैं आपके साथ पढ़ती थी याद नहीं कि मेरे साथ कोई शेखर श्रीवास्तव नाम का इंसान भी पड़ता था।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "मैं श्रीनू तुम्हें याद नहीं किया? तुम मुझे सीनू नाम से बुलाया करती थी इसलिए मैंने अपना कोई नाम नहीं बताया तुम्हें।"

आकांक्षा शहर से कहती है, "हां सर, मुझे याद आया। आप श्रीनू हो। मगर श्रीनू तो आना था और मैं सोने शेखर श्रीवास्तव का तो एक बड़ी फैमिली है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "जब मैं स्कूल छोड़ी उसके बाद मुझे एक फैमिली ने अडॉप्ट कर लिया।वह फैमिली बहुत अमीर थी। उनके फैमिली में एक भी बच्चा नहीं था। इसीलिए उन्होंने अनाथालय में से किसी एक बच्चे को अडॉप्ट करने का सोचा। और वह जब मुझसे मिले तो उन्होंने कहा कि वह मुझे अडॉप्ट करेंगे। मेरे पापा यानी नरेश श्रीवास्तव ने मेरा खर्चा उठाया और मुझे पढ़ा लिखा कर एक अच्छा बिजनेसमैन बनाया। वह एक बहुत अच्छे इंसान हैं। साथ ही साथ उनकी पत्नी  शिरीसा श्रीवास्तव बहुत अच्छी पत्नी होने के साथ-साथ एक अच्छी मां भी है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है,"मुझे तुम्हारी बहुत याद आती थी। मगर अब देखो तुम तो मुझे भूल ही गई हो। मैं क्या इतना फालतू हूं तुम्हारे लिए कि तुम मुझे भूल ही गई।"

आकांक्षा कहती है, "ऐसी कोई बात नहीं है, हमको मिले हुए बहुत ऐसा हो गया, इसलिए मुझे याद नहीं था।"

शेखर आकांक्षा से कहता है, "तुम पहले जैसे ही खूबसूरत, मासूम और इंटेलिजेंट हो, अभी भी।"

आकांक्षा कहती है, "तुम्हें शक था क्या? पहले में तो हमेशा से ही ऐसी हूं।" शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "हां मेरी मां, पहले मुझे पूरा यकीन था तुम पागल हो, अब तुमने यह कहकर साबित कर ही दिया है कि तुम सबसे ज्यादा पागल हो।"

आकांक्षा रहती है, "मैं पागल नहीं हूं, तुम हो पागल, बहुत बड़े पागल।" शेखर श्रीवास्तव का कैंसर से कहता है, "सॉरी, मैं पागल हूं, बस तुम बहुत इंटेलिजेंट हो।"

आकांक्षा शहर से कहती है, "हम अभी ऑफिस में हैं, तो हंसी मजाक करने के मूड में बात मत करो। तुम अभी मेरे बस हो। हमें से बात नहीं कर सकते यहां पर। अगर कोई काम की बात होगी तो बोलो वरना मैं जाती हूं, मेरा काम बहुत पेंडिंग है।"

शेखर श्रीवास्तव उसे कहता है, "कोई काम नहीं है, तुम जा सकती हो।"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव के केबिन से चली जाती है, और उसके केबिन पर जाकर काम करती है।

शाम को आकांक्षा घर जाती है। उसके पापा उसे कहते हैं, "बेटा, मैंने सुना है तुम्हारा सीईओ चेंज हो गया है।"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "हां पापा, पहले वाले सीईओ रिटायर हो गए हैं, और नए सीईओ शेखर श्रीवास्तव है।"

उसके पापा से आकांक्षा रहती है, "पापा, आपको याद है, मेरे साथ स्कूल में मेरा एक फ्रेंड पड़ता था, जिसका नाम श्रीनू था। वही हमारे कंपनी का नया सीईओ है।"

वह बहुत अच्छा बॉस है। उसका पापा कहता है, "यह तो बहुत अच्छी बात है, तुम्हारा फ्रेंड ही तुम्हारा बॉस है।"

6 महीने बाद आकांक्षा का प्रमोशन हो जाता है, और वह कंपनी की एमडी बन जाती है। आकांक्षा अपनी लाइफ में बहुत सक्सेसफुल वूमेन बन जाती है।

उसको लगता है कि यह सब उसके टैलेंट का नतीजा है, मगर इसके पीछे की वजह से शेखर श्रीवास्तव होता है।

आकांक्षा को यह पता नहीं होता कि शेखर श्रीवास्तव से प्यार करता है, मगर आकांक्षा सिर्फ उसे अपने फ्रेंड की नजर से देखती है।

एक दिन शाम में आकांक्षा अपनी कर लेकर अपने घर तक जाती है। हाईवे पर एक कार एक्सीडेंट होता है, आकांशा उतरती है।

आकांक्षा उसे इंसान को अस्पताल लेकर जाती है, और उसके दवा का खाने का सारा खर्चा वह पे करती है।

डॉक्टर मित्तल आकर पूछता है, "इन बुजुर्ग इंसान के साथ कौन है?"

आकांक्षा रहती है, "मैं उनके साथ हूं, क्या हुआ?" डॉक्टर मित्तल जाकर कहते हैं, "आप इनकी क्या लगती है, आपको उनका गार्जियंस फॉर्म साइन करना होगा।"

आकांक्षा रहती है, "मैं इनकी कोई नहीं लगती, लेकिन मैं इनका फोन साइन कर देता हूं।"

डॉक्टर मित्तल यह देखकर इंप्रेस हो जाते हैं, कि इस लड़की का में बुजुर्ग इंसान से कोई रिश्ता नहीं था फिर भी यह इनके जवाबदारी ले रही है। डॉक्टर मित्तल यहीं से आकांक्षा के दीवाने हो जाते हैं।

डॉक्टर मित्तल एक हैंडसम, इंटेलिजेंट, और एक कामयाब डॉक्टर होते हैं। डॉक्टर मित्तल को आकांक्षा बहुत पसंद आती है।

आकांक्षा डॉक्टर को अपना नंबर देकर जाती है। जब यह बुजुर्ग इंसान होश में आए तो आकांक्षा को कॉल कर दे और उनका पेमेंट मैं ही दूंगी ऐसा कह कर आकांक्षा चली जाती है अपने घर।

आकांक्षा जब अपने घर पहुंचती है, उसके मां कहती हैं, "बेटा, तुम्हें इतना लेट क्यों हुआ आज?" आकांक्षा उसकी मां से कहती है, "मां, आज एक एक्सीडेंट हो गया था, इसीलिए मैं हूं और बुजुर्ग इंसान को अस्पताल छोड़ने गई थी। इसीलिए मैं लेट हो गई।"

आकांक्षा की मां कहती हैं, "ठीक है बेटा, आकर खा लो।" आकांक्षा खाना खाकर अपना काम करती है।

काम करते-करते कंस को डॉक्टर मित्तल की याद आती है। वह बहुत हैंडसम है, इसलिए आकांक्षा उसके बारे में सोच सोच करती है।

आकाश अपने दिन में रहती है। "मैं यह क्या कर रही हूं? मैं डॉक्टर मित्र के बारे में इतना क्यों सोच रही हूं? क्या मुझे उनसे प्यार हो गया है?" फिर आकांक्षा खुद को ही जवाब देती है, "नहीं, मैं प्यार प्यार नहीं करती।"

यहां कौन सा डॉक्टर मित्तल के बारे में, और वहां डॉक्टर मित्तल आकांक्षा के बारे में सोचते हैं।

दोनों ही नहीं मानते कि उनको एक दूसरे से प्यार हो गया है। इसलिए क्योंकि बस एक ही बार मिले हैं और इतना सोच-सोच कर रहे हैं, इसे प्यार तो नहीं कह सकते।

अगली सुबह डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को कॉल करते हैं, और उससे कहते हैं, "हेलो आकांक्षा, आप रात में यहां जी बुजुर्ग को लाई थी, उनको होश आया, वह आपसे मिलना चाह रहे हैं, क्या आप यहां आ सकती है?"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "हां, मैं बस थोड़ी देर में आ रही हूं।" इतना कहकर आकांक्षा अस्पताल के लिए तैयार हो जाती है।

आकांक्षा अस्पताल पहुंचती है तब। वह बुजुर्ग से कहता है, "मेरी मदद करने के लिए शुक्रिया, मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा।"

आकांक्षा उसे बुजुर्ग इंसान से कहती है, "यह एहसान की बात नहीं है, कि बात नहीं है, अगर इंसानी इंसान के काम ना आए तो क्या फायदा जिंदगी का।

अगर आपकी जगह कोई और भी होता तो मैं उसे बचाती। इसीलिए मेरा शुक्र गुजार होने की जरूरत नहीं है आपको।

आप बस अपना ध्यान रखिए। और कुछ चाहिए तो मुझे कह देना, मैं लेकर आऊंगी।" वह बुजुर्ग कहता है, "बेटा, तुमने मेरी मदद की इतना ही मेरे लिए बहुत है, अब मुझे कुछ नहीं चाहिए।"

आकांक्षा रहती है, "ठीक है, आप अपना ध्यान रखिए, मुझे ऑफिस जाना है।" इतना कहकर आकांक्षा रूम से बाहर आती है। वह देखती है डॉक्टर मित्तल चुपके से उनकी बातें सुन रहे थे।

और वह डॉक्टर मित्तल को मजाकिया मूड में पूछती है, "डॉक्टर मित्तल, आपको पता नहीं है किसी की चुपके से बातें सुनना गलत बात है।"

डॉ मित्तल आकांक्षा से हंसते हुए कहते हैं, "मैं बस अभी आया हूं, मैं तुम्हारी बातें नहीं सुन रहा था।"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "ठीक है, यह बुजुर्ग इंसान कब तक डिस्चार्ज होंगे?"

