हम जीवन जीते है अपना पर पता नहीं रहता है की उसकी दिशा किधर की ओर रखें।हम चलते जाते है पर उसकी सार्थकता का ठिकाना पता नही रहता।एक अंधी दौड़ मे हम भागते चले जाते है।भौतिक वैभव जुटाना है।कार खरीदना है,बंगला खरीदना है।एक कार ख़रीदा फिर दूसरा खरीदना है,एक बंगला ख़रीदा ,अब दूसरा खरीदना है,एक के बाद दूसरा।ये लगातार चलता जा रहा है।इसका कोई अंत नहीं है,पर इन सब को जुटाने मे अपना पता ही भूल जाते है।अपने से इतनी दूर चले जाते हैं कि खुद को खो बैठते है।लौट आइये आपमें पास।आपको आपकी जरूरत है