दिल जो न कह सका
दिल जो न कह सका... जगमग करता एक दीप इस मंदिर मे जलता है ये दिल शमां है जलता है बुझता है पिघलता है दिल जो न कह सका ये दिल जो न कह सका तेरी बाहों में जो गुजरीं वो रातें याद आती है सुनेंगे अब न हम जिनको वो बातें याद आती है उजालों से गले मिलकर चढ़ा सूरज उतरता है जगमग करता एक दीप इस मंदिर मे जलता है... कभी पुरवाइयाँ जब दिल के दामन को उड़ाती हैं तेरी नजरें मेरा रूठा हुआ आँचल हिलाती हैं ये मन होली की रातों की तरह पल पल सुलगता है जगमग करता एक दीप इस मंदिर मे जलता है... वही बागों का मंजर है वही खुश्बू की सौगातें नहाते थे जहाँ हम तुम वहीं होती हैं बरसातें न जाने कौन मेरे दिल को रह रह के मसलता है जगमग करता एक दीप इस मंदिर मे जलता है... मुहब्बत है बेदर्दी बालमा फागुन भी सावन भी मुहब्बत वन भी है घर भी है और आँगन भी खिलौनें हैं यही यादें इन्ही से दिल बहलता है जगमग करता एक दीप इस मंदिर मे जलता है... राजेश पाण्डेय