डॉ मित्तल आकांक्षा से कहता है, "बस एक-दो घंटे में इनको डिस्चार्ज कर देंगे। आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "ठीक है, फिर इनका वील बना के मुझे दे दो, मैं पे कर दूंगी।"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "इसकी कोई जरूरत नहीं है, का बिल ऑलरेडी पे हो चुका है।"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती हैं, "इनका बिल मिनट पर नहीं कर फिर किसने कर?"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "इंका बिल मैं पे करा। आकांक्षा कहती है, "डॉक्टर, कब से मरीज का बिल पे करने लगे?"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "जब से इंडिया की पब्लिक मरीज का बिल पे करने लगी तब से।"

आकांक्षा अस्पताल से उसके ऑफिस चली जाती है।

ऑफिस में शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से पूछता है, "आकांक्षा, तुम्हें आज इतनी देर क्यों हो गई?"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव से कहती है, "कल मैं जब घर जा रही थी, तब रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया था। मैं उसे एक्सीडेंट कार के पास गई। तो मैंने देखा एक बुजुर्ग आदमी बहुत बुरी हालत में वहां पड़ा हुआ था।"

"मैं उनको अस्पताल छोड़ने गई थी, और आज ऑफिस में आते हुए, मैं अस्पताल में उनसे मिलने गई थी, इसलिए मुझे देर हो गई।"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव से कहती है, "लेट आने के लिए माफी चाहती हूं।"

शेखर श्रीवास्तव हावड़ा आकांक्षा से कहता है, "कोई बात नहीं है, तुम जाकर अपना काम करो।"

आकांक्षा अपने केबिन में जाकर उसका काम करती है। जब लंच टाइम होता है तब शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा को मैसेज करता है, "चलो बाहर कहीं खाने चले।"

शेखर श्रीवास्तव और आकांक्षा फाइव स्टार होटल में खाने जाते हैं। वहां पर ही डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को शेखर श्रीवास्तव के साथ देखते हैं।

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को शेखर श्रीवास्तव के साथ देखकर जलते हैं।अपने पापा की बहुत प्यारी लड़की जिसका नाम आकांक्षा है।

आकांक्षा अपने घर में सबसे छोटी लड़की होती है। आकांक्षा पढ़ने में सबसे ज्यादा होशियार और बहुत मजाकिया लड़की होती है।

आकांक्षा के घर में उसके माता-पिता और आकांक्षा रहते हैं। आकांक्षा फैशन डिजाइनर में लास्ट ईयर कर रही है।

आकांक्षा के पापा का सपना है क्योंकि बड़ी दुकान हो। उसके पापा का सपना पूरा करने के लिए आकांक्षा फैशन डिजाइनर कर रही है।

आकांक्षा का सपना है। उसके माता-पिता का सपना पूरा करना और उनको अच्छी लाइफ देना। आकांक्षा बहुत खूबसूरत होती है। इसीलिए उसके कॉलेज के सारे लड़के उसे पर मरते हैं।

आकांक्षा हमेशा खुश रहती है। अगर उसके आसपास कोई दुखी हो तो उसे भी खुश कर देती है। जब आकांक्षा का लास्ट ईयर पूरा होता है। तब उसे कहीं जगह पर से ऑफर आते हैं जोब के लिए।

आकांक्षा अपनी सिटी में फर्स्ट रैंक लाई थी। इसीलिए उसे बड़ी-बड़ी जगह पर से नौकरी के लिए जॉब आने लगे, मगर वह कहीं भी अप्लाई नहीं करती।

एक बार उससे एसटी कंपनी में से जब का ऑफर आता है। वह इस ऑफर को इग्नोर करती है।

जब यह बात उसके पापा को पता चले उसके पापा ने कहा, "तुम इस जॉब को क्यों नहीं एक्सेप्ट कर रही?"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "पापा, मेरे पास अभी बहुत सारे जॉब हैं, मुझे पता नहीं चल रहा है मैं किस में अप्लाई करूं, तो मैं अभी कोई डिसीजन नहीं लेना चाहती!"

उसके पापा ने आकांक्षा से कहा, "देखो बेटा, मेरा भी सपना था कि मैं एक बड़ा फैशन डिजाइनर बनूं, लेकिन मैं नहीं बन सका, यह बात है तुम्हें पता ही होगी, लेकिन मेरा एक और सपना भी है कि मैं तुम्हें फैशन डिजाइनर बनाऊं और मैं चाहता था कि मेरी जॉब एसटी कंपनी में हो, लेकिन मेरी जब वहां पर नहीं हो सकी। अब जब यह तुम्हें मौका मिल रहा है, तो मैं चाहता हूं कि तुम यह जॉब करो।"

आकांक्षा रहती है उसके पापा से ठीक है, "पापा, मैं जॉब करूं, क्या आपके सपने पूरा करने के लिए।"

आकांक्षा के पापा बहुत खुश हो जाते हैं जब आकांक्षा हां कर देती है जॉब के लिए।

आकांक्षा नेक्स्ट डे अपना इंटरव्यू देने एसटी कंपनी में जाती है। वह इंटरव्यू देकर वापस आती है। घर जाकर उसके पापा पूछते हैं, "इंटरव्यू कैसा गया बेटा?"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "पापा, इंटरव्यू तो अच्छा गया, मगर मुझे नहीं लगता मेरा सिलेक्शन हो पाएगा। क्योंकि वहां पर मेरे जैसे भेजा था टैलेंटेड लोग मौजूद थे। देखते हैं अब मेरा सिलेक्शन होगा या नहीं, उन्होंने कहा है। 2 दिन में जवाब देंगे, मैं सेलेक्ट हो जाऊंगी तो अच्छी बात है, वरना कोई और जोब देख लेंगे।"

आकांक्षा के पापा कहते हैं, "मेरी बेटी इतनी ज्यादा टैलेंटेड है, उसे जरूर जोब मिल जाएगी।"

2 दिन बाद कंपनी की तरफ से आकांक्षा को मेल आता है। उसमें लिखा हुआ होता है, "यू आर सिलेक्टेड, आकांक्षा।"

आकांक्षा सेलेक्ट हो गई, यह बात उसके मम्मी पापा को बोलती है। उसकी मम्मी पापा कहते हैं, "गुड वर्क, माय डॉटर।"

आकांक्षा की मां कहती है, "इस बात पर तो मिठाई बनती है।"

आकांक्षा के पापा कहते हैं, "मुंह मीठा करने वाली नहीं, यह बात एंजॉय करने वाली है।"

आकांक्षा के पापा आकांक्षा की मां को और आकांक्षा को लेकर होटल में खाने जाते हैं।

वह खाने के बाद आइसक्रीम खाते हैं और मूवी देखने जाते हैं। सब लोग आकांक्षा की जॉब को लेकर बहुत खुश थे।

अगले दिन आकांक्षा अपनी जॉब के लिए कंपनी में जाती है। वह कंपनी बहुत बड़ी होती है।

आकांक्षा का बस बहुत ही खड़ूस है। सारा काम आकांक्षा से करवाता है। मगर आकांक्षा कुछ नहीं कहती। वह बस चुपचाप अपना काम ही करती है।

2 साल में उसे कंपनी का सीईओ बदल जाता है। उस कंपनी का नया सीईओ शेखर श्रीवास श्रीवास्तव है।

शेखर श्रीवास्तव बहुत ही खड़ूस होता है। वह अकडू खड़ूस होने के साथ-साथ वह एक प्लेबॉय भी होता है।

मगर इस बात की किसी को खबर नहीं होती। शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा का स्कूल का एक क्लासमेट होता है। मगर यह बात आकांक्षा को पता नहीं होती।

स्कूल में दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। मगर वह क्लास 7 से ही बिछड़ जाते हैं। यह बात बहुत पुरानी हो गई थी, इसीलिए आकांक्षा को यह बात पता नहीं होती कि उसकी फ्रेंड भी होता है।

आकांक्षा की जॉब एसटी कंपनी में होती है। जब यह बात शेखर श्रीवास्तव को पता होती है, तब शेखर श्रीवास्तव इस कंपनी को खरीद लेता है।

उसे कंपनी खरीदने में 2 साल लग जाते हैं। शेखर श्रीवास्तव को पता नहीं होता कि आकांक्षा उसको भूल चुकी है, उसको याद भी नहीं उसका कोई फ्रेंड भी था।

शेखर श्रीवास्तव जब कंपनी में पहली बार आता है, तब वह आकांक्षा को देखकर बहुत खुश होता है।

मगर आकांक्षा सिर्फ उसे सीईओ की नजर से देखती है। "मेरा दिल तुझे," आकांक्षा को पता नहीं होता कि वह उसका कोई फ्रेंड है।

शेखर श्रीवास्तव जब यह बात नोटिस करता है कि आकांक्षा उसे कोई अहमियत नहीं देती, यह देखकर शेखर श्रीवास्तव को बहुत गुस्सा आता है।

शेखर श्रीवास्तव अपने दिल में कहता है, "उसने मुझे पहचाना नहीं? मैं इसे याद नहीं हूं अब। मैंने इसके लिए यह पूरी कंपनी का खरीद लिया। और यह मुझे पहचान भी नहीं रही है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा को अपने केबिन में आने के लिए कहता है। आकांक्षा उसके केबिन में जाती है और कहती है, "हेलो सर, आपको मुझसे कोई काम था?"

