मोक्ष पाना तुम्हारा अधिकार है सुख भोगने तुम्हार अधिकार है आनंद में रहना तुम्हारा अधिकार है अर्थ धर्म काम और मोक्ष अर्थ धर्म काम और मोक्ष के पुरुषार्थ करके मोक्ष पाना तुम्हारे अधिकर है तुम किसी के बंधन तुम किसी के बंधन में नहीं हो जब तक शरीर में हो जब तक सीमित हो जैसे एक समुद्र और उसे समुद्र का पानी अपने हाथ की तेली पर समुद्र अनंत है और हाथ में रखा पानी सीमित लेकिन अगर वह सीमित से परे हो जाए हाथ में ना रहे तो वह अस्मित होकर अनंत हो जाता है पूरे समुद्र में व्याप्त इसी प्रकार हम शरीर से निकलकर अनंत हो जाते हैं और पूरे संसार में समाये होते हैं और चारों पुरुषार्थ जो है वह चारों पुरुषार्थ खुद को पहचानने के लिए ही बने हैं इसलिए अंत में पुरुषार्थ में कहा है मोक्ष यानी की अर्थ धर्म काम और मोक्ष