न जाने कितनी बार ।
याद हमारी उनकी आई. न जाने कितनी बार ।
तन्हाइयों से हुई लड़ाई, न जाने कितनी बार ।
वो मेहंदी वाली हाथो में ।
वो हंसी ठिठोली बातों में ।
इक अजब सा मंजर होता था.
वो चाँदनी वाली रातों में ।
फिर पायल छनकाई होश उड़ाई, न जाने कितनी बार ।
याद हमारी उनकी आई. न जाने कितनी बार ।
नये सहर थे, नये लोग थे ।
हम थोड़े गुमनाम हुए ।
सीने में बड़ा हलाहल हुआ
जब हम थोड़े बदनाम हुए ।
दिल रोया, आंखे भर आईं. न जाने कितनी बार ।
याद हमारी उनकी आई, न जाने कितनी बार ।
नई हौसलें, नई उम्मीदें ।
अभी नई नई उड़ाने थी ।
पर फैलाएं, उड़ न पाए । न जाने कितनी बार ।
याद हमारी उनकी आई, न जाने कितनी बार।।
शुभम आनंद मनमीत