शेखर श्रीवास्तव उसे गुस्से में कहता है, "तुम मेरे सामने इतना नाटक क्यों कर रही हो आकांक्षा? क्या तुम सच में मुझे नहीं जानती? या फिर नाटक कर रही हो भूलने का?"

आकांक्षा उससे कहती है, "सर, आप क्या कह रहे हैं? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा। मैं कैसे आपको बोल सकती हूं जब कि मैं आपसे पहली बार मिल रही हूं।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "हम पहली बार नहीं मिल रहे हैं, तुम्हें याद नहीं है क्या सच में?" 

आकांक्षा रहती है, "क्या मैं आपके साथ पढ़ती थी याद नहीं कि मेरे साथ कोई शेखर श्रीवास्तव नाम का इंसान भी पड़ता था।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "मैं श्रीनू तुम्हें याद नहीं किया? तुम मुझे सीनू नाम से बुलाया करती थी इसलिए मैंने अपना कोई नाम नहीं बताया तुम्हें।"

आकांक्षा शहर से कहती है, "हां सर, मुझे याद आया। आप श्रीनू हो। मगर श्रीनू तो आना था और मैं सोने शेखर श्रीवास्तव का तो एक बड़ी फैमिली है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "जब मैं स्कूल छोड़ी उसके बाद मुझे एक फैमिली ने अडॉप्ट कर लिया।वह फैमिली बहुत अमीर थी। उनके फैमिली में एक भी बच्चा नहीं था। इसीलिए उन्होंने अनाथालय में से किसी एक बच्चे को अडॉप्ट करने का सोचा। और वह जब मुझसे मिले तो उन्होंने कहा कि वह मुझे अडॉप्ट करेंगे। मेरे पापा यानी नरेश श्रीवास्तव ने मेरा खर्चा उठाया और मुझे पढ़ा लिखा कर एक अच्छा बिजनेसमैन बनाया। वह एक बहुत अच्छे इंसान हैं। साथ ही साथ उनकी पत्नी  शिरीसा श्रीवास्तव बहुत अच्छी पत्नी होने के साथ-साथ एक अच्छी मां भी है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है,"मुझे तुम्हारी बहुत याद आती थी। मगर अब देखो तुम तो मुझे भूल ही गई हो। मैं क्या इतना फालतू हूं तुम्हारे लिए कि तुम मुझे भूल ही गई।"

आकांक्षा कहती है, "ऐसी कोई बात नहीं है, हमको मिले हुए बहुत ऐसा हो गया, इसलिए मुझे याद नहीं था।"

शेखर आकांक्षा से कहता है, "तुम पहले जैसे ही खूबसूरत, मासूम और इंटेलिजेंट हो, अभी भी।"

आकांक्षा कहती है, "तुम्हें शक था क्या? पहले में तो हमेशा से ही ऐसी हूं।" शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "हां मेरी मां, पहले मुझे पूरा यकीन था तुम पागल हो, अब तुमने यह कहकर साबित कर ही दिया है कि तुम सबसे ज्यादा पागल हो।"

आकांक्षा रहती है, "मैं पागल नहीं हूं, तुम हो पागल, बहुत बड़े पागल।" शेखर श्रीवास्तव का कैंसर से कहता है, "सॉरी, मैं पागल हूं, बस तुम बहुत इंटेलिजेंट हो।"

आकांक्षा शहर से कहती है, "हम अभी ऑफिस में हैं, तो हंसी मजाक करने के मूड में बात मत करो। तुम अभी मेरे बस हो। हमें से बात नहीं कर सकते यहां पर। अगर कोई काम की बात होगी तो बोलो वरना मैं जाती हूं, मेरा काम बहुत पेंडिंग है।"

शेखर श्रीवास्तव उसे कहता है, "कोई काम नहीं है, तुम जा सकती हो।"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव के केबिन से चली जाती है, और उसके केबिन पर जाकर काम करती है।

शाम को आकांक्षा घर जाती है। उसके पापा उसे कहते हैं, "बेटा, मैंने सुना है तुम्हारा सीईओ चेंज हो गया है।"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "हां पापा, पहले वाले सीईओ रिटायर हो गए हैं, और नए सीईओ शेखर श्रीवास्तव है।"

उसके पापा से आकांक्षा रहती है, "पापा, आपको याद है, मेरे साथ स्कूल में मेरा एक फ्रेंड पड़ता था, जिसका नाम श्रीनू था। वही हमारे कंपनी का नया सीईओ है।"

वह बहुत अच्छा बॉस है। उसका पापा कहता है, "यह तो बहुत अच्छी बात है, तुम्हारा फ्रेंड ही तुम्हारा बॉस है।"

6 महीने बाद आकांक्षा का प्रमोशन हो जाता है, और वह कंपनी की एमडी बन जाती है। आकांक्षा अपनी लाइफ में बहुत सक्सेसफुल वूमेन बन जाती है।

उसको लगता है कि यह सब उसके टैलेंट का नतीजा है, मगर इसके पीछे की वजह से शेखर श्रीवास्तव होता है।

आकांक्षा को यह पता नहीं होता कि शेखर श्रीवास्तव से प्यार करता है, मगर आकांक्षा सिर्फ उसे अपने फ्रेंड की नजर से देखती है।

एक दिन शाम में आकांक्षा अपनी कर लेकर अपने घर तक जाती है। हाईवे पर एक कार एक्सीडेंट होता है, आकांशा उतरती है।

आकांक्षा उसे इंसान को अस्पताल लेकर जाती है, और उसके दवा का खाने का सारा खर्चा वह पे करती है।

डॉक्टर मित्तल आकर पूछता है, "इन बुजुर्ग इंसान के साथ कौन है?"

आकांक्षा रहती है, "मैं उनके साथ हूं, क्या हुआ?" डॉक्टर मित्तल जाकर कहते हैं, "आप इनकी क्या लगती है, आपको उनका गार्जियंस फॉर्म साइन करना होगा।"

आकांक्षा रहती है, "मैं इनकी कोई नहीं लगती, लेकिन मैं इनका फोन साइन कर देता हूं।"

डॉक्टर मित्तल यह देखकर इंप्रेस हो जाते हैं, कि इस लड़की का में बुजुर्ग इंसान से कोई रिश्ता नहीं था फिर भी यह इनके जवाबदारी ले रही है। डॉक्टर मित्तल यहीं से आकांक्षा के दीवाने हो जाते हैं।

डॉक्टर मित्तल एक हैंडसम, इंटेलिजेंट, और एक कामयाब डॉक्टर होते हैं। डॉक्टर मित्तल को आकांक्षा बहुत पसंद आती है।

आकांक्षा डॉक्टर को अपना नंबर देकर जाती है। जब यह बुजुर्ग इंसान होश में आए तो आकांक्षा को कॉल कर दे और उनका पेमेंट मैं ही दूंगी ऐसा कह कर आकांक्षा चली जाती है अपने घर।

आकांक्षा जब अपने घर पहुंचती है, उसके मां कहती हैं, "बेटा, तुम्हें इतना लेट क्यों हुआ आज?" आकांक्षा उसकी मां से कहती है, "मां, आज एक एक्सीडेंट हो गया था, इसीलिए मैं हूं और बुजुर्ग इंसान को अस्पताल छोड़ने गई थी। इसीलिए मैं लेट हो गई।"

आकांक्षा की मां कहती हैं, "ठीक है बेटा, आकर खा लो।" आकांक्षा खाना खाकर अपना काम करती है।

काम करते-करते कंस को डॉक्टर मित्तल की याद आती है। वह बहुत हैंडसम है, इसलिए आकांक्षा उसके बारे में सोच सोच करती है।

आकाश अपने दिन में रहती है। "मैं यह क्या कर रही हूं? मैं डॉक्टर मित्र के बारे में इतना क्यों सोच रही हूं? क्या मुझे उनसे प्यार हो गया है?" फिर आकांक्षा खुद को ही जवाब देती है, "नहीं, मैं प्यार प्यार नहीं करती।"

यहां कौन सा डॉक्टर मित्तल के बारे में, और वहां डॉक्टर मित्तल आकांक्षा के बारे में सोचते हैं।

दोनों ही नहीं मानते कि उनको एक दूसरे से प्यार हो गया है। इसलिए क्योंकि बस एक ही बार मिले हैं और इतना सोच-सोच कर रहे हैं, इसे प्यार तो नहीं कह सकते।

