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"Main" a poetry by Khwaab | "I" a poem मैं । उलझे धागों में उलझा मैं हूं बंधा, दुनिया देखे सुलझा मैं समंदर किनारे बैठे लहरें देखता उन उछालों में कभी डूबता, कभी सम्भलता मैं । मुझे ये आसमा