समस्या और समाधान !
(आलेख)
समस्या रूपी नाग प्रत्येक घर में फन फैलाए हुए हैं। जिससे कोई घर अछूता नहीं है। यह बात अलग है कि किसी की फन छोटी है और किसी की बड़ी फन है। लेकिन नाग तो नाग ही होता है और उसकी फन भी फन ही होती है। इसके अलावा कथन यह भी परम सत्य है कि मानव की मृत्यु नाग की विष से अधिक उसके डसने के डर से होती है। जो एक समस्या है। जिसके समाधान हेतु सर्वप्रथम प्राथमिक उपचार में वैध या विशेषज्ञ मानव को भयमुक्त करता है। चूंकि हर समस्या का समाधान होता है। यहां तक कि रोगी की रोगग्रस्त काया के कष्ट को दूर करने का अंतिम उपचारिक समाधान "मृत्यु" को माना जाता है। क्योंकि मृत्यु उपरान्त बड़े से बड़े चिकित्सालयों के महंगे डॉक्टर भी "क्षमा" मांगकर रोगी के परिजनों को लूटना-खसूटना बंद कर देते हैं। जबकि उपरोक्त उपचार सरकारी चिकित्सालयों में संभव था। परन्तु अपने अहम को लेकर रोगी के परिजन यहां उनके द्वार पर स्वयं लुटने चले आते हैं। जो एक गंभीर समस्या है।
उपरोक्त समस्या पर शोधार्थी विचार करें तो अत्याधिक समस्याओं का जन्मदाता पीड़ित स्वयं होता है। यद्यपि ऐसा न हो तो उक्त समस्याओं का मूल सम्बन्ध उसके सहयोगियों का होता है या फिर उपजी समस्याओं का आधार पारिवारिक गिरोहों (माफियाओं) का होता है। जो न तो स्वयं जीते हैं और ना ही दूसरों को जीने देते हैं। ऐसे गिरोह सामाज की रीढ़ की हड्डी को तोड़ने में असीम शक्तिशाली एवं अग्रिम होते हैं। चूंकि उनकी दिनचर्या ही अपनों को बर्बाद करने से आरम्भ होती है। जिनका मूल उद्देश्य ही घरों में कलह डालना होता है। क्योंकि कलह वह समस्या है जिसके कहर से मानव तो क्या देवी देवता भी बच नहीं सके हैं। जिन में से "त्रेता युग" में लक्ष्मी अवतार "माता सीता" का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं।
परन्तु कलियुग में घरेलू कलह की बात करें तो पारिवारिक गिरोहों का सबसे पहला अशक्त आसान शिकार पति की धर्मपत्नी होती है। जो सामाजिक रूप से तो सात जन्मों तक पति का साथ निभाने का प्रण करती है। परन्तु विवाह होते ही वह अपने पति के विरोधियों की कठपुतली बन कर रह जाती है और फिर भारत के घर में महाभारत युद्ध का शुभारंभ होता है। जिसका शुभारंभ गिरोह में सम्मिलित वर पक्ष या वधु पक्ष की माताश्री से होता है और उसके उपरांत पति के प्रतिस्पर्धी उसका तमाशा देखकर खुश होते हैं। जो उसकी पत्नी को अपनी ढाल बना लेते हैं। यदि इसके बावजूद पति सशक्त रहे तो यही पारिवारिक गिरोह अपने प्रतिस्पर्धियों को बलहीन करने के लिए उनके विरुद्ध उनके बच्चों में विष भरने का कार्य आरम्भ कर देते हैं। जिससे पति के जीवन के साथ-साथ पत्नी एवं उनके बच्चों का अनमोल जीवन भी नर्क बन जाता है। यही नहीं जब गिरोह के सदस्य उपरोक्त पीड़ित परिवार के बच्चों को विवाह नहीं करने के परामर्श में सफलता प्राप्त कर लेते हैं तो उक्त प्रतिस्पर्धियों के वंश का ही मूल नाश हो जाता है।
ऐसी नाशवान कहानियां घर-घर से सुनने को मिल रही हैं। जिनका आधार विभिन्न बिन्दुओं पर आधारित है। यही नहीं विडंबना यह भी है कि पहले अपने रिश्तेदार और बिरादरी अपने बेटे-बेटी के विवाह उपरांत वर-वधु को आशीर्वादों का आदान-प्रदान करते थे। परन्तु सभ्यता यहां तक विकास कर चुकी है कि अब विवाह समारोह सम्पन्न होने से पहले ही उनके दाम्पत्य जीवन में खटास पैदा होने की प्रतीक्षा करना आरम्भ कर देते हैं। जिसके भय के कारण युवा विवाह के पवित्र बंधन में बंधने से परहेज़ कर रहे हैं। यही कारण है कि युवाओं ने "लिव इन रिलेशनशिप" की नई व्यवस्था में रहना पसंद कर लिया है।
अब उपरोक्त समस्याओं के समाधान की बात करें तो सभी पीड़ितों को सांप सूंघ जाता है। वह बिल्ली के आने पर कबूतर की भांति ऑंखें मूंद कर यह सोचते हैं कि उन्हें बिल्ली देख नहीं पा रही है। जिसके चलते बिल्ली कबूतर को आसानी से खा जाती है। वर्तमान सामाजिक व्यवस्थाओं की मानसिकता ऐसी ही दिखाई दे रही है कि वह अपनी चारपाई के नीचे झांकने से अच्छा दूसरों की खाट खड़ी करने पर तुले हुए हैं।
जबकि यदि विश्व के सर्वोच्च पागलपन के उदाहरण (नमूने) एकत्रित किए जाएं, तो उनमें ऐसे लोग जो अपनी समस्याओं को सुलझाने में पूर्णतः असमर्थ होने के बावजूद दूसरों की समस्याओं को सुलझाने का दावा करने के "पागलपन" को सर्वश्रेष्ठता के आधार पर सर्वोच्च एवं सर्वश्रेष्ठ पागलपन माना जाएगा। जिससे प्रत्येक भारतीय नागरिक को "दूरी" बनाए रखना भारतीय सभ्यता, संस्कृति, मानवीयता और भारतीयता के हितकारी होगा। क्योंकि पीड़ितों के घरों की आग में घी ना डालना ही एक मात्र समाधान है।
यही नहीं बल्कि पीड़ित पति-पत्नी और उनकी संतानों को विचार करने के साथ-साथ गंभीर मंथन करना भी आवश्यकता है कि उनके घर में हो रही महाभारत से कौन-कौन शरारती तत्व लाभान्वित हो रहे हैं? जिनके प्रकोप से सम्पूर्ण पीड़ित परिवार प्रभावित होकर नारकीय जीवनयापन करने पर विवश हैं। ऐसे पीड़ित परिवारों के सदस्य मिलकर जब तक खुले सौहार्दपूर्ण वातावरण में मंथन नहीं करेंगे। तब तक समस्याओं का पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं संवैधानिक समाधान संभव नहीं हो सकता और ना ही हिंदू महा उपनिषद के संस्कृत वाक्यांश "वसुधैव कुटुंबकम" के शाब्दिक अर्थ का उद्घोष सार्थक किया जा सकता है। जय हिन्द। सम्माननीयों ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।