अगली सुबह डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को कॉल करते हैं, और उससे कहते हैं, "हेलो आकांक्षा, आप रात में यहां जी बुजुर्ग को लाई थी, उनको होश आया, वह आपसे मिलना चाह रहे हैं, क्या आप यहां आ सकती है?"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "हां, मैं बस थोड़ी देर में आ रही हूं।" इतना कहकर आकांक्षा अस्पताल के लिए तैयार हो जाती है।

आकांक्षा अस्पताल पहुंचती है तब। वह बुजुर्ग से कहता है, "मेरी मदद करने के लिए शुक्रिया, मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा।"

आकांक्षा उसे बुजुर्ग इंसान से कहती है, "यह एहसान की बात नहीं है, कि बात नहीं है, अगर इंसानी इंसान के काम ना आए तो क्या फायदा जिंदगी का।

अगर आपकी जगह कोई और भी होता तो मैं उसे बचाती। इसीलिए मेरा शुक्र गुजार होने की जरूरत नहीं है आपको।

आप बस अपना ध्यान रखिए। और कुछ चाहिए तो मुझे कह देना, मैं लेकर आऊंगी।" वह बुजुर्ग कहता है, "बेटा, तुमने मेरी मदद की इतना ही मेरे लिए बहुत है, अब मुझे कुछ नहीं चाहिए।"

आकांक्षा रहती है, "ठीक है, आप अपना ध्यान रखिए, मुझे ऑफिस जाना है।" इतना कहकर आकांक्षा रूम से बाहर आती है। वह देखती है डॉक्टर मित्तल चुपके से उनकी बातें सुन रहे थे।

और वह डॉक्टर मित्तल को मजाकिया मूड में पूछती है, "डॉक्टर मित्तल, आपको पता नहीं है किसी की चुपके से बातें सुनना गलत बात है।"

डॉ मित्तल आकांक्षा से हंसते हुए कहते हैं, "मैं बस अभी आया हूं, मैं तुम्हारी बातें नहीं सुन रहा था।"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "ठीक है, यह बुजुर्ग इंसान कब तक डिस्चार्ज होंगे?"

डॉ मित्तल आकांक्षा से कहता है, "बस एक-दो घंटे में इनको डिस्चार्ज कर देंगे। आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "ठीक है, फिर इनका वील बना के मुझे दे दो, मैं पे कर दूंगी।"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "इसकी कोई जरूरत नहीं है, का बिल ऑलरेडी पे हो चुका है।"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती हैं, "इनका बिल मिनट पर नहीं कर फिर किसने कर?"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "इंका बिल मैं पे करा। आकांक्षा कहती है, "डॉक्टर, कब से मरीज का बिल पे करने लगे?"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "जब से इंडिया की पब्लिक मरीज का बिल पे करने लगी तब से।"

आकांक्षा अस्पताल से उसके ऑफिस चली जाती है।

ऑफिस में शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से पूछता है, "आकांक्षा, तुम्हें आज इतनी देर क्यों हो गई?"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव से कहती है, "कल मैं जब घर जा रही थी, तब रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया था। मैं उसे एक्सीडेंट कार के पास गई। तो मैंने देखा एक बुजुर्ग आदमी बहुत बुरी हालत में वहां पड़ा हुआ था।"

"मैं उनको अस्पताल छोड़ने गई थी, और आज ऑफिस में आते हुए, मैं अस्पताल में उनसे मिलने गई थी, इसलिए मुझे देर हो गई।"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव से कहती है, "लेट आने के लिए माफी चाहती हूं।"

शेखर श्रीवास्तव हावड़ा आकांक्षा से कहता है, "कोई बात नहीं है, तुम जाकर अपना काम करो।"

आकांक्षा अपने केबिन में जाकर उसका काम करती है। जब लंच टाइम होता है तब शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा को मैसेज करता है, "चलो बाहर कहीं खाने चले।"

शेखर श्रीवास्तव और आकांक्षा फाइव स्टार होटल में खाने जाते हैं। वहां पर ही डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को शेखर श्रीवास्तव के साथ देखते हैं।

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को शेखर श्रीवास्तव के साथ देखकर जलते हैं।अपने पापा की बहुत प्यारी लड़की जिसका नाम आकांक्षा है।

आकांक्षा अपने घर में सबसे छोटी लड़की होती है। आकांक्षा पढ़ने में सबसे ज्यादा होशियार और बहुत मजाकिया लड़की होती है।

आकांक्षा के घर में उसके माता-पिता और आकांक्षा रहते हैं। आकांक्षा फैशन डिजाइनर में लास्ट ईयर कर रही है।

आकांक्षा के पापा का सपना है क्योंकि बड़ी दुकान हो। उसके पापा का सपना पूरा करने के लिए आकांक्षा फैशन डिजाइनर कर रही है।

आकांक्षा का सपना है। उसके माता-पिता का सपना पूरा करना और उनको अच्छी लाइफ देना। आकांक्षा बहुत खूबसूरत होती है। इसीलिए उसके कॉलेज के सारे लड़के उसे पर मरते हैं।

आकांक्षा हमेशा खुश रहती है। अगर उसके आसपास कोई दुखी हो तो उसे भी खुश कर देती है। जब आकांक्षा का लास्ट ईयर पूरा होता है। तब उसे कहीं जगह पर से ऑफर आते हैं जोब के लिए।

आकांक्षा अपनी सिटी में फर्स्ट रैंक लाई थी। इसीलिए उसे बड़ी-बड़ी जगह पर से नौकरी के लिए जॉब आने लगे, मगर वह कहीं भी अप्लाई नहीं करती।

एक बार उससे एसटी कंपनी में से जब का ऑफर आता है। वह इस ऑफर को इग्नोर करती है।

जब यह बात उसके पापा को पता चले उसके पापा ने कहा, "तुम इस जॉब को क्यों नहीं एक्सेप्ट कर रही?"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "पापा, मेरे पास अभी बहुत सारे जॉब हैं, मुझे पता नहीं चल रहा है मैं किस में अप्लाई करूं, तो मैं अभी कोई डिसीजन नहीं लेना चाहती!"

उसके पापा ने आकांक्षा से कहा, "देखो बेटा, मेरा भी सपना था कि मैं एक बड़ा फैशन डिजाइनर बनूं, लेकिन मैं नहीं बन सका, यह बात है तुम्हें पता ही होगी, लेकिन मेरा एक और सपना भी है कि मैं तुम्हें फैशन डिजाइनर बनाऊं और मैं चाहता था कि मेरी जॉब एसटी कंपनी में हो, लेकिन मेरी जब वहां पर नहीं हो सकी। अब जब यह तुम्हें मौका मिल रहा है, तो मैं चाहता हूं कि तुम यह जॉब करो।"

आकांक्षा रहती है उसके पापा से ठीक है, "पापा, मैं जॉब करूं, क्या आपके सपने पूरा करने के लिए।"

आकांक्षा के पापा बहुत खुश हो जाते हैं जब आकांक्षा हां कर देती है जॉब के लिए।

आकांक्षा नेक्स्ट डे अपना इंटरव्यू देने एसटी कंपनी में जाती है। वह इंटरव्यू देकर वापस आती है। घर जाकर उसके पापा पूछते हैं, "इंटरव्यू कैसा गया बेटा?"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "पापा, इंटरव्यू तो अच्छा गया, मगर मुझे नहीं लगता मेरा सिलेक्शन हो पाएगा। क्योंकि वहां पर मेरे जैसे भेजा था टैलेंटेड लोग मौजूद थे। देखते हैं अब मेरा सिलेक्शन होगा या नहीं, उन्होंने कहा है। 2 दिन में जवाब देंगे, मैं सेलेक्ट हो जाऊंगी तो अच्छी बात है, वरना कोई और जोब देख लेंगे।"

आकांक्षा के पापा कहते हैं, "मेरी बेटी इतनी ज्यादा टैलेंटेड है, उसे जरूर जोब मिल जाएगी।"

2 दिन बाद कंपनी की तरफ से आकांक्षा को मेल आता है। उसमें लिखा हुआ होता है, "यू आर सिलेक्टेड, आकांक्षा।"

आकांक्षा सेलेक्ट हो गई, यह बात उसके मम्मी पापा को बोलती है। उसकी मम्मी पापा कहते हैं, "गुड वर्क, माय डॉटर।"

आकांक्षा की मां कहती है, "इस बात पर तो मिठाई बनती है।"

आकांक्षा के पापा कहते हैं, "मुंह मीठा करने वाली नहीं, यह बात एंजॉय करने वाली है।"

आकांक्षा के पापा आकांक्षा की मां को और आकांक्षा को लेकर होटल में खाने जाते हैं।

वह खाने के बाद आइसक्रीम खाते हैं और मूवी देखने जाते हैं। सब लोग आकांक्षा की जॉब को लेकर बहुत खुश थे।

अगले दिन आकांक्षा अपनी जॉब के लिए कंपनी में जाती है। वह कंपनी बहुत बड़ी होती है।

आकांक्षा का बस बहुत ही खड़ूस है। सारा काम आकांक्षा से करवाता है। मगर आकांक्षा कुछ नहीं कहती। वह बस चुपचाप अपना काम ही करती है।

