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आज फिर एकांत में अपने ही अंतर्ध्यान में अंतर्मन में वही प्रश्न दोहराया की मैं कौन हूॅं? हूॅं मैं नश्वर शरीर मात्र या आत्मा अमर अविनाशी? कौन हूॅं से ज्यादा क्यूॅं हूॅं मैं इस धरा पर इसे जानने की अ