जीवन नदी की तरह बहता रहता है,कभी नहीं रुकता।निरंतर गति शीलता ही इसका स्वभाव है।हम सब इस बहते नदिया मे तिरते नाव के सवार् है।नाव को ठीक से खेना हमारी सबसे पहली जिम्मेदारी है।यह एक कला है और इसे हमें निरनन्तर् सीखते रहना होगा।हर रोज़ कुछ नया इसमें जोड़ ना।इसमें ईश्वर पर पूर्ण विश्वास हमारा सम्बल है।अपने ऊपर पूरा भरोसा रखें और ईश्वर पर पूरी आस्था।
जय श्री कृष्ण