2 साल में उसे कंपनी का सीईओ बदल जाता है। उस कंपनी का नया सीईओ शेखर श्रीवास श्रीवास्तव है।

शेखर श्रीवास्तव बहुत ही खड़ूस होता है। वह अकडू खड़ूस होने के साथ-साथ वह एक प्लेबॉय भी होता है।

मगर इस बात की किसी को खबर नहीं होती। शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा का स्कूल का एक क्लासमेट होता है। मगर यह बात आकांक्षा को पता नहीं होती।

स्कूल में दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। मगर वह क्लास 7 से ही बिछड़ जाते हैं। यह बात बहुत पुरानी हो गई थी, इसीलिए आकांक्षा को यह बात पता नहीं होती कि उसकी फ्रेंड भी होता है।

आकांक्षा की जॉब एसटी कंपनी में होती है। जब यह बात शेखर श्रीवास्तव को पता होती है, तब शेखर श्रीवास्तव इस कंपनी को खरीद लेता है।

उसे कंपनी खरीदने में 2 साल लग जाते हैं। शेखर श्रीवास्तव को पता नहीं होता कि आकांक्षा उसको भूल चुकी है, उसको याद भी नहीं उसका कोई फ्रेंड भी था।

शेखर श्रीवास्तव जब कंपनी में पहली बार आता है, तब वह आकांक्षा को देखकर बहुत खुश होता है।

मगर आकांक्षा सिर्फ उसे सीईओ की नजर से देखती है। "मेरा दिल तुझे," आकांक्षा को पता नहीं होता कि वह उसका कोई फ्रेंड है।

शेखर श्रीवास्तव जब यह बात नोटिस करता है कि आकांक्षा उसे कोई अहमियत नहीं देती, यह देखकर शेखर श्रीवास्तव को बहुत गुस्सा आता है।

शेखर श्रीवास्तव अपने दिल में कहता है, "उसने मुझे पहचाना नहीं? मैं इसे याद नहीं हूं अब। मैंने इसके लिए यह पूरी कंपनी का खरीद लिया। और यह मुझे पहचान भी नहीं रही है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा को अपने केबिन में आने के लिए कहता है। आकांक्षा उसके केबिन में जाती है और कहती है, "हेलो सर, आपको मुझसे कोई काम था?"

शेखर श्रीवास्तव उसे गुस्से में कहता है, "तुम मेरे सामने इतना नाटक क्यों कर रही हो आकांक्षा? क्या तुम सच में मुझे नहीं जानती? या फिर नाटक कर रही हो भूलने का?"

आकांक्षा उससे कहती है, "सर, आप क्या कह रहे हैं? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा। मैं कैसे आपको बोल सकती हूं जब कि मैं आपसे पहली बार मिल रही हूं।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "हम पहली बार नहीं मिल रहे हैं, तुम्हें याद नहीं है क्या सच में?" 

आकांक्षा रहती है, "क्या मैं आपके साथ पढ़ती थी याद नहीं कि मेरे साथ कोई शेखर श्रीवास्तव नाम का इंसान भी पड़ता था।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "मैं श्रीनू तुम्हें याद नहीं किया? तुम मुझे सीनू नाम से बुलाया करती थी इसलिए मैंने अपना कोई नाम नहीं बताया तुम्हें।"

आकांक्षा शहर से कहती है, "हां सर, मुझे याद आया। आप श्रीनू हो। मगर श्रीनू तो आना था और मैं सोने शेखर श्रीवास्तव का तो एक बड़ी फैमिली है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "जब मैं स्कूल छोड़ी उसके बाद मुझे एक फैमिली ने अडॉप्ट कर लिया।वह फैमिली बहुत अमीर थी। उनके फैमिली में एक भी बच्चा नहीं था। इसीलिए उन्होंने अनाथालय में से किसी एक बच्चे को अडॉप्ट करने का सोचा। और वह जब मुझसे मिले तो उन्होंने कहा कि वह मुझे अडॉप्ट करेंगे। मेरे पापा यानी नरेश श्रीवास्तव ने मेरा खर्चा उठाया और मुझे पढ़ा लिखा कर एक अच्छा बिजनेसमैन बनाया। वह एक बहुत अच्छे इंसान हैं। साथ ही साथ उनकी पत्नी  शिरीसा श्रीवास्तव बहुत अच्छी पत्नी होने के साथ-साथ एक अच्छी मां भी है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है,"मुझे तुम्हारी बहुत याद आती थी। मगर अब देखो तुम तो मुझे भूल ही गई हो। मैं क्या इतना फालतू हूं तुम्हारे लिए कि तुम मुझे भूल ही गई।"

आकांक्षा कहती है, "ऐसी कोई बात नहीं है, हमको मिले हुए बहुत ऐसा हो गया, इसलिए मुझे याद नहीं था।"

शेखर आकांक्षा से कहता है, "तुम पहले जैसे ही खूबसूरत, मासूम और इंटेलिजेंट हो, अभी भी।"

आकांक्षा कहती है, "तुम्हें शक था क्या? पहले में तो हमेशा से ही ऐसी हूं।" शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "हां मेरी मां, पहले मुझे पूरा यकीन था तुम पागल हो, अब तुमने यह कहकर साबित कर ही दिया है कि तुम सबसे ज्यादा पागल हो।"

आकांक्षा रहती है, "मैं पागल नहीं हूं, तुम हो पागल, बहुत बड़े पागल।" शेखर श्रीवास्तव का कैंसर से कहता है, "सॉरी, मैं पागल हूं, बस तुम बहुत इंटेलिजेंट हो।"

आकांक्षा शहर से कहती है, "हम अभी ऑफिस में हैं, तो हंसी मजाक करने के मूड में बात मत करो। तुम अभी मेरे बस हो। हमें से बात नहीं कर सकते यहां पर। अगर कोई काम की बात होगी तो बोलो वरना मैं जाती हूं, मेरा काम बहुत पेंडिंग है।"

शेखर श्रीवास्तव उसे कहता है, "कोई काम नहीं है, तुम जा सकती हो।"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव के केबिन से चली जाती है, और उसके केबिन पर जाकर काम करती है।

शाम को आकांक्षा घर जाती है। उसके पापा उसे कहते हैं, "बेटा, मैंने सुना है तुम्हारा सीईओ चेंज हो गया है।"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "हां पापा, पहले वाले सीईओ रिटायर हो गए हैं, और नए सीईओ शेखर श्रीवास्तव है।"

उसके पापा से आकांक्षा रहती है, "पापा, आपको याद है, मेरे साथ स्कूल में मेरा एक फ्रेंड पड़ता था, जिसका नाम श्रीनू था। वही हमारे कंपनी का नया सीईओ है।"

वह बहुत अच्छा बॉस है। उसका पापा कहता है, "यह तो बहुत अच्छी बात है, तुम्हारा फ्रेंड ही तुम्हारा बॉस है।"

6 महीने बाद आकांक्षा का प्रमोशन हो जाता है, और वह कंपनी की एमडी बन जाती है। आकांक्षा अपनी लाइफ में बहुत सक्सेसफुल वूमेन बन जाती है।

उसको लगता है कि यह सब उसके टैलेंट का नतीजा है, मगर इसके पीछे की वजह से शेखर श्रीवास्तव होता है।

आकांक्षा को यह पता नहीं होता कि शेखर श्रीवास्तव से प्यार करता है, मगर आकांक्षा सिर्फ उसे अपने फ्रेंड की नजर से देखती है।

एक दिन शाम में आकांक्षा अपनी कर लेकर अपने घर तक जाती है। हाईवे पर एक कार एक्सीडेंट होता है, आकांशा उतरती है।

आकांक्षा उसे इंसान को अस्पताल लेकर जाती है, और उसके दवा का खाने का सारा खर्चा वह पे करती है।

डॉक्टर मित्तल आकर पूछता है, "इन बुजुर्ग इंसान के साथ कौन है?"

