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मैं कौन हूॅं

24 November 2023

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आज फिर एकांत में
अपने ही अंतर्ध्यान में
अंतर्मन में वही प्रश्न
दोहराया की मैं कौन हूॅं?

हूॅं मैं नश्वर शरीर मात्र
या आत्मा अमर अविनाशी?
कौन हूॅं से ज्यादा क्यूॅं हूॅं
मैं इस धरा पर इसे
जानने की अभिलाषी।

हाॅं! कौन हूॅं मैं?
मोहपाश में बंधी माया
की अनुरागी या हूॅं मैं
स्वयं में ही मग्न एक वैरागी।

क्या मैं एक अज्ञानी हूॅं
जिसे स्वयं के अस्तित्व
का भान नहीं या..
एक जिज्ञासु जिसकी
जिज्ञासा का कोई अंत नहीं?

क्या मैं लक्ष्य से भटकी
हुई एक पथिक हूॅं या
क्या है लक्ष्य मेरा इसे
लेकर भ्रमित हूॅं?

क्या इस संसार में आने 
का मेरा भी अवश्य कोई
ध्येय होगा या ये मात्र
मेरा संदेह होगा?

क्या मैं जिसे बस अपने
सुख की कामना है
ऐसी स्वार्थी हूॅं या हो
कल्याण संपूर्ण विश्व
का इसकी प्रार्थी हूॅं?

क्या मैं साधना चाहे जो
अपने मन को वो साधक हूॅं
या अवगुणों से घिरी स्वयं ही
अपनी उन्नति की बाधक हूॅं?

जो है अंश शक्ति स्वरूपा का
क्या मैं वो मनस्विनी हूॅं या
तपस्या में तल्लीन एक
तपस्विनी हूॅं?

मन मेरा बार बार
कौन हूॅं मैं ढूंढता है
इस प्रश्न का उत्तर
चिंतन करती, मनन
करती हरबार रह
जाती हूॅं प्रत्युत्तर।

हाॅं! कौन हूॅं मैं?
क्या सच में हूॅं मैं
अद्वितीया या ये
है मात्र मेरी मिथ्या?

मन को बहुत दौड़ाया
पर कहीं नहीं उत्तर पाया
कि मैं कौन हूॅं?
इस प्रश्न के आगे मैं
अब भी मौन हूॅं।

- के. अद्वितीया