Shubham Anand Manmeet हिंदी साहित्य का सेवक समस्तीपुर बिहार
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न जाने कितनी बार । याद हमारी उनकी आई. न जाने कितनी बार । तन्हाइयों से हुई लड़ाई, न जाने कितनी बार । वो मेहंदी वाली हाथो में । वो हंसी ठिठोली बातों में । इक अजब सा मंजर होता था. वो चाँदनी वाली
प्रेम अपने साथ बहुत कुछ हर ले जाता है। आंखों की नींद। मन का सुकून। खुद की परवाह। बदले में दे जाता है। आंखों में, समंदर भरके आंसू । और कभी ना खत्म होने वाला एक अदद अकेलापन। Shubham Anand Manmeet