आकांक्षा रहती है, "मैं उनके साथ हूं, क्या हुआ?" डॉक्टर मित्तल जाकर कहते हैं, "आप इनकी क्या लगती है, आपको उनका गार्जियंस फॉर्म साइन करना होगा।"

आकांक्षा रहती है, "मैं इनकी कोई नहीं लगती, लेकिन मैं इनका फोन साइन कर देता हूं।"

डॉक्टर मित्तल यह देखकर इंप्रेस हो जाते हैं, कि इस लड़की का में बुजुर्ग इंसान से कोई रिश्ता नहीं था फिर भी यह इनके जवाबदारी ले रही है। डॉक्टर मित्तल यहीं से आकांक्षा के दीवाने हो जाते हैं।

डॉक्टर मित्तल एक हैंडसम, इंटेलिजेंट, और एक कामयाब डॉक्टर होते हैं। डॉक्टर मित्तल को आकांक्षा बहुत पसंद आती है।

आकांक्षा डॉक्टर को अपना नंबर देकर जाती है। जब यह बुजुर्ग इंसान होश में आए तो आकांक्षा को कॉल कर दे और उनका पेमेंट मैं ही दूंगी ऐसा कह कर आकांक्षा चली जाती है अपने घर।

आकांक्षा जब अपने घर पहुंचती है, उसके मां कहती हैं, "बेटा, तुम्हें इतना लेट क्यों हुआ आज?" आकांक्षा उसकी मां से कहती है, "मां, आज एक एक्सीडेंट हो गया था, इसीलिए मैं हूं और बुजुर्ग इंसान को अस्पताल छोड़ने गई थी। इसीलिए मैं लेट हो गई।"

आकांक्षा की मां कहती हैं, "ठीक है बेटा, आकर खा लो।" आकांक्षा खाना खाकर अपना काम करती है।

काम करते-करते कंस को डॉक्टर मित्तल की याद आती है। वह बहुत हैंडसम है, इसलिए आकांक्षा उसके बारे में सोच सोच करती है।

आकाश अपने दिन में रहती है। "मैं यह क्या कर रही हूं? मैं डॉक्टर मित्र के बारे में इतना क्यों सोच रही हूं? क्या मुझे उनसे प्यार हो गया है?" फिर आकांक्षा खुद को ही जवाब देती है, "नहीं, मैं प्यार प्यार नहीं करती।"

यहां कौन सा डॉक्टर मित्तल के बारे में, और वहां डॉक्टर मित्तल आकांक्षा के बारे में सोचते हैं।

दोनों ही नहीं मानते कि उनको एक दूसरे से प्यार हो गया है। इसलिए क्योंकि बस एक ही बार मिले हैं और इतना सोच-सोच कर रहे हैं, इसे प्यार तो नहीं कह सकते।

अगली सुबह डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को कॉल करते हैं, और उससे कहते हैं, "हेलो आकांक्षा, आप रात में यहां जी बुजुर्ग को लाई थी, उनको होश आया, वह आपसे मिलना चाह रहे हैं, क्या आप यहां आ सकती है?"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "हां, मैं बस थोड़ी देर में आ रही हूं।" इतना कहकर आकांक्षा अस्पताल के लिए तैयार हो जाती है।

आकांक्षा अस्पताल पहुंचती है तब। वह बुजुर्ग से कहता है, "मेरी मदद करने के लिए शुक्रिया, मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा।"

आकांक्षा उसे बुजुर्ग इंसान से कहती है, "यह एहसान की बात नहीं है, कि बात नहीं है, अगर इंसानी इंसान के काम ना आए तो क्या फायदा जिंदगी का।

अगर आपकी जगह कोई और भी होता तो मैं उसे बचाती। इसीलिए मेरा शुक्र गुजार होने की जरूरत नहीं है आपको।

आप बस अपना ध्यान रखिए। और कुछ चाहिए तो मुझे कह देना, मैं लेकर आऊंगी।" वह बुजुर्ग कहता है, "बेटा, तुमने मेरी मदद की इतना ही मेरे लिए बहुत है, अब मुझे कुछ नहीं चाहिए।"

आकांक्षा रहती है, "ठीक है, आप अपना ध्यान रखिए, मुझे ऑफिस जाना है।" इतना कहकर आकांक्षा रूम से बाहर आती है। वह देखती है डॉक्टर मित्तल चुपके से उनकी बातें सुन रहे थे।

और वह डॉक्टर मित्तल को मजाकिया मूड में पूछती है, "डॉक्टर मित्तल, आपको पता नहीं है किसी की चुपके से बातें सुनना गलत बात है।"

डॉ मित्तल आकांक्षा से हंसते हुए कहते हैं, "मैं बस अभी आया हूं, मैं तुम्हारी बातें नहीं सुन रहा था।"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "ठीक है, यह बुजुर्ग इंसान कब तक डिस्चार्ज होंगे?"

डॉ मित्तल आकांक्षा से कहता है, "बस एक-दो घंटे में इनको डिस्चार्ज कर देंगे। आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "ठीक है, फिर इनका वील बना के मुझे दे दो, मैं पे कर दूंगी।"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "इसकी कोई जरूरत नहीं है, का बिल ऑलरेडी पे हो चुका है।"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती हैं, "इनका बिल मिनट पर नहीं कर फिर किसने कर?"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "इंका बिल मैं पे करा। आकांक्षा कहती है, "डॉक्टर, कब से मरीज का बिल पे करने लगे?"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "जब से इंडिया की पब्लिक मरीज का बिल पे करने लगी तब से।"

आकांक्षा अस्पताल से उसके ऑफिस चली जाती है।

ऑफिस में शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से पूछता है, "आकांक्षा, तुम्हें आज इतनी देर क्यों हो गई?"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव से कहती है, "कल मैं जब घर जा रही थी, तब रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया था। मैं उसे एक्सीडेंट कार के पास गई। तो मैंने देखा एक बुजुर्ग आदमी बहुत बुरी हालत में वहां पड़ा हुआ था।"

"मैं उनको अस्पताल छोड़ने गई थी, और आज ऑफिस में आते हुए, मैं अस्पताल में उनसे मिलने गई थी, इसलिए मुझे देर हो गई।"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव से कहती है, "लेट आने के लिए माफी चाहती हूं।"

शेखर श्रीवास्तव हावड़ा आकांक्षा से कहता है, "कोई बात नहीं है, तुम जाकर अपना काम करो।"

आकांक्षा अपने केबिन में जाकर उसका काम करती है। जब लंच टाइम होता है तब शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा को मैसेज करता है, "चलो बाहर कहीं खाने चले।"

शेखर श्रीवास्तव और आकांक्षा फाइव स्टार होटल में खाने जाते हैं। वहां पर ही डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को शेखर श्रीवास्तव के साथ देखते हैं।

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को शेखर श्रीवास्तव के साथ देखकर जलते हैं।अपने पापा की बहुत प्यारी लड़की जिसका नाम आकांक्षा है।

आकांक्षा अपने घर में सबसे छोटी लड़की होती है। आकांक्षा पढ़ने में सबसे ज्यादा होशियार और बहुत मजाकिया लड़की होती है।

आकांक्षा के घर में उसके माता-पिता और आकांक्षा रहते हैं। आकांक्षा फैशन डिजाइनर में लास्ट ईयर कर रही है।

आकांक्षा के पापा का सपना है क्योंकि बड़ी दुकान हो। उसके पापा का सपना पूरा करने के लिए आकांक्षा फैशन डिजाइनर कर रही है।

आकांक्षा का सपना है। उसके माता-पिता का सपना पूरा करना और उनको अच्छी लाइफ देना। आकांक्षा बहुत खूबसूरत होती है। इसीलिए उसके कॉलेज के सारे लड़के उसे पर मरते हैं।

आकांक्षा हमेशा खुश रहती है। अगर उसके आसपास कोई दुखी हो तो उसे भी खुश कर देती है। जब आकांक्षा का लास्ट ईयर पूरा होता है। तब उसे कहीं जगह पर से ऑफर आते हैं जोब के लिए।

आकांक्षा अपनी सिटी में फर्स्ट रैंक लाई थी। इसीलिए उसे बड़ी-बड़ी जगह पर से नौकरी के लिए जॉब आने लगे, मगर वह कहीं भी अप्लाई नहीं करती।

एक बार उससे एसटी कंपनी में से जब का ऑफर आता है। वह इस ऑफर को इग्नोर करती है।

जब यह बात उसके पापा को पता चले उसके पापा ने कहा, "तुम इस जॉब को क्यों नहीं एक्सेप्ट कर रही?"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "पापा, मेरे पास अभी बहुत सारे जॉब हैं, मुझे पता नहीं चल रहा है मैं किस में अप्लाई करूं, तो मैं अभी कोई डिसीजन नहीं लेना चाहती!"

उसके पापा ने आकांक्षा से कहा, "देखो बेटा, मेरा भी सपना था कि मैं एक बड़ा फैशन डिजाइनर बनूं, लेकिन मैं नहीं बन सका, यह बात है तुम्हें पता ही होगी, लेकिन मेरा एक और सपना भी है कि मैं तुम्हें फैशन डिजाइनर बनाऊं और मैं चाहता था कि मेरी जॉब एसटी कंपनी में हो, लेकिन मेरी जब वहां पर नहीं हो सकी। अब जब यह तुम्हें मौका मिल रहा है, तो मैं चाहता हूं कि तुम यह जॉब करो।"

आकांक्षा रहती है उसके पापा से ठीक है, "पापा, मैं जॉब करूं, क्या आपके सपने पूरा करने के लिए।"

आकांक्षा के पापा बहुत खुश हो जाते हैं जब आकांक्षा हां कर देती है जॉब के लिए।

आकांक्षा नेक्स्ट डे अपना इंटरव्यू देने एसटी कंपनी में जाती है। वह इंटरव्यू देकर वापस आती है। घर जाकर उसके पापा पूछते हैं, "इंटरव्यू कैसा गया बेटा?"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "पापा, इंटरव्यू तो अच्छा गया, मगर मुझे नहीं लगता मेरा सिलेक्शन हो पाएगा। क्योंकि वहां पर मेरे जैसे भेजा था टैलेंटेड लोग मौजूद थे। देखते हैं अब मेरा सिलेक्शन होगा या नहीं, उन्होंने कहा है। 2 दिन में जवाब देंगे, मैं सेलेक्ट हो जाऊंगी तो अच्छी बात है, वरना कोई और जोब देख लेंगे।"

