यह मन में आ रहे विचारों को काव्य में पिरोया है और पाठकों को समक्ष प्रस्तुत है
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सफीना ले कर सागर की ओर जा रहा हूं मैं खुद अपनी खोज में जा रहा रहा हूंतेज बहुत तेज है सागर की ये हवाऐहो कर मस्त मलंग मैं इन के पास जा रहा हूंमैं खुद अपनी खोज में जा रहा रहा हूंजमाने के हिसा
चाहता है जो वो करता क्यों नहींजो कर रहा वो भी करता क्यों नहींकरता है जो वो तू करता क्यों नहींसोचा है कभी जो हो रहा है अभीये जो रहा है वो सोचा था कभीदिल पे हाथ रख बोल दे सभीजो भी है भरा वो खोल दे कहींस