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हम उस मोड़ पर आ चुके हैं

29 January 2024

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हम उस मोड़ पर आ चुके हैं 

की सब कुछ अब छोड़ कर आ चुके हैं 

दर-बदर से ठुकराये उम्मीदें तोड़ कर आ चुके हैं 

वो ना मिला तो क्या गिला 

हम ख़ुद को उसके पास छोड़ कर आ चुके हैं 

उसके अहसास को 

अपनी साँस से जोड़ कर आ चुके हैं 

जो शुकून तलब और ख़ुशी हैं हमारी 

वो हमसे दामन छोड़ कर जा चुके हैं 

वो  जिनके  वादे कई जन्मों के साहब

वो इसी जन्म में वादे तोड़ कर जा चुके हैं 

करके रुसवा हमारी मोहब्बत वो 

हमसे ही रिश्ता तोड़ कर जा चुके हैं 

जिनसे वफ़ा की उम्मीद थी कई अर्से से 

आज  वो ही वो उम्मीद तोड़ कर जा चुके हैं  

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fanindra's Diary
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लिखना तो चाह रहा हूँ सब कुछ मगर कुछ बातें हैं जो बयां नहीं हो सकतीं इसलिए कुछ अल्फ़ाज़ों में अपने अन्दाज़ से कुछ लिख रहा हूँ और मेरे ख़्याल से इतना ही काफ़ी हैं अगर पढ़ने में दिलचस्पी है आपकी मैं हूँ फणींद्र भारद्वाज जयपुर राजस्थान से जिसे आप गुलाबी नगर से भी जानते हैं लिखने का शौक़ है और कुछ खामोशियों की ज़िद्द भी है लफ्जों में उतरने की इसलिए लिखता हूँ क्योंकि ख्वाहिशें तो मार दिन बहुत कम से कम इन खामोशियों को बचा लूँ बस इस लिये इन्हें अल्फ़ाज़ों के ज़रिए काग़ज़ों पर उतार रहा हूँ उम्मीद है कि कोई पढ़ेगा ज़रूर मेरी खामोशियों की चीख को
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ख़्वाब टूट रहे हैं

29 January 2024
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कहीं ख़्वाब टूट रहे हैं  कहीं ख्वाहिशें  नीलाम हो रहीं हैं  कहीं वफ़ाएँ  दम तोड़ रही हैं  तो कहीं मोहब्बतें  बदनाम हो रहीं हैं  मंज़र तो अब ऐसा है की  इश्क़ में भी साज़िशें  सरेआम हो रही हैं 

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यूँ तो सभी में एक किरदार होता है

29 January 2024
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29 January 2024
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इंतज़ार ही हो हर बार  तो यार वो प्यार है क्या  हो प्यार का व्यापार  तो यार वो प्यार है क्या  सारे ख़्वाब ही हो जायें तार तार  मेरे  यार वो भी प्यार है क्या  ना हो प्यार में जो प्यार  तो यार वो

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हम उस मोड़ पर आ चुके हैं

29 January 2024
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हम उस मोड़ पर आ चुके हैं  की सब कुछ अब छोड़ कर आ चुके हैं  दर-बदर से ठुकराये उम्मीदें तोड़ कर आ चुके हैं  वो ना मिला तो क्या गिला  हम ख़ुद को उसके पास छोड़ कर आ चुके हैं  उसके अहसास को  अपनी साँ

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कितनो की ख़ुदगर्ज़ी देख चुका हूँ

29 January 2024
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संभलता रहा फिसलता रहा और वक्त के इशारों पे ढलता रहा  कितनी ठोकरें खायीं थी मैंने सफ़र में मग़र इरादे थे मज़बूत मैं चलता रहा  ख्वाहिशें मिटा दीं कुछ ख़्यालों से अपने  कुछ ख्वाहिशों की ख़ातिर मचलता

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कड़कती धूप में छाँव की ठंडी नमीं हो तुम

30 July 2024
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कड़कती धूप में छाँव की ठंडी नमीं हो तुम  मैं बंजर वीरान हूँ मगर मेरी सरज़मीं हो तुम  तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद ही नहीं  मेरी हर कमीं को लाज़मी हो तुम 

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