आकांक्षा के पापा कहते हैं, "मेरी बेटी इतनी ज्यादा टैलेंटेड है, उसे जरूर जोब मिल जाएगी।"

2 दिन बाद कंपनी की तरफ से आकांक्षा को मेल आता है। उसमें लिखा हुआ होता है, "यू आर सिलेक्टेड, आकांक्षा।"

आकांक्षा सेलेक्ट हो गई, यह बात उसके मम्मी पापा को बोलती है। उसकी मम्मी पापा कहते हैं, "गुड वर्क, माय डॉटर।"

आकांक्षा की मां कहती है, "इस बात पर तो मिठाई बनती है।"

आकांक्षा के पापा कहते हैं, "मुंह मीठा करने वाली नहीं, यह बात एंजॉय करने वाली है।"

आकांक्षा के पापा आकांक्षा की मां को और आकांक्षा को लेकर होटल में खाने जाते हैं।

वह खाने के बाद आइसक्रीम खाते हैं और मूवी देखने जाते हैं। सब लोग आकांक्षा की जॉब को लेकर बहुत खुश थे।

अगले दिन आकांक्षा अपनी जॉब के लिए कंपनी में जाती है। वह कंपनी बहुत बड़ी होती है।

आकांक्षा का बस बहुत ही खड़ूस है। सारा काम आकांक्षा से करवाता है। मगर आकांक्षा कुछ नहीं कहती। वह बस चुपचाप अपना काम ही करती है।

2 साल में उसे कंपनी का सीईओ बदल जाता है। उस कंपनी का नया सीईओ शेखर श्रीवास श्रीवास्तव है।

शेखर श्रीवास्तव बहुत ही खड़ूस होता है। वह अकडू खड़ूस होने के साथ-साथ वह एक प्लेबॉय भी होता है।

मगर इस बात की किसी को खबर नहीं होती। शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा का स्कूल का एक क्लासमेट होता है। मगर यह बात आकांक्षा को पता नहीं होती।

स्कूल में दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। मगर वह क्लास 7 से ही बिछड़ जाते हैं। यह बात बहुत पुरानी हो गई थी, इसीलिए आकांक्षा को यह बात पता नहीं होती कि उसकी फ्रेंड भी होता है।

आकांक्षा की जॉब एसटी कंपनी में होती है। जब यह बात शेखर श्रीवास्तव को पता होती है, तब शेखर श्रीवास्तव इस कंपनी को खरीद लेता है।

उसे कंपनी खरीदने में 2 साल लग जाते हैं। शेखर श्रीवास्तव को पता नहीं होता कि आकांक्षा उसको भूल चुकी है, उसको याद भी नहीं उसका कोई फ्रेंड भी था।

शेखर श्रीवास्तव जब कंपनी में पहली बार आता है, तब वह आकांक्षा को देखकर बहुत खुश होता है।

मगर आकांक्षा सिर्फ उसे सीईओ की नजर से देखती है। "मेरा दिल तुझे," आकांक्षा को पता नहीं होता कि वह उसका कोई फ्रेंड है।

शेखर श्रीवास्तव जब यह बात नोटिस करता है कि आकांक्षा उसे कोई अहमियत नहीं देती, यह देखकर शेखर श्रीवास्तव को बहुत गुस्सा आता है।

शेखर श्रीवास्तव अपने दिल में कहता है, "उसने मुझे पहचाना नहीं? मैं इसे याद नहीं हूं अब। मैंने इसके लिए यह पूरी कंपनी का खरीद लिया। और यह मुझे पहचान भी नहीं रही है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा को अपने केबिन में आने के लिए कहता है। आकांक्षा उसके केबिन में जाती है और कहती है, "हेलो सर, आपको मुझसे कोई काम था?"

शेखर श्रीवास्तव उसे गुस्से में कहता है, "तुम मेरे सामने इतना नाटक क्यों कर रही हो आकांक्षा? क्या तुम सच में मुझे नहीं जानती? या फिर नाटक कर रही हो भूलने का?"

आकांक्षा उससे कहती है, "सर, आप क्या कह रहे हैं? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा। मैं कैसे आपको बोल सकती हूं जब कि मैं आपसे पहली बार मिल रही हूं।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "हम पहली बार नहीं मिल रहे हैं, तुम्हें याद नहीं है क्या सच में?" 

आकांक्षा रहती है, "क्या मैं आपके साथ पढ़ती थी याद नहीं कि मेरे साथ कोई शेखर श्रीवास्तव नाम का इंसान भी पड़ता था।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "मैं श्रीनू तुम्हें याद नहीं किया? तुम मुझे सीनू नाम से बुलाया करती थी इसलिए मैंने अपना कोई नाम नहीं बताया तुम्हें।"

आकांक्षा शहर से कहती है, "हां सर, मुझे याद आया। आप श्रीनू हो। मगर श्रीनू तो आना था और मैं सोने शेखर श्रीवास्तव का तो एक बड़ी फैमिली है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "जब मैं स्कूल छोड़ी उसके बाद मुझे एक फैमिली ने अडॉप्ट कर लिया।वह फैमिली बहुत अमीर थी। उनके फैमिली में एक भी बच्चा नहीं था। इसीलिए उन्होंने अनाथालय में से किसी एक बच्चे को अडॉप्ट करने का सोचा। और वह जब मुझसे मिले तो उन्होंने कहा कि वह मुझे अडॉप्ट करेंगे। मेरे पापा यानी नरेश श्रीवास्तव ने मेरा खर्चा उठाया और मुझे पढ़ा लिखा कर एक अच्छा बिजनेसमैन बनाया। वह एक बहुत अच्छे इंसान हैं। साथ ही साथ उनकी पत्नी  शिरीसा श्रीवास्तव बहुत अच्छी पत्नी होने के साथ-साथ एक अच्छी मां भी है।"

शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है,"मुझे तुम्हारी बहुत याद आती थी। मगर अब देखो तुम तो मुझे भूल ही गई हो। मैं क्या इतना फालतू हूं तुम्हारे लिए कि तुम मुझे भूल ही गई।"

आकांक्षा कहती है, "ऐसी कोई बात नहीं है, हमको मिले हुए बहुत ऐसा हो गया, इसलिए मुझे याद नहीं था।"

शेखर आकांक्षा से कहता है, "तुम पहले जैसे ही खूबसूरत, मासूम और इंटेलिजेंट हो, अभी भी।"

आकांक्षा कहती है, "तुम्हें शक था क्या? पहले में तो हमेशा से ही ऐसी हूं।" शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से कहता है, "हां मेरी मां, पहले मुझे पूरा यकीन था तुम पागल हो, अब तुमने यह कहकर साबित कर ही दिया है कि तुम सबसे ज्यादा पागल हो।"

आकांक्षा रहती है, "मैं पागल नहीं हूं, तुम हो पागल, बहुत बड़े पागल।" शेखर श्रीवास्तव का कैंसर से कहता है, "सॉरी, मैं पागल हूं, बस तुम बहुत इंटेलिजेंट हो।"

आकांक्षा शहर से कहती है, "हम अभी ऑफिस में हैं, तो हंसी मजाक करने के मूड में बात मत करो। तुम अभी मेरे बस हो। हमें से बात नहीं कर सकते यहां पर। अगर कोई काम की बात होगी तो बोलो वरना मैं जाती हूं, मेरा काम बहुत पेंडिंग है।"

शेखर श्रीवास्तव उसे कहता है, "कोई काम नहीं है, तुम जा सकती हो।"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव के केबिन से चली जाती है, और उसके केबिन पर जाकर काम करती है।

शाम को आकांक्षा घर जाती है। उसके पापा उसे कहते हैं, "बेटा, मैंने सुना है तुम्हारा सीईओ चेंज हो गया है।"

आकांक्षा उसके पापा से कहती है, "हां पापा, पहले वाले सीईओ रिटायर हो गए हैं, और नए सीईओ शेखर श्रीवास्तव है।"

उसके पापा से आकांक्षा रहती है, "पापा, आपको याद है, मेरे साथ स्कूल में मेरा एक फ्रेंड पड़ता था, जिसका नाम श्रीनू था। वही हमारे कंपनी का नया सीईओ है।"

वह बहुत अच्छा बॉस है। उसका पापा कहता है, "यह तो बहुत अच्छी बात है, तुम्हारा फ्रेंड ही तुम्हारा बॉस है।"

6 महीने बाद आकांक्षा का प्रमोशन हो जाता है, और वह कंपनी की एमडी बन जाती है। आकांक्षा अपनी लाइफ में बहुत सक्सेसफुल वूमेन बन जाती है।

उसको लगता है कि यह सब उसके टैलेंट का नतीजा है, मगर इसके पीछे की वजह से शेखर श्रीवास्तव होता है।

आकांक्षा को यह पता नहीं होता कि शेखर श्रीवास्तव से प्यार करता है, मगर आकांक्षा सिर्फ उसे अपने फ्रेंड की नजर से देखती है।

एक दिन शाम में आकांक्षा अपनी कर लेकर अपने घर तक जाती है। हाईवे पर एक कार एक्सीडेंट होता है, आकांशा उतरती है।

आकांक्षा उसे इंसान को अस्पताल लेकर जाती है, और उसके दवा का खाने का सारा खर्चा वह पे करती है।

डॉक्टर मित्तल आकर पूछता है, "इन बुजुर्ग इंसान के साथ कौन है?"

आकांक्षा रहती है, "मैं उनके साथ हूं, क्या हुआ?" डॉक्टर मित्तल जाकर कहते हैं, "आप इनकी क्या लगती है, आपको उनका गार्जियंस फॉर्म साइन करना होगा।"

आकांक्षा रहती है, "मैं इनकी कोई नहीं लगती, लेकिन मैं इनका फोन साइन कर देता हूं।"

डॉक्टर मित्तल यह देखकर इंप्रेस हो जाते हैं, कि इस लड़की का में बुजुर्ग इंसान से कोई रिश्ता नहीं था फिर भी यह इनके जवाबदारी ले रही है। डॉक्टर मित्तल यहीं से आकांक्षा के दीवाने हो जाते हैं।

डॉक्टर मित्तल एक हैंडसम, इंटेलिजेंट, और एक कामयाब डॉक्टर होते हैं। डॉक्टर मित्तल को आकांक्षा बहुत पसंद आती है।

आकांक्षा डॉक्टर को अपना नंबर देकर जाती है। जब यह बुजुर्ग इंसान होश में आए तो आकांक्षा को कॉल कर दे और उनका पेमेंट मैं ही दूंगी ऐसा कह कर आकांक्षा चली जाती है अपने घर।

आकांक्षा जब अपने घर पहुंचती है, उसके मां कहती हैं, "बेटा, तुम्हें इतना लेट क्यों हुआ आज?" आकांक्षा उसकी मां से कहती है, "मां, आज एक एक्सीडेंट हो गया था, इसीलिए मैं हूं और बुजुर्ग इंसान को अस्पताल छोड़ने गई थी। इसीलिए मैं लेट हो गई।"

आकांक्षा की मां कहती हैं, "ठीक है बेटा, आकर खा लो।" आकांक्षा खाना खाकर अपना काम करती है।

काम करते-करते कंस को डॉक्टर मित्तल की याद आती है। वह बहुत हैंडसम है, इसलिए आकांक्षा उसके बारे में सोच सोच करती है।

आकाश अपने दिन में रहती है। "मैं यह क्या कर रही हूं? मैं डॉक्टर मित्र के बारे में इतना क्यों सोच रही हूं? क्या मुझे उनसे प्यार हो गया है?" फिर आकांक्षा खुद को ही जवाब देती है, "नहीं, मैं प्यार प्यार नहीं करती।"

यहां कौन सा डॉक्टर मित्तल के बारे में, और वहां डॉक्टर मित्तल आकांक्षा के बारे में सोचते हैं।

दोनों ही नहीं मानते कि उनको एक दूसरे से प्यार हो गया है। इसलिए क्योंकि बस एक ही बार मिले हैं और इतना सोच-सोच कर रहे हैं, इसे प्यार तो नहीं कह सकते।

अगली सुबह डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को कॉल करते हैं, और उससे कहते हैं, "हेलो आकांक्षा, आप रात में यहां जी बुजुर्ग को लाई थी, उनको होश आया, वह आपसे मिलना चाह रहे हैं, क्या आप यहां आ सकती है?"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "हां, मैं बस थोड़ी देर में आ रही हूं।" इतना कहकर आकांक्षा अस्पताल के लिए तैयार हो जाती है।

आकांक्षा अस्पताल पहुंचती है तब। वह बुजुर्ग से कहता है, "मेरी मदद करने के लिए शुक्रिया, मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा।"

आकांक्षा उसे बुजुर्ग इंसान से कहती है, "यह एहसान की बात नहीं है, कि बात नहीं है, अगर इंसानी इंसान के काम ना आए तो क्या फायदा जिंदगी का।

अगर आपकी जगह कोई और भी होता तो मैं उसे बचाती। इसीलिए मेरा शुक्र गुजार होने की जरूरत नहीं है आपको।

आप बस अपना ध्यान रखिए। और कुछ चाहिए तो मुझे कह देना, मैं लेकर आऊंगी।" वह बुजुर्ग कहता है, "बेटा, तुमने मेरी मदद की इतना ही मेरे लिए बहुत है, अब मुझे कुछ नहीं चाहिए।"

आकांक्षा रहती है, "ठीक है, आप अपना ध्यान रखिए, मुझे ऑफिस जाना है।" इतना कहकर आकांक्षा रूम से बाहर आती है। वह देखती है डॉक्टर मित्तल चुपके से उनकी बातें सुन रहे थे।

और वह डॉक्टर मित्तल को मजाकिया मूड में पूछती है, "डॉक्टर मित्तल, आपको पता नहीं है किसी की चुपके से बातें सुनना गलत बात है।"

डॉ मित्तल आकांक्षा से हंसते हुए कहते हैं, "मैं बस अभी आया हूं, मैं तुम्हारी बातें नहीं सुन रहा था।"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "ठीक है, यह बुजुर्ग इंसान कब तक डिस्चार्ज होंगे?"

डॉ मित्तल आकांक्षा से कहता है, "बस एक-दो घंटे में इनको डिस्चार्ज कर देंगे। आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती है, "ठीक है, फिर इनका वील बना के मुझे दे दो, मैं पे कर दूंगी।"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "इसकी कोई जरूरत नहीं है, का बिल ऑलरेडी पे हो चुका है।"

आकांक्षा डॉक्टर मित्तल से कहती हैं, "इनका बिल मिनट पर नहीं कर फिर किसने कर?"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "इंका बिल मैं पे करा। आकांक्षा कहती है, "डॉक्टर, कब से मरीज का बिल पे करने लगे?"

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा से कहते हैं, "जब से इंडिया की पब्लिक मरीज का बिल पे करने लगी तब से।"

आकांक्षा अस्पताल से उसके ऑफिस चली जाती है।

ऑफिस में शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा से पूछता है, "आकांक्षा, तुम्हें आज इतनी देर क्यों हो गई?"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव से कहती है, "कल मैं जब घर जा रही थी, तब रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया था। मैं उसे एक्सीडेंट कार के पास गई। तो मैंने देखा एक बुजुर्ग आदमी बहुत बुरी हालत में वहां पड़ा हुआ था।"

"मैं उनको अस्पताल छोड़ने गई थी, और आज ऑफिस में आते हुए, मैं अस्पताल में उनसे मिलने गई थी, इसलिए मुझे देर हो गई।"

आकांक्षा शेखर श्रीवास्तव से कहती है, "लेट आने के लिए माफी चाहती हूं।"

शेखर श्रीवास्तव हावड़ा आकांक्षा से कहता है, "कोई बात नहीं है, तुम जाकर अपना काम करो।"

आकांक्षा अपने केबिन में जाकर उसका काम करती है। जब लंच टाइम होता है तब शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा को मैसेज करता है, "चलो बाहर कहीं खाने चले।"

शेखर श्रीवास्तव और आकांक्षा फाइव स्टार होटल में खाने जाते हैं। वहां पर ही डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को शेखर श्रीवास्तव के साथ देखते हैं।

डॉक्टर मित्तल आकांक्षा को शेखर श्रीवास्तव के साथ देखकर जलते हैं।
Sayma

Sayma

Nice

24 December 2023

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यह कहानी शेखर श्रीवास्तव , आकांक्षा और आकाश मित्तल के बारे में है। शेखर श्रीवास्तव बिजनेस इंडस्ट्री का जाना माना बिजनेस मैन होने के साथ साथ ही हैंडसम और स्मार्ट भी है। और दूसरी तरफ है आकाश मित्तल जो काफी मशहूर डॉक्टर में से एक है । आकाश मित्तल बोहोत ही ज्यादा मैच्योर और खुश मिजाज लड़के है । शेखर श्रीवास्तव आकांक्षा का बचपन का बोहोत अछा दोस्त होता है । और दूसरी तरफ आकाश मित्तल जो आकांक्षा का क्रश है । आकांक्षा एक फैशन डिजाइनर है । जो बोहोत ही ज्यादा होशियार है और साथ ही साथ अपने शहर में उसने फर्स्ट रैंक लाई थी। आकांक्षा बोहोत ही जल्दी जल्दी अपने टैलेंट के दम पर अपना प्रमोशन करवाती है । पहले वो सिर्फ एक वर्कर रहती है और बाद में वो अपने ही ऑफिस की मैनेजिंग डायरेक्टर भी बन जाति है । अकाश मित्तल और आकांक्षा के बीच में प्यार हो जाता है । मगर उनके बीच में आ खड़ी होती है निशा ओबेरॉय जो है अकाश की एक्स गर्लफ्रेंड। निशा के आने के बाद शुरू होती है उनमें दरार।आखिर क्या होगा अंजाम आखिर ये trio love story मे किसकी होगी जीत और किसकी होगी हार .